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‘आप’ और केजरीवाल

आम आदमी पार्टी में चल रहा घमासान एक पौधे के पेड़ बनने की स्वाभाविक प्रक्रिया है, खासतौर पर तब जब पेड़ विषम, दुर्गम परिस्थितियों में उग रहा हो और सब उसे उखाड़ने में लगे हों. आम आदमी पार्टी मुख्यतया अरविंद केजरीवाल की देन है, यह मानना पड़ेगा. जनता को, आप नेताओं को और समर्थकों को भी. पार्टी में सबकुछ उन्हीं की मरजी से हो, यह जरूरी नहीं पर उन की मरजी के खिलाफ कुछ हो, यह मंजूर भी नहीं हो सकता.

अरविंद केजरीवाल ने बहुत से जोखिम लिए हैं. उन्होंने ही तिनकातिनका इकट्ठा कर घोंसला बनाया है. अब तिनके अपनेआप को घोंसले का रखवाला मानने लगें तो यह उचित नहीं है. प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव अच्छे हैं, समझदार हैं. अरविंद को उन की जरूरत है पर इस का अर्थ यह नहीं कि वे पार्टी की कमेटियों में अपनी मरजी के फैसले कर उन पर पार्टी और अरविंद को चलने की जिद करें. ये दोनों अच्छे तर्क दे सकते हैं और पार्टी की कमेटियों में बोलते भी हैं पर ये ही सारी सूझबूझ रखते हों, जरूरी नहीं.

आम आदमी पार्टी में लड़ाई सत्ता में आ कर अभी पैसा बनाने की नहीं है. कभी यह शुरू जरूर होगी पर तब तक तो पार्टी के लोगों को छोटेमोटे अनुशासन में रहना ही होगा. यदि आम आदमी पार्टी में एक ही की चले, चाहे वह अरविंद केजरीवाल ही क्यों न हों, तो गलत होगा पर अगर दूसरे लोग पार्टी को अलगअलग राह पर ले जाने के लिए रस्साकशी करने लगें तो वह भी गलत होगा. ऐसा बहुत होता है कि शुरू से साथ चलने वाले किसी पार्टी, संस्था और कंपनी में अपना निजी हक जमाने लगते हैं जबकि वे और किसी 1 या 4-5 लोगों के योगदान को बहुमत के नाम पर कुचलने की कोशिश करते हैं. बहुत सी अच्छी पार्टियां अपने सदस्यों के इसी अहं की लड़ाई का शिकार हुई हैं.

आम आदमी पार्टी की दिल्ली की जीत का सेहरा केवल अरविंद के सिर पर बंधता है चाहे कितना ही योगदान योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का क्यों न हो. उन्होंने निरर्थक विवाद पैदा कर के चाय की प्याली में तूफान खड़ा कर दिया है. जनाब, चाय की प्याली को झील तो बनने दो, फिर अपने हक जमाना. अगर तब कुछ मिला तो हिस्से में कुछ तो आएगा ही. आज सिर्फ दिल्ली तक की सियासत में क्या ओढ़ोगे, क्या बिछाओगे?

इतराना तेरा

आईना कुछ इस तरह गुनगुनाने लगा है
वो उदास चेहरा अब मुसकराने लगा है
कोई मिल गया है सारा आलम है महका
अक्स इक झूमता खुद पे इतराने लगा है.

   – डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू

बच्चों के मुख से

मेरी बहू को एक स्कूल में टीचर के पद पर जौइन करने के लिए निमंत्रण मिला. खुशी का माहौल था. बहू जाने से पहले हमारी शुभकामनाएं लेने के लिए पैर छू रही थी, तभी अचानक मेरी पोती श्रेया दौड़ती हुई आई और अपनी मम्मी के दोनों हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मम्मी, अच्छे से मन लगा कर काम करना और दुनिया में मेरा नाम रोशन करना,’’ इतना कह कर दूसरे ही पल वह वापस खेलने के लिए भाग गई. हम लोगों द्वारा अकसर कही जाने वाली बातों में से इस खूबसूरत पंक्ति का इतना सही समय व सटीक प्रयोग सुन कर हम सभी मुसकरा पड़े.

मधुरिमा सिंगी, भोपाल (म.प्र.)

*

कुछ समय पूर्व की बात है. मेरी बड़ी बहन के यहां बिल्लियों ने बहुत ऊधम मचा रखा था. वे रोज आ कर दूधदही चट कर जाती थीं. एक दिन वे चाय बनाने के लिए किचन में गईं तो देखा, दूध गायब था. इस पर वे चिल्ला उठीं और कहने लगीं, ‘न जाने ये बिल्लियां दूधदही पर ही क्यों गिरती हैं.’ उन के पास ही उन का पोता खेल रहा था. वह बोला, ‘दादी, बिल्लियों में कैल्शियम की कमी होती है. इसीलिए वे दूधदही पीती हैं.’ बच्चे के मुंह से यह बात सुन कर हम सभी हंसने लगे.

कृष्णा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

*

मेरा 6 साल का पोता टीवी पर बड़े गौर से पुराना गाना सुन रहा था. एकदम बोला, ‘‘दादी, गाय पेड़ पर चढ़ जाती है.’’ दादी बोलीं, ‘‘गाय पेड़ पर? नहीं तो, गाय कैसे चढ़ जाएगी. पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’ वह फिर बोला, ‘‘दादी, देखो न, टीवी में लड़की गा रही है-अमवा की डाली पे, गाय मतवाली कोयलिया काली.’’ मैं हंसतेहंसते बहुत मुश्किल से समझा पाई कि यहां गाय का मतलब गाने से है.

शशि गोयल, आगरा (उ.प्र.)

*

मेरा छोटा बेटा संगम आंगन में रखी बालटी का पानी गंदा कर रहा था. उस के कपड़े गीले हो गए थे. मेरी पत्नी ममता, जो रसोई में खाना बना रही थी, ने जब देखा तो गुस्से में बोली, ‘‘रुकरुक, मैं अभी आती हूं, तुझे बताती हूं, घबरा मत.’’ कुछ क्षण बाद, मम्मी को अपनी तरफ न आता देख कर, संगम बोला, ‘‘मम्मी, जल्दी आओ, मैं घबरा रहा हूं.’’ उस की यह बात सुन कर हम सभी जी भर के हंसे.

कुलदीप कुमार, सरोजिनी नगर (न.दि.)

ये है यूएसए मेरी जान

विदेश की सैर का जो मजा अमेरिका देखने में है वह अन्यत्र नहीं. इस का मुख्य कारण तो यह है कि यह देश विविधता से परिपूर्ण ही नहीं, रेसिज्म से भी मुक्त है. यहां आप के पैसों का पूरा मोल भी वसूल हो जाएगा, यूरोप के मुकाबले खर्च कम होगा. इस के नियाग्रा फौल व स्टैच्यू औफ लिबर्टी जैसे स्थल आप को चकित कर देंगे. मैं 5वीं बार पति के संग यूएसए आई हूं मगर दिल है कि मानता ही नहीं. इस के 50 राज्यों में से अब तक हम ने मुश्किल से 10 ही देखे होंगे और वे भी आंशिक रूप से. अमेरिका को देख कर हम चकित और चमत्कृत हो जाते हैं और बरबस इस की तुलना दुनिया की एक अन्य उत्तम डैमोक्रेसी से करने लगते हैं, जिस का नाम है भारत.

हम भारतीय व दुनिया के लोग अमेरिका को अमरीका, यूएसए, यूएसए, युनाइटेड स्टेट्स, यूएसए औफ ए आदि नामों से जानते हैं. मगर है यह वही जिस की राजधानी वाशिंगटन डीसी है. इस की आर्थिक राजधानी न्यूयार्क है. जी हां, वही न्यूयार्क जिसे ‘बिग ऐप्पल’ भी कहते हैं और जिसे दुनिया हमारे इस प्लैनेट की वैश्विक राजधानी इसलिए मानती है कि विश्व की 300 भाषाएं बोलने वाले हर धर्म के लोग आपसी भाईचारे के संग खुशीखुशी यहां रहते हैं. दरअसल, इस की विविधता ही इस की उन्नति और ख्याति का असली रहस्य है.

अपनी यात्रा यहीं से शुरू करें तो बेहतर होगा क्योंकि अमेरिकी विज्ञान की असली झलक आप को यहीं सब से अच्छी दिखेगी. यही वह शहर है जहां ऐडिसन का बल्ब सब से पहले चमका और विश्व की पहली लिफ्ट ओटिस ने लगाई. तब लिफ्ट को वर्टिकल रेल कहा गया था. कभी दुनिया की सब से ऊंची रही 102 मंजिल की ‘ऐंपायर स्टेट बिल्ंिडग’ यहीं खड़ी है. अब इस से भी ऊंची बिल्डिंग ‘फ्रीडम टावर’ आप देख सकेंगे.

न्यूयार्क स्टौक ऐक्सचेंज ‘वाल स्ट्रीट’ को जुकाम लगे तो दुनिया के अन्य ऐक्सचेंज भी स्वत: छींकने लगते हैं. रातदिन रंगबिरंगी लाइटों से जगमगाते इसी शहर को ‘द सिटी दैट नेवर स्लीप्स’ कहा गया है. स्टैच्यू औफ लिबर्टी वाले इस शहर की साजसज्जा और रौनक देखनी हो तो यहां के टाइम्स स्क्वायर में देखिए. मैट्रो ट्रेन, बस, टैक्सी, फेरी बोट आदि ट्रांसपोर्ट सुविधाओं से सज्जित इस शहर में 150 से ज्यादा म्यूजियम हैं. म्यूजियम औफ नैचुरल हिस्ट्री में रखा बड़ा सा उल्कापिंड सभी को भाता है. इस में रखे असली डायनासोर कंकाल आप को चकित करेंगे.

न्यूयार्क सिटी दरअसल न्यूयार्क स्टेट की राजधानी है. इस राज्य में अनेक अन्य चीजें हैं मगर नियाग्रा फौल जैसे दर्शनीय स्थल अद्भुत हैं. हड्सन नदी व अटलांटिक सागर के मुहाने पर बसे न्यूयार्क शहर से एक टूरिस्ट बस लीजिए और राजधानी वाश्ंिगटन घूम आइए. चीनी लोगों द्वारा औपरेटेड टुअर काफी सस्ते पड़ते हैं. हां, थोड़ाबहुत वैजीटेरियन खाना साथ रखें तो बेहतर, बिस्कुट तो हमेशा रखें ही.

वाश्ंिगटन भी देख कर आप का मन खिल उठेगा. मजे की बात है कि यहां कई दर्शनीय स्थलों के पैसे अलग से नहीं देने पड़ते जिन में स्मिथसोनियन एअर ऐंड स्पेस म्यूजियम भी शामिल है. इस में आप को अमेरिका की ऐरोनौटिकल व स्पेस संबंधी प्रगति व उपलब्धियों के अंतरंग दर्शन हो जाएंगे. अपोलो यानों द्वारा लाई गई चंद्र चट्टान का एक टुकड़ा प्रवेश हाल में रखा है जिसे छू कर आप एहसास कर सकते हैं मानो आप चांद चुरा लाए हों. यहां उपलब्ध सुवेनियर अवश्य खरीदिए. मसलन, 1 डौलर में अपोलो-11 का चंद्र मैडल. ढेरों लीजिए व भारतीय रिश्तेदारों के बच्चों में बांटिए.

इसी म्यूजियम के करीब म्यूजियम औफ नैचुरल हिस्ट्री है जिस के केंद्रीय हाल में एक विशाल मैमथ हाथी सज्जित है. छोटेछोटे जीवों से ले कर डायनासोर तक के अति सजीव व सुंदर मौडल यहां आप देख कर जगत का ज्ञान हासिल कर सकेंगे. कई और स्मिथसोनियन म्यूजियम भी आसपास हैं जहां प्रवेश शुल्क नहीं है. वाश्ंिगटन में आप जौर्ज वाश्ंिगटन यूनिवर्सिटी के आसपास रहें तो एक तरफ व्हाइट हाउस, कैपिटल वगैरह हैं तो दूसरी ओर लिंकन मैमोरियल पास ही पड़ेंगे. लिंकन मैमोरियल के करीब ही नैशनल एकेडमी औफ साइंसेज के आंगन में आप को आइंस्टाइन मैमोरियल देखने को मिलेगा जिस में आइंस्टाइन की विशाल प्रतिमा विचारमुद्रा में दर्शनीय है. थोड़ा पैदल चलेंगे तो विशाल सरकारी भवनों का सौंदर्य ठीक से देख सकेंगे.

अमेरिका कोरिया, वियतनाम, इराक व अफगानिस्तान जैसे देशों से युद्ध भी लड़ चुका है. यहां कोरियावियतनाम वार मैमोरियल स्थापित है. यहां पोटोमैक नदी के दूसरी ओर एक आरलिंगटन सिमैट्री विशाल इलाके में फैली है जहां कैनेडी से ले कर देश पर जान देने वाले हर योद्धा की कब्र है. यह दृश्य आप को विचलित करेगा. वाश्ंिगटन में मैट्रो ट्रेन लेंगे तो सस्ते में जल्द घूम सकेंगे. वाश्ंिगटन मौन्यूमैंट तथा अमेरिका का इतिहास जानने का मौका आप को वाश्ंिगटन में बढि़या मिलेगा.

यूएसए एक अंगरेजीभाषी देश है. यह एक बड़ी सुविधा है. यद्यपि यहां की अंगरेजी बोली शुरू में अलग लगेगी पर आप जल्द ही अभ्यस्त हो जाएंगे. सो, चिंता न करें. हां, आप दैनिक सामान में एक छाता भी अवश्य रखें, न जाने कब काम आ जाए. हमारा सुझाव है कि अगर आप अस्थमा रोगी हैं तो मार्च से अगस्त के दौरान ही जाएं क्योंकि सर्दी में ठंडी बारिश, ठंडी हवा, स्नो आदि आप को परेशान कर सकते हैं.

यूएसए का पूर्वी उत्तर क्षेत्र ठंडा है जिस में न्यूयार्क, कोलराडो तथा शिकागो वगैरह आते हैं तो विंटर में ज्यादा ठंडे होंगे ही. हां, यूएसए के फ्लोरिडा व कैलीफोर्निया राज्य अपेक्षाकृत काफी गरम हैं. ठंडे मौसम में इन का पर्यटन कर सकते हैं. आप को पता होगा कि फ्लोरिडा अपने स्पेस सैंटर, मयामी बीचेज व ओरलैंडो डिजनीलैंड वगैरह के लिए काफी मशहूर है. फ्लोरिडा बरमूडा ट्राइएंगल का एक कोना भी है. विंटर में पानी के जो हिम, पाला, तुषार, स्नो, स्लीट, ब्लिजर्ड जैसे विविध रूप हमें दिखते हैं, वैसे देख पाना अपने देश में मुमकिन नहीं. बच्चे तो इन चीजों से चमत्कृत हो कर स्नोमैन बनाने में मशगूल हो जाते हैं. वाश्ंिगटन शहर इतना दिलचस्प है कि पर्यटकों के साथसाथ स्थानीय लोगों को भी वीकेंड्स के लिए खूब आकर्षित करता है. बच्चों के लिए इंटरनैशनल स्पाई म्यूजियम, ब्यूरो औफ एनगे्रविंग ऐंड पिं्रटिंग, यूएसए बोटैनिकल गार्डन व नैशनल जू भी यहां के बड़े आकर्षण हैं.

