आईना कुछ इस तरह गुनगुनाने लगा है
वो उदास चेहरा अब मुसकराने लगा है
कोई मिल गया है सारा आलम है महका
अक्स इक झूमता खुद पे इतराने लगा है.

   – डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू

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