Download App

भारत भूमि युगे युगे

इस बार दीवाली सूरत के हीरा व्यापारी साबजीभाई ढोलकिया के नाम रही जिन्होंने अपने संस्थान के कर्मचारियों को 50 करोड़ रुपए के उपहार बांट दिए. इन में गहने, फ्लैट्स व नकदी शामिल रहे. इसे दान या उपहार कुछ भी कह लें, उन के इस कदम ने नौकरमालिक यानी कर्मचारीनियोक्ता के संबंधों को झकझोर दिया है जिस पर तय है कि लंबी बहस होगी. बिलाशक करोड़ों का यह बोनस प्रचार के लिए नहीं था. साबजीभाई बहुत नीचे से ऊपर उठे हैं, लिहाजा उन के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए कि इस से रत्नकारों, जिन में सुनार भी शामिल हैं, की छवि चमकेगी. दूसरी अहम बात उन का यह कहना था कि अगर मैं हार्वर्ड में पढ़ा होता तो इतनी दरियादिली नहीं दिखा पाता. व्यावसायिक क्रूरता किसी सुबूत की मुहताज नहीं, लेकिन कुछ व्यापारी, उद्योगपति ऐसे हैं जो अपने कर्मचारियों के योगदान को पुरस्कृत भी करते हैं.

सिद्धू का यज्ञ

पूर्व क्रिकेटर व भारतीय जनता पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर के होली सिटी स्थित अपने नए घर में  अपने जन्मदिन यानी 20 अक्तूबर को 101 ब्राह्मण इकट्ठा कर रखे थे. सालभर से सिद्धू एक यज्ञ करवा रहे थे जिस का मकसद घर की सुख, शांति, स्वास्थ्य वगैरह थे. इन्हीं दिनों सिद्धू अपनी  सुरक्षा व्यवस्था में कटौती किए जाने से भी चर्चा में थे. अंधविश्वासों को बढ़ावा देते इस यज्ञ से धर्मों की वास्तविकता, जो दरअसल आपसी बैर है, भी उजागर हुई जब सिख धर्म के पैरोकारों ने इस बात पर एतराज जताया कि नवजोत सिद्धू को शिवलिंगों के बीच बैठ कर मंत्रोच्चार वगैरह नहीं करना चाहिए था. यानी पाखंड करने और फैलाने के लिए दूसरे धर्म का सहारा लेने की जरूरत नहीं, इस का इंतजाम तो हर धर्म में है.

राजभवन में भागवत

आम तो आम देश का खास और बुद्धिजीवी आदमी भी यह तय नहीं कर पा रहा कि आखिर देश चला कौन रहा है भाजपा, एनडीए, नरेंद्र मोदी या फिर आरएसएस लेकिन यह साफ दिख रहा है कि आरएसएस और उस के मुखिया मोहन भागवत की पूछपरख काफी बढ़ रही है. बीते दिनों उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मोहन भागवत को राजभवन में आमंत्रित किया तो मीडियाकर्मियों ने सवालों की बौछार लगा दी. मौका था ‘राजभवन में राम नाईक’ पुस्तक के विमोचन का जो तबदील हो गया ‘राजभवन में मोहन भागवत क्यों,’ जिस पर नाईक का कहना था कि राजभवन सभी के लिए खुला है. भागवत तो मेरे निजी मित्र हैं तो उन्हें कैसे न बुलाता. आरएसएस को उदारवादी सामाजिक संगठन की मान्यता दिलाने में जुटे हिंदूवादियों की यह कोशिश साजिश ही कही जाएगी कि वे कट्टर हिंदूवाद को सत्ता के जरिए थोप रहे हैं.

स्मृति साड़ी हाउस

इसे हार की कसक और 2019 में जीत के लिए तैयारी ही कहा जाएगा कि अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी के हाथों हारने के बाद भी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दीवाली के ठीक पहले तकरीबन 7 हजार साडि़यां इस संसदीय क्षेत्र में बंटवाईं और उन के साड़ी वितरकों ने संकेत भी दिया कि साड़ी बांटने का यह सिलसिला जारी रहेगा. इत्तफाक से उसी दौरान निर्वाचन आयोग सरकार से सिफारिश कर रहा था कि पेड न्यूज को अपराध की श्रेणी में रखा जाए. पर ऐसे अनपेड तोहफों को किस श्रेणी में रखा जाएगा, इस सवाल का जवाब भी दिया जाना जरूरी है. स्मृति ने कितने पैसे इस बाबत खर्च किए, इस का विवरण नहीं मिला है. मतदाताओं को लुभाने का यह टोटका सनातनी है, लेकिन चल रहा है. हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर जल्द ही राहुल गांधी पैंटशर्ट अमेठी भिजवाने लगें.

आप के पत्र

सरित प्रवाह, अक्तूबर (प्रथम) 2014

‘किस काम का ऐसा खाता’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय पढ़ा. यह प्रधानमंत्री जन धन योजना पर एक सटीक टिप्पणी है. इस योजना का कोई भी प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ समाज के किसी भी तबके को होने वाला नहीं है. लगता है इस का उद्देश्य जनता का ध्यान बेकाबू महंगाई, लचर कानून व्यवस्था, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, देश की सीमाओं पर लगातार हो रहे अतिक्रमण व अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों से हटाना है. सरकार 5 हफ्तों में 5 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जाने को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर के अपनी पीठ थपथपा रही है. भाजपा के कार्यकर्ता लोगों को खाली सपने बेच रहे हैं.

हमारे घर में झाड़ूपोंछा करने वाली प्रौढ़ महिला का बैंक खाता लोगों ने यह कह कर खुलवा दिया है कि कुछ समय के बाद सरकार उस के खाते में 1 लाख रुपए डाल देगी. उस ने मुझे अपने बैंक के कागज दिखाते हुए पूछा, ‘बाबूजी, मुझे 1 लाख रुपए कब तक मिल जाएंगे ताकि मैं अपनी बेटी की शादी कर सकूं?’ मुझे उस के भोलेपन पर तरस आया. उसे कैसे बताता कि 1 लाख रुपए की बीमा की रकम उस के परिवार को उस के मरने पर मिलने वाली है, जीतेजी नहीं. उस के लिए भी, बीमा कंपनी के पेचीदा नियमों के जाल को पार करना होगा.

आप की यह आशंका भी निर्मूल नहीं है कि बैंकों की नौकरशाही, कर्जा मंजूर करने और उस की वसूली में अनपढ़ व गरीब खातेदारों के भोलेपन का भी जम कर फायदा उठाएगी. बैंकों की कार्यप्रणाली पढ़ेलिखों को भी आसानी से समझ में नहीं आती है तो बेचारे अर्धशिक्षित लोग चालाक बैंककर्मियों से कैसे निबटेंगे? जिस योजना की शुरुआत ही बीमा के 1 लाख रुपए की भ्रांति से हुई हो उस की सफलता संदेहास्पद है. पिछले कुछ समय से चालू कर्मठ महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों की योजना काफी हद तक अच्छे परिणाम दे रही है. अच्छा होगा कि सरकार उसे ही और आकर्षक बना कर पेश करे.

बी डी शर्मा, यमुना विहार (दिल्ली)

*

अक्तूबर (प्रथम) अंक में ‘राहुल की टिप्पणी निरर्थक’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय में आप के विचार प्रशंसनीय हैं. यह तो बिलकुल सत्य है कि विपक्ष का काम ही छींटाकशी करना होता है. इसलिए राहुल गांधी की टिप्पणी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. नरेंद्र मोदी का ड्रम व बांसुरी बजाने का प्रयत्न इस बात को दर्शाता है कि वे मेजबान देश को खुश कर सकें. खाद्यपदार्थों के दाम तो पहले से ही बेतहाशा बढ़ रहे हैं. मोदी ड्रम व बांसुरी न बजाते तो भी इन वस्तुओं की कीमत कम होने वाली नहीं थी. हमें तो यह देखना है और अच्छी तरह सतर्क रहना है कि मोदी पूर्ण बहुमत पा कर तानाशाही वाले तेवर न अपना सकें क्योंकि जब जनता साथ हो तो आमतौर पर नेता मनमानी करने लगते हैं और अपने से असहमत लोगों को दुश्मन समझने लगते हैं. जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो वहां पर राहुल गांधी की सक्रियता सार्थक होगी, इस में दोराय नहीं.

कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)

*

‘राहुल की टिप्पणी निरर्थक’ शीर्षक से प्रकाशित आप के विचारों के संबंध में यह कहना है कि अगर समस्त पार्टी के नेतागण सत्ताप्राप्ति के दांवपेच छोड़, एकदूसरे की कमियों पर कटाक्ष करने के बजाय एकजुट हो कर देश की आंतरिक व बाहरी समस्याओं का निदान सोचते तो जनता कितनी खुशहाल रहती. लेकिन नहीं, ये तो देश को लूट कर अपनी सात पुश्तों तक के लिए धन इकट्ठा करेंगे. जनता की आशाओं के धरातल पर भले ही मोदीजी अभी खरे न उतरे हों, उन के मंत्रिमंडल के लोग जैसे भी हों, लेकिन वे देश की संपत्ति, जो जनता की अमानत है, को स्वार्थ हेतु प्रयोग नहीं करेंगे, जैसा कि अब तक होता आया है.

आप की टिप्पणी ‘हिम्मत न हारें’ भी अच्छी लगी. दरअसल, अकेले, असहाय, कमजोर, साधनहीन, संतानहीन, जिन के बच्चे विदेश जा बसे हैं और जिन्हें पैंशन वगैरह की सुविधा न हो, उन बुजुर्गों के लिए कुछ ऐसे सामाजिक व सरकारी कदम उठाए जाने चाहिए ताकि वे सिर उठा कर जी सकें. सरकार उन के वोटबैंक से लाभान्वित होती है तो उस का फर्ज भी बनता है कि उन्हें हाशिए पर न रखे. भ्रष्ट सरकारी तंत्र होने के कारण बुजुर्गों की, वृद्ध महिलाओं की, अति वरिष्ठों की कठिनाइयों को सरकार को समझना चाहिए व उन के निवारण के लिए कदम उठाने चाहिए.    

 रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

*

आप की टिप्पणी ‘दिल्ली में सरकार’ के संबंध में कहना चाहूंगा कि देश में बेशक एक पार्टी और एक सशक्त नेता की सरकार भले ही बन गई हो मगर देश की राजधानी आज भी बिना सरकार के सिसक रही है. यह तो ‘चिराग तले अंधेरा’ वाली बात हो गई. सरकार बनाने के जिम्मेदार भी चुप बैठे जोड़तोड़ के तमाशे देख रहे हैं. क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था की जाती कि नए चुनाव करा कर सब से बड़ी पार्टी को निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाए. राहुल की निरर्थक टिप्पणी पर तो यही कहा जा सकता है कि उन्होंने विपक्ष का कर्तव्य निभाया है. सत्तासीन पक्ष कुछ भी करे, विपक्ष को अनी उपस्थिति (कुछ भी बोल कर) दर्ज करानी ही है. स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए गए भाषण के पश्चात उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने कह दिया था कि भाषण तो ठीक था मगर ‘इलैक्शन स्पीच’ जैसा लग रहा था. जीतनराम मांझी ने रोज पौवा पीने वाले बयान से पहले, रिश्वत दे कर अपना बिल (बिजली का) कम करवाने वाला बयान भी दिया था. इन नेताओं को भ्रष्टाचार की जड़ें पता होती हैं तो सतता में आने पर भी कुछ करते क्यों नहीं, यह ताज्जुब की बात है.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

*

अक्तूबर (प्रथम) अंक, जो दीवाली विशेषांक था, बहुत पसंद आया. विशेषकर ‘डाइटिंग छोड़ें डाइट का मजा लें’ लेख उपयुक्त समय पर उचित चीज प्रस्तुत करता है. लेखक ने यह बिलकुल सही कहा कि आज हम डाइटिंग के चक्कर में तीजत्योहारों का आनंद लेना भूल गए हैं. यह तो प्रत्यक्ष ही है कि इस अवसर पर हर प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. हां, हम डाइटिंग के चक्कर में उन का लुत्फ न उठाएं, यह अलग बात है. खुशी के इस अवसर पर पूरे परिवार के साथ इन का मजा लीजिए. भोजन पर संयम रखना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी उपर्युक्त अवसरों का आनंद लेना भी है.    

कृष्णा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

*

सख्ती जरूरी है

जब व्यक्ति आसानी से नहीं सुधरता तो उस से कड़ाई से पेश आया जाता है. मामला शहर में फैले अतिक्रमण का है. अवैध रूप से कारोबार करने वालों से रास्ते तंग हो गए हैं. इन की माली हालत अच्छी न समझ प्रशासन भी इन पर सख्त नहीं होता. प्रशासन अतिक्रमण करने वालों को हटाता तो है लेकिन ये फिर से उसी जगह पर आ जाते हैं. इन के साथ सख्ती किए जाने की जरूरत है. इन्हें स्थायी तौर पर हटा दिया जाना चाहिए. ये नगरपालिका की जमीन का उपयोग करते हैं, उस का कोई किराया, टैक्स नहीं देते.

दिलीप गुप्ता, बरेली (उ.प्र.)

*

अंधभक्ति का हश्र

आजकल मंदिरों और धार्मिक मेलों में भगदड़ बढ़ रही है और लोग मर रहे हैं. 3 अक्तूबर को पटना में विजयदशमी के मेले में भगदड़ मच गई, जिस में 37 लोग मारे गए. भारत में अंधविश्वास के कारण लोग मंदिरों और मेलों में जाते हैं. भीड़ को कम करने का कोई उपाय नहीं किया जाता. अच्छा है भीड़ को कम करने के लिए ऐसे स्थानों पर टिकट लगाया जाए. इस से भीड़ कम होगी और कमाई भी हो जाएगी. गरीबों के लिए टीवी पर प्रोग्राम दिखाए जाएं.       

इंदर गांधी, करनाल (हरि.)

*

जानवरों के बच्चे

हमारा देश, जो हमेशा से दूसरे के गुणों, संस्कृतियों को अपनाने की संस्कृति को बढ़ावा देता रहा है, दूसरे धर्मों को अपने अंदर समाहित रखने का गुण रखता है, आज इसी देश की औलादें जानवरों में तबदील होती जा रही हैं जो अपने ही देश के निवासियों (पूर्वोत्तर भारतीयों) के साथ बुरा बरताव कर रही हैं. यह काम तो जानवरों का है जो अपनी भूख मिटाने को अपनी ही औलादों को खा जाते हैं. जिस देश में समानता का अधिकार है, वहां के लोग अपने ही देश के लोगों को बाहरी साबित करें, क्या यह उचित है? क्या हम अपने ही देश के टुकड़े कर देंगे? एक नया देश बनने देंगे या पूर्वोत्तर के लोगों में और उन के दिलों में अपने देश के लिए प्रेम पैदा करेंगे या उन को अलगाववाद की आग में झोंक देंगे? जरा सोचें, ‘हिंदी हैं हम वतन हिंदोस्तां हमारा’ गीत कितना सच होगा?

सुमित कौशल, आगरा (उ.प्र.)

*

सौहार्द से कोई लेनादेना नहीं

राष्ट्रीय पर्वों पर हम ‘सारे जहां से अच्छा…मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना…’ गीत गाते हैं. ऐसे आजादी के तराने सुन कर हम भावुक होते हैं. लेकिन इन गीतों से कोई संदेश नहीं लेते. आज बस सांप्रदायिक तनाव की बात होती है. कोई एक स्थान पर मसजिद बनाना चाहता है, दूसरा समुदाय इस का विरोध करता है. कभी अपनी बात ऊंची रखने के लिए झगड़ा होता है. हिंदू शोभायात्राएं निकालते हैं तो मुसलमान भी किसी बहाने अपनी यात्राएं निकालते हैं. इन का भी सांप्रदायिक सौहार्द से कोई लेनादेना नहीं होता बल्कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होता है. जब भी कोई धार्मिक पर्व होता है तो लोगों की जानमाल की रक्षा हेतु प्रशासन पुलिस की ड्यूटी लगाता है, फिर भी हमारे नेता सियासतबाजी कर के माहौल गरमाते हैं.

