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सैंसर बोर्ड और नैतिकता

केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए गए फिल्म सैंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने फिल्मों के शुद्धीकरण का अभियान छेड़ दिया है. हिंदी फिल्मों को 19वीं सदी में ले जाने के उन के इतने ज्यादा अरमान हैं कि उन्होंने बाकायदा एक सूची जारी कर दी कि फिल्मों में कौन से शब्द बोले जा सकते हैं और कौन से नहीं. उन्होंने कहा तो नहीं पर यह अघोषित बात है कि ये शब्द, उन के अनुसार, भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं और उन्हें फिल्मों में स्वीकार करने से हिंदुत्व की नैतिकता को खतरा है. फिल्में साफसुथरी हों, यह कामना हर कोई कर सकता है पर इस का फैसला कि कौन सी फिल्म साफसुथरी है और कौन सी नहीं, यह कौन तय करेगा–सैंसर बोर्ड, जिस के पास भगवाई प्रमाणपत्र है या आम जनता?

फिल्मों और साहित्य में गालियां न हों, यह मांग करना ठीक है पर जब समाज में ये बुरी तरह इस्तेमाल हो रही हों तो दोषी समाज है या फिल्म व साहित्य. भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों में हजारों प्रवचनकारी हैं, मंदिरमठों के संचालक हैं, लेखक हैं, स्कूलकालेज चलाने वाले हैं. क्या वे अपने उपदेशों से उस भाषा को मूलतया समाप्त नहीं कर सकते जिस की वे आलोचना कर रहे हैं? रही बात नैतिकता की, तो उस के लिए हमें अपने ग्रंथ खंगालने चाहिए. और अगर आधुनिक तथाकथित फिल्मी सड़ीगली नैतिकता के मानदंडों से भी गं्रथों में देवीदेवताओं के कारनामों के बारे में जानें तो सारे मंदिरों पर सैंसर जैसी कैंचियां चल जाएंगी और सारी पौराणिक फिल्मों व धारावाहिकों को बंद कर देना पड़ेगा. ये तथाकथित आदर्श ग्रंथों में उन गुणों से भरे हैं जो एक आम आदमी में होते हैं जिन में छल, कपट, धोखा, अपशब्द आदि सब शामिल हैं.

फिल्मों को अपवाद मानना गलत है. सिर्फ इसलिए कि किसी तरह से सैंसर बोर्ड बन गया और सर्वोच्च न्यायालय ने विचारों की स्वतंत्रता के हनन की अनदेखी कर दी, तो सैंसर बोर्ड नैतिकता का ठेकेदार बन गया, ठीक नहीं है. यह ठीक है कि फिल्मों का प्रभाव लिखे शब्दों से ज्यादा होता है पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि फिल्मों में ही हर तरह के सद्व्यवहार के उपदेश भी होते हैं लेकिन फिर भी लोग नहीं सुधरते, जैसे धर्म के दलालों के प्रवचनों के बावजूद हिंसा, हत्या, लूट, बेईमानी, बलात्कार सभी समाजों में मौजूद है. सैंसर बोर्ड के हाथों में कैंची का हथियार असल में सरकार, सत्तारूढ़ पार्टी, उस के समर्थकों की गलतियों से सुरक्षित रखने के लिए होता है. नैतिकता से उस का दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं.

कुछ आँखों देखि कुछ कानों सुनी

बगैर पंख उड़ान

रस्सी जल गई पर बल नहीं गया वाली पुरानी कहावत रेणुका चौधरी जैसी कई नेताओं पर चरितार्थ होते देखी जा सकती है. तेलंगाना से कांग्रेस की ये सांसद आम महिलाओं की तरह 20 फरवरी को दिल्ली एअरपोर्ट के शौपिंग एरिया में खरीदारी में व्यस्त रहीं तो उन के इंतजार में हवाई जहाज को 45 मिनट रोक कर रखा गया. दिल्ली से हैदराबाद जा रही फ्लाइट में रेणुका ने अपना सामान रख दिया लेकिन वे यह भूल गईं कि कांग्रेस अब सत्ता में नहीं है और उस की कई वजहों में से एक है उस की मनमानी और लोकतंत्र को जमींदारी समझ लेना सत्ता बुरी चीज नहीं है, बुरी बात है उसे अपनी बांदी मान लेना. कांग्रेसियों को समझनेसमझाने में वक्त तो लगेगा कि अब उन की ठसक ज्यादा नहीं चलेगी. एअर इंडिया को चाहिए कि वह भ्रम में जी रहे ऐसे भूतपूर्व रसूखदारों से हर्जाना वसूले.

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आप ही आप हैं

आम आदमी पार्टी वाकई विचित्र है. वह टूटने के कगार पर है या नहीं, इस पर शोध की तमाम संभावनाएं हैं. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे नेताओं की इस में कमी नहीं है जो गुजरे कल के टीवी पत्रकार, वकील या कवि वगैरह हैं. इन चेहरों का कोई जनाधार नहीं है. यानी वे सहायक अभिनेता हैं जिन्हें गलतफहमी हो जाती है कि फिल्म हम से है, हम फिल्म से नहीं. हकीकत में इस के निर्विवाद मुखिया और हीरो अरविंद केजरीवाल ही हैं. चूंकि सुपरमैन नहीं हैं इसलिए अकेले दिल्ली सरकार नहीं चला सकते. अपनी सहूलियत और सहायता के लिए उन्होंने कुछ असफल प्रतिभावानों को मौका दिया. अब वे हायहाय करते रहते हैं कि देखो, मनमानी हो रही है. ये लोग अपने दम पर यानी बगैर अरविंद केजरीवाल के, शायद 1 हजार वोट भी न हासिल कर पाएं जो लोकतंत्र की ताकत होती है.

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मौत की अफवाह

बुजुर्ग अभिनेता दिलीप कुमार की मौत की झूठी खबर एक बार फिर आई तो लगा कि अनुमान आधारित पत्रकारिता कितनी खतरनाक और हास्यास्पद होती है. मीडिया एक साल में 3 बार दिलीप कुमार को मृत घोषित कर चुका है. शुरू में तो उन की अभिनेत्री पत्नी सायराबानो सफाई देती थीं पर थकहार कर उन्होंने अब सफाई देना बंद कर दिया है. खबरों का टोटा नहीं है, न ही कभी होगा पर टीआरपी बढ़ाने वाली चटपटी खबरें अगर न्यूज चैनल्स पैदा करेंगे तो अपनी विश्वसनीयता ही खोएंगे. अब कौन इन भले मनुष्यों को समझाए कि किसी बीमार बुजुर्ग के अस्पताल में भरती होने का एक ही मतलब यह नतीजा नहीं होता. न्यूज चैनल पर पहले दिखाने की होड़ का खमियाजा दिलीप कुमार जैसे अभिनेताओं और उन के प्रशंसकों को भुगतना पड़ता है तो यह उन के साथ ज्यादती ही कही जाएगी.

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ज्ञान प्राप्ति

देर से ही सही उमा भारती को ज्ञान प्राप्त हो रहा है कि नदियों को सब से ज्यादा प्रदूषित हिंदू समाज के लोग यानी भक्त व श्रद्धालु करते हैं. कैसे करते हैं यह किसी भी नदी के किनारे जा कर देखा जा सकता है. दिल्ली में अकसर घुटन महसूस करने और खामोश रहने वाली उमा जब भी अपनों के बीच आती हैं तो उन का चेहरा खिल उठता है और वे अच्छीअच्छी बातें भी करने लगती हैं. अपने गृहनगर टीकमगढ़ में होली के दिनों में वे आईं तो अनौपचारिक बातचीत में पत्रकारों के सामने मान बैठीं कि हिंदू श्रद्धालु ही सब से ज्यादा नदियों को खराब करते हैं. लेकिन नदियों को खराब करवा कर दक्षिणा बटोरने वाले पंडों के बारे में वे कुछ नहीं बोलीं न ही कभी बोलेंगी क्योंकि यह ज्ञान की अति हो जाएगी जिसे उच्च और श्रेष्ठ हिंदू बरदाश्त नहीं करेगा.

टूरिज्म का फिल्मी बाजार

आमिर खान का इंडियन टूरिज्म कैंपेन ‘अतिथि देवो भव:’ काफी चर्चित हुआ था. अमिताभ बच्चन तो बाकायदा गुजरात राज्य के पर्यटन ब्रैंड ऐंबैसेडर भी बने. अब अभिनेता सैफ अली खान भी टूरिज्म को बढ़ावा देते नजर आएंगे. यह बात अलग है कि छोटे नवाब भारतीय पर्यटन का प्रचार नहीं बल्कि इंगलैंड नैशनल टूरिज्म से जुड़े हैं और उन्हें इंगलैंड नैशनल टूरिज्म एजेंसी ने अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर नियुक्त किया है. सैफ विजिट ब्रिटेन का प्रचार करेंगे और बौलीवुड ब्रिटेन कैंपेन चलाएंगे. एजेंसी को उम्मीद है इस से ज्यादा भारतीय पर्यटक इंगलैंड आएंगे वैसे, पर्यटकों का तो पता नहीं लेकिन इतना तो तय है कि फिल्म स्टार्स ऐसे कैंपेन की बदौलत फिल्मों से ज्यादा कमाई कर डालते हैं.

टीवी वाला थप्पड़

चुइंगम की तरह खींचे जा रहे धारावाहिकों में सासबहू और साजिश के दौरान बनावटी थप्पड़ों की गूंज तो आप ने कई बार सुनी होगी लेकिन सीरियल के सैट पर कलाकार अपनी खुन्नस निकालने के लिए सहयोगी कलाकार को तमाचे रसीदने लगे तो थोड़ा अजीब सा लगता है. मामला भले ही अजीब लगे लेकिन टीवी धारावाहिक ‘दीया और बाती हम’ की अभिनेत्री दीपिका यानी संध्या ने अपने कोऐक्टर अनस यानी सूरज को पूरी यूनिट के सामने तमाचा जड़ दिया. चूंकि दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा था. लिहाजा, इसे उसी का नतीजा माना जा रहा है जबकि संध्या के मुताबिक, सूरज ने उन्हें गलत तरीके से छुआ, सो उन्हें थप्पड़ मिला. बहरहाल, आपसी संबंधों की कड़वाहट को यों सरेआम इस तरह इजहार करना तर्कसंगत कतई नहीं कहा जा सकता.

पूंजी बाजार

आम बजट के बाद शेयर बाजार में तेजी

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 28 फरवरी को लोकसभा में वर्ष 2015-16 का आम बजट पेश करने के मद्देनजर बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में तेजी का जो रुख बना वह लगातार जारी है. बजट में ढांचागत सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी व्यवस्था को लागू किए जाने के प्रस्ताव से बाजार को एक तरह से पंख लग गए हैं. निवेशकों में उत्साह है.

अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने की संभावना जताई है. वित्त मंत्री ने

2015-16 के वित्त वर्ष में विकास दर 7.4 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में इस के 8.03 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद जताई है. शेयर बाजार में इस अनुमान के कारण अच्छा उछाल आ रहा है. मार्च के पहले सप्ताह में 30 शेयरों वाले नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी का सूचकांक पहली बार 9 हजार अंक के पार पहुंचा है. बीएसई का सूचकांक पहली बार 30 हजार अंक से आगे निकला है हालांकि बाद में गिर गया. आर्थिक विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वह जल्द ही 30 हजार अंक के पार पहुंच जाएगा. इस बार बजट शनिवार को पेश किया गया, छुट्टी का दिन होने के बावजूद शेयर बाजार खुला रहा. बजट के दिन सूचकांक 128 अंक की तेजी के साथ बंद हुआ. बाजार के लिए इसे बेहद सकारात्मक संकेत माना जा रहा है.

?अक्षय ऊर्जा की ‘अक्षय’ उम्मीद पर परमाणु बिजली भारी

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को सरकार ने अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया है. इस दिशा में सरकार के प्रयास को देखते हुए देश को वैश्विक नेतृत्व की जिम्मेदारी संभालने की बात भी की जाने लगी है. सरकार दावा कर रही है कि इस क्षेत्र में वह जो कदम उठा रही है, दुनिया के किसी देश ने अभी वहां तक नहीं सोचा है. खुद सरकार के वरिष्ठ मंत्री कह रहे हैं कि प्रकृति के इस स्वच्छ ऊर्जा भंडार का पूरा इस्तेमाल करने के लिए प्रौद्योगिकी का भरपूर प्रयोग नहीं हुआ है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15-17 फरवरी तक दिल्ली में अक्षय ऊर्जा पर आयोजित पहले वैश्विक निवेशक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि दुनिया के 50 देशों को प्रकृति ने सूर्य की रोशनी का असीम भंडार बख्शा है और हम सब को एक समूह बना कर सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए मिल कर शोध व अनुसंधान करने चाहिए.

ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल उस सम्मेलन की सफलता से अत्यधिक उत्साहित दिखे. उन्होंने कहा कि सरकार गैरपरंपरागत ऊर्जा उत्पादन का अपना लक्ष्य बढ़ा रही है. उस दौरान दुनिया के 27 बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सरकार को 5 लाख करोड़ रुपए के निवेश करने की प्रतिबद्घता का पत्र भी सौंपा. सरकार का इस से उत्साहित होना स्वाभाविक है.

स्वच्छ ऊर्जा को जब इतना महत्त्व दिया जा रहा है तो उसी समय सरकार परमाणु ऊर्जा जैसी घातक परियोजनाओं के लिए दुनिया के समक्ष किसलिए गिड़गिड़ा रही है. उस की इस कवायद को देख कर लगता है कि नवीकरणीय ऊर्जा की संभावना पर उसे भरोसा नहीं है. शायद उसे लगता है कि यह देश की ऊर्जा जरूरत पूरी नहीं कर पाएगा. यदि स्थिति असमंजस की है तो ढोल पीटने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

निशुल्क इंटरनैट, फायदा ग्राहक का

मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों ने जब इनकमिंग कौल्स पर शुल्क लेना बंद किया था तो मोबाइल सेवा लेने वालों की संख्या में एकाएक तेजी आ गई थी. बाजार में ग्राहक बढ़े तो सेवाप्रदाता कंपनियों की संख्या में इजाफा होने लगा. इस से ग्राहक बढ़ाने की मोबाइल कंपनियों में होड़ शुरू हो गई. इसी बीच, ग्राहक संख्या के आधार पर आगे निकलने के लिए प्रतिस्पर्धा चरम पर पहुंची तो अचानक कुछ कंपनियों ने टैरिफ यानी कौल्स दर घटा दी. उपभोक्ता उसी कंपनी की तरफ भागने लगे तो फिर दूसरी कंपनी ने भी वही रास्ता अपना लिया और इस स्पर्धा के कारण आज हमें मामूली दर पर प्रति कौल प्रति सैकंड की सुविधा मिल रही है.

इधर, पोर्टेबिलिटी की सुविधा भी शुरू हो गई है और रोमिंगफ्री जैसी सेवाएं ग्राहक ले रहे हैं. आने वाले वक्त में पूरे देश में पोर्टेबिलिटी के कारण नंबर बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इन सुविधाओं के कारण हर हाथ तक मोबाइल पहुंच गया है.

इधर, रिलायंस कम्युनिकेशंस ने फेसबुक के साथ मिल कर ग्राहकों को निशुल्क इंटरनैट की सुविधा देने की घोषणा की है. इस से सेवाप्रदाता कंपनियों में खलबली मच गई है. इन कंपनियों में भी प्रतिस्पर्धा का भाव बढ़ गया है और कई कंपनियों ने अपनी सेवा की समीक्षा शुरू कर दी है. समीक्षा के बाद कुछ कंपनियां अपनी सेवाओं की दरें घटा सकती हैं अथवा निशुल्क भी कर सकती हैं. इस से इंटरनैट क्षेत्र में क्रांति आने की संभावना है. प्रतिस्पर्धा में फायदा ग्राहक का ही होता है. इस बहाने उसे अच्छी और सस्ती सेवा मिल जाती है. इस में देखना यह है कि ग्राहक की जेब पर डाका डालने वाली कंपनियां कैसेकैसे जाल बुन कर ग्राहक को लूटने के छिपे रास्ते निकालती हैं.

कोयला ब्लौक आवंटन में पारदर्शिता का सवाल

देश में बिजली की आपूर्ति निर्बाध बनाए रखने के लिए सरकार कोयला उत्पादन को निर्विघ्न जारी रखने की कोशिश में है. कोयले में राजनेताओं तथा उद्योगपतियों के हाथ लगातार काले हुए हैं और इसे धोने के लिए नीलामी में पारदर्शिता जैसे जुमलों का सहारा ले कर कोयला उत्पादन जारी रखने की कोशिश है. नीलामी प्रक्रिया मार्च तक पूरी की जानी है. उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष सितंबर में 218 में से 214 कोयला ब्लौकों के आवंटन में धांधली होने की वजह से उन्हें रद्द कर दिया था और 31 मार्च तक फिर से इन ब्लौकों को आवंटित करने को कहा था. इस के तहत सरकार ने 103 ब्लौकों की आवंटन प्रक्रिया शुरू की. इन की औनलाइन नीलामी की प्रक्रिया जारी है. रद्द किए गए सभी ब्लौक 1993 से 2010 के बीच आवंटित हुए हैं.

नीलामी साफसुथरी हो, इस के लिए मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव को नोडल अधिकारी बनाया गया. औनलाइन आवेदन मंगाए और औनलाइन ही नीलामी हो रही है. सरकार दावा कर रही है कि नीलामी पारदर्शी तरीके से जारी है. लेकिन मुश्किल यह है कि इस काम के लिए संसद में विधेयक पारित करा कर कानून अभी नहीं बना है. अध्यादेश के जरिए इतना बड़ा काम किया जा रहा है.

विदित हो कि 10 माह की यह सरकार कोयले पर 2 अध्यादेश ला चुकी है. पहला अध्यादेश जारी करने के बाद विधेयक लाई लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में बहुमत के अभाव में उसे पारित नहीं करा सकी. इसलिए सत्र के समाप्त होने के महज कुछ दिन बाद सरकार ने फिर से अध्यादेश ला कर उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. सरकार भले ही उस प्रक्रि या को जारी रखने को अपनी जीत बताए लेकिन संवैधानिक तरीके से अध्यादेश के बल पर इस तरह के काम कराने की परंपरा स्वस्थ नहीं कही जा सकती है.

यह ठीक है कि प्रक्रिया शुरू करने के लिए अध्यादेश एक निश्चित अवधि तक का विकल्प है लेकिन एक पूरा सत्र निकल गया और अध्यादेश को कानून नहीं बनाया जा सका तो यह सरकार की विफलता है. सरकार विपक्ष को भरोसे में ले कर राज्यसभा में विधेयक पारित कराए और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाए तब ही कह सकते हैं कि वह पारदर्शिता की कसौटी पर चल रही है. 

वरुण धवन

‘स्टूडैंट औफ द ईअर’ से कैरियर की शुरुआत कर वरुण धवन वही लवर बौय और मस्तमौला युवक के किरदार निभाते हुए नजर आते रहे पर फिल्म बदलापुर से उन्होंने हवा के विपरीत दिशा में बहने का निर्णय लेते हुए अपनी अब तक की इमेज के ठीक उलट किरदार निभा कर हर किसी को आश्चर्य में डालने के साथसाथ सफलता भी पा ली है. एक तरफ फिल्म बदलापुर को बौक्स औफिस पर अच्छी सफलता मिली तो दूसरी तरफ उन के संजीदा अभिनय को पसंद किया भी गया. पेश हैं उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

आप ने ‘बदलापुर’ में अभिनय करना स्वीकार किया था तो आप के दिमाग में क्या था?

मैं हवा के विपरीत दिशा में बहना चाहता था. मगर मैं नैगेटिव किरदार नहीं निभाना चाहता था. बदलापुर में रघु का किरदार निभाते समय मैं ने इस बात का खयाल रखा कि वह कहीं से भी नैगेटिव न होने पाए.

‘बदलापुर’ में अभिनय करना आप के लिए रिस्क नहीं था?

कलाकार के लिए हर फिल्म रिस्क होती है क्योंकि किसी भी फिल्म की सफलता के दावे पहले से नहीं किए जा सकते. जब मैं मसाला फिल्म मैं तेरा हीरो और नए निर्देशक शशांक खेतान के साथ ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ कर रहा था, तो लोगों ने कहा था कि मैं रिस्क उठा रहा हूं. मुझे इस तरह की फिल्में नहीं करनी चाहिए. पर मुझे उस फिल्म में भी लोगों ने पसंद किया था. इस के बाद जब मैं ‘बदलापुर’ कर रहा था तो कई लोगों ने मुझे सलाह दी कि यह फिल्म नहीं करनी चाहिए. लोगों की राय में श्रीराम राघवन असफल निर्देशक हैं. लेकिन मुझे अच्छी फिल्म करनी थी और मेरे अंतर्मन ने कहा कि ‘बदलापुर’ एक अच्छी फिल्म बन सकती है. इसलिए मैं ने यह फिल्म की.

मेरी जिंदगी का यह सब से बड़ा और सुखद पल है कि बदलापुर में अभिनय करने की वजह से मुझे सराहा जा रहा है. इस से मेरी इस सोच को बल मिला है कि आज का युवक इस तरह की फिल्में भी देखना चाहता है. दर्शक अब सिर्फ टिपिकल फिल्मी हीरो को नहीं देखना चाहते.

इस फिल्म में यामी गौतम, दिव्या दत्ता और हुमा कुरैशी जैसी 3 अभिनेत्रियों के साथ आप के इंटीमेट सीन हैं?

इन तीनों के साथ मेरा रोमांटिक एंगल है. इन के साथ थोड़े अलग रिश्ते हैं. लिहाजा किसिंग और इंटीमेट सीन भी हैं. हर इंसान अलग होता है, इसलिए सीन करने में भी अलग तरह के अनुभव रहे. मुझे दिव्या दत्ता जैसी वरिष्ठ और मंझी हुई कलाकार के साथ इस तरह के सीन करने में कोई दिक्कत नहीं हुई. कैमरे के सामने मैं सिर्फ एक किरदार निभाता हूं न कि वरुण होता हूं. हम दोनों कलाकार उस वक्त सीन में थे. सीन की जो जरूरत थी वह हम ने किया. उन के साथ काम कर के मैं ने बहुत एंजौय किया.

अब आप की लवर बौय और मस्तीखोर लड़के की इमेज बदलेगी?

बिलकुल नहीं. मैं अपनी इमेज बदलना नहीं चाहता. बदलापुर के बाद अब मैं फिर से उसी तरह की कौमेडी फिल्में करने वाला हूं. मैं ने इमेज बदलने के लिए बदलापुर में अभिनय नहीं किया. मैं चाहता हूं कि फिल्मकार मुझे कलाकार के तौर पर गंभीरता से लेना शुरू करें. सुना है कि फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद रघु के चरित्र का असर आप की जिंदगी पर काफी समय तक बना रहा? यह सच है. रघु का किरदार बहुत संजीदा किरदार रहा. मैं इस किरदार को छोड़ नहीं पा रहा था. जिस माहौल में हम ने शूटिंग की वह माहौल मैं भूल नहीं पा रहा था. रघु का किरदार निभाते हुए मैं काफी गंभीर रहने लगा था. मेरा गुस्सा मेरी आंखों से झलकता था. ये सब शूटिंग खत्म होने के बाद भी काफी दिनों तक मेरे साथ चस्पां रहा. अब मैं कुछ कौमेडी फिल्मों में काम करना चाहूंगा.

जिस किरदार को आप निभाते हैं वह आप की निजी जिंदगी पर असर करता है?

हर फिल्म के किरदार के साथ नहीं होता है, मगर बदलापुर के साथ हुआ.

तो क्या अब आप बदलापुर जैसी संजीदा फिल्म नहीं करना चाहेंगे?

करूंगा, मगर कुछ अंतराल के बाद. इस तरह की फिल्में बारबार नहीं की जा सकतीं. इस फिल्म में अभिनय करते समय कलाकार के तौर पर मैं पूरा निचुड़ गया. मैं ने इस तरह का काम पहली बार किया इसलिए मुझे ज्यादा कठिन लगा. कौमेडी करना आसान नहीं होता है. बदलापुर करने के बाद मुझे लगा कि वास्तव में मैं ने कुछ काम किया है.

क्या आप निजी जिंदगी में भी बदला लेने वाले इंसान हैं?

फिल्म में रघु है. पर मैं निजी जिंदगी में ऐसा बिलकुल नहीं हूं.

बदलापुर में रघु के साथ जो कुछ होता है यदि वैसा किसी आम इंसान के साथ हो तो उसे क्या करना चाहिए?

मैं कभी नहीं चाहूंगा कि ऐसा किसी आम इंसान के साथ हो. पर यदि ऐसा हो जाए तो किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए.

आप अपने समकालीन कलाकारों के साथ किस तरह की प्रतिस्पर्धा महसूस करते हैं?

मैं दूसरों के काम पर नजर नहीं रखता. मैं सिर्फ अपने काम पर गौर करता हूं क्योंकि मेरी प्रतिस्पर्धा मेरे साथ है. मैं फिल्म दर फिल्म अपनी अभिनय क्षमता को निखारना चाहता हूं. मैं लगातार काम कर रहा हूं. इस साल मेरी कम से कम 3 फिल्में रिलीज होंगी. इस से ज्यादा मुझे क्या चाहिए.