सच तो यह है कि यूएसए म्यूजियमों का देश कहा जा सकता है. हम भारतीयों को यह कला सीखनी है. बहरहाल, आप वाश्ंिगटन घूम कर न्यूयार्क वापस आएं तो पास के कनेक्टिड राज्य का फौक्सवुड्स कसीनो तथा न्यूजर्सी का लिबर्टी साइंस सैंटर भी अवश्य देख लें. डेलेवेयर राज्य वह पहला राज्य है जो अमेरिकी संविधान स्वीकारा, सो, यहां का फर्स्ट स्टेट नैशनल मौन्यूमैंट व अन्य ऐतिहासिक स्थल भी दर्शनीय हैं. कई और मशहूर राज्य भी न्यूयार्क के पड़ोसी हैं. ऊपर डेलेवेयर की बात हुई जोकि फर्स्ट स्टेट कहलाता है. अन्य राज्य हैं पेनसिल्वेनिया जिस के फिलाडेल्फिया और पिट्सबर्ग जैसे शहर मशहूर हैं. इस राज्य ने अंगरेजों से मुक्ति दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई जैसा कि यहां के मशहूर मौन्यूमैंट्स आप को बताते हैं. एक अन्य पड़ोसी राज्य है मैसाच्युसेट्स जिस का बोस्टन शहर ‘बोस्टन टी पार्टी’ के साथसाथ कई अन्य चीजों के लिए भी विश्वप्रसिद्ध है. और हां, पड़ोसी राज्य मैरीलैंड से ही पोस्टल सिस्टम सन 1774 में शुरू हुआ था, शहर था बालटीमोर. इसी शहर और वाश्ंिगटन के बीच सन 1844 में टैलीग्राफ सिस्टम स्थापित हुआ था. इस राज्य को संपूर्ण अमेरिका का प्रतिनिधि माना जाता है और इसी कारण इसे ‘अमेरिका इन मिनिएचर’ कहा जाता है.

मैरीलैंड का अन्नापोलिस शहर कभी अमेरिका का एथेंस माना जाता था. यह शहर अमेरिका की राजधानी भी रह चुका है. एक अन्य पड़ोसी रोड आईलैंड शुरुआती 13 राज्यों में शामिल है. यहां कई स्टेट पार्क्स दर्शनीय हैं. अमेरिका के आश्चर्य देख आप मुग्ध हो जाएंगे. स्टैच्यू औफ लिबर्टी, नियाग्रा फौल, लिंकन मैमोरियल व द ऐंपायर स्टेट बिल्ंिडग का जिक्र हम कर चुके हैं. इन के अतिरिक्त अलगअलग राज्यों में माउंट दशमोर, जायोन नैशनल पार्क, ऐडगर हूवर डैम, गोल्डन गेट ब्रिज, डेविल्स टावर, योसेमाइट नैशनल पार्क, द ग्रैंड कैन्यन द एवरग्लेड्स जैसे अन्य कई आश्चर्य भी बिखरे हैं.

यूएसए का हवाई आईलैंड्स शायद आप न देख पाएं, उस के लिए कुछ विशेष अतिरिक्त प्रयास करने पड़ेंगे. परंतु है यह मजेदार जगह, जिसे अमेरिकी लोग स्वयं के टूरिज्म के लिए भी चुनते हैं. इस का वही आनंद है जोकि अपने देश में गोआ का है. क्या यह मुमकिन है कि हम हौलीवुड का जिक्र न करें? इसे देखने के लिए आप को न्यूयार्क से पश्चिम की ओर 6 घंटे उड़ना होगा और पहुंचना होगा लास एंजिलिस. इस शहर के हौलीवुड क्षेत्र में सड़क के किनारे पेवमैंट पर आप के चहेते अभिनेता व अभिनेत्रियों के बचपन के हाथपैरों के निशान गुदे हुए हैं. यहां के कोडेक औडिटोरियम की शोभा औस्कर अवार्ड जैसे फंक्शन के दौरान कई गुना बढ़ जाती है. लास एंजिलिस का डिजनीलैंड देखेंगे तो यकीन मानिए आप को यहां से जाने का मन नहीं करेगा. यूएसए के पश्चिमी क्षेत्र में ही कई और आश्चर्यजनक नजारे हैं जिन में ग्रैंड कैन्यन को देख हम सच में भावविभोर हो उठे. पहाड़ों को काट नदी ने जो हजारों साल में यह नजारा बनाया है, वह धूपछांव में अठखेलियां करता सचमुच अलौकिक लगता है.

किराए की बात करें तो सेन फ्रांसिस्को में होटल्स के डेली रेट 158 डौलर, डेनेवर में 98 डौलर, शिकागो में 119 डौलर, न्यूयार्क में 244 डौलर, मियामी में 156 डौलर प्रतिदिन के हिसाब से खर्चने पड़ते हैं.

कब जाएं

यूएसए जाने के लिए मई से अगस्त के बीच का समय सर्वोत्तम है. यूएसए में भौतिकवाद कुछ अधिक है परंतु यहां रहेंगे तो इसे समझना आसान होगा. यहां बच्चों को डांटनापीटना भी संभव नहीं, केवल प्यार से उन्हें हैंडल करना होता है. एक अच्छी बात है कि पिछले 10 वर्षों में भारतीयों की छवि यूएसए में खूब निखरी है. यहां घूमते हुए आप ऐसा कुछ न करें जिस से इस छवि को नुकसान पहुंचे.

जरूरी बातें

विदेश प्रवास का आनंद तभी पूरा ले सकते हैं जब आप स्वस्थ हों. इस का अर्थ यह कतई नहीं कि आप अगर ब्लडप्रैशर या डायबिटीज के मरीज हैं तो प्रवास न करें. अलबत्ता, चलते वक्त जरूरत की दवाएं, बिल समेत अवश्य रख लें. हां, निकलने से पहले दंत चिकित्सक से अवश्य मिल तसल्ली कर लें. अमेरिका में हर नल में ठंडा और गरम दोनों पानी आते हैं. बहुत ज्यादा गरम पानी से कुल्ला वगैरह करते रहना दांतों के लिए ठीक नहीं. बहुत गरम खाना खाने से परहेज करें. और हां, टूथपेस्ट साथ में रखें. बाकी सामान मौसम के हिसाब से लाएं पर फालतू सामान न रखें.

लग्जरी पैकेज शाही अंदाज में सैरसपाटा

घुमक्कड़ लोग 2 मिजाज के होते हैं. पहले वाले घुमक्कड़ पर्यटन स्थलों के सैरसपाटे से ही वास्ता रखते हैं. उन के लिए कहां रुकना है या फिर कहां खानपान होगा, ज्यादा माने नहीं रखता. जबकि दूसरे मिजाज के पर्यटक पर्यटन स्थलों को जितनी तरजीह देते हैं उतनी ही तरजीह रहने के शाही ठौर और खाने के मशहूर ठिकानों को देते हैं. दूसरे मिजाज के इन्हीं पर्यटकों के लिए लग्जरी पैकेज का चलन बना है. आमतौर पर लग्जरी पैकेज कुलीन वर्ग या कहें एलीट क्लास के लोग ही अफोर्ड कर सकते हैं क्योंकि इन में शानदार इंटरकौंटिनैंटल रेस्तरां, होटल, लग्जरी रिजौर्ट, पांचसितारा होटल शामिल होते हैं. लेकिन ऐसी कोई शर्त नहीं है कि आम मध्यमवर्गीय लोग लग्जरी पैकेज नहीं ले सकते, साल में 5 बार नहीं तो साल दो साल में 1 बार तो वे भी लग्जरी पैकेज का आनंद ले ही सकते हैं. लग्जरी पैकेज में हम आप के लिए लाए हैं कुछ चुनिंदा पर्यटन ठिकानों के बारे में जानकारीपरक फीचर, ताकि इन छुट्टियों में आप भी लग्जरी टूरिज्म का यादगार अनुभव ले सकें.

पैलेस औन व्हील्स

लग्जरी पैकेज में पैलेस औन व्हील्स एक ऐसा विकल्प है जो सफर में ही पर्यटन का इतना लुत्फ देता है कि किसी मंजिल तक जाने की जरूरत ही नहीं होती. यानी चलतेचलते ही सैर कर होटल, रेस्तरां और पर्यटन का पैकेज एकसाथ लिया जा सकता है. इसीलिए पैलेस औन व्हील्स सिर्फ देसी पर्यटकों के लिए ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानियों को भी खासा भाता है. राजामहाराजाओं की जीवनशैली और ठाटबाट के साथ राजस्थान की सैर कराने वाली आलीशान ट्रेन ने उत्तर भारत की सर्वश्रेष्ठ लग्जरी ट्रेन का खिताब जीता है. इस ट्रेन को राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड एवं भारतीय रेलवे द्वारा संचालित किया जाता है. मेहमाननवाजी एवं परंपरागत शाही अंदाज के लिए हर कोई इस की सवारी एक बार जरूर करना चाहता है. ट्रेन में राजसी जीवनशैली के ठाट हैं तो वहीं पर्यटकों की मौडर्न जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्पा और हैल्थ क्लब, जिम आदि का भी इंतजाम है. जरा सोचिए चलती ट्रेन में प्रत्येक सैलून में वाशरूम के साथ वाटर प्यूरीफायर्स की सुविधा के साथ मनोरंजन का भी इंतजाम हो तो कौन नहीं चाहेगा कि यह सफर यों ही चलता रहे. इस गाड़ी में पांचसितारा होटल जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं.

फलकनुमा पैलेस

दक्षिण भारत में अगर लग्जरी पर्यटन का मजा लेना है तो ताज फलकनुमा से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता. बजट यहां भी मोटा होगा लेकिन जिस शाही अंदाज की सुविधाएं यहां मिलती हैं उन्हें देखते हुए इसे महंगा कहना सही नहीं होगा. फलकनुमा पैलेस की हाल में चर्चा सलमान खान की बहन अर्पिता की शादी के दौरान जम कर हुई थी. वैसे फलकनुमा पैलेस अपने शाही मेहमानों के लिए काफी अरसे से मशहूर माना जाता है. यहां आ कर अगर आप को बीते दौर के निजाम या महाराजा जैसा फील हो तो आश्चर्य की बात नहीं.

इतिहास : हैदराबाद का यह लग्जूरियस पैलेस पैगाह हैदराबाद स्टेट से ताल्लुक रखता है. इस पर बाद में निजामों ने आधिपत्य किया. 32 एकड़ में फैला यह शाही महल चारमीनार से महज 5 किलोमीटर दूर है. इसे नवाब विकार उल उमरा ने बनवाया था जो तत्कालीन हैदराबाद के प्रधानमंत्री थे. फलकनुमा यानी आसमान की तरह या आसमान का आईना. इस की रचना एक अंगरेजी शिल्पकार ने की थी. इसे कुल 9 साल में पूरा किया गया. इटैलियन पत्थर से बना यह फलकनुमा 93,971 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है. सर विकार इस स्थान को अपने निजी निवास के तौर पर प्रयोग करते थे, बाद में यह हैदराबाद के निजाम को सौंप दिया गया.

फलकनुमा पैलेस के निर्माण में इतनी अधिक लागत आई कि एक बार तो सर विकार को भी एहसास हुआ कि वे अपने लक्ष्य से कहीं ज्यादा खर्च कर चुके हैं. बाद में उन की बुद्धिमान पत्नी लेडी उल उमरा की चालाकी से उन्होंने यह पैलेस निजाम को उपहार में दे दिया जिस के बदले में उन्हें इस पर हुए खर्च का पूरा पैसा मिल गया. बाद में निजाम ने इस महल को शाही अतिथि गृह की तरह से प्रयोग करना शुरू कर दिया क्योंकि इस से पूरे शहर का नजारा देखने को मिलता था. सन 2000 तक यह पैलेस सामान्य जनता के लिए बंद था.

शाही ठाट : वर्ष 2000 में इस को मौडिफाइड कर 2010 में पर्यटकों और शाही मेहमानों के लिए खोल दिया गया. इस के कमरों व दीवारों को फ्रांस से मंगाए गए और्नेट फर्नीचर, हाथ के काम किए गए सामान तथा ब्रोकेड से सुसज्जित किया गया. यहां बिलियर्ड्स रूम भी है जिसे कि बोरो और वाट्स ने डिजाइन किया था. इस में स्थित टेबल अपनेआप में अद्भुत है क्योंकि ऐसी 2 टेबल्स का निर्माण किया गया था जिन में से एक बकिंघम पैलेस में है तथा दूसरी यहां स्थित है. खानपान के मामलों में तो यहां निजामों वाला शाही इंतजाम है. 101 सीट्स वाला भोजनगृह है जिसे दुनिया का सब से बड़ा डाइनिंग हाल माना जाता है. यहां का दरबार हाल भी काफी आकर्षक है.

शाही होटल्स : फलकनुमा के सभी कमरों में शाही फाइवस्टार होटल के जैसे इंतजाम हैं. इंटरनैट, बिजनैस सैंटर, जिम, पूल, बेबी सिटिंग सर्विस, ब्यूटी सैलून, कौन्फ्रैंस सर्विस, नौनस्मोकिंग रूम, कौकटेल लाउंज, जकूजी मसाज सर्विस, बौडी ट्रीटमैंट, बैंक्वेट, जेड रूम, हुक्का लाउंज, बिलियर्ड ऐंड डाइनिंग रूम जैसी शाही सुविधाएं हैं. साथ ही संगीत के विशेष कार्यक्रमों की सौगात भी है.

खानपान : जितना शाही यह पैलेस है उतना ही शाही यहां का खानपान है. खाने के नाम पर नवाबी अंदाज में बार्बेक्यू रेस्तरां में शाही लजीज कबाब और रौयल अंदाज में बिरयानी सर्व की जाती है. जेड रूम में लंच, स्पैशल खाना, चौकलेट शैंपेन और कई रौयल डिशेज परोसी जाती हैं. वाइन लिस्ट में दुनियाभर की वाइन का इंतजाम होता है. वहीं, बे्रकफास्ट में जेड वरंदाह में परंपरागत हैदराबादी डिश, चारमीनारी ब्रेकफास्ट, टर्किश और साउथ इंडियन खाना खास है. हालांकि यह सुविधा सिर्फ विंटर्स में मिलती है. रौयल टैरेस में भी इंडियन, चाइनीज और कौंटिनैंटल की सारी डिशेज फलकनुमा के टैरेस में रौयल अंदाज में परोसी जाती हैं. हुक्का लाउंज में फ्लेवर्ड हुक्का की बेहतरीन वैराइटीज और रोमांटिक मूड का खास इंतजाम है.

