इन दलों का मकसद अपनी बहनबेटियों को इस पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से बचाना, अश्लीलता से बचाना और शादी से पहले सैक्स जैसी क्रिया से दूर रखना है. लेकिन, यह कौन होते हैं किसी भी लड़की को यह बताने वाले कि उसे शादी से पहले या बाद में क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इन में इतनी हिम्मत कहां से आती है कि ये खुलेआम चलती सड़क पर नारे लगाते हैं, लड़केलड़कियों को मारतेपीटते हैं?
इन्हें संरक्षण देता है धर्म. इन के ऊपर धर्म का हाथ है जिस के बल पर ये लड़केलड़कियों को अपनी उस संस्कृति में फंसाए रखना चाहते हैं जिस के अनुसार कृष्ण खुलेआम रासलीला रचाए तो सही और सीता रावण की लंका से अनछुई लौट भी आए तो गलत.
भगवाधारियों की लगातार बढ़ती गुंडागर्दी
एक दिन पहले ही इन भगवाधारियों के द्वारा यह चेतावनी दे दी जाती है कि ‘यदि कोई लड़कालड़की वैलेंटाइंस डे वाले दिन एकसाथ पार्क, गार्डन में दिख गए तो उन का स्वागत लाठी से करेंगे.’ यहां तक कि यह लड़केलड़कियों को उठवा भी लेते हैं. ऐसा नहीं है कि यह चेतावनी गुपचुप दी जाती है या पहचान छिपा कर मुखरित हुआ जाता है. ये लोग बाकायदा सड़कों पर उतर कर, मीडिया के सामने अपनी नफरत का खुलेआम एलान करते हैं, धमकियां देते हैं और बीच सड़क पर प्रदर्शन करते हैं. 14 फरवरी के दिन जगहजगह भगवाधारी घूम रहे होते हैं. इस दिन खासतौर पर पुलिसकर्मियों को कई इलाकों में तैनात किया जाता है ताकि कहीं भी किसी भी प्रकार की गुंडागर्दी न हो. यह खासकर मुजफ्फरनगर जैसे इलाकों में ज्यादा देखने को मिलता है. पुलिस की मौजूदगी में भी ये लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं.
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आरएसएस द्वारा लव जिहाद के नाम पर कितने ही लड़केलड़कियों को शोषित किया गया. इस और इस जैसे अन्य दलों के अनुसार मुसलिम लड़के हिंदू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उन से शादी करते हैं और फिर उन का धर्म परिवर्तन करा देते हैं. ये लोग वैलेंटाइन डे के दिन जिन लड़केलड़कियों को पकड़ते हैं वे यदि अलग धर्म या जाति के हों तो सम झो उन्हें, खासकर लड़कों को इन की मार से शायद ही कोई बचा पाए. धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ाने में भी इन्हीं गुटों का हाथ है.
पिछले साल ही फेसबुक पर ‘हिंदुस्तान वार्त्ता’ के नाम से एक ग्रुप था जिस में 100 से ज्यादा विधर्मी कपल्स की लिस्ट थी. यानी वे कपल्स जिन में लड़का मुसलमान और लड़की हिंदू थी. उस लिस्ट के साथ लिखा गया था, ‘हर हिंदू शेर से गुहार है कि वह इन लड़कों को पकड़े और मार गिराए.’ इस पेज को कुछ समय बाद ही फेसबुक से रिमूव कर दिया गया.
संस्कृति के ढकोसले क्यों
धर्म के चरमपंथियों का कहना है, ‘हम विदेशी संस्कृति की तरफ बढ़ते जा रहे हैं और वैलेंटाइन डे भी विदेशी संस्कृति की ही निशानी है.’ लेकिन जिन लोगों को यह लगता है कि प्रेम का प्रदर्शन करना या इस तरह का कोई दिन यानी वैलेंटाइन डे पश्चिमी सभ्यता की देन है और हमारी संस्कृति को बरबाद कर रहा है तो उन्हें तो हर रूप में फिर भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए. हमारी संस्कृति जींसटीशर्ट की नहीं, बल्कि, कुर्ताधोती की है. टैलीग्राफ, टैलीफोन, इंटरनैट, रेडियो, नैविगेशन सैटेलाइट्स, पैंसिल, बोलपौइंट पैन, फोटोकौपियर, इंकजैट प्रिंटर, प्लाज्मा डिस्प्ले स्क्रीन, स्टीम इंजन, मोटर, ट्रांसफौर्मर, इलैक्ट्रिक पावर, ग्लास, रबर, औटोमोबाइल, एरोप्लेन, साइकिल इत्यादि सभी पश्चिम की देन हैं. अगर पश्चिमी सभ्यता इतनी ही अखरती है तो इन सब चीजों को त्यागने के बारे में ये लोग क्यों नहीं सोचते?