आप ने पिछले दिनों कहीं कहा था कि आप के लिए अभिनय सैक्स जैसा है. इस के क्या माने हैं?

इस तरह की बात कहने के पीछे मेरी मंशा यह थी कि ऐक्ंटग करते हुए मुझे जिस तरह की खुशी मिलती है, जिस तरह का पावर मिलती है, वह वैसी ही होती है जैसी कि लोगों को सैक्स कर के मिलती है. ऐक्ंटग करते हुए मुझे बहुत एनर्जी मिलती है. मुझे लगता है कि ऐक्ंटग करना मेरे जीवन की सब से बड़ी खुशी है.

जब आप अपने पिता यानी कि डेविड धवन के निर्देशन में फिल्म करते हैं. उस वक्त रोमांटिक सीन करना आप के लिए कितना सहज होता है?

सच कहूं तो जब मैं उन के निर्देशन में ‘मैं तेरा हीरो’ कर रहा था तब थोड़ी सी हिचक थी. पर फिर मैं ने सोचा कि मैं इस फिल्म में जो कुछ कर रहा हूं वह मैं नहीं बल्कि शीनू कर रहा है तथा मेरे सामने मेरे पिता डेविड धवन नहीं, बल्कि 40 फिल्में निर्देशित कर चुके सफल निर्देशक डेविड धवन हैं. इतना ही नहीं, सैट पर मैं ने कभी भी अपने पिता को पिता नहीं कहा, हमेशा सर कहा. सैट पर हमारे बीच एक कलाकार और एक निर्देशक का ही रिश्ता होता था.

आप फेसबुक व ट्विटर पर कितने व्यस्त हैं?

मैं फेसबुक पर नहीं हूं, सिर्फ ट्विटर पर हूं. वहां मैं अपने मन की बातें लिखता हूं.

ट्विटर पर तो लोगों को गालियां भी मिल रही हैं?

देखिए, यह सोशल मीडिया है. यहां पर हर इंसान को अपनी बात कहने का हक है. ट्विटर अच्छा भी है और बुरा भी है. कलाकार के तौर पर आप को सोचना है कि आप इस मीडियम में कितना व्यस्त रहते हैं, क्या लिखना चाहते हैं.

कौनकौन सी फिल्में कर रहे हैं?

‘एबीसीडी 2’, अपने भाई की फिल्म ‘ढिशुम’ और धर्मा प्रोडक्शन की नई फिल्म कर रहा

धर्म का नशा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान पर 16 फरवरी को हजारों लोग सिर झुकाए और हाथ बांधे एक धार्मिक जलसे में खड़े थे. इस दिन एक धर्मगुरु शक्तिपुत्र महाराज भक्तों को आशीर्वाद इस बाबत भी दे रहे थे कि उन की नशे की लत छूट जाए. इस नशामुक्ति आशीर्वाद के लिए बाकायदा कैंप लगा कर भक्तों का रजिस्ट्रेशन भी किया गया था और तमाम धार्मिक काम पूजापाठ व आरती वगैरह भी किए गए थे जिन में भक्तों ने दिल खोल कर पैसा चढ़ाया. यह सिलसिला 19 फरवरी तक चला. आखिरी दिन नशा छुड़ाने के लिए एक मानव शृंखला बनाई गई और नशेडि़यों को नशा छोड़ने की नसीहत देते उन से संकल्प भी कराया गया.

इस के बाद लाखों की दक्षिणा नशे से आजादी के नाम पर बटोरते ये महाराज आगे की तरफ बढ़ लिए. मानो, भोपाल में नशे की समस्या हल हो गई हो. अगले दिन 17 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्योहार था. इस दिन भोपाल की भांग की दुकानों पर भी बेशुमार भीड़ थी. लोग भांग की गोलियां खा रहे थे, ठंडाई पी रहे थे और नशे में झूमते हरहर महादेव, बमबम भोले और जय भोले शंकर जैसे नारे लगा रहे थे. भीड़भाड़ वाले बाजार न्यू मार्केट में रंगमहल टाकीज के सामने भांग के ठेके पर तो इतने भक्त नशा करने के लिए उमड़े कि ट्रैफिक ही जाम हो गया था.

महज एक दिन के अंतर से दिखे ये 2 नजारे बताते हैं कि धर्म का कारोबार कैसेकैसे फलताफूलता जा रहा है और उस की हकीकत क्या है. एक तरफ एक धर्मगुरु नशे से छुटकारा दिलाने के नाम पर दोनों हाथों से पैसे बटोरता है तो दूसरी तरफ धर्म और शंकर के नाम पर हजारों लोग बगैर किसी हिचक के नशा करते हैं.

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, इस के बाद तो कई धर्मगुरुओं ने अपने उपदेशों में नशा छोड़ने की सलाह देनी शुरू कर दी, जिस से लगा, मानो ये धार्मिक जलसे नहीं, बल्कि चलतेफिरते नशामुक्ति केंद्र हों जिन में बाबाजी के आशीर्वाद से ऐसा चमत्कार होता है कि लोग खुद ब खुद नशा छोड़ देते हैं या जादू के जोर से नशे की लत छू हो जाती है.

नशे से छुटकारा

नशे से छुटकारा दिलाने का आइडिया धर्मगुरुओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला है जिन्होंने नशे के खिलाफ कुछ दिन पहले जोरदार भाषण दिया था. जैसे ही पीएम की आवाज पर नशे के खिलाफ सुगबुगाहट शुरू हुई तो धर्म के ठेकेदारों ने मौका भांपते मुद्दा लपक लिया.

आम आदमी की हर परेशानी पर पैसा कमाने वाले धर्मगुरुओं को आमदनी बढ़ाने के लिए एक और पकापकाया जरिया मिल गया. कल तक जो धर्मगुरु नशे की चर्चा से भी परहेज करते थे वे एकाएक ही नशा छोड़ने की सलाह इसलिए देने लगे कि इस से उन के जलसों में न केवल भीड़ उमड़ने लगी बल्कि लोग दक्षिणा भी दे रहे हैं. बेशक नशा बुरी चीज है लेकिन धर्म के नशे से बुरी और नुकसानदेह नहीं, जिस के जाल में एक बार आदमी फंसा तो जिंदगीभर मछली की तरह छटपटाता रहता है. तमाम धर्मगुरु गरीबी और बदहाली की वजह इस और पुराने जन्म में किए गए पापों को बताते हुए उन्हें दूर करने की फीस लेते हैं. नशा इस दुकान में कहीं फिट नहीं बैठता, इस के बाद भी नशे के नाम पर दुकान चलाई जा रही है. इस से साफ है कि ये लोग नहीं चाहते कि लोग इस ऐब या लत से छुटकारा पाएं. अगर उन की मंशा और नीयत साफ होती तो वे बजाय कैंप लगाने के शिवरात्रि के दिन भांग के ठेकों पर खड़े हो कर लोगों को भगवान के प्रसाद के नाम पर भांग का खतरनाक नशा करने से रोकते और होली पर शराब की दुकानों के सामने तंबू तान कर बताते कि धर्म नशे का विरोध करता है, वकालत नहीं.

शिवरात्रि और होली के मौके पर धर्मगुरु नशे के खिलाफ कुछ नहीं कहते. वहीं, धार्मिक किताब में नहीं लिखा कि नशा मत करो उलटे कई जगह जिक्र इस बात का आता है कि खुद देवता सुरापान किया करते थे यानी शराब पीते थे. नशे की सलाह लोगों को उस धर्म से ही मिलती है जिस के ठेकेदार इस का विरोध कर रहे हैं.

देवता तो देवता, हालत यह है कि शिवरात्रि पर बड़ेबड़े शंकर मंदिरों में भांग का प्रसाद पंडों द्वारा चढ़ाया जाता है. इस पर कोई बाबा या संत एतराज नहीं जताता कि यह रिवाज गलत है. यह तो आम लोगों को नशा करने को उकसाता है. होली पर शराब इस बार भी पानी की तरह पी गई क्योंकि यह रिवाज सदियों से चला आ रहा है. जो लोग शराब नहीं पीते वे होली पर भांग का सेवन, प्रसाद की तरह ही करते हैं. खुद बाबा, संत और मठाधीश किस तरह नशे के आदी होते हैं, यह हर कहीं देखने में आता है. भोपाल के नजदीक भोजपुर शंकर मंदिर में शाम से ही भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. मकसद, भक्ति या पूजा की आड़ में नशा करना रहता है. इन मंदिरों में मूर्तियों के सामने मुस्टंडे बाबा गांजे की चिलमें जलाते हैं और पहला कश शंकर के नाम पर लेते हैं. फिर यह चिलम उन के चेलों के मुंह से होती हुई भक्तों के पास चली जाती है. भक्त लोग बाबा को प्रणाम कर जय भोले शंकर की हुंकार भर मुंह से ढेर सा धुआं आसमान की तरफ छोड़ देते हैं.

इलाहाबाद, हरिद्वार और बनारस सरीखे धार्मिक शहरों में तो ऐसे बाबाओं की भरमार है जो नशे की लत फैलाते हैं बड़ीबड़ी जटाओं वाले ये बाबा दिनभर घरघर जा कर भगवान के नाम पर दक्षिणा यानी भीख मांगते हैं, फिर शाम को मंदिरों में नशे की महफिल जमाते हैं. दक्षिणा में मिली नकदी से ये गांजा, भांग, तंबाकू और बीड़ीसिगरेट खरीदते हैं. खाने का इंतजाम तो नीचे वालों के जरिए ऊपर वाला कर ही देता है. नशे में डूबते ये भक्त एवज में बाबाओं को पैसा चढ़ा आते हैं. इन लाइसैंसशुदा हुक्का लाउंज का कोई विरोध नहीं करता.

धर्म के नाम पर नशा

कई फिल्मों में खासतौर से देवानंद की ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में खुलेतौर पर दिखाया गया है कि कैसे नौजवान लड़केलड़कियां रामनामी दुशाला ओढ़े व चिलम फूंकते रामकृष्ण की जय बोलते झूमते रहते हैं. भक्तों को समझाने वाला कोई नहीं होता कि देवताओं और देवियों के नाम पर वे नशा कर अपनी सेहत और जिंदगी तबाह कर रहे हैं. नशा करने से भगवान मिलता होता तो सब से पहले उसे शराब की दुकान में मिलना चाहिए और यह हो भी रहाहै. करोड़ों लोग सदियों से नशा कर भगवान को ढूंढ़ रहे हैं जो आज तक किसी को नहीं मिला. अलबत्ता नशे का सामान जरूर लोगों को बड़ी सहूलियत से मिल जाता है ताकि वे अपने गम भूल जाएं और भगवान को न कोसने लगें. धर्म के नाम पर पहले नशे की लत डालो और फिर उसे दूर करने के लिए दिखावटी मुहिम चलाओ, यह धर्मगुरुओं की बदनीयती और चालाकी ही है जिस का मकसद पैसा कमाना है. वाहवाही बटोरते धर्म के ये ठेकेदार दरअसल पीएम की मंशा पर पलीता ही फेर रहे हैं जो एक तरफ नशे से बचने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ धर्म के नाम पर ही नशा करने की छूट देते हैं.

नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए जरूरी यह है कि लोग पहले धर्म का नशा छोड़ें जो रोजमर्राई परेशानियों और फसादों की जड़ है. धर्म के नशे की लत बचपन से ही डाल दी जाती है जिसे तमाम कोशिशों के बाद भी छोड़ना या छुड़ाना नामुमकिन हो जाता है. कदमकदम पर धर्म के नशे के इंतजाम हैं जिन में नशे के आइटमों की खूब किस्में हैं और भगवान के नाम पर ही इसे करने की आजादी है. नवरात्रि के दिनों में तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर भी तांत्रिक छक कर शराब पीते हैं. वे क्या खा कर आम लोगों को नशा छोड़ने का मशवरा देंगे, यह सोचने वाली बात है. जो पंडेपुजारी मंदिरों में भांग पी कर झूमते हों, वे कैसे दूसरों का नशा छुड़ा पाएंगे, यह तो और भी ज्यादा सोचने वाली बात है. पर यह तय है कि अब नशे से छुटकारे के नाम पर ये पैसा जरूर बटोरते रहेंगे. इन लोगों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे यह कह पाएं कि उस देवता और धर्म को पूजना और मानना बंद करो जो नशे का आदी बना कर भक्तों की जिंदगी बरबाद, सेहत खोखली और जेब खाली करते हैं.

विदेश यात्रा का सरकारी जुगाड़

कुमार साहब सुबहसुबह अपनी सोसाइटी के गार्डन में टहल रहे थे कि तभी पीछे से जेठालाल ने आवाज लगाई, ‘‘भई, मुबारक हो.’’ जैसे ही कुमार साहब ने मुबारकबाद शब्द सुना, वे अनजान बनते हुए धीरे से बोले, ‘‘अरे जेठालालजी, किस बात की मुबारकबाद दे रहे हैं?’’