कुल मिला कर इस

के होटल में लग्जरी के सारे विकल्प मौजूद हैं. कौन्फ्रैंस हाल दरबार में 500 मेहमान, जेड रूम में चायपान के लिए 40 मेहमान, राजस्थानी गार्डन में 150 मेहमान और बोर्डरूम में 17 लोगों का खास इंतजाम हर समय रहता है. होटल मैनेजमैंट की तरफ से लोकल टूर गाइड भी मुहैया कराया जाता है, जो आप को लग्जरी ठिकानों की सैर कराता है.

किराया : ताज फलकनुमा पैलेस में शुरुआती रेट 38 हजार से 40 हजार के बीच है. बाकी टूर औपरेटर्स के जरिए इस से कम की डील भी ली जा सकती है.

कैसे पहुंचें

हैदराबाद पहुंच कर इंजन बावली पहुंच गए तो समझ लीजिए आप फलकनुमा आ गए. पास में और भी पर्यटन स्थल जैसे कि नेहरू जूलौजिकल पार्क, चारमीनार, तारामती बारादरी, सालारजंग संग्रहालय भी हैं. यानी यहां शाही रहनसहन के साथ नजदीकी पर्यटन के अड्डों का भी मजा लेना बेहद आसान है. सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन से इस की दूरी 15 किलोमीटर है जबकि राजीव गांधी हवाई अड्डे से यह 17 किलोमीटर दूर है. अन्य जानकारियां इस की वैबसाइट ताज होटल्स डौट कौम पर मिल जाएंगी.

द लीला : गोआ

अकसर सैलानी गोआ जाने का मतलब वहां के बीच और आईलैंड ही मानते हैं और जब वहां के नजारे के साथ रहने के विकल्प खोजते हैं तो मुश्किल में फंस जाते हैं. कोई पेइंगगैस्ट ढूंढ़ता है तो कोई होटल के मामले में कन्फ्यूज्ड रहता है. जबकि गोआ में घूमने का मतलब ढेर सारी मस्ती, स्पा, बीच और शाही रहनसहन से है. भारत में ज्यादातर नए कपल्स हनीमून के लिए गोआ आते हैं.

लेकिन जरा सोचिए, अगर हनीमून के लिए शाही कमरा या होटल न हो तो फिर गोआ आने का मजा कैसा. इसलिए अगर अपना बजट थोड़ा सा संभाल सकते हैं तो गोआ का द लीला होटल न सिर्फ आप के हनीमून को यादगार बना सकता है बल्कि बीच और आईलैंड के बीच कमरे में रहने और शानदार सुविधाओं का यादगार तोहफा भी देता है.

शाही अंदाज

लीला होटल देशीविदेशी लोगों को लग्जरी के मामले में खासा भाता है. यह कई तरह के पैकेज देता है जो अलगअलग सीजन के हिसाब से मुफीद बैठते हैं. इस पांचसितारा होटल में 206 शानदार कमरे हैं जो वैलफर्निश्ड होने के साथसाथ वाईफाई तकनीक और अन्य आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं. इन मौडर्न डिजाइन कमरों में कई क्लास हैं. मसलन, लैगून टैरेस रूम, रूम लैगून, सुइट लैगून, डीलक्स सुइट, क्लब पूल सुइट, रौयल विला आदि. लीला में खानपान के नाम पर इंडियन से ले कर इटैलियन और सभी देशों के व्यंजन मिलते हैं. जरा सोचिए, चांदनी रात में होटल के पूल एरिया में डिनर करना कितना शाही अनुभव होगा. इस के अलावा कैफे, ब्रेकफास्ट सर्विस, बार, बार्बेक्यू ग्रिल और रेस्तरां आप को लग्जरी ट्रिप का पूरा मजा देते हैं. पूल एरिया में ही डांस, मस्ती और बार का भी इंतजाम है. लीला में बौडी मसाज से ले कर स्पा, जिम और बौडी ट्रीटमैंट के भी ढेरों विकल्प मौजूद हैं.

कहां और कैसे

दक्षिण गोआ में स्थित इस होटल तक पहुंचने के लिए एअरपोर्ट से 40 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इस के नजदीक मोबोर बीच काफी फेमस है. अन्य जानकारी इस की वैबसाइट लीला डौट कौम पर मिल जाएगी. पैकेज : लीला में समर गेटवे औफर, समर मानसून पैकेज सीजन के मुताबिक मिलते हैं जिन का किराया, 5 हजार रुपए से शुरू हो कर 10 हजार रुपए तक चलता है. अधिक जानकारियां इस की वैबसाइट द लीला डौट कौम/गोवा होटल्स पर मिलेंगी.

अन्य सुविधाएं : अन्य सुविधाओं में बार, रेस्तरां, बार्बेक्यू, इंटरनैट, बिजनैस सैंटर, जिम, पूल, बेबी सिटिंग सर्विस, ब्यूटी सैलून, कौन्फ्रैंस सर्विस, नौन स्मोकिंग रूम, कौकटेल लाउंज, जकूजी मसाज सर्विस, बौडी ट्रीटमैंट, बैंक्वेट, जेड रूम, हुक्का लाउंज शामिल हैं.

रामनिवास बाग

जयपुर खूबसूरत बगीचों का शहर है. जयपुर में केसर क्यारी, मुगल गार्डन, कनक वृंदावन, जयनिवास उद्यान, विद्याधर का बाग, सिसोदिया रानी का बाग, परियों का बाग, फूलों की घाटी, रामनिवास बाग, सैंट्रल पार्क, स्मृति वन जलधारा, जवाहर सर्किल, स्वर्ण जयंती उद्यान आदि दर्जनों उद्यान हैं. लेकिन रामनिवास बाग सब को मात दे कर चहेता पर्यटन स्थल बन गया है. यहां के बाग शहर के सब से खूबसरत उद्यानों में से एक हैं. 

इतिहास : रामनिवास बाग का निर्माण 1868 में जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने कराया. हवामहल का निर्माण कराने वाले महाराजा प्रतापसिंह सौंदर्योपासक थे. उन्होंने जयपुर की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किए जिन में उस समय का सब से खूबसूरत और विशाल उद्यान था रामनिवास बाग. राजस्थान एक कम वर्षा वाला राज्य है. इसलिए यहां के शासकों ने शहर को सुंदर बनाने और सर्वसाधारण को गरमी में विहार करने के लिए उपयुक्त स्थान देने के लिए बागबगीचों का निर्माण कराया. प्राकृतिक संतुलन के लिए भी यह जरूरी है. शाम के समय यहां राजपरिवार के सदस्य भ्रमण के लिए आते थे. अल्बर्ट हाल के स्थान पर एक केंद्रीय बड़ा गुलाब बगीचा था. हर शाम यहां विदेशी मेहमानों के परिवार और राजपरिवार के सदस्यों की मौजूदगी से खुशगवार माहौल बन जाता है. कुछ समय के लिए यह गार्डन नागरिकों के लिए भी खोला जाता था. रामनिवास बाग का निर्माण शहर को सूखे से बचाने के लिए किया गया था.

क्या है खास

रामनिवास बाग आधुनिक महानगर जयपुर के बीचोबीच है और अपने विस्तार व खूबसूरती से सभी को बहुत प्रभावित करता है. शहर के बीचोंबीच इतना बड़ा हराभरा भूभाग अपनेआप में एक मिसाल है. यह जयपुर को ग्रीन सिटी का दरजा दिलाने में अहम भूमिका निभाता है. यहां मनोरंजन के भी कई विकल्प हैं. यहां फुटबाल का एक बड़ा मैदान है. इस के अलावा इस के कई टुकड़ों में बने वर्गाकार बगीचों में नागरिकों के बैठने, सुस्ताने और आराम करने के लिए छायादार घने वृक्ष हैं. रामनिवास बाग परिसर में ही रवींद्र मंच, अल्बर्ट हाल, चिडि़याघर आदि हैं जो पर्यटकों के लिए मनोरंजन के विशेष साधन हैं.

आकर्षण : बाग के बीचोंबीच गोलाकार सर्किल में शहर का म्यूजियम अल्बर्ट हाल स्थित है. जब रामनिवास बाग बना था तब यहां यह म्यूजियम नहीं था. बाद में महाराजा प्रतापसिंह से माधोसिंह (द्वितीय) तक के कार्यकाल में इसे बना कर तैयार किया गया. वर्तमान में अल्बर्ट हाल रामनिवास बाग की पहचान बन गया है. वहीं रवींद्र मंच रामनिवास बाग के उत्तरपूर्वी परिसर में स्थित है. रवींद्र मंच एक विशाल प्रेक्षागृह है. यह राजस्थान का सब से बड़ा प्रेक्षागृह है. समयसमय पर यहां नाटकों का मंचन किया जाता है. यहां 2 चिडि़याघर हैं. जयपुर के चिडि़याघर में दुर्लभ वन्यजीवों के साथ टाइगर का होना मुख्य आकर्षण है.

कैसे जाएं

यहां जाने के लिए जयपुर के अजमेरी गेट जाना पड़ता है. उस के पास ही यह बाग स्थित है.

 

तमिलनाडु : जहां बसती है कला और संस्कृति

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में कदम रखते ही भले ही आप को गरमी का एहसास हो लेकिन यहां के सांस्कृतिक व ऐतिहासिक पर्यटन स्थल आप का मन मोह लेंगे. ह शहर 19 अंतर्राष्ट्रीय और 9 राष्ट्रीय वायुमार्गों के अलावा रेल और सड़क यातायात के मजबूत नैटवर्क से जुड़ा है. पर्यटक यहां पर्यटन के हर मिजाज से वाकिफ होते हैं.

ममलापुरम

महाबलीपुरम के नाम से भी मशहूर ममलापुरम पर्यटकों का आकर्षण है. इस की इमारत को यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में शामिल किया है. महाबलीपुरम का समुद्री तट चेन्नई से 58 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है. मलापुरम का तटीय मंदिर यहां की प्रमुख विशेषता है. यह द्रविड़ों की भवन निर्माण कला का सब से प्राचीन उदाहरण है. यहां शायन पेरूमल का मंदिर भी है. यहां स्थित भव्य और सुंदर समुद्री तट के अलावा पल्लव राजवंशी काल के स्मारक और प्राचीन गुफाएं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं.

ऊटी

समुद्रतल से 2,240 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ऊटी दक्षिणपूर्वी भारत में स्थित है. ऊटी का पुराना नाम उटकमंड और उदगमंडलम था. ऊटी नीलगिरि पहाडि़यों में स्थित है. इस के चारों तरफ कई चोटियां हैं, जिन में तमिलनाडु का सब से ऊंचा क्षेत्र डोडाबेट्टा (2,637 मीटर) भी शामिल है. नीलगिरि यानी नीले पहाड़ की गोद में बसा हराभरा पर्यटन स्थल ऊटी दक्षिण भारत के सब से प्रमुख पर्वतीय स्थलों में से एक है. यह देशीविदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन आराम से छुट्टियां बिताने के लिए यह एक उम्दा पिकनिक स्पौट है. अंगरेजों द्वारा 1821 में स्थापित ऊटी का इस्तेमाल 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक मद्रास प्रेजिडैंसी के ग्रीष्मकालीन सरकारी मुख्यालय के रूप में किया जाता था.

तंजावुर

इसे पहले तंजौर भी कहा जाता था, अपनी शिल्पकला और मंदिरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. ब्रह्दीश्वर मंदिर तमिल वास्तुकला में चोलों द्वारा की गई अद्भुत प्रगति का प्रमुख नमूना है. यह मंदिर, भारत का सब से बड़ा मंदिर होने के साथसाथ भारतीय शिल्प कौशल के आधारस्तंभों में से एक है. मंदिर की भव्यता व बड़े पैमाने पर इस की स्थापत्य दीप्ति व शांति से प्रेरित हो कर इसे महानतम चोल मंदिर के रूप में यूनेस्को की सूची में विश्व विरासत स्थल बनने का गौरव प्राप्त हुआ है. तंजावुर की स्थापना समृद्ध और शक्तिशाली चोल शासकों ने की थी और यहां आप को उसी शानदार विरासत की छाप नजर आएगी. यहां आप को पीतल के बरतनों पर की गई कलाकारी, बहुत ही खूबसूरत सिल्क साडि़यां और सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण तंजौर की चित्रकारी के अद्भुत रूप देखने को मिलेंगे. यहां आप को शिल्पकार अपने पूरे परिवार के साथ रेशम की मखमली साडि़यां बुनते हुए दिख जाएंगे.

कांचीपुरम

यह स्थान हजार मंदिरों के लिए चर्चित है. आज भी कांचीपुरम और उस के आसपास 126 मंदिर देखे जा सकते हैं. यह शहर चेन्नई से 45 मील दक्षिणपश्चिम में वेगवती नदी के किनारे बसा है. उत्तरी तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम प्राचीन चोल और पल्लव राजाओं की राजधानी थी. मंदिरों के अतिरिक्त यह शहर हैंडलूम इंडस्ट्री और खूबसूरत रेशमी साडि़यों के लिए विख्यात है. बेगवती नदी के किनारे स्थित कांचीपुरम के मशहूर मंदिरों में वरदराज पेरूमल मंदिर, एकंबरनाथ मंदिर प्रमुख हैं. इस के अलावा, कामाक्षी अम्मान मंदिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मंदिर, कैलाशनाथ मंदिर आदि भी मुख्य हैं.

मदुरै

करीब 2,500 साल पुराना यह स्थान महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र है. वैगई नदी के किनारे स्थित मदुरै का सब से बड़ा आकर्षण मीनाक्षी मंदिर है जिस के ऊंचे गोपुरम और दुर्लभ मूर्तिशिल्प आकर्षित करते हैं. पुराने पांड्य राज्य की राजधानी मदुरै दक्षिण के मंदिरों के शहर के रूप में प्रसिद्ध है. इस के अलावा आधुनिक मदुरै उद्योगों, टैक्सटाइल मिल्स, इंजीनियरिंग उद्योग तथा विशाल विद्यालय के कारण काफी लोकप्रिय है. आज मदुरै व्यापार, धर्म, शिक्षा और संस्कृति का समृद्ध केंद्र है. पर्यटन की दृष्टि से इस का काफी महत्त्व है.