 दिलीप, बरेली (उ.प्र.)

*

सम्मान मिले महिलाओं को

सम्मान की इच्छा करने वाले को सम्मान नहीं मिलता. वह मिलता उसे ही है जो उस की चिंता बिना किए ही अपने कर्तव्य पर डटा रहता है. नारी को भोगने की वस्तु समझा जाता है. हिंदू संस्कृति कहती है कि नारी को बहन और मां की तरह सम्मान देना चाहिए पर उस के लिए नारी को भी अपने चरित्र में बदलाव लाना होगा. आज का पहनावा, बोलचाल भी आदमी को नारी के खिलाफ भड़काती है. पुराने समय में कहा जाता था आदमी अंगार है और नारी घी के समान है. दोनों को साथसाथ काम नहीं करना चाहिए. चाणक्य के अनुसार, नारी में यौन इच्छा आदमी से 8 गुणा अधिक होती है. अब गर्भ का डर कम है. गोलियां हैं, अबौर्शन है, इसलिए वे शौर्टकट से काम कराने में बोल्ड हो गई हैं. कई बार शौर्टकट से काम कराने में धोखे का भी सहारा लेती हैं. झूठे बलात्कार का आरोप लगाती हैं. दहेज मांगने के झूठे आरोप में फंसवाती हैं. कानून का दुरुपयोग करती हैं. ऐसे में नारी को सम्मान कैसे मिलेगा?  

इंदर, अंबाला छावनी (हरियाणा)

*

जीवन में उजाला भरा रहे

दीवाली विशेषांक का अग्रलेख ‘आत्मविश्वास के उजाले में मनाएं रोशनी का पर्व’ पढ़ा. पढ़ कर लगा कि जिस व्यक्ति के अंदर आशा का दीया जलता रहे वह प्रेम, शांति, आत्मविश्वास और साहस का दीया जला कर सरलता से सफलता पा सकता है और अपना जीवन सफल बना सकता है. अच्छे और बुरे पल प्रत्येक मनुष्य के जीवन में आते हैं. अच्छे और सुनहरे पल उज्ज्वलता के सूचक होते हैं तो बुरे पल कालिमा से भरे होते हैं. मनुष्य को सदा अपने सामने जीवन का उज्ज्वल पक्ष ही रख कर सोचना चाहिए. जीवन के उज्ज्वल पक्ष को सामने रखने वाला व्यक्ति ही आशावादी होता है. आशा के कारण ही व्यक्ति गंभीर बीमारियों से भी मुक्ति पा लेता है और अपने जीवन को निरोग, स्वस्थ व सरल बनाता है.

जीवन में यदि आशा का दीपक जलता रहे तो फिर किसी भी दीए के बुझने की चिंता नहीं होती क्योंकि आशा का दीपक प्रत्येक बुझे दीपक को फिर से जला देता है और व्यक्ति के जीवन में खुशियों व सफलता के ऐसे अनगिनत दीयों को जला देता है जिन का प्रकाश पूरे परिवार को जगमग कर देता है. इसलिए तो कहा जाता है कि जलता रहे आशा का दीपक.        
 

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी, फिरोजाबाद (उ.प्र.)

जरूरी है निवेश में नौमिनी होना

शिप्रा को 2 महीने हो गए बैंक के चक्कर काटते हुए. एक तो असमय पति का साथ छूट गया, ऊपर से बतौर नौमिनी उन का नाम दर्ज न होने की वजह से उन के बैंक अकाउंट में जमा रुपए और लौकर में रखे गहने निकालने के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करतेकरते वे टूट सी गईं. गलती बैंक वालों की नहीं थी. शिप्रा के पति ने जरा सी समझदारी से काम लिया होता, तो इतनी जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं. कुछ आसान सी औपचारिकताएं पूरी करते ही शिप्रा को उन के खाते में जमा रकम और लौकर खोल कर उस में रखा सामान निकालने की सुविधा मिल जाती.

अकसर ऐसी गलती बहुत से लोग करते हैं. शेयरों, म्यूचुअल फंड्स, फिक्स डिपौजिट्स या अन्य जमाओं के फौर्म भरते वक्त हम नौमिनेशन वाले कौलम को गैरजरूरी मानते हुए नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि फौर्म के इस कौलम को निवेश वित्तीय संस्थाओं ने आवश्यक न रख कर वैकल्पिक/ऐच्छिक श्रेणी में रखा है. नौमिनी न नियुक्त होने की सूरत में निवेशक की मृत्यु होने की स्थिति में जमा रकम को प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है. कई सारी कानूनी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद ही उसे प्राप्त किया जा सकता है. निवेशक ने नौमिनी नियुक्त कर रखा हो, तो बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा दिए गए फौर्म के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के या आवेदन के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के जमा कर देने पर आसानी से जमा रकम को प्राप्त किया जा सकता है. वहीं नौमिनी न होने की सूरत में वसीयतनामा, कानूनी उत्तराधिकारियों की प्रमाणीकृत सूची आदि देने की आवश्यकता पड़ जाती है.

क्या है नौमिनी

नौमिनी एक ऐसी व्यवस्था है जिस के अंतर्गत निवेशक अपनी संपत्ति में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकता है और निवेशक के न होने पर नौमिनी उस की संपत्ति पर अपना दावा पेश कर सकता है. कोई भी व्यक्ति अपनी चल, अचल संपत्ति के अलावा जीवन बीमा, भविष्य निधि, बैंक खातों, फिक्सड डिपौजिट और डीमैट में नौमिनी बना सकता है. डाकघर की कुछ योजनाओं जैसे पीपीएफ, कर्मचारी भविष्य निधि और जीवन बीमा की कुछ पौलिसियों में एक से ज्यादा नौमिनी बनाए जा सकते हैं. इन योजनाओं में मातापिता, पतिपत्नी को 50:50 फीसदी का उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है.

भागमभाग की जिंदगी में जहां कभीकभी कुछ भी दुर्घटना घटित हो सकती है. ऐसे में घर के कमाने वाले सदस्य के चले जाने पर परिवार को आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े इस के लिए जरूरी है कि पति विवाह के बाद अपनी प्रौपर्टी, बीमा पौलिसी या अन्य निवेश में अपनी पत्नी को नौमिनी बनाए. महिलाओं को नौमिनी बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और बीमा नियामक प्राधिकरण (इरडा) भी निवेशकों को समयसमय पर प्रेरित कर रहा है ताकि पति के न होने की स्थिति में उसे संकट का सामना न करना पड़े.

जानने योग्य बातें

  1. अधिकांश निवेश प्रपत्रों में नौमिनी का नाम, उम्र, पता और निवेशक से संबंध आदि जानकारियां दर्ज करने के लिए कौलम बने होते हैं. इन्हें अवश्य पूर्ण करें.
  2. निवेश के समय, नौमिनी का नाम आदि दर्ज करना भूल गए हों तो संबंधित बैंक/शेयर ब्रोकर/म्यूचुअल फंड या वित्त संस्था से नौमिनी फौर्म मांग कर तुरंत उसे भर कर जमा कर दें. नौमिनी पंजीकरण की संख्या दी जाती है, उसे भी जान लें.
  3. जरूरत पड़ने पर एक से अधिक नौमिनी भी नियुक्त किए जा सकते हैं और उन के हिस्से के प्रतिशत का उल्लेख भी किया जा सकता है. इस के लिए संबंधित संस्थान से सलाह लेना उचित होगा.
  4. अगर निवेशक एक से ज्यादा हैं तो सभी संयुक्त निवेशकों द्वारा नौमिनेशन फौर्म में हस्ताक्षर करना जरूरी होता है. भले ही औपरेट करने का निर्देश कुछ भी दिया गया हो.
  5. नौमिनी निवेश को अपने खाते में ट्रांसफर करवा सकता है, जिसे बाद में वह निकाल सकता है. इस के लिए उसे पैन कार्ड का ब्यौरा और केवाईसी की औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ सकती हैं.
  6. हिंदू संयुक्त परिवार के कर्ता और पावर औफ एटौर्नी होल्डर नौमिनेशन करने या बदलने के लिए अधिकृत नहीं होते. इन्हें किसी निवेश में नौमिनी भी नियुक्त नहीं किया जा सकता है.
  7. आप्रवासी भारतीय को नौमिनी नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन निवेश की रकम भारतीय करैंसी में ही दी जाती है.
  8. अधिकांश मामलों में व्यक्तिगत हैसियत से ही किसी को नौमिनी नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन कुछ निवेशों में ट्रस्ट या शैक्षणिक संस्थानों को भी नौमिनी बनाया जा सकता है.