ब्राह्मणों का वैलेंटाइन डे को या प्रेम को इतना दोयम दर्जे का मानने व बनाने की कोशिश के पीछे साफ कारण है – उन की दलाली पर चोट. ब्राह्मणों का काम आखिर है ही क्या? शादी कराना, कुंडलियां मिलाना, मंदिर में आए लोगों को प्रवचन सुनाना. जितना ये पंडित शादियों में कमाते हैं उतना तो शायद ही कहीं कमाते हों. जब लड़केलड़कियां लव मैरिज करने लगेंगे तो ये बीच में दलाली कैसे करेंगे. इन्हें बिचौलिया बनने के पैसे फिर कौन देगा.
हिंदू धर्म में कोई त्योहार हो या पूजापाठ, पंडितों को बुला कर उन्हें खाना खिलाया जाता है और दानदक्षिणा भी दी जाती है. कई त्योहारों में तो ये खुद घरघर घूमते हैं और जेबें भरते हैं. राखी, होली, दीवाली ये इन के कुछ ऐसे प्रमुख त्योहार हैं जिन में इन्हें दानदक्षिणा इन की इच्छा के अनुसार मिल जाती है. लेकिन, वैलेंटाइन डे ऐसा दिन है जिस में इन की जेबें खाली ही रह जाती हैं. वैलेंटाइंस डे है यानी प्यार है, प्यार यानी प्रेमविवाह, और जब प्रेमविवाह होगा तो इन जैसों को कौन पूछेगा.
किस ने दिया अधिकार
सवाल उठता है कि किसी भी प्रेमी जोड़े, वह भी बालिग जोड़े, के साथ इस तरह पेश आने का अधिकार क्या किसी संगठन या समाज के ठेकेदारों को है? नहीं. कोई भी आ कर किसी भी लड़कालड़की के साथ मनमानी क्यों करने लग जाता है? लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठाया जाता है. प्रेमियों को धमकियां दी जाती हैं कि घरवालों को बुलाया जाएगा, उन के सामने बेइज्जत किया जाएगा. यदि कोई लड़कालड़की क्लब जाते हैं, साथ गाते हैं, नाचते हैं, तो इन्हें इस बात से भी दिक्कत है. क्या इन लोगों ने कभी जागरण और कीर्तन में औरतों का फूहड़ तरीके से नाचना नहीं देखा? देखा तो सब ने होगा लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता क्योंकि यह धर्म से जुड़ा है.
अरे, अब क्या लड़केलड़कियां जीना छोड़ दें? सतयुग में चले जाएं और कमर से 6 इंच ऊंचा ब्लाउज पहन राजामहाराजों को नृत्य दिखाएं, उन का मनोरंजन करें? यह संस्कृति के खिलाफ नहीं है. लेकिन लड़केलड़कियां मनमुक्त घूमें तो वह संस्कृति की धज्जियां उड़ाना है? अगर यह भारतीय संस्कृति है जहां लड़की भोगविलास और घर में बंद रहने के लिए ही है तो ऐसी संस्कृति की धज्जियां उड़नी ही चाहिए.
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प्रेम की आजादी आखिर क्यों नहीं
लड़केलड़कियां यदि एकदूसरे से प्यार करते हैं, एकदूसरे के साथ घूमफिर कर के बातें करना चाहते हैं, वैलेंटाइन डे मनाना चाहते हैं, सैक्स करना चाहते हैं तो इस में गलत क्या है? जब यह तर्क दिया जाता है कि 17 साल की लड़की मां बनी घूम रही है तो इस के पीछे सैक्स एजुकेशन की कमी को कोई उजागर क्यों नहीं करता? जब यह तर्क दिया जाता है कि देश की संस्कृति पर चोट हो रही है तो प्रेमियों की जबरदस्ती शादी करा कर देश के कानून पर चोट क्यों की जाती है? जब लड़की के अस्तित्व को बहन, बेटी और बीवी के रूप में बांधने की कोशिश की जाती है, तो दुर्गाकाली को पूजने का दिखावा क्यों किया जाता है?
देश में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन में ये भगवाधारी अपना योगदान दें तो देश का और समाज का भला हो जाए. बेचारे बच्चे यदि अपने जीवन में प्रेम पा कर थोड़े खुश हो भी रहे हैं तो ये अपनी नाक घुसाने चले आते हैं. समाज में चूंकि प्यार को गलत ठहराया जाता है, खुलेआम करने पर मारपिटाई होती है, घर में अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड को लाना मना होता है इसलिए प्रेमी छिपछिप कर मिलनेजुलने के लिए मजबूर होते हैं. आप प्रेम को सही कह कर देखिए, जिस अश्लीलता की दुहाई देते हैं वह बंद हो जाएगी, गले मिलना, साथ बैठना भी साधारण लगने लगेगा. प्रेम को प्रेम ही रहने दो, धर्म का चप्पू चला कर उस की नैया मझधार में मत डुबाओ.
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Valentines’ Special : प्यार के इकलौते युवा त्योहार पर धर्म का डंडा- भाग 1