रामेश्वरम

रामेश्वरम खूबसूरती का खजाना है. समुद्र के पूर्वी किनारे पर स्थित रामनाथस्वामी मंदिर अपने अद्भुत आकार और खूबसूरती से तराशे गए स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर का गलियारा एशिया का सब से बड़ा गलियारा है. इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के बाद के विभिन्न वंशों ने विभिन्न समयावधियों के दौरान किया था. आज रामेश्वरम की पहचान पर्यटक स्थल के साथसाथ दक्षिण भारत के प्रमुख समुद्री भोजन केंद्र के रूप में की जाती है.

कन्याकुमारी

भारत के दक्षिणी छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षों से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है. कवि तिरुवल्लुवर की प्रतिमा और विवेकानंद रौक मैमोरियल देखने  के लिए यहां दूरदूर से लोग आते हैं. कन्याकुमारी में समुद्र के बीचोबीच चट्टान पर विवेकानंद स्मारक यहां की खास पहचान है. इस के अलावा कुमारी अम्मन मंदिर और सालों पुराने चर्च इस जगह की शोभा बढ़ाते हैं. पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्त्व है. दूरदूर तक फैले समुद्र की विशाल लहरों के बीच यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता है. यह हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थलहै. यहां हर तरफ उठ रही खूबसूरत समुद्री लहरें आप के मन को हिलोरे लेने पर मजबूर कर देंगी.

श्रीपुरम वेल्लोर

गोल्डन टैंपल की तर्ज पर वेल्लोर स्थित श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर को मलईकोडी के रूप में जाना जाता है और यह एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक जगह है. पूरे मंदिर की डिजाइन नारायणी अम्मा द्वारा बनाई गई थी. इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि मंदिर के अंदर व बाहर दोनों तरफ सोने की कोटिंग है. श्रीपुरम में बने महालक्ष्मी मंदिर के निर्माण में तकरीबन 15 हजार किलोग्राम शुद्ध सोने का इस्तेमाल हुआ है. स्वर्ण मंदिर श्रीपुरम के निर्माण में 300 करोड़ से ज्यादा राशि की लागत आई है. मंदिर के आंतरिक और बाह्य सजावट में सोने का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल हुआ है. विश्व में किसी भी मंदिर के निर्माण में इतना सोना नहीं लगा है. रात में जब इस मंदिर में रोशनी की जाती है तब सोने की चमक देख कर पर्यटक इस की तारीफ किए बिना रह नहीं पाते.

मेघामलाई

समुद्र स्तर से 500 फुट की ऊंचाई पर स्थित मेघामलाई पहाड़ी थेनी से 70 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिमी घाट पर स्थित है. यह स्थल समृद्ध जीवों और वनस्पतियों से भरा पड़ा है. मेघामलाई पहाड़ी पर कई प्रकार के जानवर, सरीसृप और तितलियां पाई जाती हैं. आप यहां आ कर लिओपर्ड टाइगर, नीलगिरि तहर, पारक्यूंपिन, फ्लाइंग गिलहरी, स्पा टेड हिरन आदि देख सकते हैं. यहां करीब 100 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इसीलिए तमिलनाडु सरकार ने यहां पक्षियों की विविधता को देखते हुए एक पक्षी अभयारण्य की स्थापना की है. इसे यहां स्थित टी गार्डन के कारण भी जाना जाता है. यहां इलायची, कालीमिर्च और दालचीनी के बाग भी बहुतायत में पाए जाते हैं. मेघामलाई पहाड़ी को हाईवे माउंटेन के नाम से भी जाना जाता है.

वालपराई

इसे साउथ का चेरापूंजी भी कहते हैं. वैस्टर्न घाट में अन्नामलाई रेंज में बसा वालपराई हिल स्टेशन चाय व कौफी के बागानों, मौन्की फौल्स और परमबिकुलम, अलियार, निरार, शोलयार जैसे बांधों के चलते मशहूर है. इंदिरा गांधी वाइल्ड लाइफ सैंचुरी में हाथी की सवारी बेहद रोचक रहेगी तो ट्री हाउस में रहना भी जरूर ट्राई करें. हर्ब्स की खुशबू वाली हवा भी आप को सुहाएगी. वालपराई में कई व्यू पौइंट हैं. लोम का व्यू पौइंट एक ऐसा व्यू पौइंट है जिसे देखने से आप चूक नहीं सकते. जब आप पोल्लाची से वालपराई आते हैं तो रास्ते में नौवें हेयर पिन मोड़ पर यह व्यू पौइंट स्थित है. यह व्यू पौइंट अलियार डैम और उस के जलाशय का एक अप्रतिम दृश्य प्रस्तुत करता है.

होगेनक्कल

बेगलुरु से 135 किलोमीटर दूर तमिलनाडु के धरमपुरी जिले में कावेरी नदी पर स्थित  होगेनक्कल झरने को भारत का नियाग्रा फौल भी कहा जाता है. यह झरना अपने जल के औषधीय गुणों व विशेष नौका सवारी के लिए प्रसिद्ध है. यहां की कार्बोनाइट चट्टानें दक्षिण एशिया और पूरी दुनिया की सब से प्राचीन चट्टानों में से हैं. यहां आ कर पर्यटक जीवन की सब से यादगार और खुशगवार यादों को सहेज कर वापस जाते हैं.

कुट्रालम

कुट्रालम को दक्षिण का स्पा भी कहते हैं. पश्चिमी घाट पर 167 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुट्रालम स्पा के रूप में इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि यहां अनेक हैल्थ रिजौर्ट, क्लीनिक और कई झरने हैं जिन में औषधीय गुण हैं. अनेक झरने और नदियां इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाते हैं जिस वजह से यह जगह आज एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. अपनी शानदार प्राकृतिक सुंदरता के अलावा यह शहर खूबसूरत झरनों जैसे पेरारूवी, चित्रारूवी, शेनबागदेवी, थेनारूवी, एंथरूवी, पाझाथोट्टा अरूवी, पाझया कुट्रालम अरूवा तथा पुली अरूवी के लिए प्रसिद्ध है. जून से सितंबर तक यहां आने का बेहतरीन सीजन होता है. यहां का बोट हाउस भी पर्यटकों को खासा लुभाता है. इस के अलावा चिल्ड्रेन पार्क में अपने बच्चों के साथ छुट्टियों का लुत्फ उठाया जा सकता है. सिर्फ यही नहीं, यहां पर देखने के लिए और भी बहुतकुछ है जो आप को ट्रैवल बुक्स से पता नहीं चलता. यहां आप कर्नाटक क्लासिकल संगीत के अनेक रागों और भारत की प्राचीनतम नृत्यशैली भरतनाट्यम से भी रूबरू होते हैं.

खरीदारी के शौकीनों के लिए भी यहां ढेरों विकल्प मौजूद हैं. यहां चोल वंश के कांस्य, तंजावुर की शानदार पेंटिंग्स, सिल्क की बेहतरीन साडि़यां और हस्तशिल्प के सामान मिलते हैं. खाने के शौकीनों के लिए इडली, डोसा और फिल्टर कौफी जैसे जायकेदार विकल्प भी हैं. यहां के लोगों के खानपान से ले कर रहनसहन और बोलचाल तक में यहां की संस्कृति परिलक्षित होती है. और हां, इस राज्य की सब से अच्छी बात यहां की मेहमाननवाजी है जो आप की यात्रा को सुरक्षित और यादगार बनाती है. फिर देर किस बात की. आज ही आइए, तमिलनाडु में आप का स्वागत है.

क्या नरेंद्र मोदी वक्त के साथ बदल रहे हैं?

सत्ताधारी दलों को साथ ले कर चलने वाला सक्सैज फार्मूला अपनाए मोदी मुलायम सिंह के पोते व लालू प्रसाद यादव की पुत्री की शादी में शिरकत करने से नहीं चूके. 27फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए आखिरकार कई बातें कहीं जिन में सब से दिलचस्प बात यह थी कि उन की सरकार का एक धर्म है इंडिया फर्स्ट, उन की सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है भारत का संविधान, एक भक्ति है भारतभक्ति और उन की प्रार्थना है सब का कल्याण, उन की जिम्मेदारी है कि धर्म के नाम पर कोई अनापशनाप बयान न दे.

कहनेसुनने में ये बातें भले ही छोटी लगती हों लेकिन हैं बेहद महत्त्वपूर्ण जिन के जरिए लगता है नरेंद्र मोदी अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि से बाहर निकल रहे हैं तो क्या हिंदुत्व उन के लिए अब गौण और संविधान सर्वोच्च प्राथमिकता है? ये बातें उन्होंने बेवजह नहीं कही थीं. 10 महीने पहले जनता ने जब उन्हें देश की बागडोर सौंपी थी तब माहौल में नरेंद्र मोदी को ले कर संशय था, लोग पूरी तरह बेफिक्र नहीं थे. उन्हें डर और चिंता इस बात की थी कि कहीं नरेंद्र मोदी हिंदुत्व की रौ में न बह जाएं. माना यह जा रहा था कि हिंदूवादी संगठन खासतौर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोदी को विकास के अपने एजेंडे से भटकाने के लिए दबाव बनाएगा. ऐसा हुआ भी लेकिन जल्द ही नरेंद्र मोदी को समझ आ गया कि देश हिंदुत्व से नहीं बल्कि निष्पक्षता और उदारता से चलेगा और इस के लिए सब को साथ ले कर चलना पड़ेगा.

पहली टकराहट हिंदूवादियों से

धर्म और सत्ता में फर्क स्पष्ट करने में नरेंद्र मोदी चूके नहीं हैं. कम से कम 3 बार उन्होंने तल्ख लहजे में जताया कि वे हिंदूवादियों के हाथों की कठपुतली नहीं हैं, उन की नजर में सभी बराबर हैं. पिछले 1 साल के दौरान हिंदूवादियों ने अनापशनाप, बेहूदे और भड़काऊ बयान दिए थे. सांसद साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति, विश्व हिंदू परिषद के मुखिया अशोक सिंघल और प्रवीण तोगडि़या तो यह साबित करने पर आमादा हो गए थे कि देश सिर्फ हिंदुओं का है और उन्हीं की मरजी से चलेगा.

विकास में बाधा

यह नरेंद्र मोदी के लिए तनाव की बात थी. लिहाजा, उन्होंने संघ को खासतौर से आगाह किया था कि वह हद में रहे और अपने आनुषंगिक संगठनों को भी काबू में रखे. इस का असर पड़ा था. कट्टर हिंदूवादियों ने अपने कदम वापस खींचे थे क्योंकि मोदी देश की जनता को बता रहे थे कि हिंदूवादी संगठनों के अनापशनाप बयानों से देश का विकास प्रभावित होता है. इन हिंदूवादी संगठनों ने कदम वापस खींचे थे, लेकिन न हथियार डाले थे और न ही इन्होंने हिम्मत हारी थी बल्कि इन की तो मोदी के कंधे पर बंदूक रख कर अपनी मंशाएं पूरी करने की थी. फौरी तौर पर हिंदू राष्ट्र बनाने का और घरवापसी का अपना अभियान इन्होंने समेट लिया और इंतजार किया गया कि कैसी रणनीति बनाई जाए कि मोदी उन के इशारों पर नाचने को मजबूर हो जाएं. 26 जनवरी को जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए तो मोदी सरकार उन के सामने ऐसे बिछी मानो कृष्ण खुद चल कर सुदामा के घर आए हों. मोदी ने तमाम शिष्टाचार निभाए पर ओबामा की इस बात को गंभीरता से लिया कि धर्म के नाम पर तोड़ने और बांटने वालों से कैसे बचना है. कहने की जरूरत नहीं है कि ओबामा का इशारा संघ की तरफ था.

बराक ओबामा के दौरे से देश को भले ही कोई खास फायदा न हुआ हो लेकिन उन के जाने के बाद नरेंद्र मोदी जबरदस्त आत्मविश्वास में दिखे. यह ओबामा की पिलाई धर्मनिरपेक्ष घुट्टी का ही असर था कि वे 17 फरवरी को दिल्ली में ईसाइयों के एक धार्मिक समारोह में जानबूझ कर खासतौर से गए और साफतौर पर बोले कि किसी भी तरह की धार्मिक हिंसा बरदाश्त नहीं की जाएगी, हमारा संविधान धर्म की बिना पर की गई हिंसा की इजाजत नहीं देता है. यह बयान, तमाम अल्पसंख्यकों को हिफाजत की सरकारी गारंटी देता हुआ था. संघ को यह नागवार तो गुजरा पर वह अपनी तिलमिलाहट दबा गया लेकिन कांग्रेसी भड़क उठे. तय है कि उन्हें भी नरेंद्र मोदी से इस भाषा और ऐसे विचारों को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने की उम्मीद नहीं थी. लिहाजा, पलटवार में कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने मोदी को यह चुनौती दे डाली कि ऐसे कह देने भर से क्या होता है. मोदी अगर संसद में यही बोलें तो बात में सचाई मानी जाएगी. और 27 फरवरी को बहैसियत प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने संसद में यही बात दोहरा डाली तो कांग्रेसी सकते में हैं लेकिन संघ ने होली के दिन 6 मार्च को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को नागपुर स्थित अपने मुख्यालय में तलब कर 9 घंटे उन की क्लास लगा डाली.

हिंदूवादी संगठनों और नरेंद्र मोदी की वैचारिक टकराहट अब किसी सुबूत की मुहताज नहीं है. जितनी सख्ती मोदी इन के प्रति दिखा रहे हैं उतनी कांग्रेस आजादी के बाद नहीं दिखा पाई थी. वजह, उस का वजूद और कथित धर्मनिरपेक्ष छवि संघ के छद्म विरोध की वजह से ही थे. नरेंद्र मोदी को तो इस की दरकार भी नहीं है. वे तो अपनी एक अलग छवि गढ़ने में लगे हैं जिस का सार यह है कि राजकाज चलाने के लिए उन्हें किसी विश्वामित्र या वशिष्ठ की जरूरत नहीं है जिस के बाबत  संघ प्रमुख मोहन भागवत बड़े आश्वस्त थे कि अब सत्ता उन के हाथ में है.

सत्ता हाथ में है का मतलब नरेंद्र मोदी राम की तरह उन के इशारे पर सत्ता के हथियार से अनार्यों का नाश करेंगे. ऋषियों की भूमिका में खुद को देख रहे हिंदूवादी मुखिया भूल रहे हैं कि यह लोकतंत्र है. अब राजा का रोल एक जाति या समुदाय विशेष के लिए नहीं रह गया है. मोदी पर सभी वर्गों के लोगों ने वोट दे कर भरोसा जताया है और जमाना अस्त्रशस्त्रों और मंत्रों का नहीं बल्कि वोटों की ताकत का है जिसे इस्तेमाल करने का हर 2-3 साल में जनता को कभी विधानसभाओं, कभी नगर निकायों के माध्यम से मौका मिलता है.