नज़ारों से भरपूर ओडिशा

भारत में कुछ पर्यटन स्थल ऐसे हैं जो अपनी संस्कृति व विरासत के मामले में अनूठे हैं. ओडिशा राज्य उन्हीं में से एक है. आप को जान कर हैरानी होगी कि ओडिशा के 3 प्रमुख दर्शनीय स्थल मितरकर्णिका वन्यजीव अभयारण्य, चिलका झील तथा ऐतिहासिक शहर भुवनेश्वर को संयुक्त राष्ट्र वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है. एक ओर जहां ओडिशा का लहलहाता हरित वन आवरण फलफूलों तथा पशुपक्षियों की व्यापक किस्मों के लिए मेजबान का काम करता है वहीं वहां चित्रलिखित सी पहाडि़यों तथा घाटियों के मध्य अनेक चौंका देने वाले प्रपात तथा नदियां हैं जो विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 500 किलोमीटर तटरेखा वाले ओडिशा में जहां बालेश्वर तट, चांदीपुर तट, कोणार्क तट, पारद्वीप तट, पुरी तट हैं जो उत्तर भारत के पर्यटकों को नया अनुभव देते हैं वहीं प्राकृतिक सौंदर्य, लहलहाते हरित वन आवरण, फलफूलों तथा पशुपक्षियों की मेजबानी करते अभयारण्य, जैसे नंदन कानन अभयारण्य, चिलका झील पक्षी अभयारण्य हैं, जो वनस्पतियों और जीवजंतुओं को कुदरती वातावरण में फलनेफूलने का मौका देते हैं.

चिलका झील

एशिया की सब से बड़ी खारे पानी की झील चिलका सैकड़ों पक्षियों को आश्रय  देने के साथसाथ भारत के उन कुछेक स्थानों में से है जहां आप डौल्फिन का दीदार भी कर सकते हैं. राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में फैली यह झील अपनी खूबसूरती एवं वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है. अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है. चिलका झील ओडिशा की एक ऐसी सैरगाह है जिसे देखे बिना ओडिशा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती. सूर्य की किरणें व झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर पहर में अलगअलग रूप व रंग में नजर आती है.

फूलबानी

पूर्वी भारत के मध्य ओडिशा राज्य में बसा फूलबानी शहर प्राकृतिक दृष्टि से काफी खूबसूरत स्थान है. चारों ओर पहाड़ों से घिरे फूलबानी के 3 ओर पिल्लसंलुकी नदी बहती है. फूलबानी, कंधमाल जिले का मुख्यालय है जहां आ कर पर्यटकों को सुकून मिलता है. भीड़भाड़ से दूर इस इलाके में अपूर्व शांति है. पहाडि़यों की चोटियों से फूलबानी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. यहां सितंबर से मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. भुवनेश्वर यहां का निकटतम हवाई हड्डा है जबकि बहरामपुर निकटतम पूर्वीय तटीय रेलवेलाइन पर स्टेशन है जो भारत के मुख्य नगरों से जुड़ा हुआ है. ओडिशा का कंधमाल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथसाथ हस्तशिल्प के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के दरिंगबाड़ी को ओडिशा का कश्मीर कहा जाता है. दिलोदिमाग को तरोताजा करने के लिए यह नगर श्रेष्ठ है. यहां का वन्य जीवन, पहाड़ व झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. फूलबानी से 98 किलोमीटर दूर कलिंग घाटी है. इस घाटी के पास ही दशमिल्ला नामक स्थान है जहां पर सम्राट अशोक ने कलिंग का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा था. यह घाटी सिल्वी कल्चर गार्डन व आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी जानी जाती है.

चंद्रभागा समुद्री तट

ओडिशा का चंद्रभागा समुद्री तट सैरसपाटे, नौका विहार व तैराकी के लिए बेहतरीन जगह है. अगर आप अपने कुछ खास पलों को खूबसूरत यादगार का रूप देना चाहते हैं तो यहां जरूर आएं. कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर जिसे वहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस तट पर वार्षिक चंद्रभागा मेला लगता है. इस दौरान यह तट पर्यटकों, रंगों व प्रकाश से जीवंत हो उठता है. यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है. इस के अतिरिक्त यह पुरी, कोलकाता, दिल्ली, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम आदि शहरों के रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है.

श्रद्धा बनीं डायटिंग गुरु

फिल्म ‘आशिकी 2’ और ‘एक विलेन’ की शानदार कामयाबी ने अभिनेता शक्ति कपूर की पुत्री श्रद्धा कपूर को पहली कतार की हीरोइनों में शामिल कर दिया है. फिल्म ‘हैदर’ में भी उन के काम को खासा सराहा गया. इन दिनों श्रद्धा अपना फिल्मी कैरियर तो संवार ही रही हैं, अपने पिता शक्ति कपूर की भी मदद कर रही हैं. पिछले दिनों एक निर्माता शक्ति कपूर के पास एक अच्छी भूमिका इस शर्त पर लाए कि वे इस रोल के लिए तकरीबन 10 किलो वजन घटाएं. शक्ति कपूर खानेपीने के बेहद शौकीन हैं. ऐसे में डायटिंग उन के बस की नहीं थी. ऐसे में श्रद्धा कपूर ने अनुशासित खानपान और डायट चार्ट बना कर न सिर्फ शक्ति कपूर का वजन कम कराया बल्कि उन्हें स्वस्थ भी रखा. इसे कहते हैं कि बेटी हो तो ऐसी.   

 

स्मार्ट टिप्स

  1. अगर आप ऐसी लिपस्टिक चाहती हैं जो न ज्यादा गहरी हो और न ज्यादा फीकी, तो कोरल पिंक शेड चुनें. इस शेड को आप आम मौकों के अलावा खास अवसरों पर भी लगा सकती हैं. यह शेड आप के पूरे लुक को नया रूप प्रदान करता है.
  2. बादाम को 12 घंटे तक पानी या दूध में भिगो दें. बाद में इसे छीलें और महीन पीस लें. इस में गुलाबजल मिलाएं और इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं. इस से चेहरे के निशान दूर हो जाएंगे.
  3. जब आप लंबे समय के लिए यात्रा करते हैं, तो यह सोचते हैं कि हमारा पेट पूरी तरह भरा होना चाहिए जिस से हमें भूख न लगे. लेकिन आप गलत सोच रहे हैं. इस के बजाय कम खाएं और हलका भोजन लें.
  4. वजन कम करना है तो गरम पानी पीएं. व्यायाम नहीं करना चाहते लेकिन फिट रहना चाहते हैं तो रोज सुबह खाली पेट गरम पानी पीएं. यह शरीर से अनचाहा फैट निकाल देगा.
  5. गोरी त्वचा पाने के लिए नियमित स्प्राउट्स खाएं. इस में ऐसे मिनरल होते हैं जिन से चेहरे के दागधब्बे मिट जाते हैं और त्वचा अपनेआप ही गोरी लगने लगती है.
  6. ठंड में भले ही आप को कम प्यास लगे लेकिन आप को लगभग 4 लिटर पानी जरूर पीना चाहिए.