जेठालाल बोले, ‘‘भई, आप का नाम ट्रांसमीटर मैंटेनैंस की 5 दिनों की ट्रेनिंग के लिए सरकारी खर्च पर अमेरिका के शिकागो शहर स्थित एक कंपनी में जाने के लिए सलैक्ट कर लिया गया है. पार्टी न सही, मिठाईसिठाई तो बनती ही है न.‘‘कब खिला रहे हो? वैसे भी, तुम ही तो अपने यहां के वरिष्ठ इंजीनियर हो. तुम्हारा एक बार अमेरिका जाना तो बनता ही है, यार.’’ कुमार साहब ने एक बार फिर से शालीनता की चादर ओढ़ी, बोले, ‘‘पार्टी भी दे दूंगा और मिठाईसिठाई भी खिला दूंगा मगर पहले मेरी विदेश यात्रा के इस प्रपोजल को मंत्रालय से पारित तो हो जाने दीजिए. कई बार वहां के अधिकारी अपनी कलम से गुड़गोबर कर देते हैं.’’

जेठालाल बोले, ‘‘भई, मैं तुम्हारा मित्र नहीं, परममित्र हूं. मैं तुम्हें, तुम्हारे स्वभाव और तुम्हारे दफ्तरी धर्म निभाने के कर्म करने की प्रक्रिया को अच्छी तरह से जानता हूं. तुम जैसे लोगों का नाम तो अब कोई भी नहीं काट सकता. मुझे तो यह भी अच्छी तरह से पता है कि तुम ने मंत्रालय में भी पहले से ही सैटिंग कर रखी है.’’

अपने परममित्र की पोलखोल बात को सुन कर कुमार साहब बोले, ‘‘अरे भई, माना कि आप मुझे, मुझ से भी अधिक जानते हैं लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि आप खुलेआम मेरी सरकारी विदेश यात्रा पर लात मार दें. कम से कम खुलेआम तो ये सब मत बोलिए. यदि किसी ने सुन लिया और मंत्री महोदय या मंत्रालय में बैठे हुए सेक्रेट्रीवेके्रट्री को खबर लग गई तो हो जाएगा न मेरी इस विदेश यात्रा का सत्यानाश. आप नहीं समझते, आप की खुल्लमखुल्ला इन बातों की जरा सी भी भनक यदि मंत्रालय में पहुंच गई तो खटाई में पड़ जाएगी मेरी विदेश यात्रा. आप नहीं जानते, जब से नई सरकार बनी है, भले ही देशभर में सब के अच्छे दिन आ गए हों मगर सरकारी बाबुओं के लिए तो रोजाना ही नएनए नियमकानून व योजनाएं बनाने की बात चल रही है. यह भी सुना है कि सरकारी बाबुओं की विदेश यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने हेतु भी योजनाएं बनाई जा रही हैं.’’

जेठालाल बोले, ‘‘अरे, जब लगेगा प्रतिबंध तब की तब देखी जाएगी. मेरा विश्वास है कि तब तक तो तुम अपनी भारत सरकार को लाखों रुपयों का चूना लगा कर अपनी तफरीह के लिए कम से कम एक बार तो पूरे 5 दिनों के लिए अमेरिका हो कर लौट ही आओगे. तुम्हें सीखनासिखाना भी क्या है? जब तुम ने अपनी 35 साल की नौकरी और 56 साल की उम्र में यहां रह कर केवल चमचागीरी करना ही सीखा तो अमेरिका जा कर केवल 5 दिनों में तुम ऐसे कौन से अनोखे तकनीकी ज्ञान के भंडार को अपने साथ ले कर वापस आओगे जो सब का भला करेगा. वैसे भी मुझे पता है कि तुम्हारा अंगरेजीवंगरेजी के ज्ञान का स्तर 7वीं कक्षा के स्तर से ज्यादा नहीं है. वहां के अमेरिकी इंजीनियर तो फर्राटेदार अंगरेजी बोलते हैं जो अच्छेअच्छों को समझ नहीं आती, तो भला तुम्हें कैसे समझ आएगी?

‘‘खैर, तुम्हें हमारी तरफ से सरकारी खर्च पर पहली बार अमेरिका जाना मुबारक हो और भला अमेरिका जाने के इस जुगाड़ में क्याक्या किया जाए, हमें भी विस्तार से बताओ कि आखिर कैसे बना तुम्हारे विदेश जाने का यह सरकारी जुगाड़?’’

कुमार साहब ने भी इस बार हिम्मत कर के किसी की भी परवा न करते हुए मन ही मन भय न खाने की शपथ ली और खुश हो कर अपने परममित्र जेठालाल को विस्तार से बताना शुरू किया, ‘‘भई, पता नहीं किनकिन आला अधिकारियों और अधिकारिनियों के आगे अपनी नाक रगड़नी पड़ी तब जा कर यह सुनहरा अवसर हाथ लगा है.

‘‘सच कहूं तो उम्र के साथ बुद्धि का विकास होने पर भी मैं ने चमचागीरी नहीं छोड़ी. मैं ने अपने अंदर के चमचे को सदा चमकदार बनाए रखा. उस पर कभी जंग नहीं लगने दिया. अब तो मेरा यह हाल है कि मैं सरकारी नौकरी छोड़ सकता हूं, मगर चमचागीरी करना नहीं. पिछले 4 वर्ष पहले आप के निदेशालय से स्थानांतरित हो जाने के बाद भी मैं ने इन सब आला अधिकारियों के निजी कार्यों हेतु अपने कितने जूते घिसे. आप तो इस बात का कभी अंदाजा तक नहीं लगा सकते. जानना है तो महल्ले की जूते की दुकान पर जा कर पूछो कि मैं साल में कितने जूते खरीदता हूं.

‘‘आप को क्या पता कि मैं कितनी मुश्किल से इन के निजी कार्यों को करने का वक्त निकाल पाता था. अधिकारियों और अधिकारिनियों की चमचागीरी करकर के उन से मेरी जो पीआर यानी पर्सनल रिलेशनशिप, बनी बस, वही बहुत काम आई.

‘‘पीआर अच्छी हो तो आला अधिकारी कितना भी स्वार्थी क्यों न हो, वह कभीकभी अपने अधीनस्थ पर मेहरबान हो ही जाता है. विदेश जाना किसे अच्छा नहीं लगता. आजकल विदेश जाना वह भी सरकारी खर्चे पर, यह तो एक तमगा होता है. तमगा यानी पदक. जिसे विदेश जाने वाला अधिकारी हो या कर्मचारी, उम्रभर अपने सीने पर नहीं बल्कि जबान पर रखता है. एक बात और सच कहूं तो अपने निदेशालय द्वारा खरीदे गए जिन इंजीनियरिंग इक्युपमैंट्स की मैंटेनैंस की ट्रेनिंग के लिए मुझे सरकारी खर्च पर विदेश भेजा जा रहा है. यह ट्रेनिंग तो मुझे मिलनी ही नहीं चाहिए थी क्योंकि फिलहाल मैं वर्तमान में जिस केंद्र पर कार्यरत हूं वहां रहते हुए मुझे पूरे 4 वर्ष हो गए हैं. सरकारी स्थानांतरण की नीतियों के तहत तो मेरा कभी भी मेरे वर्तमान केंद्र से स्थानांतरण हो सकता है.

‘‘औल इंडिया सर्विस में भला कौन स्थानांतरणों से बच पाता है. हर 5 साल बाद हम लोगों को इधरउधर जाना ही पड़ता है. ज्यादा खुल कर बताऊं तो मैं ने तो निदेशालय से टोडापुर स्थित केंद्र पर स्थानांतरण भी सिर्फ इसलिए लिया था कि उस समय मेरा बेटा 12वीं में था. अब उस का इंजीनियरिंग में सलैक्शन हो चुका है, इसलिए अब मुझे यहां रहने में कोई इंट्रैस्ट नहीं है.

‘‘भला हो आला अधिकारियों का जिन्होंने मेरी भविष्य की निजी योजनाओं को न समझते हुए मेरी विदेश यात्रा की रिकमैंडेशन में अपनी टांग नहीं अड़ाई और मुझे निदेशालय द्वारा केंद्र के लिए खरीदे गए नए विदेशी इक्युपमैंट्स की ट्रेनिंग हेतु चुना. बस, अब जल्दी से मेरी यह ट्रेनिंग पूरी हो जाए और इस बहाने मैं विदेश का दौरा कर आऊं, बस फिर क्या, आते ही मैं मुख्यालय को अपने गृहनिवास गोरखपुर स्थानांतरण हेतु आवेदनपत्र थमा दूंगा और गोरखपुर जा कर अपने वृद्ध मातापिता की सच्ची सेवा में लगूंगा. वैसे भी उन्हें असाध्य बीमारियों ने घेर रखा है और आप को तो पता ही है कि पिछले दिनों मैं ने वहां पर 1 फ्लैट भी खरीद लिया है. वहीं जा कर रहूंगा.’’

जेठालाल बोले, ‘‘अरे, तो इस का मतलब साफ है कि तुम सरकारी खर्चे पर विदेश जा कर जिस ट्रेनिंग को ले कर आओगे उस का लाभ किसी को भी नहीं दोगे?’’

कुमार साहब बोले, ‘‘भई देखो, आप को तो पता ही है कि मुझे अंगरेजीवंगरेजी तो छोड़ो इंजीनियरिंग का भी ठीक से ज्ञान नहीं है. मैं तो हिंदी के सरकारी स्कूल की शिक्षा प्राप्त अदना सा अधिकारी हूं. वह तो आप जैसे काबिल मित्रों की मदद से नोटिंगड्राफ्ंिटग सीख कर बस किसी तरह से अपनी सरकारी सेवा की अमरबेल बढ़ा कर अपना फर्ज निभा रहा हूं, अपने बच्चों का पेट पाल रहा हूं और यहां के सरकारी आला अधिकारियों की सेवासुश्रूषा कर के अपना काम चला रहा हूं, बस.’’

कुमार साहब की बातें सुन कर जेठालाल ने आगे कहा, ‘‘खैर, जो भी हो, तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि कल शाम को ही तुम्हारे और तुम्हारे साथ में तुम्हारे उन आला अधिकारी साहब के भी अमेरिका के शिकागो शहर जाने के निदेशालय द्वारा आदेश कर दिए गए हैं जिन के साथ कभी तुम्हारे द्वारा रोजाना ही दोपहर 12 बजे से पहले कार्यालय न पहुंच पाने पर अच्छीखासी बहस हो गई थी. उस दिन तो तुम ने भी उन से बहुत बुराभला कहा था. यहां तक कि ताव में आ कर तुम ने उन्हें अपना स्थानांतरण टोडापुर स्थित केंद्र पर कर दिए जाने का आवेदनपत्र अग्रसारित करने के लिए थमा दिया था. उन्होंने भी आव देखा न ताव उसे तुरंत फौर्वर्ड करते हुए तुम्हें निदेशालय से तत्काल स्थानांतरित किए जाने की अपनी संस्तुति दे दी थी. परिणामस्वरूप तुम्हारा निदेशालय से टोडापुर स्थित केंद्र पर तत्काल स्थानांतरण हो गया था.’’

‘‘अरे जेठालालजी आप क्यों गड़े मुरदे उखाड़ रहे हैं? अब तो वह आला अधिकारी मेरे मित्र बन गए हैं और पुरानी बीती बातें तो हम दोनों कब की भुला चुके हैं. अब तो उन का बेटा और मेरा बेटा एक ही कालेज से इंजीनियरिंग कर रहे हैं. अब तो मेरा उन के घर पर आनाजाना लगा ही रहता है. मुझे पता है कि वे भी मेरे साथ अमेरिका जा रहे हैं इसलिए तो मेरी भी हिम्मत बन गई है कि चलो अमेरिका में भी अब बड़े साहब के साथ होने पर मेरा आधा काम तो वह स्वयं ही संभाल लेंगे. वे तो रुड़की के बीटेक हैं, सब समझते हैं. कोई ऐरागैरा नत्थू खैरा तो है नहीं,’’ कुमार साहब बोले.

‘‘एक तीर से दो शिकार करना तो कोई तुम से सीखे. यार, कुल मिला कर हो तो तुम बहुत चालाक आदमी. वैसे, तुम मुझे आदमी कम सियार ज्यादा दिखते हो,’’ जेठालालजी ने फिर से कहा.

‘‘अब, तुम कुछ भी समझो, यार,’’ कुमार साहब बोले.

जेठालालजी बोले, ‘‘मेरी बातों का बुरा मत मानना, यार. मैं तो एकदम मुंहफट आदमी हूं, जो भी मन में आता है कह देता हूं, भाषण देना मेरी आदत है और वैसे भी मैं तो तुम्हारा मित्र नहीं, परममित्र हूं. इसलिए तुम से खुल कर बातें कर लेता हूं. देखो, तुम्हें हमारी वर्षों पुरानी मित्रता का वास्ता कि तुम विदेश जा कर अपनी ट्रेनिंग के दौरान जो कुछ भी सीख कर आओगे उस ज्ञान का भागीदार मुझे बनाओगे.’’