बड़ी चुनौती

मोदी को अपनी मंशा और जनता के मुताबिक सब को साथ ले कर चलना है तो उन्हें और सख्त होना पड़ेगा और यह उन की मजबूरी भी हो गई है. उन का अपना एक विजन है जिस में धर्म और विकास 2 ऐसी समानांतर रेखाएं हैं जो कहीं जा कर नहीं मिलतीं. असहाय से हो चले हिंदूवादी संगठनों के पास क्या अब एक ही रास्ता बचा है कि भाजपा में फूट डाली जाए, उस के उग्रवादी धड़े को निर्णायक हवा दी जाए और हिंदुत्व से जुड़े बड़े अभियान मुनासिब वक्त पर फिर से व्यापक पैमाने पर चलाए जाएं? मंशा आम लोगों को धर्म के नाम पर भावनात्मक तौर पर भड़काने की होगी जिस से विकास के ब्रह्मास्त्र से मोदी कैसे और कितना निबट पाएंगे, यह देखना दिचलस्प होगा.

इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कल को नरेंद्र मोदी को ही धर्मविरोधी प्रचारित किया जाने लगे. वजह, संघ और दूसरे हिंदूवादी संगठनों ने पिछले आम चुनाव के समय से ही चालाकी दिखानी शुरू कर दी थी. नरेंद्र मोदी के राजतिलक का श्रेय वे ठीक वैसे ही लेना चाह रहे हैं जैसे रामायणकाल में वशिष्ठ ऋषि ने लिया था जो इक्ष्वाकु वंश का राजपुरोहित और कुलगुरु था. राम के वनवास और दशरथ की मृत्यु के बाद हुई सभा में वशिष्ठ ने भरत से कहा था, ‘यह राज्य तुम्हें पिता व भाई ने दिया है, इस पर शासन करो (अयोध्या कांड स. 82). पर जब भरत ने इनकार कर दिया तो राम से यह कहा कि इक्ष्वाकु वंश में हमेशा से बड़ा पुत्र ही राजगद्दी पर बैठता आया है, जब तक बड़ा पुत्र जीवित रहता है कोई और राजा नहीं बन सकता….’ यह आदेश या उपदेश लंबाचौड़ा है (अरण्य कांड स. 111) लेकिन लोकतांत्रिक युग में भी देखा गया. लालकृष्ण आडवाणी को धकियाने में संघ हिचकिचाया नहीं था तो साफ कहा जा सकता है कि उस की मंशा वशिष्ठ की तरह गुरु बने रहने की थी जिस पर मोदी पलीता फेरते एक नई सामाजिक क्रांति की नींव रख रहे हैं. वे सब की बराबरी की भागीदारी की बात कर रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि मोदी इन आधुनिक ऋषियों को मुखबिर या एजेंट नहीं बनाना चाहते. लोकतांत्रिक धर्म निभाते हुए सीधे जनता से संवाद कायम करते नजर आ रहे हैं, विरोधियों को आपस में लड़ा रहे हैं और जो जीत रहा है उसे अपने साथ ले रहे हैं.  जम्मूकश्मीर में सरकार बनाने के लिए उन्होंने पीपल्स डैमोक्रेटिक पार्टी से हाथ मिलाने में कोई हिचक नहीं दिखाई. वैचारिक मतभेद भुला कर वे सीना तान कर शान से मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की रिश्तेदारी में शिरकत करते हैं और वहीं अपने धुरंधर दुश्मन नीतीश कुमार से गर्मजोशी से हाथ भी मिलाते हैं.

बदलते समाज के साथ

इस में कोई शक नहीं है कि समाज तेजी से बदल रहा है. राजनीति के लिहाज से देखें तो सवर्णों का दबदबा खत्म सा हो चला है और अब देश की राजनीति पिछड़ों के हाथ में है. आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं जबकि अधिकांश प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग के हैं. यह बदलाव धर्म की नहीं, शिक्षा और जागरूकता की वजह से आया है. नई पीढ़ी धार्मिक पाबंदियां और पाखंड बरदाश्त करने को कतई तैयार नहीं है. वह अपनी सहूलियत से धर्म को मानती है. इस से देश का माहौल बदला है. मिसाल है दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी को मिला करिश्माई बहुमत.

इस नतीजे ने नरेंद्र मोदी को वक्त रहते आगाह कर दिया है कि व्यक्तित्व का जादू शाश्वत नहीं होता, इसलिए उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले ऐसे ले डाले जो एक हद तक कांग्रेसी शैली के कहे जा सकते हैं. धर्म आधारित राजनीति का दौर जाता दिख रहा है, और लोग नेताओं से विकास की उम्मीद करने लगे हैं अब जो भी मंदिर निर्माण, घरवापसी और हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की बात कर रहा है वह नई पीढ़ी की नजर में मजाक का पात्र बनता जा रहा है. लेकिन इस के उलट जातिवाद की राजनीति गहराती जा रही है. पिछड़ा वर्ग अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कुछ भी करने तैयार है. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस और संघ दोनों की कोशिश यह है कि सत्ता फिर से ऊंची जाति वालों के हाथ में आ जाए जिस से धर्म के तवे पर रोटियां सेंक कर पंडेपुजारियों को खुश रखा जा सके और इस के एवज में वे धर्मगं्रथों का हवाला देते हुए समाज तोड़ने का अपना पसंदीदा काम करते रहें.

मुलायम व लालू के पारिवारिक समारोह में नरेंद्र मोदी का जाना सियासी नजरिए से देखा जाना गलती ही साबित होगा. बिहार संकट के समय भाजपा का जीतनराम मांझी का साथ देना एक जातिगत चाल थी. दलितों की मसीहा कही जाने वाली बसपा प्रमुख मायावती बेवजह अलगथलग नहीं पड़ गई हैं. रामविलास पासवान सरीखे धाकड़ दलित नेता संक्रांति पर प्रधानमंत्री को दहीचिवड़ा खिला कर खुद को शबरी की तरह गौरवान्वित महसूस करते हैं.

वैचारिक बदलाव

कांग्रेस की कमर तोड़ने में पिछड़ों का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है. कांग्रेस हमेशा ठाकुर, ब्राह्मणों के भरोसे रही. उस ने आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों और पिछड़े वोटों के दम पर खूब मलाई खाई और इस के एवज में देश को महंगाई व भ्रष्टाचार की दलदल में गले तक डुबो दिया. पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार में जब नरेंद्र मोदी नायक की तरह उभरे तो लोगों को उन में विकास का जज्बा दिखाई दिया. शुरुआती दौर में हिंदुत्व की पकड़ में दिखते नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते ही वैचारिक रूप से बदल गए. यह बात संघ के साथसाथ खत्म होती कांग्रेस को भी परेशान किए हुए है.

हालांकि धार्मिक उन्माद से देश हमेशा बचा नहीं रह सकता लेकिन लगता है कि मोदी की कोशिश अब अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की दिख रही है. यह काम वे इतने सधे ढंग से कर रहे हैं कि इसे कांग्रेस से उधार ली गई तरकीब कोई नहीं कह पा रहा. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के वक्त में सवर्ण शिक्षित हो रहे थे, अब पिछड़े हो रहे हैं. पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का सियासी घालमेल और तालमेल ही सत्ता और नेता तय करता आया है. मोदी के आने से मुलायम सिंह यादव व्यक्तिगत तौर पर भले ही खुश हुए हों लेकिन उन्हें बेहतर मालूम है कि इस के दूरगामी परिणाम समाजवादी पार्टी के हक में नहीं निकलने वाले हैं.

मोदी का फार्मूला

नरेंद्र मोदी के राज में मुसलमान उतना आतंकित नहीं हुआ जितना उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते है. इस की दूसरी वजह भले ही आजम खान जैसे नेता समाजवादी पार्टी में हों लेकिन हिफाजत की जो गारंटी अल्पसंख्यकों को मोदी से मिल रही है वह कांग्रेस से नहीं मिली थी और यह गारंटी है बेखौफ रहो, हमारा संविधान सभी को बराबरी का दरजा देता है, इस देश का प्रधानमंत्री धर्म के लिहाज से कोई भेदभाव नहीं करता. जम्मूकश्मीर में भाजपा पीडीपी गठबंधन भले ही विवादों में हो लेकिन उस से मुसलमान का मोदी पर भरोसा बढ़ा है. बात वाकई काबिलेगौर है कि अपने 10 महीने के कार्यकाल में मोदी ने अपने खुद के धार्मिक आधार पर अपनी आलोचना का मौका किसी को नहीं दिया है.

सब को साथ ले कर चलने की नीति नई नहीं है और यह भारतीय परिवेश में सफलता का मूलमंत्र है जिस का आधार लड़ाओ ओर जीतने वाले को साथ ले लो है. मिसाल बिहार की लें तो नीतीश कुमार और लालू यादव नरेंद्र मोदी की इसी नीति के चलते वक्त रहते एक हो गए. ये दोनों जानते हैं कि पिछड़ों की ताकत और वोट बंटे तो सब से बड़ा फायदा अब भाजपा को मिलेगा. महाराष्ट्र जा कर शरद पवार की तारीफों में कसीदे नरेंद्र मोदी ने बेवजह नहीं गढ़े थे जहां उद्धव ठाकरे भाजपा से गठबंधन के बाद भी राष्ट्रीय मुद्दोें खासतौर से जम्मूकश्मीर पर भाजपा और नरेंद्र मोदी की खिंचाई करते रहते हैं. मोदी का संकेत दिखाता है कि अगर शिवसेना समर्थन वापस लेती है तो वे राकांपा का हाथ थामने में कतई नहीं हिचकिचाएंगे.

धार्मिक संकीर्णता से बाहर आने की कीमत चुकाने को भी मोदी तैयार दिख रहे हैं. हिंदूवादी संगठन उन की इस छवि और हरकतों को ज्यादा समय तक बरदाश्त करेंगे, ऐसा लग नहीं रहा. लेकिन नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने हालफिलहाल उन के हाथ बांध रखे हैं. धार्मिक हिंसा व असहिष्णुता सहन नहीं की जाएगी, जिस का मतलब साफ है कि जितना चाहो उपद्रव कर लो, सरकार प्रोत्साहन नहीं देगी. इस से कट्टरवादियों के हौसले पस्त हैं. दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी बेहतर जानते हैं कि लोकतंत्र में संख्या महत्त्व रखती है, इसलिए 95 फीसदी अमन पसंद लोगों का ध्यान रखा जाना बेहतर होगा, 5 फीसदी से तो अब कुछ नहीं बनने या बिगड़ने वाला.

हां, कांग्रेस हिंदूवादियोें का साथ दे तो सियासी लड़ाई दिचलस्प हो सकती है. यह हालांकि दूर की कौड़ी है, लेकिन राजनीति में असंभव कुछ नहीं होता और न ही कुछ नाजायज माना जाता. लोग हमेशा ही जीतने वाले का गुणगान करते रहे हैं. नरेंद्र मोदी भी इस सूत्र से वाकिफ होंगे ही और तय है इसीलिए वक्त न गंवाते हुए वे एक नई दिशा में चलते जा रहे हैं. लोकतंत्र में कुछ स्थायी नहीं होता. हारजीत इस बात पर निर्भर करती है कि बहुसंख्यकों के साथसाथ अल्पसंख्यकों और छोटी जातियों का समर्थन कैसे हासिल किया जा सकता है.

बदलाव के आसार

कांग्रेसमुक्त भारत एक परिकल्पना भर नहीं है क्योंकि बड़े पैमाने पर एक सवाल कभी से किया जाने लगा है कि लोग अगर कभी भाजपा और नरेंद्र मोदी से ऊब जाएंगे तो फिर कहां जाएंगे? तय है कांग्रेस को जीवित करने के लिए मजबूर होंगे. वैदिककाल में रावण को मारने के बाद राम ने कहा भी था कि रावण शक्ति की कमी की वजह से नहीं मारा गया है. युद्ध में कोई भी हमेशा नहीं जीतता कभी एक पक्ष तो कभी दूसरे पक्ष की हारजीत होती है. (यु.का. 111) लोकतंत्र इस सिद्धांत का अपवाद नहीं है. वर्तमान व्यवस्था भर है जिस में शासक को करना वही पड़ेगा जो सभ्य समाज के लोग चाहते हैं.

और जो आज का सभ्य और बुद्धिजीवी समाज है वह सरकार से वैचारिक स्वतंत्रता चाहता है जिस के हिमायती हालफिलहाल नरेंद्र मोदी दिख रहे हैं. वे मरजी से धर्म परिवर्तन की वकालत भी करते हैं. जिस दिन वे विचारों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाएंगे या लोगों को बोलने से रोकेंगे वे उस दिन जरूर अपनी पहचान और वजूद खो बैठेंगे. कांग्रेस का पतन इस का उदाहरण है. लोग किसी भी सरकार से तरक्की की ज्यादा या चमत्कारिक उम्मीदें नहीं रखते. हां, उन का रोजमर्राई जीवन अगर दूभर बनाया जाता है तो जरूर वे सत्ता पलट देते हैं.

नरेंद्र मोदी को ले कर लोग बेफिक्र हो रहे हैं लेकिन लापरवाह नहीं. दबा ही सही, एक खटका लोगों के मन में यह है कि कहीं यह टकराहट दिखावटी तो नहीं? मोदी की धर्मनिरपेक्षता और हिंदूवादियों से मिलीभगत या कोई समझौता है पर इस की संभावना कम ही है. क्या राममंदिर निर्माण का जिन्न फिर निकाला जाएगा और देश को एक बार फिर सांप्रदायिकता की आग में झोंक दिया जाएगा? इन आशंकाओं को दूर करने की जिम्मेदारी अगर मोदी नहीं निभाते हैं तो वे शक के दायरे में बने रहेंगे.

रेत लागे मोहे सोणी

रेगिस्तान में छुट्टियां बिताने का अपना अलग ही आनंद है. इस में रोमांच तो है ही, साथ ही रोमांस भी है. डैजर्ट में लैंडस्केप के गोल्डन मैजिक को हिंदी फिल्मों में भी बखूबी देखा जा सकता है. ‘गाइड’, ‘सोनार किला’, ‘लमहे’, ‘रुदाली’, ‘डोर’, ‘बौर्डर’ और ‘पहेली’ जैसी अनेक हिंदी फिल्मों में मरुभूमि के रेतीले संसार की रेतीली धरती की शीतल रातों में तारों को निहारने का रोमांस दर्शाया गया है. राजस्थान के बहुत बड़े हिस्से में फैले रेगिस्तान में पर्यटन के विविध आयामों के दर्शन होते हैं. कहीं रेत के टीलों पर पैदल चलने का रोमांच होता है तो कहीं ऊंट की सवारी का लुत्फ उठाया जाता है तो कहीं डैजर्ट कैंपिंग के साथ लोकरंजनभरी प्रस्तुतियों की कल्चरल इवनिंग हर शाम को रोमांटिक बना देती है.