फिल्म स्टार का परिवार होना मुसीबत

फिल्म अभिनेता शाहरुख खान अपनी नई फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की सफलता से अतिउत्साहित हैं. उन का दावा है कि उन्होंने फिल्म की रिलीज से पहले ईमानदारी के साथ फिल्म से संबंधित विस्तृत जानकारी दर्शकों को दे दी थी, उन्हें उसी का फायदा मिला.

आप ने अपनी फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ को ट्वीटर और फेसबुक सहित डिजिटल मीडिया के हर प्लेटफौर्म पर जम कर प्रमोट किया. इस से बौक्स आफिस कलैक्शन पर असर पड़ा?

मेरी इंटरनैशनल मार्केटिंग अच्छी है, इसलिए मुझे फेसबुक और ट्वीटर पर फिल्म को प्रमोट करने से फायदा मिला. भारत में ट्वीटर व फेसबुक की पहुंच अभी उतनी नहीं है. भारत में दूरदराज के इलाकों में इंटरनैट का चलन अभी ज्यादा नहीं है. फेसबुक व ट्वीटर से भारत में हमें थोड़ा सा ट्रैंड पता चलता है. जब इंटरनैट वगैरह का प्रचलन हिंदी में ज्यादा हो जाएगा, तब हमारी फिल्म को फायदा हो सकता है. बड़े शहरों में औनलाइन टिकटें बिकने लगी हैं पर विदेशों में यह प्रचलन बहुत ज्यादा है.

आप के अंदर तकनीक व बिजनैस की समझ कहां से आई?

मुझे बिजनैस की कोई समझ नहीं है. सच कहूं तो मैं ने जिसजिस बिजनैस की शुरुआत की उस में मैं असफल हुआ हूं. लेकिन आज मेरी सफलता को देख कर लोगों को लगता है कि मैं बिजनैसमैन के रूप में सफल हूं. मेरी कई फिल्में नहीं चलीं. ‘अशोक द ग्रेट’, ‘पहेली’ नहीं चलीं. एक अंगरेजी पत्रिका ने तो मुझे हाशिए पर धकेल दिया था. इन असफलताओं से मैं ने समझा कि बिजनैस सीखने वाली चीज है. खैर, अब मेरे साथ कुछ लोग ऐसे आ गए हैं, जिन्हें लगता है कि मुझे बिजनैस की समझ नहीं है तो मैं ने उन की बात सुननी शुरू कर दी है. मुझे जो चीज पसंद आती है, मैं उसी में बिजनैस करता हूं. मुझे खेल से प्यार है, इसलिए मैं ने आईपीएल क्रिकेट टीम खरीदी.

‘हैप्पी न्यू ईयर’ का ‘की पौइंट’ है- ‘लूजर ऐंड अपार्च्युनिटी’. इसे आप अपनी जिंदगी व कैरियर में कैसे देखते हैं?

कई बार हम सोचते हैं कि हम ने जैसा सोचा, वैसा नहीं हो पाया या हम उस तरह से काम नहीं कर पाए. मेरा मानना है कि इंसान को यथार्थपरक होने के साथसाथ धैर्यवान होना चाहिए. धीरज तभी आता है, जब आप का यकीन सही हो. आप को यकीन होना चाहिए कि जिंदगी में एक मौका जरूर मिलेगा. मेरी क्रिकेट की टीम लगातार 3 साल हारती रही, तो मैं ने किसी एक खिलाड़ी को दोष देने के बजाय पूरी टीम ही बदल दी. मेरे कहने का अर्थ यह है कि यदि आप कहीं हार रहे हैं या नुकसान में हैं, तो आप को सोचना पड़ेगा कि कहां कमियां हैं और उन्हें दूर करने का रास्ता निकालना पड़ेगा.

पिछले दिनों जैकी श्रौफ ने कहा कि शाहरुख खान ने बहुत तामझाम बढ़ा दिया है. फिर भी आप अकेले हैं. इस पर क्या कहेंगे?

देखिए, हम सभी अपनी जिंदगी में उस चीज का चयन करते हैं, जिस से हमें खुशी मिले. मुकाम सिर्फ टैलेंट के आधार पर नहीं मिलता. मुकाम मिलने की कई वजहें होती हैं. मैं दावा नहीं करता कि हर बार मैं सही होता हूं, लेकिन मैं जिस मुकाम से जिंदगी डील कर रहा हूं उस मुकाम पर ज्यादा लोग नहीं हैं. तो वहां खुद को अकेला महसूस करना स्वाभाविक है.

क्या किसी मुसीबत के समय अपने परिवार से भी मदद नहीं लेते?

एक फिल्मस्टार का परिवार होना सब से बड़ी मुसीबत है. इसीलिए मैं ने अपने पूरे परिवार, पत्नी, बच्चे, बहन, भाई सब को दूर रखा हुआ है. अन्यथा शुक्रवार से शुक्रवार उन को भी परेशानी होगी. हम ने अपने घर का माहौल ही अलग बना रखा है. मैं सैट पर घटी किसी भी घटना का जिक्र घर पर नहीं करता. हम ने घर को सिनेमा का सैट नहीं बनाया है. मैं ने घर के अंदर प्रोडक्शन या डिस्ट्रीब्यूशन औफिस भी नहीं बनाया. मेरे घर के अंदर परिवार है. मैं कभी भी डिनर टेबल पर बच्चों से या पत्नी से अपनी दिनभर की समस्याओं का जिक्र नहीं करता. मैं अपने बच्चों की जिंदगी को एक सुपरस्टार की जिंदगी के साथ कभी नहीं मिलाता. घर में मैं बहुत आम इंसान की तरह रहता हूं.

यानी आप यह मानते हैं कि एक सुपरस्टार के परिवार का होना उस के लिए मुसीबत होती है?

जी हां. मैं ने अपनी इंडस्ट्री के 2 बच्चों के साथ काम किया है, जिन के पिता इस इंडस्ट्री में सुपरस्टार हैं. अभिषेक बच्चन के पिता अमिताभ बच्चन और विवान शाह के पिता नसीरुद्दीन शाह इंडस्ट्री में स्टार हैं. इन दोनों बच्चों के ऊपर हमेशा एक प्रैशर बना रहता है. अभिषेक बच्चन को तो मैं बचपन से जानता हूं, जिस क्षेत्र में आप के पिता को ख्याति हासिल है, उस क्षेत्र में यदि आप हैं तो कितना प्रैशर पड़ता है, इस का मुझे एहसास है. इसलिए मैं अपने बेटे पर दबाव नहीं पड़ने देना चाहता. वह पढ़ाई कर रहा है, उसे वही करने दें. मेरी जो समस्याएं हैं, वे मेरी अपनी हैं. मेरी समस्या से उन का क्या लेनादेना? मैं कमा रहा हूं, वह थोड़े ही कमा रहा है? मैं स्टार हूं, लोग मुझ से प्यार करते हैं, मेरे परिवार से नहीं.

जब मेरा बेटा आर्यन ढाई साल का था, तब लोग आतेजाते उस से कहते थे कि ‘तू भी हीरो बनेगा?’ अरे भई, क्यों हीरो बनेगा? जिसे अपना नाम नहीं पता, उसे क्या पता? मेरा बड़ा बेटा अभी 17 साल का है, जब वह 13 साल का था, तभी लोगों ने उस से पूछना शुरू कर दिया था कि बेटा, तुम हीरो बनोगे? एक दिन उस ने मुझ से पूछा कि पापा, क्या मैं हीरो बनूंगा? क्या आप मुझे फिल्म स्टार बनाना चाहते हैं? मैं ने उस से कहा, ‘तुम क्या बनना चाहते हो?’ तो उस ने कहा, ‘मुझे नहीं पता.’

मेरा मानना है कि 12-13 साल के बच्चे को बिलकुल नहीं पता होना चाहिए कि उसे क्या बनना है. उसे सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए. जिंदगी जीनी चाहिए. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह सोचेगा कि उसे क्या करना है.