कुमार साहब ने कहा, ‘‘यार, मुझे तो तकनीकी हिंदी तक ठीक से समझ नहीं आती तो अमेरिका के अंगरेज इंजीनियरों की तकनीकी अंगरेजी भला कैसे पल्ले पड़ेगी. फिर भी यह बात पक्की रही कि वहां पर मुझे अमेरिकी इंजीनियरों द्वारा समझाई गई जितनी भी बात समझ आ पाएगी, उतनी सब बातें मैं तुम्हें वहां से लौट कर अवश्य समझा दूंगा.’’

थोड़े दिन बाद जब भारत के वरिष्ठ इंजीनियर कुमार साहब अमेरिका की एक कंपनी में ट्रेनिंग लेने पहुंचे तो वहां उन्हें उन अमेरिकियों की अंगरेजी की गिटरपिटर समझ नहीं आई. उन्होंने अपने साथ गए अंगरेजी भाषा में दक्ष आला अधिकारी की मदद ले कर अमेरिकी इंजीनियरों से अपनी अज्ञानता जाहिर करते हुए कहा, ‘‘भई, यहां हम भारतीयों को कुछ ऐसा टैक्निकल ज्ञान दो जो हमें आसानी से समझ आ जाए क्योंकि हम भारतीय इंजीनियरों को बीटेक डिगरीधारी होने पर भी इंजीनियरिंग इक्युपमैंट्स की इंजीनियरिंग ड्राइंग के ब्लू पिं्रट्स पढ़ना तक नहीं आता है. आजकल हमारे भारत में तो कोई भी ऐरागैरा नत्थू खैरा बीटेक कर लेता है. सो, हम ने भी कर लिया.

‘‘हमारे भारत के इंजीनियरिंग कालेज और विश्वविद्यालय डिगरी देते नहीं, थोक में बांटते हैं. और तो और, हमारे यहां तो इंजीनियरिंग की डिगरियां अब बेची भी जाने लगी हैं. रुपया हो तो अब भारत में जो चाहे खरीद लो.’’

अमेरिकी इंजीनियर कुमार साहब की बात अच्छी तरह से समझ गए और उन्होंने इक्युपमैंट्स के मैंटेनैंस के नाम पर सभी भारतीय इंजीनियरों को केवल यह सिखा दिया कि कभी भी किसी भी इक्युपमैंट में लगा हुआ लाल इंडीकेटर न जलता हुआ देखो तो सीधे ही उस मौड्यूल यानी यूनिट के स्क्रू खोल कर बस उसे दूसरी नई यूनिट में बदल लो, बस. और इस से अधिक कुछ भी नहीं. इसलिए आजकल किसी भी पुरानी यूनिट को खोल कर पहले की तरह इंजीनियरिंग ड्राइंग देख कर उसे ठीक करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है. वहां उन सभी भारतीय इंजीनियरों ने केवल इक्युपमैंट्स के यूज ऐंड थ्रो तकनीक का विशेष प्रशिक्षण ज्ञान प्राप्त किया.

कुमार साहब अमेरिका से ट्रेनिंग ले कर भारत लौटे तो जेठालालजी ने उन से फोन कर के कुशलक्षेम पूछी और प्रश्न किया, ‘‘बताओ, कब आ जाऊं तुम्हारे घर, तुम्हारी विदेशी ट्रेनिंग का संपूर्ण ज्ञान लेने?’’

कुमार साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘भई जेठालालजी, आप बुरा न मानें तो सरकारी खर्चे पर विदेश से लौट कर मेरे पास आप को बताने के लिए सिर्फ इतना ही है कि आप जब कभी भी अपने इंजनियरिंग अनुभाग में अपने जिस इक्युपमैंट के मौड्यूल को बदलने के लिए उस के 4 स्कू्र खोलें उन्हें एक स्टील की साफ कटोरी में अवश्य रखते जाएं ताकि वापस लगाते समय उन में से किसी एक के भी खोने की गुंजाइश बिलकुल भी न रहे क्योंकि आमतौर पर तो भारतीय इंजीनियरों की आदत होती है कि वे जब कभी भी किसी इक्युपमैंट को निरीक्षण या परीक्षण या फिर उसे ठीक करने के लिए खोलते हैं तो बाद में उसे बंद या फिट करते समय 4 स्कू्र में से केवल 2 लगा कर ही काम चला देते हैं.

‘‘यह कह कर कि अब 2 इधरउधर कहीं खो गए, मिल ही नहीं रहे तो कोई बात नहीं, 2 से ही काम चलेगा. 2 स्कू्र पर भी टिका ही रहेगा. सरकारी खर्च पर विदेश जा कर अपनी ट्रेनिंग के दौरान अमेरिकी इंजीनियरों से मैं ने एक बात तो पक्के तौर पर सीखी कि किसी भी इक्युपमैंट को बदलने या संभालने के लिए जब भी उसे खोला जाए तो प्लास, कटर और स्कू्रड्राइवर के साथसाथ 1 स्टील की कटोरी भी रख ली जाए जिस में खोले जा रहे इक्युपमैंट के सभी स्क्रू सावधानीपूर्वक सुरक्षित रखे जा सकें और बाद में उन्हें यथास्थान वापस लगाया जा सके. वहां पर मैं ने उन को स्कू्र के साथ लगने वाले छोटेछोटे वाशरों तक को भी संभाल कर लगाते हुए देखा.

‘‘अपने यहां भारत में तो एक बार किसी मौड्यूल को ठीक करने के लिए खोला जाता है तो फिर स्कू्र के साथ उस के वाशर को तो संभाल कर लगाने का रिवाज ही नहीं है. मैं ने वहां पर भले ही अधिक कुछ न सीखा हो लेकिन इक्युपमैंट के स्कू्र और उस के वाशर के महत्त्व को बखूबी समझा.’’

जेठालालजी फिर बोले, ‘‘इस का मतलब है कि तुम्हारे पास मुझे देने के लिए केवल स्कू्र व उस के वाशर को लगाने के तकनीकी ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है. तो क्या फायदा हुआ तुम्हारे विदेश जा कर ट्रेनिंग ले कर आने का? तुम्हारे ऊपर भारतीय सरकार ने अपने लाखों रुपए फुजूल में ही खर्च कर दिए और तुम विदेश जा कर भी ढाक के तीन पात ही रहे. तुम जैसे तो सरकार की आंखों में धूल ही झोंक सकते हैं बस, और इस से अधिक कुछ नहीं. ईमानदारी तो तुम्हारी रगों में है ही नहीं.’’

इस बार कुमार साहब तपाक से बोले, ‘‘भई, नाराज क्यों होते हो. तुम्हें समझाने के लिए मेरे पास नया संपूर्ण तकनीकी ज्ञान भले ही न हो लेकिन दिखाने के लिए मेरे पास अमेरिका के शिकागो शहर के बेहतरीन होटल और शहर के विशेष स्थलों के फोटो व वीडियो हैं. और हां, वहां से मैं ढेर सारी अमेरिकी चौकलेट ले कर आया हूं. खानी हो तो कभी भी आ जाना. वैसे, यदि एक पूरा डब्बा चाहिए तो तुम्हें जल्दी ही घर आना पड़ेगा वरना तुम्हें तो पता ही है मेरी आदत, मैं ये सब अपने उन आला अधिकारियों के लिए विदेश से लाद कर लाया हूं जिन्होंने मेरा सरकारी खर्चे पर विदेश जा कर ट्रेनिंग लेने का प्रपोजल मंत्रालय से अनुमोदित कर प्रस्तावित करवाया और सरकारी दौरे पर ट्रेनिंग हेतु विदेश जाने का सरकारी पासपोर्ट भी बनवाया. यदि मैं विदेश से लौट कर उन्हें कम से कम एक विदेशी चौकलेट का डब्बा भी भेंट न करूं तो भला मैं उन से आगे अपना गोरखपुर के लिए स्थानांतरण कैसे करवा पाऊंगा और फिर कैसे होगी मेरे मातापिताजी की सेवा और गोरखपुर वाले निजी फ्लैट में रहने का सुख भला कैसे भोग पाऊंगा.’’

जेठालालजी ने इस बार फिर गंभीर हो कर कहा, ‘‘तुम मेरे परममित्र न होते तो घर आ कर निकलवा लेता वे सारे के सारे 2 लाख रुपए जो तुम्हें 5 दिन की विदेश यात्रा पर जाने के बदले में कार्यालय द्वारा डीए के रूप में भुगतान किए गए थे क्योंकि तुम जैसोें को तो न सरकारी आला अधिकारी कभी समझ सकते हैं, न मंत्रालय में बैठे हुए सेक्रेट्रीवेक्रेट्री, सिवा मेरे.’’

इस बार कुमार साहब थोड़ा सा गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘देखो मित्र, अपनी नाराजगी किसी और पर निकालना. बातबात पर मुझे क्यों कोसते हो. वह तो निदेशालय के परचेज सैक्शन के आला अधिकारियों से जा कर पूछो कि जब वे अपने निदेशालय द्वारा किसी भी केंद्र हेतु कोई भी नया विदेशी इक्युपमैंट खरीदते हैं तो निविदा की स्वीकृति में ट्रेनिंग के नाम पर अपने यहां के 10-10 भारतीय इंजीनियरों को विदेश भेज कर केवल औनऔफ व 4 स्कू्र खोल कर मौड्यूल्स के बदलने की प्रक्रिया समझने के लिए भारत सरकार के मंत्रालय की जेब को प्रति व्यक्ति करोड़ों रुपए का चूना क्यों लगवाते हैं. जो काम वहां के केवल 1 या 2 इंजीनियर यहां भारत में आ कर समस्त भारतीय इंजीनियरों को अपने विभागीय ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में रह कर दे सकते हैं तो फिर यहां से 10-10 इंजीनियरों को सरकारी खर्च पर विदेश भेज कर आखिर क्यों ट्रेनिंग करवाई जाती है? विदेश जा कर मूलरूप से विदेशी कंपनी का साक्षात दृश्यावलोकन और वहां कार्यरत सुंदर विदेशी अंगरेजी अर्धनग्न बालाओं को देख कर क्या यहां के भारतीय इंजीनियर ज्यादा काबिल बन जाते हैं?

‘‘मेरी नजर में तो फिर सच कहूं तो ढाक के तीन पात ही होते हैं, यहां के सभी इंजीनियर, चाहे वे बीटैक पास हों या एमटैक. ऊपर से जिस विभाग में 4-4 साल बाद विभागीय स्थानांतरण कर दिए जाने का नियम हो तो फिर कहने की क्या. और रही विदेशी चौकलेट की बात तो वह तो आजकल भारत में भी खूब मिलती है, कोई भी खरीद कर उन्हें भेंट दे सकता है. वैसे भी विदेशी कंपनियां अपना अप्रूवल फाइनल करवाने के चक्कर में यहां आ कर विदेशी चौकलेट, सिगरेट और इलैक्ट्रौनिक्ससिलैक्ट्रौनिक्स आइटम गुपचुप इन आला अधिकारियों को समयसमय पर भेंट करती ही रहती हैं.’’

मित्रता में मधुर संबंध बने रहें, मन ही मन यह सोचते हुए जेठालालजी ने कुमार साहब से कहा, ‘‘भई, कोई बात नहीं. तुम्हें इस से क्या लेनादेना, तुम्हारा तो काम बन गया. तुम ने तो अपने इस सरकारी कार्यकाल में सरकारी खर्चे पर अपना विदेश जाने का उल्लू सीधा कर ही लिया न. फिर काहे की नाराजगी. मुझे पता है कि अब तुम्हारा सम्मान होगा. लोग तुम्हें इज्जत देंगे इसलिए नहीं कि तुम चतुर हो बल्कि इसलिए कि तुम ने सरकारी सेवा में रहते हुए अपनी चतुराई से समयसमय पर अपना उल्लू सीधा करने का पाठ बखूबी सीखा और इस का भरपूर लाभ भी उठाया.’’ तो कैसा रहा, विदेश यात्रा का यह सरकारी जुगाड़, आप भी प्रयास करें, आजकल जुगाड़ में बहुतकुछ होता है

हनीमून पैकेज:चलो दिलदार चलो…

शादी किसी भी जोडे़ की जिंदगी के सब से अहम लमहों में से एक होती है. उस के बाद रोमरोम को गुदगुदा देने वाली बारी आती है यानी हनीमून पर जाने की. जीवन के इस खास समय को यादगार बनाने की तमन्ना जवान हो उठती है. 2 अजनबियों के लिए शादी के बंधन में बंधने के बाद यही मौका होता है एकदूसरे को समझने का, करीब आने का. आइए, कुछ ऐसी ही जगहों से आप को रूबरू कराएं जहां आप अपने जीवनसाथी के साथ यादगार पल गुजार सकें.