राजस्थान में जोधपुर, जैसलमेर, जयपुर, उदयपुर में डैजर्ट हौलीडे का आनंद उठाया जा सकता है. रंगबिरंगे राजस्थान का जादू इस की समृद्ध विरासत, रंगबिरंगी संस्कृति, चौंका देने वाले रेगिस्तानी मैदानों, चमकते रेत के टीलों में बखूबी दिखाई देता है जो इसे एक अत्यंत आकर्षक पर्यटन स्थल भी बनाता है. राजस्थान में हर किसी के लिए कोई न कोई आकर्षण है. बस, आप को चुननी है अपनी रुचि के अनुसार गतिविधि. हर तीसरा विदेशी सैलानी जो भारत आता है, राजस्थान जरूर जाता है.

राजस्थान के आकर्षण

राजस्थान में जहां जयपुर के प्राचीन महल हैं, उदयपुर की खूबसूरत, रोमांटिक झीलें हैं, जैसलमेर के रेगिस्तान और रेत के टीले हैं वहीं जोधपुर के भव्य शाही महल हैं जो इसे पर्यटन की दृष्टि से खास बनाते हैं. पैलेस औन व्हील्स और रौयल राजस्थान औन व्हील्स ऐसी लग्जरी ट्रेनें हैं जिन से इस अद्भुत राज्य का दर्शन रोमांचकारी बन जाता है.

जैसलमेर

गोल्डन सिटी कहा जाने वाला जैसलमेर शहर शाही महलों के साथ एक रेतीले रेगिस्तान के आकर्षण का प्रतीक है. यहां देखने के लिए एक विशाल किला, सुंदर हवेलियां और शहर से कुछ दूर स्थित सैंड ड्यून्स हैं. विश्वप्रसिद्ध यह स्थल थार रेगिस्तान के बीच में स्थित है. यह सुनहरा शहर राज्य की राजधानी जयपुर से 575 किलोमीटर दूर है. पीले पत्थरों से बने जैसलमेर फोर्ट को ‘सोनार किला’ कहा जाता है. करीब 80 मीटर ऊंची त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित यह किला विशाल परकोटे से घिरा है. इस शहर में कई भव्य हवेलियां भी हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. पटवों की हवेली इन में सब से आकर्षक है जो वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण है.

जैसलमेर आने वालों के लिए यहां का सब से बड़ा आकर्षण शहर से 42 किलोमीटर दूर स्थित ‘सम सैंड ड्यून्स’ हैं जहां जीप द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है. दूरदूर तक फैली रेत पर आप चाहें तो पैदल घूम सकते हैं या फिर ऊंट की पीठ पर बैठ कर रेत में घूम सकते हैं. शाम के समय मरुटीलों के पीछे छिपते सूर्य का दृश्य एक अविस्मरणीय अनुभव देता है. डैजर्ट हौलीडे के लिए जैसलमेर एक लोकप्रिय डैस्टिनेशन है.

लजीज भोजन

जैसलमेर की छुट्टी पर जा रहे पर्यटक राजस्थान के जनजातीय भोजन को चखने का स्वाद उठा सकते हैं. लजीज मुर्ग ए सब्ज, स्वादिष्ठ केर सांगरी जैसलमेर के लोकप्रिय व्यंजन हैं.

कैसे जाएं

जैसलमेर वायु, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है. नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोधपुर के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं. साथ ही, यह को?लकाता, चेन्नई, मुंबई व बेंगलुरु से भी हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा है. जोधपुर हवाई अड्डे से प्रीपेड टैक्सियों या यात्री गाडि़यों द्वारा गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है. रेलमार्ग द्वारा जैसलमेर रेलवे स्टेशन कई ट्रेनों द्वारा जोधपुर व अन्य प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा है. जैसलमेर के लिए डीलक्स व सेमी डीलक्स बसें भी जयपुर, अजमेर, बीकानेर व दिल्ली से उपलब्ध हैं. यहां जाने का आदर्श समय अक्तूबर व मार्च के बीच का है.

होटल व रिजौर्ट्स : सूर्यगढ़, कहाला फटा, सैमरोड, जैसलमेर.
होटल शाही पैलेस, शिव स्ट्रीट, जैसलमेर.
चौखी ढाणी रिजौर्ट्स, कन्नौज विलेज, नियर सैंड ड्यून, जैसलमेर.
निरवाना नेचर रिजौर्ट, आर जी फार्म्स, सोडालोर, जैसलमेर.

जोधपुर

जोधपुर जयपुर के बाद दूसरा सब से बड़ा रेगिस्तानी शहर है. अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण इस शहर को 2 नामों– ‘सनसिटी’ और ‘ब्लू सिटी’ से पुकारा जाता है. जोधपुर की चमकीली धूप के कारण इसे ‘सनसिटी’ जबकि शहर के मेहरानगढ़ किले के आसपास स्थित नीले घरों के कारण इसे ‘ब्लू सिटी’ कहा जाता है. थार रेगिस्तान की सीमा पर स्थित होने के कारण इसे थार के प्रवेशद्वार के रूप में भी जाना जाता है. चमकदमक से भरपूर इस शहर में घूमने लायक अनेक पर्यटन स्थल हैं जिन में मेहरानगढ़ किला प्रमुख आकर्षक है.

मेहरानगढ़ किला

यह भारत का विशाल और शानदार किला है. मेहरानगढ़ किले में लगे हुए आकर्षक बलुआ पत्थर जोधपुर के कारीगरों की शानदार शिल्पकारी का प्रदर्शन करते हैं. मेहरानगढ़ किले में भव्य महल भी हैं, जैसे मोती महल, रंग महल, चंदन महल, फूल महल. फूल महल की छत पर सोने का महीन काम किया हुआ है. इस के अलावा उमेद भवन भी जोधपुर का एक अन्य आकर्षक स्थल है. यह दुनिया का सब से बड़ा निजी निवास स्थान भी है. चित्तार पहाड़ी पर बने होने के कारण इसे चित्तार महल भी कहा जाता है. यह महल 3 हिस्सों में बंटा हुआ है. इस में फाइवस्टार होटल, म्यूजियम व जोधपुर शाही परिवार का निवास स्थान है. जोधपुर जा कर क्लौक टौवर और सरदार मार्केट से शौपिंग करना न भूलें. जोधपुर से आप अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के लिए यादगार स्वरूप राजस्थानी कढ़ाई व शीशे के काम की लहंगाचुनरी व साड़ी ला सकते हैं, साथ ही आप खरीद सकते हैं सिल्वर ज्वैलरी, ऐंटीक व ओल्ड स्टोनवर्क के सामान.

कैसे पहुंचें

जोधपुर रेलमार्ग द्वारा सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. सड़कमार्ग द्वारा भी जोधपुर के लिए सभी प्रमुख पड़ोसी शहरों से बस सेवाएं उपलब्ध हैं. अगर आप जोधपुर वायुमार्ग द्वारा जाना चाहते हैं तो जोधपुर के नजदीक उदयपुर का एअरपोर्ट है. यहां पहुंच कर आप बस या टैक्सी से जोधपुर जा सकते हैं.

होटल व रिजौर्ट : मेंगो होटल, बी 1 से बी 4 घनश्याम भवन, मंडौर रोड, स्टेट बैंक औफ बीकानेर के ऊपर, पाओटा, जोधपुर.
मंडौर गेस्ट हाउस, दादावरी लेन, मंडौर गार्डन के पास, मंडौर, जोधपुर. 
मरुगढ़ वैंचर रिजौर्ट, चोपासनी, जैसलमेर बाईपास, जोधपुर.

माउंट आबू

पश्चिमी राजस्थान जहां रेगिस्तान की खान है वहीं पूर्वी व दक्षिणी राजस्थान की छटा भी कम निराली नहीं है. माउंट आबू प्रकृति के वरदान से भरेपूरे नजारों, हरीभरी वादियों से भरपूर एक ऐसा अनुपम दर्शनीय स्थल है जो डैजर्ट स्टेट कहे जाने वाले राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है. दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा यह हिल स्टेशन 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है. अरावली पर्वत शृंखलाओं के दक्षिणी किनारे पर बसा यह हिल स्टेशन अपने ठंडे मौसम और वानस्पतिक समृद्धि की वजह से देशभर के पर्यटकों की पसंदीदा जगह है. माउंट आबू, आबू रोड रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर है. राजस्थान के सिरोही जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर और झीलों की नगरी उदयपुर से करीब 185 किलोमीटर दूर हरीभरी पहाडि़यों के मध्य स्थित इस पर्वतीय स्थल के ठंडे और सुहाने मौसम से आकर्षित हो कर पर्यटक, दूरदूर से यहां खिंचे चले आते हैं.

दर्शनीय स्थल

नक्की झील : हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारों के बीच पहाडि़यों से घिरी नक्की झील का दृश्य अत्यंत मनमोहक है. यहां आप बोटिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं.
सनसैट पौइंट : ढलते सूर्य की सुनहरी रंगत के बीच सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा पर्वत शृंखलाओं को स्वर्ण मुकुट पहना दिया हो, ऐसा दिखाई देता है. यहां से डूबता सूरज गेंद की तरह लटकता हुआ दिखता है.
हनीमून पौइंट : सनसैट पौइंट से 2 किलोमीटर दूर बना हनीमून पौइंट नवविवाहित जोड़ों के लिए आकर्षण का केंद्र है. हरेभरे मैदान व घाटियों के मनमोहक दृश्य नवविवाहित जोड़ों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.
टोड रौक : नक्की झील से कुछ दूरी पर स्थित टोड रौक एक खूबसूरत चट्टान है जो सैलानियों को बरबस ही आकर्षित करती है.

कैसे जाएं

माउंट आबू का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है जो 185 किलोमीटर दूर है. निकटतम रेलवे स्टेशन आबू रोड है. सड़कमार्ग द्वारा भी सभी प्रमुख शहरों से माउंट आबू पहुंचा जा सकता है. 
होटल व रिजौर्ट : होटल माउंट रीजेंसी पैट्रोल पंप के पास, माउंट आबू.
अरण्या विलेज हिल रिजौर्ट, नीलकंठ रोड, माउंट आबू.
होटल हिल्टन, मेन रोड, माउंट आबू.

जयपुर

राजस्थान की राजधानी जयपुर जिसे ‘पिंक सिटी’ यानी ‘गुलाबी नगर’ के नाम से भी जाना जाता है, पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत खूबसूरत स्थल है. इस के चारों तरफ पहाडि़यों के ऊपर किले बने हुए हैं जिन के निर्माण के लिए गुलाबी पत्थरों का प्रयोग किया गया है. जयपुर में देखने लायक कई पर्यटन स्थल हैं, जैसे सिटी पैलेस, हवा महल, जल महल, जंतरमंतर, रामनिवास बाग, अल्बर्ट हाल, आमेर का किला आदि. जयपुर शहर चारों ओर से परकोटों से घिरा हुआ है जिस में प्रवेश के लिए 7 दरवाजे बने हुए हैं. जयपुर आएं और फुरसत के पल हों तो रोमांचप्रेमी ऊंट की सवारी, गरम हवा के गुब्बारों की सैर और रौक क्लाइंबिंग जैसे खेलों का आनंद उठा सकते हैं. अगर आप खानेपीने के शौकीन हैं तो यहां की मसालेदार दाल कचौड़ी, दाल वाली पफ पेस्ट्री, मुंह में पानी ला देने वाली मीठी फेनी व घेवर का स्वाद ले सकते हैं. इस के अलावा टिक्की, रबड़ी, प्याज व मावा कचौड़ी भी अवश्य चखें. अगर आप राजस्थान के परंपरागत भोजन का स्वाद लेना चाहते हैं तो यहां की दाल, बाटी, चूरमा अवश्य खाएं.

कैसे जाएं

जयपुर देश के कई मुख्य हिस्सों से भलीभांति वायु, रेल व सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है. जयपुर शहर से 13 किलोमीटर दूर सांगानेर हवाई अड्डा है जो जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता है. जयपुर जंक्शन यहां का रेलवे स्टेशन है जो देश के मुख्य शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है. सड़कमार्ग द्वारा पर्यटक राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों द्वारा यहां पहुंच सकते हैं. शहर में भ्रमण के लिए और दर्शनीय स्थलों पर जाने के लिए जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड की बस सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है.

होटल व रिजौर्ट्स : द ललित जयपुर, 213-26 जगतपुरा रोड, जवाहर सर्कल के पास, जयपुर.
जयपुर मेरियट होटल, आश्रम मार्ग, जवाहर सर्कल के पास, जयपुर.
द ट्री हाउस रिजौर्ट, एमिटी यूनिवर्सिटी के पीछे, एनएच-8, जयपुर-दिल्ली हाइवे, जयपुर.
चौखीढाणी रिजौर्ट, 2 माइल्स टोंक रोड वाया वाटिका, जयपुर.

उदयपुर

हरीभरी पहाडि़यों से घिरे झीलों के शहर उदयपुर को पूर्व का वैनिस भी कहा जाता है. महलों, झीलों व बगीचों के इस शहर का अतीत काफी वैभवपूर्ण रहा है. झीलों के साथ मरुभूमि का अनोखा संगम जो उदयपुर में देखने को मिलता है वह अन्य किसी जगह में नहीं मिलता. उदयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में सिटी पैलेस, पिछोला झील, लेक पैलेस, सहेलियों की बावड़ी, विंटेज कार म्यूजियम आदि हैं.

सिटी पैलेस कौंप्लैक्स

यह पैलेस पिछोला झील पर स्थित है. यह एक भव्य परिसर है. परिसर में प्रवेश करते ही आप को भव्य त्रिपोलिया गेट दिखाई देगा. इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय भी है. इस संग्रहालय में प्रवेश करते ही आप की नजर कुछ बेहतरीन चित्रों पर पड़ेगी जो मेवाड़ शैली में बने हुए हैं. सिटी पैलेस से 2 किलोमीटर दूर पर बना हुआ विंटेज कारों का म्यूजियम भी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. यहां पुरानी कारों का अच्छा संग्रह है. इस के अलावा उदयपुर में सहेलियों की बावड़ी भी एक अन्य आकर्षक पर्यटन स्थल है. उदयपुर की रानियों व राजकुमारियों के विश्राम के लिए बनवाई गई सहेलियों की बावड़ी हरीभरी वादियों से घिरी है और यहां फौआरे भी लगे हुए हैं.

पिछोला झील

उदयपुर शहर के सौंदर्य को दोगुना करती यहां की झीलों में सब से प्रमुख पिछोला झील है. सिटी पैलेस के पीछे बसी इस झील का सौंदर्य सिटी पैलेस से ही नजर आता है. राजमहल की दीवारों से टकराती झील की लहरें पर्यटकों को मोहित करती हैं.

कैसे जाएं

हवाई मार्ग : सब से नजदीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप है. यह हवाई अड्डा डबौक में है. उदयपुर का रेलवे स्टेशन देश के अन्य शहरों से जुड़ा है. यह सड़क मार्ग से जयपुर से 9 घंटे, दिल्ली से 14 घंटे तथा मुंबई से 17 घंटे की दूरी पर है.
होटल व रिजौर्ट : द ललित लक्ष्मी विलास पैलेस, उदयपुर, फतेहसागर झील के पीछे, उदयपुर.
जगत निवास पैलेस होटल, 23-25 लालघाट, उदयपुर.
ओरिएंटल पैलेस रिजौर्ट, मेन रोड, सुभाष नगर, अंधेरी, उदयपुर.
शिल्पी रिजौर्ट, शिल्पग्राम के पास, रानी रोड, उदयपुर.
सावधानी एवं तैयारी : ‘गे्रट इंडियन डैजर्ट’ यानी थार के रेगिस्तान में छुट्टियां मनाने की योजना बना रहे हैं तो निम्न सावधानी बरतें :
रेगिस्तान में दिनरात के तापमान में 20 डिगरी तक का अंतर हो सकता है, इसलिए दिन के लिए सूती वस्त्र व रात के लिए ऊनी कपड़े रखें.

दिन में हलके रंग के कपड़े पहनें. दिन में हैट व सनग्लासेज का प्रयोग करें. छाता साथ रखें.

पानी भी साथ में रखें. सनस्क्रीन व मौइश्चराइजर का प्रयोग करें ताकि त्वचा के रूखेपन व टैनिंग से बचा जा सके.

गाइड के साथ रहें और उस के निर्देशों का पालन करें. रेतीले समंदर में दिशाहीन होने का खतरा रहता है.

सैर कर दुनिया की गाफिल…

हिल्स पैकेज जहां मचल उठे मन

बर्फ से ढकी चोटियां और हरीभरी वादियों के दामन में बसे हिल स्टेशन आप को सुकून से भरी ऐसी दिलकश दुनिया में ले जाते हैं जहां हमेशा के लिए रुक जाने का दिल करता है. प्रकृति की तमाम खूबसूरती को खुद में समेटे हिमाचल की गोद में पर्यटक जीवन का यादगार अनुभव ले कर लौटते हैं. बर्फ की सफेद परतें और दिलकश नजारों से भरी हरियाली धर्मशाला को खास बनाती है. मनाली में पर्यटक जम कर शौपिंग करते हैं. जब भी मिसेज कौशिक फिल्मों में किसी हीरोहीरोइन को बर्फ की वादियों में रोमांस करते देखतीं तो उन का मन भी करता कि वे घर व परिवार की जिम्मेदारियों से कुछ दिन की छुट्टी ले कर कहीं दूर घूमने जाएं, जहां वे बर्फ से ढकी चोटियों, चारों ओर फैले हरेभरे खेत, हरियाली और कुदरती सुंदरता के बीच पति के साथ प्यार के पल बिताएं. लेकिन जब भी उन के घूमने का प्लान बनता, उन्हें समझ न आता कि वे कहां व कब घूमने जाएं, कैसे जाएं और वहां क्याक्या देखें?

अकसर ऐसा होता है कि हमें समझ नहीं आता कि हम कहां घूमने जाएं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि हम घूम कर वापस भी आ जाते हैं और जब कोई हम से वहां के किसी स्थान के बारे में पूछता है तो हम कुछ बता नहीं पाते. दरअसल, हम वहां के आसपास के स्थानों को ज्यादा नहीं देखते. बस, मुख्य स्थान देख कर ही वापस आ जाते हैं. अगर इन छुट्टियों में आप भी कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं तो आप के लिए है हमारा यह खास हिल्स पैकेज, जिस में हम आप को उन खास हिल स्टेशनों के बारे में बता रहे हैं जो आप के ट्रिप को यादगार बना सकते हैं.

कौसानी

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के 53 किलोमीटर उत्तर में स्थित कौसानी, भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटन स्थल है. हिमालय की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिगनाथ चोटी पर बसा है. कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है. यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे और खेल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

कैसे पहुंचें

वायुमार्ग : यहां का नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है जो 178 किलोमीटर दूर है. यहां से टैक्सी द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है.
रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो 141 किलोमीटर की दूरी पर है. उत्तराखंड संपर्क क्रांति और रानीखेत ऐक्सप्रैस से काठगोदाम तक पहुंच सकते हैं. यहां से आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है.
सड़क मार्ग : दिल्ली से कौसानी की दूरी लगभग 431 किलोमीटर है. दिल्ली से कौसानी के लिए हर दिन बसें चलती हैं.

कब जाएं

कौसानी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का बेहद लोकप्रिय हिल स्टेशन है. यहां ठहरने की खासी व्यवस्था है. यहां आने का बेस्ट सीजन अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर होता है.

क्या देखें

अनासक्ति आश्रम : इसे गांधी आश्रम भी कहा जाता है.  कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधीजी को बहुत प्रभावित किया था. यहीं पर उन्होंने अनासक्ति योग नामक लेख लिखा था. इस आश्रम से बर्फ से ढके हिमालय को देखा जा सकता है.
पंत संग्रहालय : हिंदी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी में हुआ था. बस स्टैंड से थोड़ी दूरी पर उन्हीं को समर्पित पंत संग्रहालय स्थित है. जिस घर में उन्होंने अपना बचपन गुजारा था उसी घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है. यहां उन के दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुएं, कविताओं का संग्रह, पुरस्कार आदि को रखा गया है. यह सुबह 10.30 बजे से शाम के 4.30 बजे तक खुला रहता है. यह सोमवार को बंद रहता है.
चाय बागान : चाय बागान कौसानी के पास ही स्थित हैं. बागानों में घूम कर और चाय फैक्टरी में जा कर चाय उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. यहां आने वाले पर्यटक चाय खरीदना नहीं भूलते.

कहां ठहरें

बेस्ट इन कौसानी
पौइंट कौसानी,
बागेश्वर, उत्तराखंड
फोन – 0750075361

होटल उत्तराखंड
व्यू पौइंट कौसानी,
उत्तराखंड
फोन – 09012924222

द हैरिटेज रिजौर्ट
चाय बागान के नजदीक,
बैजनाथ रोड, कौसानी
उत्तराखंड
फोन – 09412092099

देहरादून
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून एक बहुत ही खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इसे दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाकों सा होता है, पर शाम होते ही यहां का तापमान कम हो जाता है. देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगायमुना नदियां बहती हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्यप्राणियों को भी देखा जा सकता है.

कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग : नई दिल्ली से जौली ग्रांट हवाई अड्डे तक पहुंचा जा सकता है, फिर वहां से टैक्सी से देहरादून.
रेलमार्ग : देहरादून के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें हैं जिन में शताब्दी ऐक्सप्रैस, मसूरी ऐक्सप्रैस, दून ऐक्सप्रैस खास हैं. देहरादून, लखनऊ, वाराणसी, मुंबई और कोलकाता से भी रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.
सड़कमार्ग : दिल्ली से बस से भी देहरादून 7-8 घंटे में पहुंचा जा सकता है. यहां से देहरादून के लिए हर दिन डीलक्स बसें चलती हैं.
कब जाएं : मार्च से अप्रैल और अक्तूबर से नवंबर तक का मौसम काफी सही रहता है.

दर्शनीय स्थल

मसूरी : मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है. मसूरी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. बर्फ से ढके हिमालय और दून घाटी के बीच बसा मसूरी का नजारा बहुत ही मनमोहक लगता है.
कैंपटी फौल : यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. यह मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है.
मसूरी झील : देहरादून रोड पर मसूरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है.
सहस्रधारा : शहर से 11 किलोमीटर दूर सहस्रधारा एक खूबसूरत जगह है. स्थानीय लोगों के साथसाथ पर्यटक भी बड़ी संख्या में पिकनिक के लिए यहां आते हैं. झरने की गहराई 9 मीटर है और माना जाता है कि यहां का पानी त्वचा रोगों से पीडि़त लोगों के लिए फायदेमंद है. 
मल्सी डीयर पार्क : देहरादून शहर से 10 किलोमीटर दूर मसूरी रोड पर एक छोटा सा टूरिस्ट स्पौट है मल्सी डियर पार्क. यह एक छोटा सा चिडि़याघर जैसा है और इसी के साथ एक चिल्ड्रन पार्क भी है. यह पर्यटकों को खूबसूरत वातावरण के बीच हिरन, नीलगाय और पक्षियों का एक सुखद एहसास उत्पन्न कराता है.
भागीरथी रिजौर्ट : चकराता रोड पर देहरादून शहर से 18 किलोमीटर दूर सेलाकी में है भागीरथी रिजौर्ट. यहां से हिमालय के खूबसूरत नजारे दिखाई देते हैं. पर्यटक यहां आ कर स्विमिंग पूल, फौआरे आदि का आनंद उठाते हैं. खूबसूरत पहाड़ों के बीच रिजौर्ट एक बेहतरीन टूरिस्ट स्पौट है. 
राजाजी नैशनल पार्क : 1966 में बना राजाजी राष्ट्रीय उद्यान 820 वर्ग किलोमीटर में फैला है. यहां कई प्रकार के फूल, पेड़, पौधे और जानवर हैं. यहां स्तनधारी प्रजातियों की 23 से अधिक प्रजातियां हैं और यहां 315 प्रकार के जीवजंतु पाए जाते हैं.
टाइगर फौल : चकराता शहर से 5 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर के टाइगर फौल पहुंचा जा सकता है. सड़क से करीब 1.5 किलोमीटर नीचे जाने पर यह खूबसूरत झरना नजर आता है.
लाखामंडल : कैंपटीन यमुना नदी के किनारे बसा लाखामंडल चकराता से करीब 35 किलोमीटर और देहरादून से 128 किलोमीटर की दूरी पर है. यह दर्शनीय है.
मोईगाड फौल : दिल्लीयमुनोत्तरी रोड पर देहरादून से 69 किलोमीटर दूर विकासनगर से यह फौल आगे शांत और निर्मल वातावरण में है. मोईगाड फौल में स्नान कर के खुद को तरोताजा किया जा सकता है.

कहां ठहरें

होटल पैसिफिक
19, सुभाष रोड, देहरादून,
उत्तराखंड
फोन-0135-2712355

होटल गे्रट वैल्य
74-सी, राजपुर रोड, देहरादून, उत्तराखंड
फोन – 0135-2744086

होटल प्रैसिडैंट
6, एस्ले हौल, राजपुर रोड,
देहरादून, उत्तराखंड
फोन – 0135-2657082

होटल वायसराय इन
391/1, निरंजनपुर,
देहरादून, उत्तराखंड
फोन – 0135-2729995

क्या खाएं : यहां आप को डोसा से ले कर बर्गर तक, सबकुछ मिलेगा. मोतीमहल में बहुत ही स्वादिष्ठ चाइनीज खाना मिलता है, इसे जरूर खाएं. साथ ही, यहां के रेस्तरां में मिलने वाले तिब्बती मोमोज काफी प्रसिद्ध हैं.
क्या करें : साइट देखने और खरीदारी करने के अलावा यह शहर साहसिक उत्साही कार्यों के लिए बेहतर स्थल है. पैराग्लाइडिंग और स्कीइंग जैसे कई साहसिक खेलों का आनंद दून घाटी में उठाया जा सकता है
कहां से करें शौपिंग : देहरादून आने वाले पर्यटक यहां से गरम कपड़ों की खरीदारी करना पसंद करते हैं. खरीदारी के लिए यहां का सब से मशहूर पल्टन बाजार है. यहां की दुकानें स्थानीय, हस्तशिल्प, ऊनी कपड़ों, गहनों और पुस्तकों के लिए लोकप्रिय हैं.

शिमला

शिमला एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जो हिमाचल प्रदेश की राजधानी है. समुद्र की सतह से 2202 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस जगह को समर रिफ्यूज और हिल स्टेशनों की रानी के रूप में भी जाना जाता है.

कैसे पहुंचें

शिमला मुख्य परिवहन माध्यम वायु, रेल और सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. 
वायुमार्ग : जुबर्हाती एअरपोर्ट इस स्थान के लिए निकटतम हवाई अड्डा है. यहां से शिमला 22 किलोमीटर दूर है. चंडीगढ़ एअरपोर्ट से भी शिमला पहुंचा जा सकता है. इस की दूरी 120 किलोमीटर है.
रेलमार्ग : शिमला जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है. कालका रेलवे स्टेशन कई शहरों से जुड़ा हुआ है.
सड़कमार्ग : शिमला सड़कमार्ग के द्वारा चंडीगढ़, दिल्ली, देहरादून, कालका से जुड़ा हुआ है. वहां आसानी से बस से पहुंचा जा सकता है.
कब जाएं : शिमला में सालभर एक सुखद जलवायु का आनंद मिलता है जो इसे पूरे साल पर्यटन के लायक बनाता है. यहां आने का सब से अच्छा समय अप्रैल से जून और अक्तूबर से नवंबर का होता है.

क्या देखें

स्कैंडल पौइंट : माल रोड पर सब से उच्च पौइंट माना जाने वाला स्थान स्कैंडल पौइंट कहलाता है. वहां प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की मूर्ति स्थापित की गई है.
हिमाचल राज्य संग्रहालय: स्कैंडल पौइंट के निकट स्थित यह संग्रहालय बड़ेबड़े लौन वाले एक आकर्षक उपनिवेशीय भवन में स्थापित है.
दि पीटर हौफ : ऐतिहासिक पीटरहौफ परिसर, अब एक हैरिटेज होटल है. यह शहर के बीचोंबीच चौड़ा मैदान नामक जगह पर स्थित है. यहां से आप पश्चिम की ओर धौलाधार पर्वत शृंखला और पूर्व की ओर किन्नर कैलास की प्राकृतिक सुंदरता को निहार सकते हैं.
चैल : यह शिमला के निकट बसा एक छोटा, एकांतवास वाला ग्राम है, जिस के चारों ओर घने वन हैं, जहां से हिमालय की श्रेणियों पर हिम को देखा जा सकता है. साफ आसमान में इस छवि का मनोरम दृश्य आप को देखने को मिलेगा. पहाडि़यों के मध्य अपने वेग से बहती सतलुज नदी के दोनों ओर स्थित कसौली और शिमला से इस की दूरी बराबर है. यहां वन्य जीवजंतुओं से परिपूर्ण पहाडि़यां देखने को मिलेंगी, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए सुखद अनुभव प्रदान करती हैं. चैल का सब से बड़ा गौरव एक पहाड़ी के ऊपर बना क्रिकेट का मैदान है जिसे विश्व का सब से ऊंचाई वाला स्टेडियम माना जाता है. अब यह भारतीय सेना की देखरेख में है.
कसौली : कालकाशिमला मार्ग पर स्थित कसौली काफी खूबसूरत है. यहां सर्वाधिक चहलपहल वाले स्थान अपर और लोअर माल हैं, जहां की दुकानों पर रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं मिलती हैं. कसौली में कई दर्शनीय स्थल हैं जहां प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा लिया जा सकता है. बलूत, चीड़ और घोड़ों के लिए बनी सुरंगों से संपूर्ण क्षेत्र खूबसूरत लगता है.

आसपास के क्षेत्रों में जाएं : आप सुबह 7 बजे से 9 बजे के बीच उपलब्ध स्थानीय बस सेवा का उपयोग कर सकते हैं. स्थानीय यात्रा और साइट सीइंग के लिए टैक्सियां भी उपलब्ध हैं. हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा टूरिस्ट बसें भी चलाई जाती हैं, जिन की बुकिंग माल रोड पर स्थित पर्यटक सूचना केंद्र से कराई जा सकती है.

क्या खाएं

शिमला में अधिकांश रेस्तरां माल रोड के साथसाथ हैं. यहां विविध प्रकार के व्यंजन मिलते हैं. यहां का भोजन विशिष्ट हिमाचली नहीं होता, बल्कि इन का रुझान पंजाबी खाने की तरह है. माल रोड पर कई बेकरियां हैं जो फास्ट फूड बेचती हैं और यहां आइसक्रीम पार्लर हैं जहां आइसक्रीम का मजा लिया जा सकता है.

कहां ठहरें

होटल क्रिस्टल पैलेस
टूरिज्म लिफ्ट के बगल में,
माल रोड के नजदीक,
शिमला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0177-2657589

होटल डी पार्क
कच्ची घाटी,
शिमला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0177-2832873

होटल गुलमर्ग रीजैंसी
माल रोड के नजदीक
शिमला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0177-2655454

शिमला हैवेन होटल
विलैज डाहन, समर हिल स्टेशन,
शिमला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0177-2832007

धर्मशाला

धर्मशाला शहर की ऊंचाई 1250 मीटर और 2000 मीटर के बीच है. यहां से बर्फ की परत आसानी से देखी जा सकती है. सूर्य की किरणें जब इस बर्फ पर पड़ती हैं तो उन की चमक से घाटी में एक सुंदर इंद्रधनुष बनता है और लोग इसे देखते रह जाते हैं. यह पर्वत 3 तरफ से आबादी से घिरा हुआ है और यह घाटी दक्षिण की ओर जाती है. यह प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां पाइन के ऊंचे पेड़, चाय के बागान और इमारती लकड़ी पैदा करने वाले बड़े वृक्ष ऊंचाई व शांति तथा पवित्रता के साथ खड़े दिखाई देते हैं.

कैसे पहुंचें

धर्मशाला पहुंचने के लिए सड़क मार्ग उपयुक्त है. यहां वायुमार्ग और रेलमार्ग से भी पहुंचा जा सकता है. 

वायुमार्ग : कांगड़ा का गागल हवाईअड्डा धर्मशाला का सब से नजदीकी एअरपोर्ट है. यह धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंच कर बस या टैक्सी के माध्यम से धर्मशाला पहुंचा जा सकता है.
रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है. यहां से 95 किलोमीटर दूर है धर्मशाला. पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच गुजरने वाली नैरोगेज रेल लाइन पर स्थित कांगड़ा स्टेशन से धर्मशाला 17 किलोमीटर दूर है. यहां उतर कर आप बस या टैक्सी ले कर धर्मशाला पहुंच सकते हैं.
सड़कमार्ग : हिमालय रोड परिवहन निगम की बसें, चंडीगढ़, दिल्ली, होशियारपुर, मंडी आदि शहरों से धर्मशाला के लिए बसें चलती हैं.
कब जाएं : धर्मशाला जाने के लिए उत्तम समय अप्रैल से जून और सितंबर से अक्तूबर का है. पर्यटन के लिहाज से इस दौरान यहां का तापमान अनुकूल रहता है.
घूमने वाले स्थान : धर्मशाला में स्थित कांगड़ा कला संग्रहालय में इस जगह के कलात्मक और सांस्कृतिक चिह्न मिलते हैं. 5वीं शताब्दी की बहुमूल्य कलाकृतियां और मूर्तियां, पेंटिंग्स, सिक्के, बरतन, आभूषण, पांडुलिपियां और शाही वस्त्र आदि यहां देखे जा सकते हैं.

धर्मशाला के अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों के अंतर्गत कांगड़ा आर्ट म्यूजियम, सैंट जौन चर्च और वार मैमोरियल शामिल हैं. धर्मशाला के आसपास धर्मकोट, नड्डी गांव, जोगिंदरनगर और पालमपुर इत्यादि स्थान हैं. जब भी धर्मशाला घूमने जाएं तो इन स्थानों को भी अवश्य देखें.
क्या करें : धर्मशाला में आप एडवैंचर का मजा ले सकते हैं. यहां आप के लिए ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग और चट्टानों पर चढ़ने का मजा ले सकते हैं. अगर आप को एडवैंचर पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं. आप यहां की प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं.
खरीदारी : यहां तिब्बती बाजार से हाथ की बनी वस्तुओं के अलावा कांगड़ा चित्रकारी से सजे सामानों की खरीदारी की जा सकती है. मैकलौडगंज तिब्बती सामानों के लिए प्रसिद्ध है जिस में कारपेट, ज्वैलरी, मैटल वेयर खास हैं. यहां का कोतवाली बाजार भी जरूर जाएं. वहां अलग व खास तरह की चीजें मिलती हैं.

कहां ठहरें

होटल सैंटर पौइंट
कचहरी सिविल लाइन,
धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0189-2229599

एशिया हैल्थ रिजौर्ट
स्ट्रौबेरी हिल्स, डल लेक के नजदीक, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0189-220877

क्लब महिंद्रा कांगड़ा वैली
शीला चौक, सिधपुर,
धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 0189-229701

स्नो रिजौर्ट
खांडी खुनयारा रोड, कांगड़ा,
धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
फोन – 09805129433

मनाली

कुल्लू से उत्तर दिशा में 40 किलोमीटर की दूरी पर लेह की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर घाटी के सिरे के पास मनाली स्थित है. यहां का दृश्य अति मनमोहक है. यहां सब से पहले बर्फ से ढकी हुई पहाडि़यां, साफ पानी वाली व्यास नदी दिखाई देती है. दूसरी ओर देवदार और पाइन के पेड़, छोटेछोटे खेत व फलों के बागान दिखाई देते हैं.

कैसे पहुंचें

रेलमार्ग : यहां के लिए सीधी रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है. निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ है. चंडीगढ़ से मनाली 260 किलोमीटर दूर है. आप शिमला होते हुए भी मनाली पहुंच सकते हैं. आप चाहें तो पिंजौर तक रेल से जा सकते हैं. इस के बाद आगे बस या टैक्सी से जा सकते हैं.
वायुमार्ग : मनाली वायुमार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है. यहां का निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो मनाली से 50 किलोमीटर की दूरी पर है.
सड़कमार्ग : मनाली, दिल्ली से 600 किलोमीटर की दूरी पर है. यह शिमला से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ी है. दिल्ली, शिमला व चंडीगढ़ से मनाली के लिए हिमाचल परिवहन निगम की बसें भी उपलब्ध हैं.
कब जाएं : आप यहां गरमी के मौसम में जा सकते हैं. लेकिन राफ्ंिटग और पैराग्लाइडिंग का लुत्फ उठाने वाले पर्यटक जनवरी से मध्य अप्रैल के बीच जाएं तो ज्यादा बेहतर है. इस दौरान स्कीइंग की सुविधा भी उपलब्ध होती है.

मनाली के आसपास के इलाकों में सैलानियों के लिए बहुत कुछ बिखरा पड़ा है, इन जगहों को भी अवश्य देखें :

नेहरू कुंड : रोहतांग मार्ग पर बना यह सुंदर प्राकृतिक झरना मनाली से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां सुबहशाम सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है.
सोलंग घाटी : सोलंग घाटी मनाली से 13 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां बर्फ व ग्लेशियरों के अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं. स्कीइंग के लिए मशहूर यहां की ढलानों पर सैलानी इस खेल का खूब आनंद लेते हैं. यहां ट्रैकिंग, स्कीइंग और माउंटेनियरिंग के कैंप आयोजित किए जाते हैं.
कोठी : मनाली से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कोठी. यहां से पहाड़ों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है. यहां 50 मीटर की ऊंचाई से गिरते झरने का पानी सैलानियों को खूब लुभाता है.
रोहतांग दर्रा : मनाली से 51 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह मशहूर पर्यटन स्थल. यहां हजारों की संख्या में सैलानी घूमने के लिए आते हैं. आप भी जब मनाली जाएं तो रोहतांग अवश्य देखें.
कुल्लू घाटी : मनाली से कुछ दूरी पर कुल्लू घाटी है. यहां कलकल करती नदियां, पहाडि़यों से गिरते झरने, देवदार के घने वृक्ष, कुल्लू घाटी के प्राकृतिक सौंदर्य को बयां करते हैं.

कहां ठहरें

सार्थक रिजौर्ट
बीपीओ खाखनल लैफ्ट बैंक,
नागर रोड, मनाली.
हिमाचल प्रदेश
फोन – 09805008423

स्नोवैली रिजौर्ट
लौग हट्स एरिया,
मनाली, हिमाचल प्रदेश
फोन – 01902-253027

हौलीडे इन मनाली
पिरनी नागर हाईवे,
मनाली, हिमाचल प्रदेश
फोन – 01902-253312

होटल हनीमून इन
लैफ्ट बैंक एलो,
मनाली, हिमाचल प्रदेश
फोन – 01902-253234

होटल ले ग्रैंड मनाली
द माल रोड, एनएच 21 रोड,
मनाली, हिमाचल प्रदेश
फोन – 01902-251414

…ताकि सुरक्षित हो आप की यात्रा

आजकल पर्यटकों को हर मौसम आकर्षित करता है यानी?घूमनेफिरने का कोई विशेष मौसम नहीं होता. जब आप पर्यटन के लिए निकलते हैं तो घूमना जितना महत्त्वपूर्ण है, व्यक्तिगत सुरक्षा व सेहत उस से कम अहम नहीं है. कहीं भी घूमने जाने से पहले रखिए कुछ खास खयाल ताकि आप की यात्रा हमेशा सुखद हो. देश या विदेश, जहां कहीं भी पर्यटन के लिए निकलना हो, कम खर्च में ज्यादा पर्यटन करने का अच्छा तरीका यह है कि तैयारियों की शुरुआत आप जानकारी जुटाने से करें. मसलन, जहां कहीं भी आप जा रहे हैं उस के आसपास और कौनकौन सी जगहें हैं? क्या उन्हें इस यात्रा पैकेज में शामिल किया जा सकता है? जिन शहरों की यात्रा पर आप जा रहे हैं, वहां देखने के लिए कौनकौन सी मशहूर जगहें हैं? खासतौर से किसी भी बड़े शहर के भीतर की दर्शनीय जगहों को कई हिस्सों में बांट कर देखें.

वर्तमान के साथ अतीत का मेल

ऐसा कोई भी बड़ा शहर नहीं है जिस का समृद्ध इतिहास न हो. प्राचीन काल में स्थापत्य की सर्वोत्तम कृतियां पर्यटकों को खासी लुभाती है. आज भी कई शहरों में मौजूद ऐतिहासिक स्थलों का स्थापत्य सौंदर्य देखते ही बनता है. विज्ञान से ले कर, प्रकृति, इतिहास और कला तक सभी विषयों के संग्रहालय कई शहरों में हैं. इसलिए जब भी घूमने निकलें तो उस स्थान की सभी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में पहले से पूरी जानकारी कर उन्हें अपनी सूची में शामिल करना न?भूलें.

मौसम के अनुकूल हो तैयारी

यह सच है कि अब हर मौसम में हर जगह घूमा जा सकता है, पर मौसम के कुछ रंग या भौगोलिक हालात निजीतौर पर आप के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं. इसलिए जब कहीं निकलना हो तो वहां की भौगोलिक परिस्थिति के बारे में जान लें.

आरक्षण

किसी भी यात्रा को सफल बनाने के लिए बहुत जरूरी है कि सभी आरक्षण पहले से करवा लिए जाएं.

कम हो सामान

यह सही है कि पर्यटन पर जाते समय सभी जरूरी सामान आप के पास होने चाहिए, पर यह भी खयाल रखें कि यात्रा के दौरान जितना ज्यादा सामान होगा, झंझट भी उतना ही ज्यादा होगा. इसलिए जो चीजें बहुत जरूरी हों, वही ले जाएं.

पैकेज समझदारी से लें

पर्यटन के व्यवसायीकरण के इस दौर में आमतौर पर होता यह है कि लोग अपने ढंग से अलगअलग फ्लाइट और होटल बुकिंग करा कर घूमने के बजाय किसी एजेंसी का पैकेज ले लेते हैं. इन पैकेजों में घूमने के लिए शहर तो तय होते?हैं, पर शहरों या उन केआसपास जगहें कौनकौन सी दिखाई जाएंगी यह पहले से तय नहीं होता है. कई बार ट्रैवल एजेंट किसी जगह की बहुत मशहूर चीजों को ही आप की आइटिनररि में दर्ज करते हैं और बाद में दिखाते नहीं हैं. इसलिए जब आप पैकेज फाइनल करने निकलें तो इन सब बातों का पूरा खयाल रखें. किन शहरों में वे कौनकौन सी दर्शनीय चीजें दिखाएंगे और वहां स्थानीय जनजीवन को देखनेसमझने के लिए वे आप को कितना वक्त देंगे, यह सब पहले से तय कर लें क्योंकि जो चीजें छूट जाएंगी, बाद में मालूम होने पर उन्हें न देख पाने की कसक उम्र भर बनी रहेगी.

मोलभाव का है जमाना

यह भी याद रखें कि सभी क्षेत्रों की तरह इस?क्षेत्र में?भी मोलभाव की पूरी गुंजाइश होती है. कम से कम धन में ज्यादा से ज्यादा स्थान घूम पाने के लिए मोलभाव करने में संकोच बिलकुल न करें. हो सकता है इस से आप को काफी फायदा हो जाए और आप घूमने का ज्यादा मजा उठा पाएं. बस, इन बातों का खयाल रखें तो सैरसपाटा, छुट्टियां बिताने और मौजमस्ती करने का मजा कई गुणा बढ़ जाएगा.

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