फिल्म निर्माण कंपनी का विस्तार करते हुए किस तरह की फिल्में बनाने की इच्छा है?

हमारी प्रोडक्शन कंपनी की सोच यह है कि फिल्म छोटी हो या बड़ी, तकनीकी स्तर पर बेहतर होनी चाहिए. हमारे पास एडिटिंग, वीएफएक्स, पोस्ट प्रोडक्शन सहित सारी बेहतरीन तकनीकें उपलब्ध हैं. हम गुणवत्ता को ले कर कहीं कोई समझौता नहीं करते. जहां तक रचनात्मकता का सवाल है तो उस में कुछ हमारी पसंद होगी, कुछ दर्शकों की, तो कुछ दूसरे लोगों की.

भारतीय सिनेमा के सामने हौलीवुड फिल्मों के रूप में नया संकट खड़ा हो गया है. अब मल्टीप्लैक्स में हौलीवुड फिल्में हिंदी, तमिल व मलयालम भाषाओं में डब हो कर रिलीज होने लगी हैं. इस पर क्या कहेंगे आप?

हौलीवुड की फिल्मों को आने से हम रोक नहीं सकते. ऐसे में अब हमारे पास एक ही रास्ता है कि हम भारत के क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा दें. जरूरत है कि हम रचनात्मकता के साथसाथ गुणवत्ता के स्तर पर भी बेहतरीन फिल्में बनाएं. इन दिनों हमारा क्षेत्रीय सिनेमा काफी अमेजिंग हो गया है. यह क्षेत्रीय सिनेमा ही हौलीवुड सिनेमा को अच्छी टक्कर दे सकता है.

तो क्या आप क्षेत्रीय सिनेमा बनाएंगे?

जी हां. बातचीत चल रही है. मराठी या बंगाली फिल्म बना सकता हूं. पर हमें मराठी सिनेमा या कोलकाता के सिनेमा का बिजनैस नहीं पता है. उसे भी समझने की कोशिश कर रहे हैं.

आप को नहीं लगता कि विदेशी फिल्मों में तकनीक महत्त्वपूर्ण होती है, जबकि भारतीय सिनेमा में कहानी महत्त्वपूर्ण होती है?

मैं आप की इस बात से सहमत नहीं हूं. मेरा मानना है कि विदेशी फिल्मों में तकनीक के साथ कहानी भी होती है. मेरा मानना है कि हर तकनीक कहानी को समृद्ध करती है. फर्क इतना ही है कि सीन सही ढंग से फिल्माए जाने चाहिए. यदि आप की फिल्म में हीरो 10 लोगों को मारता है और वह हवा में उड़ता है तो उस का हवा में उड़ना सही ढंग से होना चाहिए. यदि आप तकनीक के बारे में दर्शकों को शिक्षा नहीं दे रहे हैं तो आप का सिनेमा आगे कैसे बढ़ेगा? हमें दर्शकों को ग्रांटेड मान कर नहीं चलना चाहिए.

भारतीय सिनेमा का सब से कमजोर पक्ष क्या है?

पटकथा लेखन सब से कमजोर पक्ष है. हमारे यहां कहानी लेखन और पटकथा लेखन का कोई स्कूल ही नहीं है. हमारे यहां होता यह है कि कुछ भी लिख दो. लोग कहते हैं कि यह सीन डालना पड़ेगा, वरना लोगों को बात समझ में नहीं आएगी. आप का कहानी कथन इस ढंग से हो कि वह सुंदर लगे. स्क्रीनप्ले लेखन भी एक विज्ञान है, यह स्वीकार कर काम करना पड़ेगा. मैं ने कई अमेरिकी फिल्में देखी हैं, वैसे वे भी कुछ खराब फिल्में बनाते हैं. पर मैं ने महसूस किया कि उन की फिल्मों का स्क्रीनप्ले बहुत बेहतरीन होता है. मैं अभी 2 दिनों के लिए अमेरिका के ऐसे शहर गया हुआ था. जहां सड़क पर हर चौथी दुकान में मुझे स्क्रीनप्ले राइटिंग स्कूल नजर आया. भारत में ऐसा एक भी स्कूल नहीं है.

आप निर्देशक कब बन रहे हैं?

फिलहाल तो कोई योजना नहीं है. अभी मुझे बतौर निर्माता व कलाकार बहुत कुछ काम करना है. निर्देशक बन गया तो अभिनय नहीं कर पाऊंगा.

शेयर बाजार में धूम, सूचकांक का नया रिकौर्ड

शेयर बाजार नई ऊंचाई पर पहुंच गया है. बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के इतिहास में सूचकांक 5 नवंबर को पहली बार 28 हजार अंक को पार कर गया. नैशनल स्टौक ऐक्सचेंज यानी निफ्टी भी सारे रिकौर्ड तोड़ कर ऊंचाई पर पहुंच गया. बाजार में एक साल से लगातार तेजी का माहौल बना हुआ है. नई सरकार के केंद्र में गठन के बाद से बाजार लंबी छलांग लगा रहा है और नित नई ऊंचाई हासिल कर रहा है. विदेशी संस्थागत निवेशकों में उत्साह का माहौल है.

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की उत्साहवर्द्धक नीतियों के कारण निवेशकों में उत्साह है. इस की वजहें सरकार द्वारा वित्तीय घाटे को कम करने के लिए उपाय करने, तेल के दाम घटाने, विदेशी अर्थव्यवस्था में सुधार तथा आर्थिक स्तर पर सरकार द्वारा सुधार के लिए उठाए जा रहे कदम हैं. तेल की कीमतें 4 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं जिन का फायदा देशी तेल कंपनियों को हो रहा है. बाजार में तेजी किस स्तर पर है, इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सितंबर के अंत तक 6 माह की अवधि में सूचकांक 19 फीसदी बढ़ा है जबकि निफ्टी 20 फीसदी चढ़ा है. इक्विटी बाजार में भी इस की वजह से उत्साह है. नवंबर के पहले सप्ताह में बाजार में भारी उत्साह रहा है और सरकार की सकारात्मक नीतियों के कारण यह उत्साह लगातार बना रह सकता है.

लिप लौक

ऐसे विरोध प्रदर्शन की आखिरकार जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से केरल का युवा समाज सड़कों पर नैतिक पहरेदारी का ठेका लिए घोर दक्षिणपंथियों की करतूतों से आजिज आ गया था. भगवा तालिबानी संस्कृति से यहां का स्वाभाविक जीवन प्रभावित हो रहा था. राज्य में 2 विपरीत लिंग का साथ चलना, उठनाबैठना दूभर हो गया था. फिर चाहे वह पतिपत्नी हों या भाईबहन. सड़क चलते पतिपत्नी से मैरिज सर्टिफिकेट तक की मांग की गई. अगर कहीं कोई लड़की मोबाइल पर किसी से बात कर रही होती तो 4-6 भगवा पट्टा बांधे लोग बेधड़क घेर कर कैफियत तलब करने लगते कि वह जिस से बात कर रही है, उस से उस का क्या संबंध है?

मजे की बात यह कि जवाब से संतुष्ट होना या न होना उन की मरजी पर निर्भर करता. अपनी साक्षरता और प्रगतिशीलता के लिए जाने जाने वाले केरल में भारतीय संस्कृति के नाम पर सामाजिक अपराधियों का बोलबाला दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. सुबह से ले कर रात तक घोर दक्षिणपंथी सड़कों पर नैतिकता का भगवा तिकोना झंडाडंडा उठाए घूमते रहते हैं. कुल मिला कर तालिबानी दहशत का सा माहौल बनता जा रहा था. देश के किसी भी राज्य में नैतिक पहरेदारी का जिम्मा उठाने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है. यह वही देश है जहां सड़क पर किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक आता है या कोई दुर्घटना घट जाती है तो उन घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई भगवाधारी शायद ही आगे आता है इसलिए लोग सड़क पर दम तोड़ देते हैं. लोग तमाशा देखते रहते हैं.