गोआ की मस्ती

आप की नई शादी हुई है और अपने जीवनसाथी के संग अंतरंग पल गुजारना चाहते हैं तो आप गोआ में हनीमून का प्लान कर सकते हैं. यहां के नीले, हरे समुद्री तट और यहां का फ्रैंक स्टाइल आप को एकदूसरे के साथ सुकून भरे पल तो देंगे ही, साथ ही आप यह कहे बिना नहीं रह पाएंगे कि जगह हो तो गोआ जैसी. आइए, चलते हैं यहां के नीले, हरे रंग के बीचों की ओर.

अंजुना बीच

समुद्र की लहरें जब पैरों को छू कर जाएं और मन में गुदगुदाहट का एहसास कराना हो तो अंजुना बीच जाना न भूलें. समुद्र के किनारे लहलहाते, झुके हुए खजूर के पेड़ और चमकीली रेत के नजारे इस बीच की खूबसूरती को चारचांद लगाते हैं. अंजुना बीच गोआ का बड़ा समुद्र तट है. डबोलिन एअरपोर्ट से इस की दूरी 57 किलोमीटर है. यह 3 हिस्सों में बंटा है. एक उत्तर, दूसरा दक्षिण और तीसरा इन दोनों के मध्य में. इस बीच के उत्तरी भाग में कई बड़े रैस्टोरैंट व होटल मौजूद हैं, जहां आप अपने पार्टनर के साथ मनचाहे फूड का स्वाद चख सकेंगे, साथ ही यहां बहुत बड़ा साप्ताहिक बाजार हर बुधवार को लगता है. यहां कम दामों में अच्छी शौपिंग हो जाती है बशर्ते कि आप   मोलभाव करने में माहिर हों.

पणजी और पुराना गोआ

पणजी गोआ की राजधानी है. यहां आप न सिर्फ समुद्र तटों को देख आकर्षित होंगे बल्कि यहां आप को भारतीय संस्कृति से जुड़ी कई कलाकृतियां भी प्रभावित करेंगी. यहां संकरी गलियों में बने चर्च की खूबसूरती भी देखने लायक है. यहां आप फोटो क्लिक किए बगैर नहीं रह पाएंगे. पणजी में पहुंच कर आप दूधसागर फौल, गोआ स्टेट म्यूजियम और चैपल औफ सिवेस्त्यित देखना न भूलें.

कैलेंगुट बीच

मानसून के वक्त गोआ की खूबसूरती देखने लायक होती है. ऐसे में हनीमून कपल्स समुद्र की लहरों में छईछप्पा छई करने को बेताब रहते हैं. कैलेंगुट आप डबोलिन एअरपोर्ट से 48 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंच जाएंगे. यह बीच तैराकी के लिए बहुत अच्छी जगह है. इस बीच के आसपास बने रैस्टोरैंट में अच्छा खाना भी उपलब्ध है. इन सब के बाद आप लौटने से पहले यहां की मार्केट भी जरूर ट्राई करें.

अन्य दर्शनीय स्थल

गोआ का दूसरा बड़ा शहर मडगांव है. यहां आप अपनी जीवनसंगिनी को शौपिंग करने की छूट दे सकते हैं क्योंकि यह प्लेस शौपिंग के लिए बैस्ट है. मडगांव आ कर आप शौपिंग के साथसाथ यहां के मुख्य केंद्र चर्च औफ होली स्पिरिट, हाउस औफ सेवन गेबेल्स कोल्वा बीच, एनसेस्ट्रल गोआ आदि देखना न भूलें. इस के अलावा मापुसा गोआ का तीसरा बड़ा शहर है. यहां के साप्ताहिक बाजार का मजा उठाइए. यहां कुछ दर्शनीय स्थल भी हैं जो पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं. पहली बार आए कपल्स दोला पाउला, आरामबोल, कोलवा, मीरामार, बागाटोर, अगोंडा आदि बीच पर जाना न भूलें क्योंकि यहां भी आप को खूब मजा आएगा.

जाने का समय : गोआ जाने के लिए आप अक्तूबर से मार्च के बीच जाएं क्योंकि इन महीनों में यहां का मौसम बेहतर रहता है. जून से सितंबर के बीच यहां बहुत वर्षा होती है तो समुद्र तटों में वर्षा का स्तर बढ़ जाने से आप यहां का मजा नहीं उठा सकेंगे. इसलिए बेहतर है कि आप सही मौसम में गोआ जाएं. क्रिसमस के समय गोआ में बहुत सारे सांस्कृतिक आयोजन होते हैं तो यह समय गोआ जाने के लिए अच्छा होता है.

कैसे पहुंचें

अगर आप वायुमार्ग अपनाते हैं तो आप को गोआ के निकटतम डबोलिन एअरपोर्ट पर उतरना होगा. यहां से गोआ 29 किलोमीटर पर स्थित है. गोआ के लिए बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई से सीधी उड़ानें हैं. इसी साल से पटना से भी गोआ के लिए सीधी फ्लाइट शुरू हो गई है जोकि आप को गोआ 5 घंटे में पहुंचा देगी. अगर आप रेलमार्ग से जाते हैं तो गोआ कोंकण रेलवे से जुड़ा है. तो यहां आप ट्रेन से भी पहुंच सकते हैं. 2 तरह की टैक्सियां यहां चलती हैं, मीटर वाली और दूसरी बिना मीटर वाली. बिना मीटर वाली टैक्सियों में आप किराय तय कर के ही बैठें. राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा भी गोआ का सीधा संबंध मुंबई, बेंगलुरु और पुणे आदि शहरों से है.

खजुराहो

आप पार्टनर के साथ जीवन की नई शुरुआत करने जा रहे हैं तो खजुराहो से बैस्ट प्लेस आप के लिए दूसरा नहीं होगा. इस जगह को रोमांस को दिखाती शिल्पकारी के लिए जाना जाता है. खजुराहो के मंदिरों की कलात्मकता और शिल्पकारी देखते ही बनती है. यहां के सभी मंदिर संपूर्ण भारत की ओर से प्रेम के अनूठे अनमोल उपहार हैं. इस के अलावा अगर आप झील देखने के शौकीन हैं तो आप खजुराहो में अजय पालका झील देखना न भूलें. यहां पहुंच कर न सिर्फ आप को प्राकृतिक सुंदरता के दर्शन होंगे बल्कि आप यहां एकदूसरे की बांहों में खो जाएंगे.

बेहतर समय : खजुराहो जाने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय बेहतर है. सर्दी के मौसम में यहां सब से ज्यादा पर्यटक आते हैं.

खरीदारी : खजुराहो आ कर आप यहां की छोटीछोटी दुकानों से लोहे, तांबे और पत्थर के गहने खरीद सकते हैं. यहां से आप पत्थरों और धातुओं पर उकेरी गई कामसूत्र की भंगिमाएं खरीद कर अपने ड्राइंगरूम और बैडरूम की शोभा बढ़ा सकते हैं.

कैसे पहुंचें

वायुमार्ग : खजुराहो वायुमार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी, आगरा और काठमांडू से जुड़ा हुआ है. खजुराहो एअरपोर्ट सिटी सैंटर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है.

रेलमार्ग : अगर आप रेलमार्ग अपनाते हैं तो दिल्ली और वाराणसी से खजुराहो रेलवे स्टेशन के लिए सीधी रेल सेवा है. दिल्ली और मुंबई से जाने वाले पर्यटकों के लिए झांसी भी सही विकल्प है. वहीं चेन्नई, वाराणसी से आने वालों के लिए सतना रेलवे स्टेशन नजदीक पड़ेगा. इन रेलवे स्टेशनों पर उतर कर आप सड़क से टैक्सी या बस के माध्यम से सुविधाजनक सफर कर सकते हैं.

सड़कमार्ग : सड़कमार्ग से जाने के लिए आप सतना, छतरपुर, झांसी, पन्ना, हरपालपुर, महोबा, ग्वालियर, आगरा, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से सीधा रूट अपना सकते हैं. दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से पलवल, कोसीकला, मथुरा, आगरा, ग्वालियर होते हुए धौलपुर और मुरैना के रास्ते खजुराहो पहुंचा जा सकता है.

महाराजा लग्जरी ट्रेन का सफर

हनीमून पर जाने के वक्त अगर आप को महाराजाओं जैसी सवारी गाड़ी मिल जाए तो आप की यात्रा में चारचांद  लग जाएं. महाराजाओं जैसा सफर करने के लिए अब आप अक्तूबर से अप्रैल के बीच महाराजा लग्जरी ट्रेन की सवारी ले सकते हैं. यह ट्रेन 2,307 किलोमीटर दूरी तय करती है. इस ट्रेन द्वारा दिल्ली से जयपुर, रणथंभौर, फतेहपुर सीकरी, आगरा, ग्वालियर, ओरछा, खजुराहो, वाराणसी होते हुए दिल्ली वापस आया जा सकता है.

लक्षद्वीप

लक्षद्वीप में समुद्री बीच आप के दिलोदिमाग पर यादगार छाप छोड़ देगा और यह आप को एकांत के पल बिताने के लिए मजबूर कर देगा. लक्षद्वीप को हंडे्रड थाउजैंड आइलैंड भी कहते हैं. आप यहां समुद्री जीवन से नजदीक से रूबरू हो सकते हैं. अपने साथी के साथ जाने के लिए पानी के खेल स्कूबा डाइविंग और स्नोर्कलिंग जरूर करें, इस से आप के हनीमून का मजा दोगुना हो जाएगा.

क्या देखें

कलपेनी : लक्षद्वीप का कलपेनी तट आप दोनों को लहरों से और भी ज्यादा करीब लाने का एहसास कराएगा. यह तट अपनी सुंदरता और तिलक्कम व पिट्टी नामक छोटे टापुओं के लिए मशहूर है. कलपेनी समुद्र ्रतट चारों ओर से विशाल ताल से घिरा हुआ है, यहां की सुंदरता देखते ही बनती है. इस के अलावा अगर आप तैराकी के शौकीन हैं तो आप के लिए यह एक बैटर प्लेस है. यहां आप सैल बोट और पैडल बोट आदि का भी लुत्फ उठा सकते हैं.

कदमत : यहां की फैली सुंदरता हनीमून मनाने आए कपल्स को अविस्मरणीय आनंद की अनुभूति कराती है.

मिनिकाय : अगर आप भारतीय संस्कृति के मुरीद हैं तो मिनिकाय जाना न भूलें. मिनिकाय कावारत्ती से 200 किलोमीटर दूर है. यहां तरहतरह की संस्कृतियों के दर्शन होते हैं. यहां का लावा नृत्य आप का मन मोह लेगा और आप दोनों भी इन कलाकारों के साथ थिरकने को मजबूर हो उठेंगे.

अनद्रोथ : अनद्रोथ सब से बड़ा द्वीप है. यहां के स्थानीय लोग मछलियों का व्यवसाय करते हैं और अगर आप भी मछली पकड़ने या खाने के शौकीन हैं तो जरूर जाएं. यहां भारत सरकार ने अनद्रोथ के पूर्व में आधुनिक लाइटहाउस टावर बनवाया है.

कब जाएं

यहां जाने का बेहतरीन समय दिसंबर से मई तक का है.

खरीदारी : अगर आप की पौकेट भारी है तो ही यहां आप शौपिंग करें क्योंकि लक्षद्वीप सस्ती जगह नहीं है. लेकिन अगर आप यहां आ जाएं तो यहां से शुद्ध नारियल पाउडर, नारियल तेल खरीदना न भूलें. इस के अलावा फिश पिकल और स्मारिका यादगार के रूप में खरीद सकते हैं.

कैसे जाएं

वाईमार्ग : अगर आप हवाई मार्ग अपनाते हैं तो कोचन से अगत्ती द्वीप तक सीधी हवाई सेवा है. अगत्ती से हैलिकौप्टर या बोट के माध्यम से आगे जाया जा सकता है. दूसरे द्वीपों के लिए हैलिकौप्टर सेवा उपलब्ध है.

जलमार्ग : एमवी टीपू सुलतान, एमवी भारत सीमा, एमवी अमिनदिती और एमवी मिनिकाय कोचीन से लक्षद्वीप के कई आइलैंड को शिप जाते हैं. यहां पहुंचने में आप को 14 से 18 घंटे लग सकते हैं.