हां, कुछ लोग दुर्घटनास्थल पर तड़पते व्यक्ति का मोबाइल पर फोटो लेने में जरूर जुट जाते हैं. याद करें, असम के एक रेस्तरां के बाहर एक लड़की के साथ बदसलूकी होती रही. लोग तमाशबीन बने देखते रहे. एक ने तो छेड़खानी की तसवीर ली और न्यूज चैनल को बेची और इंटरनैट पर डाल दी. हमारे देश के किसी भी महानगर व शहर का नाम ले लें, ऐसी घटनाएं वहां अकसर ही देखी जाती हैं. कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल में कभी सलवारकमीज को अश्लील पहनावा बता कर स्कूल टीचरों पर डै्रसकोड लादने की कोशिश की गई तो कभी टीचर को लिपस्टिक लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अभी हाल ही में उत्तर कोलकाता के ऐतिहासिक स्टार थिएटर में एक लड़की को इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया क्योकि वह मिनी स्कर्ट में थी.

बहरहाल, केरल में तो पानी सिर के ऊपर जा रहा था. इसीलिए 2 नवंबर के दिन केरल का युवा समाज ‘लिप लौक’ के माध्यम से प्रतीकात्मक विरो करने के लिए स्वत:स्फूर्त रूप से आगे आया और इन का साथ दिया अन्य कई राज्यों ने. दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवकसंघ के मुख्यालय के निकट धरना भी दिया गया.

सदियों से शिकार महिलाएं

दुनिया में इस से पहले भी ऐसे ही स्वत:स्फूर्त आंदोलन हुए हैं. हर बार विरोध प्रदर्शन ने नया इतिहास रचा. 1960 में पुरुषों के साथ गैरबराबरी के खिलाफ अमेरिकी महिलाओं ने ‘ब्रा बर्न’ आंदोलन चलाया. बड़ी संख्या में महिलाएं अर्द्धनग्न हो कर सड़कों पर उतरीं और उन्होंने सड़कों पर ब्रा की होली भी जला कर लैंगिक भेदभाव के प्रति अपना विरोध दर्ज कराया. तब भी समाज के ठेकेदारों की भौहें चढ़ गई थीं. महिलाओं पर तब पुरुषविरोधी, परिवारविरोधी होने का खिताब चस्पां किया गया. सशस्त्र बल विशेष अधिकार (असम और मणिपुर) अधिनियम, 1958 के नाम पर आएदिन सेना द्वारा बलात्कार के खिलाफ 2004 में मणिपुर की महिलाएं सड़क पर नंगी उतरी थीं. 11 जुलाई, 2004 को असम पैरामिलिट्री फोर्स ने इसी अधिनियम के तहत थांगजम मनोरमा को घर से उठा लिया था. अगले दिन जब धूलमिट्टी में सनी अर्द्धनग्न अवस्था में मनोरमा की लाश मिली तो पूरा मणिपुर सन्न रह गया. असम राइफल ने महिला के गुप्तांग में गोली मारी थी. उस के स्कर्ट में लगे वीर्य से साफ हो गया कि बेदर्दी से हत्या से पहले उस के साथ बलात्कार हुआ था.

जब पानी सिर के ऊपर गया

यहां उन कुछ घटनाओं का जिक्र जरूरी है, जिन्होंने केरल के युवा समाज को इस तरह से सड़क पर उतरने को मजबूर किया. केरल जैसे साक्षर राज्य में कई कोएड कालेजों में लड़केलड़की के बीच में बातचीत लगभग बंद है. लड़कियों के टाइट व लो वेस्ट जींस और टीशर्ट पहनने पर प्रतिबंध है. स्कूलों में  फिल्मी डांस पर भी प्रतिबंध है. इस के अलावा पिछले 4 वर्षों में सैकड़ों घटनाएं केरल के छोटेबड़े शहरों में घट चुकी हैं, जिन्हें कुछ समय पहले तक नजरअंदाज किया जाता रहा. पर अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा तो धैर्य का बांध टूटा और बात ऐसे शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन तक पहुंच गई.

5 जून, 2012 को कुन्नूर में एक गर्भवती महिला को इसलिए पीटा गया क्योंकि वह बस अड्डे पर अकेली मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी. खबरों के अनुसार, डिलीवरी के लिए महिला को उस का पति ले कर जा रहा था. बस अड्डे पर उसे बिठा कर वह करीब ही एटीएम से पैसे निकालने गया था. इस बीच, महिला की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी तो उस ने अपने पति को फोन मिलाया. तभी कुछ लोगों ने उसे घेर कर पूछताछ शुरू कर दी कि वह किस से बात कर रही है. महिला की सफाई को उन लोगों ने मानने से इनकार कर दिया और ताबड़तोड़ उस पर हाथ चलाने लगे. पति दौड़ादौड़ा आया तो उस पर भी उन लोगों ने हाथ जमा दिए. इस मामले ने खूब तूल पकड़ा था. मानवाधिकार तक बात पहुंची.

19 जून, 2013 को कोच्चि की एक महिला इन्फोटेक प्रोफैशनल का अपने पुरुषमित्र के साथ बाइक पर सवार हो कर काम पर जाना भगवा तालिबानियों को नागवार गुजरा. रास्ते में एक जगह पर बाइक रोक कर लड़का सिगरेट लेने उतरा. तभी कुछ लोग वहां पहुंचे और लड़की से सवाल करने लगे कि वह कहां से आ रही है और कहां जा रही है. बाइक में उस के साथ कौन है और उस से उस का क्या संबंध है वगैरहवगैरह. लड़की ने उन से कुछ भी बताने को मना किया तो एक ने लड़की के गाल पर तमाचा जड़ दिया. दूसरे ने हाथ मरोड़ कर जमीन पर पटक दिया. लड़के के वहां पहुंचने पर उस की भी बेतरह पिटाई कर दी. पुलिस में शिकायत करने पर 72 घंटे के बाद पुलिस ऐक्शन में आई.

कट्टरपंथियों की करतूतें

19 जुलाई को तिरुअनंतपुरम में एक कंपनी का 32 साल का पेशेवर कला निर्देशक अपने फ्लैट में पेशे से टीचर अपनी 28 साल की गर्लफ्रैंड के साथ था. तभी दरवाजे पर घंटी बजी. दरवाजा खोला, कुछ भगवाधारी खड़े थे. वे उस कलानिर्देशक से लड़की के बारे में सवालजवाब करने लगे. लड़के ने बताया कि लड़की पास ही के एक स्कूल में टीचर है और उस की मित्र है. इतना सुनते ही वे तैश में आ गए. उस के फ्लैट में लड़की क्या करने आई? जैसे बेतुके सवाल के साथ धक्कामुक्की करने लगे. बात यहीं खत्म नहीं हुई. उन लोगों ने पुलिस को बुलाया. पुलिस उन्हें थाने ले कर गई. वहां एक सबइंस्पैक्टर ने रहीसही कसर पूरी कर दी. गालीगलौज करने के साथ मारकुटाई के बाद इंस्पैक्टर ने साफ कर दिया कि उन्हें तभी छोड़ा जाएगा जब उन के मातापिता थाने आ कर उन्हें ले जाएंगे. इतना ही नहीं, इंस्पैक्टर ने लड़की के स्कूल के पदाधिकारियों को भी बुलाने के लिए कहा.

3 अगस्त को कोट्टायम जिले में रविवार की शाम 4 बजे 2 लड़के और 3 लड़कियां अपने एक फ्रैंड के फ्लैट में इकट्ठा हुए. लगभग आधे घंटे के बाद पुलिस की जीप वहां पहुंची. पूरे इलाके को घेर लिया गया. गोया वहां कोई आतंकवादी छिपा हुआ है. फ्लैट की घंटी बजी. पुलिस अंदर गई और सब को एक कोने में ले जा कर पूछताछ शुरू कर दी. पूछताछ में पता चला कि फ्लैट का मालिक एक लिव इन रिलेशन में है और वहां उपस्थित एक लड़की उस की पार्टनर है. वहां सैक्स रैकेट और ‘इमोरल ट्रैफिकिंग’ का आरोप लगा कर पुलिस ने दोनों को साथ न रहने की हिदायत दी.