अंडमान निकोबार

हिंदमहासागर में बसा निर्मल और शांत अंडमान द्वीपसमूह पर्यटकों के मन को असीम आनंद की अनुभूति कराता भारत का एक लोकप्रिय द्वीपसमूह है. यह अपने आंचल में मूंगा, भित्ति, साफसुथरा सागरतट, पुरानी स्मृतियों से जुड़े खंडहर और अनेक प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां संजोए है. यहां का 86 प्रतिशत क्षेत्रफल जंगलों से ढका हुआ है.  समुद्री जीवन, इतिहास और जलक्रीड़ाओं में रुचि रखने वाले पर्यटकों को यह द्वीप अपनी ओर आकर्षित करता है. अंगरेज सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह सैल्युलर जेल, जो ‘काला पानी’ के रूप में आम आदमी के हृदय में भय जगाती थी, आज इस द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. इस द्वीपसमूह के पूर्व में अंडमान सागर और पश्चिम में बंगाल की खाड़ी है. 572 द्वीपों से घिरा यह द्वीपसमूह लगभग 8,250 वर्ग किलोमीटर में फैला है. मुख्य भूमि से इस की दूरी लगभग 1,200 किलोमीटर है. भूमि से इतनी दूरी ही इस द्वीपसमूह को प्रदूषणरहित बनाती है. सैलानियों को इस की हरियाली व समुद्र अपनी ओर आकर्षित रते हैं.

दर्शनीय स्थल

सैल्युलर जेल : सैल्युलर जेल और स्वतंत्रता संग्राम एकदूसरे के पर्याय हैं. इस जेल के बिना स्वतंत्रता संग्राम की हर बात अधूरी है. यहां भारतीय बंदियों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था. आजादी के मतवालों ने यहां बहुत यातनाएं झेली थीं. उन की वीरता, प्रतिरोध और बलिदान की बदौलत ही हम आज स्वतंत्र हवा में सांस ले रहे हैं. औक्टोपस के आकार में 7 शाखाओं में बनाई गई इस जेल में 694 कोठरियां थीं. आज इस की केवल 3 शाखाएं बची हैं. इस जेल की दीवारों पर शहीदों के नाम अंकित हैं. जेल के सामने सावरकर पार्क है. इस पार्क में जेल के आतंक से शहीद हुए बलिदानी वीरों की आदमकद प्रतिमाएं लगी हुई हैं. जेल के दाईं ओर एक संग्रहालय है, जहां अंगरेजी शासन के अत्याचार के मूक गवाह अस्त्रों को देखा जा सकता है. जेल के विशाल प्रांगण में एक ओपनएअर थिएटर भी है, जहां आयोजित होने वाला हिंदी व अंगरेजी में साउंड एंड लाइट शो इस द्वीप के पूरे इतिहास को बड़े ही प्रभावपूर्ण ढंग से दर्शाता है. सोमवार को बंद रहने वाले इस थिएटर में 4 शो होते हैं.

कार्बिन कोव्स बीच : अंगरेजी के यू आकार का प्राकृतिक रूप से हरेभरे वृक्षों से घिरा यह समुद्रतट पर्यटकों के लिए मनोरम स्थान है. यहां से सूर्यास्त का अद्भुत नजारा काफी आकर्षक प्रतीत होता है. यह बीच अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए लोकप्रिय है.

रोस आईलैंड : यह द्वीप ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है. पोर्ट ब्लेयर से मात्र 3 किलोमीटर दूर स्थित इस द्वीप में चर्च, स्विमिंग पूल, चीफ कमिश्नर आवास, प्रिंटिंग प्रैस, पावर हाउस, जल संग्रह हेतु भवन आदि के खंडहर दर्शाते हैं कि अंगरेज अधिकारियों ने इस द्वीप को अंगरेजी संस्कृति व स्वयं की रक्षा हेतु एक किले के रूप में विकसित किया था. यहां पर्यटकों के आवागमन से बेफिक्र हिरणों के झुंड पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

बैरन द्वीप : यहां भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है. यह द्वीप लगभग 3 किलोमीटर में फैला है.

डिगलीपुर : उत्तरी अंडमान द्वीप में स्थित प्रकृतिप्रेमियों की यह पसंदीदा जगह है. यह स्थान अपने संतरों, चावलों और समुद्री जीवन के लिए प्रसिद्ध है. यहां की सेडल पीक आसपास के द्वीपों में सब से ऊंचा पौइंट है. यह 732 मीटर ऊंचा है. अंडमान की एकमात्र नदी कलिंपोंग यहां से बहती है.

वाइपर द्वीप : किसी जमाने में गुलाम भारत से लाए गए कैदियों को पोर्ट ब्लेयर के पास वाइपर द्वीप में उतारा जाता था. आज यह द्वीप सैलानियों के लिए पिकनिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है.

हैवलौक द्वीप : यहां के स्वच्छ निर्मल पानी का सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेता है. इस द्वीप में कई बार तैरती हुई डौल्फिन मछलियों के झुंड देखे जा सकते हैं. शीशे की तरह साफ पानी के नीचे जलीय पौधे व रंगीन मछलियों को तैरते देख पर्यटक अपनी दुनिया को भूल जाते हैं.

कार निकोबार : कार निकोबार, निकोबार जिले का मुख्यालय है. यह समतल उपजाऊ द्वीप है. यह चारों ओर से नारियल के वृक्षों व मनमोहक समुद्रतटों से घिरा हुआ है. इन समुद्रतटों से लहरों के आनेजाने की आवाज लगातार सुनाई देती रहती है.

ग्रेट निकोबार (इंदिरा पौइंट) : इंदिरा पौइंट निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणी छोर है. यह द्वीप जैविक आरक्षित क्षेत्र है.

डाइव स्थल : पानी के भीतर की दुनिया में जाने की कला डाइविंग एक साहसिक खेल है. रंगबिरंगी मछलियों के झुंड आप को सम्मोहित कर सकते हैं. आप पानी के भीतर फोटोग्राफी करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं. अंडमान  डाइविंग एक खास अनुभव प्रदान करता है. डाइविंग के लिए सब से अच्छा मौसम दिसंबर से अप्रैल माह है. यहां का स्वच्छ पानी 80 फुट तक साफ दिखाई देता है. गहरे डाइव के द्वारा समुद्री जीवन की विविधता देखी जा सकती है.

महोत्सव व संस्कृति

अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की एक अलग ही संस्कृति है. यहां विभिन्न धर्म, भाषा, जाति के लोग पूरी शांति व सद्भाव के साथ रहते हैं. इसीलिए इसे ‘लघु भारत’ कहा जाता है. प्रत्येक वर्ष (दिसंबर-जनवरी) के दौरान द्वीप पर्यटन उत्सव मनाया जाता है. इस उत्सव के दौरान आयोजित प्रदर्शनी में सरकारी एजेंसियां और निजी उद्यमी भाग लेते हैं. इस में जलक्रीड़ा प्रतियोगिताएं जैसे निकोबारी होड़ी दौड़, जादू का प्रदर्शन, कठपुतली प्रदर्शन, फ्लोटिंग रेस्तरां, शिशु प्रदर्शनी, डौगशो, नौका दौड़, स्कूबा डाइविंग मुख्य आकर्षण होते हैं.

कैसे पहुंचें

वायुमार्ग : इंडियन एअर- लाइंस की उड़ानें सप्ताह में 3 बार पोर्ट ब्लेयर से चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और भुवनेश्वर को जाती हैं व इन शहरों से पोर्ट ब्लेयर के लिए आती हैं.

जलमार्ग : कोलकाता, चेन्नई और विशाखापट्टनम से जलयान पोर्ट ब्लेयर जाते हैं. पहुंचने में 2-3 दिन का समय लगता है.

नील द्वीप का आकाश

ससार के खूबसूरत द्वीपों में दूसरा स्थान रखने व केवल 2,868 लोगों के निवास वाले नील द्वीप की अपनी विशेषता है. इस के बारे में अभिनेता इंद्रजीत बताते हैं कि डा. बिजू द्वारा निर्देशित ‘आकाशनिंटे निरम’ की शूटिंग के लिए अंडमान निकोबार द्वीप समूह के बिलकुल अकेले नील द्वीप में मैं भी पहुंचा था. पोर्ट ब्लेयर में हवाई जहाज से उतरने के बाद जलमार्ग से नील द्वीप की ओर गए. हम लोगों की यूनिट टीम पहुंचने से पहले कला निर्देशक

संतोष रामन के नेतृत्व में 17 लोगों का गु्रप द्वीप में पहुंचा था. द्वीप तक की ढाई घंटे की जहाजयात्रा बहुत मनोरंजक थी. द्वीप में पहुंचा तो अविश्वसनीय सा लगा. इतना सुंदर स्थान हमारे देश में है, यकीन नहीं हो रहा था.  साउथ अंडमान से 40 किलोमीटर दूर पर नील द्वीप स्थित है. जंगल, सागर, आकाश की प्रकृति वाला यह द्वीप संसार के खूबसूरत द्वीपों में दूसरे स्थान पर है. यहां सुबह 4 बजे ही सूर्योदय  हो जाता है और 5.30 बजे तक सूर्यास्त होता है.

प्रकृति के बदलाव

नील द्वीप में सूर्यास्त जल्द हो जाता है, इसलिए शूटिंग प्रकृति के बदलावों के मुताबिक करनी पड़ी. कभी कड़ी धूप होती है तो कभी तेज बारिश. वहां इतनी तेज हवाएं चलती हैं कि शूटिंग सैट को संभालना मुश्किल था. किसी तरह हम ने शूटिंग पूरी की. इस द्वीप का अधिकांश हिस्सा जंगल है, इसलिए हरित सौंदर्य में कोई कमी नहीं है. अपनी फिल्म की शूटिंग के दौरान हम स्वयं को द्वीप का रहवासी जैसा महसूस करने लगे थे. ‘फिर आएंगे’, कहते हुए हम लौट आए. लेकिन आज भी हम जब इस द्वीप की सुंदरता के बारे में सोचते हैं तो मन प्रफुल्लित हो उठता है.

– गीतांजलि के साथ अब्दुल जलील

सतरंगी दुनिया की सैर: नौर्थ ईस्ट

प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब पूर्वोत्तर के राज्यों के छोटेछोटे बाजार, मनमोहक उद्यान व ऊंचाई पर बने घर पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं.

विभिन्न संस्कृतियों का संगम है असम

असम पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहलाता है. यह अपने चाय बागानों, फूल, वनस्पति, दुर्लभ नस्ल के गैंडों और यहां मनाए जाने वाले पर्वों, विशेष रूप से बिहू के लिए जाना जाता है. दर्शनीय स्थलों में सब से पहले नाम काजीरंगा नैशनल पार्क का आता है. यहां के मुख्य आकर्षण एशियाई हाथी और एक सींगवाले गैंडे हैं. इस के अलावा बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनबिलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी भी यहां के आकर्षण हैं, इसीलिए यह बर्ड्स पैराडाइज भी कहलाता है. नैशनल पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा पेड़ों जितनी लंबाई वाली एक खास किस्म की घास यहां पाई जाती है. घास ऐसी कि इस के झुरमुट में हाथी भी छिप जाएं. ह घास हाथीघास भी कहलाती है.

वैसे, काजीरंगा एलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. काजीरंगा में जाने का सब से बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. काजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और इकोफिशिंग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है. गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. चाय, तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर प्रसिद्ध है. यहां के दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क और साइंस म्यूजियम हैं. मानस नैशनल पार्क की भी गिनती असम के दर्शनीय स्थलों में होती है.

और्किड फूलों की सेज है अरुणाचल प्रदेश?

असम, मेघालय पर्यटन के बाद अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आसानी से की जा सकती है. दरअसल, मेघालय से हो कर जाता है अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर का एक रास्ता. इस के अलावा यहां पहुंचने का एक और रास्ता भी है और वह है मालुकपोंग. यह रास्ता असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है. मालुकपोंग और्किड के खूबसूरत फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सैंटर है, जो टिपी और्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड फूलों के पौधे देखे जा सकते हैं. यह राज्य का सब से बड़ा और्किड फूलों का प्रदर्शन केंद्र है.

ईटानगर किले के बाद हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी गेकर सिन्यी, जिस का अर्थ गंगा लेक है, ईटानगर के आकर्षण का दूसरा केंद्र है. राजधानी में जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर और एंपोरियम ट्रेड सैंटर भी हैं. इस के अलावा यहां चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं. टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है. यह जगह समुद्रतल से लगभग 8 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में फैली पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. यहां 80 प्रजातियों के 2,600 पौधे हैं जो प्राकृतिक वातावरण में फलतेफूलते हैं.

बोमडिला से 45 किलोमीटर की दूरी पर निरांग है जो मठों तथा गरम झरने के लिए विख्यात है. साथ ही, यह किवी फल के लिए भी मशहूर है. यहां याक और भेड़ प्रजनन केंद्र है. बोमडिला समुद्र से 12 हजार फुट ऊंचाई पर है. इसी रास्ते 14 हजार फुट की ऊंचाई पर विश्व का दूसरा सब से ऊंचा सेला दर्रा है. यहां पैराडाइज या पैलासिड लेक भी है. करीब ही तवांग मठ है. यह जगह मठ के अलावा गुफाओं, झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है. पूर्वी सिआंग जिले का मुख्यालय पासीघाट सियांग नदी के तट पर स्थित है. यहां नदी में फिशिंग और रिवर राफ्ंिटग का मजा लिया जा सकता है. इस के अलावा दर्शनीय स्थानों में यहां परशुराम कुंड, नैशनल पार्क और कई लेक हैं.अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप किराए पर मिल जाती हैं. यहां के सभी स्थानों में टूरिस्ट लौज की भी सुविधा है. अरुणाचल प्रदेश में अक्तूबर से ले कर मई तक कभी भी जाया जा सकता है.

रजवाड़ों की धरती है त्रिपुरा

पूर्वोत्तर का राज्य त्रिपुरा राजारजवाड़ों की धरती कहलाती है. इसे प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. यह इको पर्यटन, हैरिटेज पर्यटन व पर्वतीय पर्यटन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां सालभर अलगअलग किस्म के टूरिज्म फैस्टिवल मनाए जाते हैं. उत्तरपूर्व में असम और पूर्वदक्षिण में मिजोरम से घिरे राज्य त्रिपुरा के पश्चिमदक्षिण में राजधानी अगरतला के अलावा कमल सागर, नील महल, उदयपुर, सेफाजाला पिलक दर्शनीय स्थल हैं. वहीं पश्चिमउत्तर त्रिपुरा से ऊनोकेटि, जामपुई जैसे दर्शनीय स्थल हैं. अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल अगरतला में 1 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबद वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है.

त्रिपुरा के मंदिरों की शिल्पकला बहुत ही अनूठी है. सबरूम में महामुनि पैगोडा और अगरतला में जेडू मियां की मसजिद, बेलोनिया में चंदनपुर मसजिद व अगरतला में मरियमनगर चर्च हैं. प्राकृतिक पर्यटन में सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुई हिल जैसे प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं. वहीं पुरातात्त्विक पर्यटन के लिए उनोकेटि, पिलक, देवतैमुरा (छविमुरा), बौक्सनगर हैं. अगरतला से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर मिजोरम की सीमा के पास जमपुई हिल है, समुद्रतल से इस की ऊंचाई 914 मीटर है. त्रिपुरा की पहाडि़यों की सब से ऊंची चोटी बेतलोगछिप है. यह जमपुई हिल में ही स्थित है.

रुद्रसागर नीरमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर वाटर टूरिज्म के लिए जाने जाते हैं. अगरतला से 55 किलोमीटर की दूरी पर नीरमहल है, जो रुद्रसागर झील के किनारे बसा है. इस का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लगा रहता है. हर साल यहां नौकायन प्रतियोगिता का आयोजन होता है. अगरतला से 27 किलोमीटर की दूरी पर कमला सागर झील है. इको टूरिज्म के लिए कई इको पार्क हैं. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनोकेटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है.

भारत का स्कौटलैंड है मेघालय का शिलौंग

मेघालय की राजधानी शिलौंग भारत का स्कौटलैंड कहलाता है. मेघालय के पश्चिम में खासी हिल्स है. यहां के पर्यटन स्थलों में रानीकोर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. यहां रिलांग नदी के संगम में पर्यटक वाटर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाते हैं. यहीं शिलौंग पीक भी है, जो मेघालय की सब से ऊंची चोटी है. सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान काफी संवेदनशील माना जाता है. खासी हिल्स वन्यजीवों और विभिन्न प्रकार की प्रजाति के पेड़पौधों के लिए जानी जाती है.    करीब में ही लेडी हैदरी पार्क विभिन्न प्रजातियों के फूलों से सजा हुआ है. यहां एक छोटा सा चिडि़याघर भी है. अनेक प्रजातियों की तितलियों का एक संग्रहालय भी यहीं है. शिलौंग के पास घिरे जंगल और और्किड के खूबसूरत फूलों के बीच स्थिर कृत्रिम झील वाडर्स लेक में पर्यटक बोटिंग का मजा उठाते हैं.

मेघालय को झरनों के लिए भी जाना जाता है. यहां के मीठा झरना, हाथी झरना दर्शनीय स्थलों में गिने जाते हैं. मीठा झरना हैप्पी वैली में है. बारिश के दिनों में इस की खूबसूरती देखते ही बनती है. वायुसेना के ईस्टर्न कमांड के पास हाथी झरना या ऐलिफैंट फौल्स है. यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में मेरंगनोलखा रोड पर ग्रेनाइट की एक विशाल खड़ी चट्टान कैलौंग रौक है. शिलौंग के पास गरम पानी का भी एक झरना है जो जैकरम के नाम से जाना जाता है. यहां के करीबी दर्शनीय स्थलों में चेरापूंजी भी है, जो सर्वाधिक बारिश झेलने वाला क्षेत्र है. हाल ही में चेरापूंजी का नाम बदल कर सोहरा रख दिया गया है. यहीं मनोरम पहाडि़यों के बीच एक प्राकृतिक गुफा है मौसिनराम. पास ही नोहकालीकाई झरना है. इस के अलावा प्राकृतिक रूप से मैग्मा से निर्मित एक प्रख्यात गुंबदाकार क्यालांग चट्टान भी यहीं है, जो शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के लिए जानी जाती है.

मिजोरम से पड़ोसी मुल्क का नजारा

भारत का दूसरा साक्षर राज्य मिजोरम है. यहां की राजधानी आइजोल को पूर्वोत्तर का आखिरी छोर कहा जा सकता है. आइजोल 112 साल पुराना शहर है, जो कि समुद्रतल से लगभग 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा है. प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे मिजोरम में लकडि़यों से बने खास तरह के मकान देखे जा सकते हैं. घरों में और्किड फूलों की सजावट आम है. यही नहीं, और्किड फूलों के विंडो बौक्स पूरे आइजोल में देखने को मिल जाते हैं. आइजोल में राज्य का एक म्यूजियम है, जहां मिजोरम की संस्कृति, राज्य का इतिहास, यहां के आदिवासियों की पोशाक से ले कर इन की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलेगी. इस छोटे से शांत शहर से 204 किलोमीटर की दूरी पर चंफाई है. यहां से म्यांमार की पहाडि़यों का दूरदूर तक नजारा देखा जा सकता है.

आइजोल से 85 किलोमीटर की दूरी पर टाडमिल है जो लेक के लिए जाना जाता है. यहां बोटिंग की जा सकती है. यहां से 137 किलोमीटर की दूरी पर वानतांग नाम का एक जलप्रपात है. यह मिजोरम का सब से ऊंचा स्थान है. यहां थेंजोल हिल स्टेशन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां के पहाड़ पर बहुत सारी विरल प्रजाति की वनौषधि, मसाले और विभिन्न प्रजाति के और्किड भी देखने को मिल जाते हैं. यहां डंपा अभयारण्य है, जहां हिरण, बाघ, चीता और हाथी जैसे जंगली जानवरों को देखा जा सकता है.

भारत के माथे की मणि मणिपुर

भारत के माथे पर मणि समान शोभायमान है मणिपुर. इस का 67 फीसदी हिस्सा खूबसूरत फूलों, हरीभरी वनस्पतियों  और जंगलों से अटा पड़ा है. ये जंगल 900 मीटर से ले कर 2,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. यहां पाया जाने वाला सिरोई लिली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां लगभग 500 प्रकार के और्किड के पौधे पाए जाते हैं. रंगबिरंगे और्किड के फूल यहां की फिजा में चारचांद लगाते हैं. आमतौर पर यहां के सभी घरों में रंगबिरंगे और्किड फूलों के गुलदस्ते देखने को मिल जाएंगे. यही नहीं, यहां की महिलाएं अपने बालों को और्किड के फूलों से सजाती हैं. जंगल के जीवजंतुओं में खास हैं-स्पौटेड लिंगशांग, बारबैक्ड कबूतर, लेपर्ड, बर्मी आदि. यहां कई किस्म के दुर्लभ पशुपक्षी भी पाए जाते हैं.

नागालैंड की सैर के बाद कोहिमा से सड़क के रास्ते मणिपुर जाया जा कता है. कोहिमा से चलने वाली बस सीधे इंफाल पहुंचाती है. इंफाल में मणिपुरी संस्कृति का पूरा नजारा देखने को मिल सकता है. टिकेंजित पार्क यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मारे गए ब्रिटिश-भारतीय सैनिकों की याद में यहां एक स्मारक है. यह स्मारक शहीद मीनार कहलाता है. इस के अलावा मोइरांग के रास्ते पर एक जापानी युद्ध स्मारक भी है. यहां चिडि़याघर, म्यूजियम और विश्व का एकमात्र तैरता हुआ पार्क भी है. यह पार्क केइबल लामजाओ नैशनल पार्क के नाम से जाना जाता है. यहां के लोकटक और सैंट्रा नामक टापुओं को देखने के लिए पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं. मणिपुर के खास आकर्षण यहां की मार्शल आर्ट, नृत्य और मूर्तिकला हैं.

शूरवीरों की भूमि नागालैंड

जलप्रपातों, पहाड़ों के बीच बसा नागालैंड ट्रैकिंग, राफ्टिंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन स्थल माना जाता है. इस राज्य का गेटवे दिमापुर है. हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन केवल यहीं है. हालांकि नागालैंड राज्य की राजधानी कोहिमा (144 किलोमीटर) है, लेकिन दिमापुर नागालैंड का मुख्य शहर माना जाता है. दिमापुर के करीब चुमुकेदिमा नामक एक टूरिस्ट विलेज कौंप्लैक्स है. यहां से पूरे दिमापुर को देखा जा सकता है. यहां से 74 किलोमीटर की दूरी पर दोयांग नदी के पास गवर्नर्स कैंप नामक टूरिस्ट स्पौट है. यहां पर्यटक रिवर राफ्ंिटग, फिशिंग, कैंपिंग करते हैं.

कोहिमा में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र अरदुरा पहाड़ पर लाल छतवाला कैथेड्रल चर्च है. इसे एशिया के सब से बड़े कैथेड्रल चर्च के रूप में जाना जाता है. यह लगभग 25 हजार वर्गफुट में फैला हुआ है. चर्च में बेथलेहम जैतून की लकड़ी से बनी सुंदर नाद आकर्षण का केंद्र है. दक्षिण में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर दजुकोउ एक खूबसूरत घाटी है, जो फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते जैसी है. यहां के एकोनिटम और एंफोबियस फूल की ख्याति दुनियाभर में है. दिमापुर से करीब सेइथेकिमा गांव में ट्रिपल फौल्स है, जो एक तिमंजिला झरना है. यह पर्यटकों और ट्रैकिंग के शौकीनों की पसंदीदा जगह मानी जाती है.

यहां का संग्रहालय नगा संस्कृति, स्थापत्य और यहां की सामाजिकसांस्कृतिक प्रथाओं को जानने में बहुत मददगार है. कोहिमा के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर जाफू पीक नामक पहाड़ है, जिस की ऊंचाई समुद्रतल से 3,048 मीटर है. नवंबर से मार्च तक इस पहाड़ की चढ़ाई की जा सकती है. लगभग 5 घंटों की ट्रैकिंग के बाद जाफू पीक पहुंचना संभव होता है. जाहिर है ट्रैकर्स के लिए यह बड़ा आकर्षण का केंद्र है. यहां की पर्वत शृंखलाओं में रोडोडैंड्रौन पेड़ों की सब से ऊंची प्रजाति पाई जाती है. गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में रोडोडैंड्रौन ने अपना नाम दर्ज करा लिया है. ऊंचाई में यह पेड़ 130 फुट तक होता है और इस के तने का व्यास 11 फुट तक चौड़ा होता है.

जाफू पर्वत शृंखलाओं की चोटी से जुकोऊ वैली को देखा जा सकता है. यहां की जलधाराएं जाड़े के दिनों में जम जाती हैं. लेकिन गरमी के दिनों में यह वादी दुलहन की तरह सज जाती है. यहीं एक और दर्शनीय स्थल है मोकोकचुंगा, जो समुद्रतल से 1,325 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. यहां से पूरे शहर का दृश्य देखा जा सकता है. कोहिमा से 80 किलोमीटर की दूरी पर संतरे और अनन्नास के लिए मशहूर शहर वोखा है.  नागालैंड पहुंचने का रास्ता कोलकाता से हो कर गुजरता है. सियालदह से कंचनजंघा ऐक्सप्रैस से गुवाहाटी हो कर नागालैंड पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा जनशताब्दी ऐक्सप्रैस से 5 घंटे का सफर कर के दिमापुर पहुंचा जा सकता है. दिमापुर घूम लेने के बाद 3 घंटे के सड़क के रास्ते कोहिमा जाया जाता है. हवाई रास्ते से भी दिमापुर पहुंचा जा सकता है, फिर सड़क के रास्ते कोहिमा.

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