4 अगस्त को तिरुअनंतपुरम में एक इंफोटेक पेशेवर अपनी पत्नी और सास को ले कर कार से रिश्तेदार के यहां जा रहे थे. कुछ लोग अचानक कार के सामने आ कर खड़े हो गए. उन लोगों ने अपने को पुलिस होने का दावा किया और कौलर पकड़ कर पूछताछ शुरू कर दी. सड़क पर विवाह प्रमाणपत्र दिखाने को कहा गया. नहीं दिखाने पर सैक्स ट्रैफिकिंग का आरोप लगा कर मारपीट की गई. बाद में पुलिस में शिकायत करने पर उन लोगों को गिरफ्तार किया गया. पता चला कि वे श्रीराम सेना के लोग थे. अखिल भारतीय जनता युवा मोरचा, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे तमाम दक्षिणपंथी संगठनों को ललकारा. नैतिक पहरेदारी के खिलाफ यह स्वाभाविक व स्वत:स्फूर्ति प्रतिक्रिया थी.

एक हुआ देश का युवा

तथाकथित नैतिक पहरेदारी के खिलाफ 2 नवंबर को कोच्चि में हुए इस विरोध प्रदर्शन के दिन और उस के बाद देशभर के युवा अपनेअपने शहरों में ऐसे ही प्रदर्शनों में शामिल हुए. मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद में भी प्रतीकात्मक प्रदर्शन हुए. दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ्तर ‘केशव कुंज’, झंडेवालान के करीब भी ऐसे ही प्रदर्शन हुए. दक्षिण कोलकाता में जादवपुर विश्वविद्यालय के परिसर और परिसर से बाहर, बस स्टैंड और उत्तर कोलकाता के कालेज स्ट्रीट में कलकत्ता विश्वविद्यालय और कौफी हाउस के बाहर बड़ी संख्या में छात्रछात्राओं ने एकदूसरे को चूम कर केरल के युवा समाज को एक संदेश दिया, ‘हम तुम्हारे साथ हैं.’ जादवपुर में तो छात्रछात्राओं के साथ प्रोफैसर भी इस आंदोलन में नजर आए,

दरअसल, इन शहरों व महानगरों के विरोध प्रदर्शन में इकट्ठा हुए युवाओं का मकसद एकदूसरे को चूमने का कतई नहीं था, बल्कि नैतिक पहरेदारी के खिलाफ प्रतिक्रियास्वरूप जगहजगह इकट्ठा हो कर प्रतीकात्मक विरोध जताया था. वहीं, कौफी हाउस के सामने प्रदर्शन की खबर स्थानीय न्यूज चैनल पर आने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने वहां पहुंच कर हमला बोल दिया. गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से कोलकाता में भी नैतिक पहरेदारी की घटना गाहेबगाहे सामने आ ही जाती है.  पार्क स्ट्रीट गैंगरेप को ही लें. नैतिक पहरेदारी के लिहाज से ही इस कांड पर तृणमूल सांसद काकोली दोस्तीदार ने चौंकाने वाला बयान दे डाला था. तृणमूल सांसद ने पार्क स्ट्रीट की घटना को महिला और क्लाइंट के बीच ‘सैक्स डील’ में ‘मिसअंडरस्टैंडिंग’ बता डाला. तृणमूल के एक अन्य नेता ने तो सवाल खड़ा कर दिया था कि इतनी रात को महिला बीयर बार में कर क्या रही थी.

वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पश्चिमी बंगाल शाखा के राज्य सचिव सुबीर हलदार का कहना है कि जादवपुर के छात्रों, खासतौर पर छात्राओं ने इस विरोध प्रदर्शन के नाम पर अपनी शारीरिक यौनेच्छा का खुला प्रदर्शन ‘व्यावसायिक तौर’ पर किया है. इस बयान को ले कर एक अलग हंगामा खड़ा हुआ. तृणमूल सरकार में शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी ने खुलेआम चुंबन की आलोचना करते हुए कहा कि अगर किसी के मन में ऐसी इच्छा जग रही हो तो इस के लिए बंद कमरे सही जगह हैं. विरोध प्रदर्शन के नाम पर कोलकाता में जो कुछ हुआ, उस से शर्म से सिर झुक गया. जाहिर है तृणमूल इसे विरोध प्रदर्शन मानने को राजी नहीं. इस बार भी नैतिक पहरेदारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का रुख नैतिक पहरेदारी पर ही आ कर अटक गया.

सुशासन की दरकार

इस देश के देशवासियों की यह आदत भी है कि वे सोचते हैं कि कोई पुजारी, ओझा या इंस्पैक्टर देश में हो रहे सभी गलत कामों को रोक देगा. घरों में सुख लाने के लिए पंडितों, मुल्लाओं, पादरियों की बरात तैयार रहती है, बीमारियों के लिए झाड़फूंक करने वालों की व कामकाज के लिए इंस्पैक्टरों की. मोटे शास्त्रों की तरह मोटे कानून बने हैं जिन में पाप करने पर पश्चात्ताप की तरह जुर्मानों व कैद के प्रावधान हैं.

देश का हर नागरिक, इंस्पैक्टरों की लंबी लाइन का गुलाम है और देश की जनता को, अफसोस है, विश्वास है कि ये इंस्पैक्टर ही व्यवस्था कायम रखते हैं. असल में इंस्पैक्टर धर्म के एजेंटों की तरह धूर्त और बेईमान हैं और उन का काम व्यवस्था बनाना नहीं बल्कि बिगाड़ना है. वे जहां पहुंच जाएं, वास्तु विद्वान की तरह, तोड़फोड़ के आदेश देने शुरू कर देते हैं. दुकान आप की, घर आप का, कारखाना आप का, काम करने वाले आप के, मशीनें आप की पर हर पर इंस्पैक्टर की नजर रहती है, जैसे पुजारी की कि क्या पहनो, किस हाथ से आचमन करो, क्या खाओ आदि पर दृष्टि रहती है.

नरेंद्र मोदी की सरकार मंदिरों के रथों पर चढ़ कर बनी है पर आश्चर्य है कि नरेंद्र मोदी इंस्पैक्टरराज को कम करने पर आमादा हैं. यदि यह हृदयपरिवर्तन है तो सुखद है क्योंकि धर्मनिरपेक्ष कांगे्रस पार्टी पुजारी, पादरी को चाहे हार न पहनाए,इंस्पैक्टरों को अपार शक्ति देने में विश्वास रखती थी. नरेंद्र मोदी सरकार 40 से कम कर्मचारियों की फैक्टरी को केवल एक कानून में लाने की सोच रही है ताकि बारबार फौर्म न भरने पड़ें. विष्णु, हनुमान, साईं बाबा, वैष्णो देवी, दुर्गा, काली सब एक ही जगह उपलब्ध. एक चढ़ावा सब के लिए पर्याप्त. यह बहुत अच्छा है.

इस में संदेह नहीं कि फैक्टरी मालिक श्रमिकों को दबाने की कोशिश करते हैं पर यह नहीं भूलना चाहिए कि श्रमिक जो बनाते हैं वह चीज प्रतियोगी बाजार में बिकती है और अगर वे लागत कम न रखेें तो उन के कारखाने में किसी की नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी. फैक्टरी मालिक जजमान नहीं हैं कि उन्हें लूटा जाए. वे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. उन का आदर किया जाना चाहिए. उन पर इंस्पैक्टरी भेडि़ए न छोड़े जाएं. अगर सरकार अपना यह एजेंडा पूरा कर सकेगी तो देश में रिश्वतखोरी तो कम होगी ही, पाखंडबाजी भी कम होगी क्योंकि इंस्पैक्टरों से त्रस्त मालिक ही दीये और मोमबत्तियां जलाने पहुंचते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें