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बी ए पास

‘बी ए पास’ दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में शूट की गई डेढ़ घंटे की छोटी सी फिल्म है, जिस में कोई बड़ा या नामीगिरामी सितारा नहीं है. फिल्म का सब्जैक्ट काफी बोल्ड है. फिल्म में कुछेक सीन्स पौर्न फिल्मों जैसे हैं. लेकिन ऐसे सीन कहानी की मांग हैं, जबरदस्ती नहीं डाले गए हैं. फिल्म में निर्देशक अजय बहल ने यह दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह बड़े शहरों की हवा और वहां का कल्चर मासूम युवाओं को अपने कब्जे में ले कर उन्हें गलत रास्ते पर चलने को मजबूर कर देता है.

फिल्म की कहानी 18 साल के नौजवान मुकेश (शादाब कमल) की है जिस के पिता की मौत हो जाती है. उस की मां भी नहीं है. वह अपनी 2 बहनों के साथ चाचाचाची के पास दिल्ली में रहने लगता है. चाची हर वक्त उसे अपना खर्च खुद उठाने के ताने देती है. वह उस की दोनों बहनों को अनाथालय में भेज देती है. एक दिन चाची की फ्रैंड सारिका (शिल्पा शुक्ला) की नजर मुकेश पर पड़ जाती है. वह उसे अपने घर बुलाती है. पहली ही मुलाकात में सारिका मुकेश के साथ शारीरिक संबंध बना लेती है. फिर यह खेल हर रोज शुरू हो जाता है. बदले में सारिका मुकेश को काफी पैसे भी देती है. वह अपनी सहेलियों के फोन नंबर भी मुकेश को देती है. अब मुकेश हर रात सारिका की सहेलियों के साथ सैक्स करता है और खूब पैसे इकट्ठे करता है.

एक दिन सारिका के पति (राजेश शर्मा) को इस बात का पता चल जाता है और मुकेश की जिंदगी खराब हो जाती है. मुकेश की बहनों के बारबार फोन आते हैं कि वह उन्हें आ कर ले जाए परंतु मुकेश के पास पैसे नहीं होते क्योंकि उस ने सारी जमापूंजी सारिका के यहां रखवा दी थी. सारिका से पैसे वापस मांगने पर वह मना कर देती है. मुकेश उस का कत्ल कर देता है. पुलिस उस के पीछे लग जाती है. मुकेश एक छत से कूद कर अपनी जान गंवा देता है.

फिल्म की इस कहानी में दिल्ली की तंग गलियों में निम्न मध्यवर्ग के घर का सटीक चित्रण भी किया गया है जहां गरीबी है, बेबसी है और पैसों की लाचारी है. निर्देशक ने दर्शकों को बांध रखने की कोशिश की है. सैक्समीनिया  से पीडि़त औरतें किस तरह मासूम युवाओं को अपने जाल में फंसा कर उन्हें गलत रास्ते पर चलने को मजबूर करती हैं, इस का अच्छा चित्रण इस फिल्म में है.

पेट की भूख के साथसाथ शरीर की?भूख भी परेशान करती है. इस फिल्म में दीप्ती नवल का एक किरदार है. उस का पति कई सालों से बीमार है. एक जवान बेटा है जो विदेश में रहता है. वह अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए जब मुकेश से मिलती है तो उस का गिल्ट उसे ऐसा करने से रोकता है. मुकेश की मासूमियत को देख कर वह वहां से लौट जाती है.

‘बी ए पास’ एक डार्क फिल्म है, जिस में समाज में फैली सैक्स विकृति को दिखाया गया है. फिल्म में पहला सैक्ससीन आते ही लगता है, यह तो पौर्न फिल्म देख रहे हैं लेकिन ज्योंज्यों घटनाक्रम आगे बढ़ता है, दर्शकों की उत्सुकता बढ़ती जाती है. ‘चक दे इंडिया’ में अभिनय कर चुकी शिल्पा शुक्ला ने अंतरंग दृश्य दिए हैं. शादाब कमल का काम भी अच्छा है. फिल्म का छायांकन खुद अजय बहल ने किया है, जो काफी अच्छा है.

डांस एकेडमी अवश्य बनाऊंगी- माधुरी दीक्षित

हिंदी सिनेमा जगत में 80 और 90 के दशक में अपनेआप को सिद्ध करने वाली माधुरी दीक्षित अभिनेत्री ही नहीं, कुशल नृत्यांगना भी हैं. अभिनय के साथसाथ उन के नृत्य का जादू इस कदर छाया हुआ है कि आज भी दर्शक उन की एक झलक पाने को लालायित रहते हैं.

फिल्म ‘अबोध’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली माधुरी दीक्षित का टर्निंग पौइंट फिल्म ‘तेजाब’ थी. इस के बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक सफल फिल्में करती गईं. ‘राम लखन,’ ‘परिंदा,’ ‘त्रिदेव,’ ‘किशनकन्हैया,’ ‘प्रहार,’ ‘दिल,’ ‘बेटा,’ ‘खलनायक,’ ‘हम आप के हैं कौन,’ ‘दिल तो पागल है’ और ‘देवदास’ जैसी कई हिट फिल्में उन के नाम हैं. माधुरी वर्ष 1999 में हार्ट सर्जन श्री राम माधव नेने से शादी कर के अमेरिका चली गईं.

2 बच्चों की मां बन कर भी वे जब बौलीवुड में वापस आईं तो दर्शकों का प्यार उन्हें मिला. दूसरी पारी में वे छोटे परदे से ले कर बड़े परदे दोनों पर विराजमान हैं. इन दिनों वे ‘झलक दिखला जा सत्र-6’ की जज बनने के साथसाथ कई फिल्मों में भी काम कर रही हैं. पेश हैं उन से हुई सोमा घोष की बातचीत के अंश :

आप ‘डांसिंग दीवा’ कहलाती हैं. कितना मुश्किल था यहां तक पहुंचना?

मैं खुश हूं कि दर्शक आज भी मुझे पसंद करते हैं. मेरे काम को सराहते हैं. हर व्यक्ति की अपनी पर्सनैलिटी होती है. अगर आप नृत्य के साथसाथ अच्छा अभिनय भी कर सकते हैं तो आप की राह आसान होती है. डांस में भाव का होना जरूरी है. अगर आप के भाव अच्छे नहीं हैं तो अच्छे डांसर हो कर भी आप कामयाब नहीं हो सकते. मैं एक ऐक्टर और डांसर हूं. इस का लाभ मुझे मिला है. डांस तो आज की हीरोइनें, मसलन, प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, करीना कपूर, सोनाक्षी सिन्हा आदि सभी करती हैं पर सब का स्टाइल अलग होता है. अगर आप का स्टाइल दर्शकों को भा जाए तो आप सफल हो जाते हैं.

आप को किस का डांस सब से अच्छा लगता है?

ऋतिक रोशन के डांस को पसंद करती हूं. रणबीर कपूर के साथ मैं ने डांस किया है. उस में एनर्जी लेवल बहुत अच्छा है. इस के अलावा कैटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा के डांस भी पसंद हैं.

कभी आप को खुद की परफौर्मैंस से असंतुष्टि हुई?

बहुत बार होती है. मैं अपने काम की खुद आलोचक हूं. दूसरों की आलोचना आसान है, खुद की कठिन. बहुत बार अपना डांस या अभिनय देख कर मैं सोचती थी कि मुझे और अधिक अच्छा करना चाहिए था.

हाल ही में आप ने मां के साथ गाना गाया है. अनुभव कैसा रहा? क्या आप सिंगिंग में भी अपना हाथ आजमाना चाहती हैं?

फिल्म ‘गुलाबी गैंग’ में एक गाना अपनी मां के साथ गाने के लिए जब निर्देशक ने कहा तो मैं मां के साथ थोड़ी चालाकी कर उन्हें स्टूडियो ले आई और अपनी आवाज में गाने को कहा. पहले मां समझ नहीं पाईं पर जब मैं ने उन्हें राज बताया तो वे हंसने लगीं. दरअसल उन का यह पहला कमर्शियल गीत था और मैं ने भी उन के साथ गा दिया. वे गाना गाती थीं लेकिन उन्हें कभी कमर्शियल गाना गाने का मौका नहीं मिला था. आगे संगीत में जाऊंगी या नहीं, बताना मुश्किल है.

अपने आप को फिट रखने के लिए क्याक्या करती हैं?

मैं हमेशा से हैल्दी रहना पसंद करती हूं. इस प्रोफैशन में फिट रहना जरूरी भी है, क्योंकि कैमरे के आगे डांस, ऐक्टिंग सबकुछ करना पड़ता है. इस के अलावा हैल्दी खाना खाती हूं. वर्कआउट करती हूं और पूरे दिन में?थोड़ाथोड़ा 5 बार खाती हूं.

क्या आप अपने प्रोडक्शन हाउस से फिल्में बनाने वाली हैं?

मैं अपने प्रोडक्शन हाउस से फिल्में कब बनाऊंगी, पता नहीं. पर डांस एकेडमी अवश्य बनाऊंगी ताकि डांस स्टाइल के साथसाथ गुरु के पास जा कर डांस सीखने की कला शिष्यों को समझ में आए. भारतीय डांस सीखना सभी डांसरों के लिए जरूरी है. हमारी अकादमी की शिक्षा गुरुशिष्य परंपरा के आधार पर होगी.

इतने सारे काम करते हुए ‘टाइम मैनेज’ कैसे करती हैं?

हर काम को प्रायोरिटी के अनुसार प्लान करती हूं जिस में बच्चों के साथ रहना, उन की देखभल करना भी शामिल होता है.

आप के लिए नृत्य की अहमियत क्या है?

नृत्य व्यक्ति को फिट रखता है, आनंद देता है. मैं रोज 1 घंटा नृत्य का अभ्यास करती हूं.

आप कोई नया डांस स्टाइल सीखना चाहती हैं?

मुझे टैप डांस सीखना है. मुझे जिम कैली और फ्रेड एस्टेयर के डांस बहुत पसंद हैं. 

ऐसा भी होता है

कुछ दिन पहले की बात है. मैं सब्जी लेने बाजार गई थी. सब्जी वाले ने हिसाब लगा कर मुझ से 300 रुपए देने के लिए कहा. मैं ने उसे रुपए दे दिए और आगे बढ़ गई. जब मैं ने उन सभी सब्जियों का हिसाब जोड़ा तो 350 रुपए हो रहे थे. शायद सब्जी वाला 2-3 सब्जियों की कीमत जोड़ना भूल गया था. मैं फिर उस की दुकान पर गई और उसे उस की भूल समझाते हुए 50 रुपए दे दिए.

दूसरे दिन सुबहसुबह दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने अखबार वाला था. वह मुझे अखबार के साथ ही 100 रुपए का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, पिछली बार आप ने 100 रुपए ज्यादा दे दिए थे.’’ मैं हर्षविस्मित खड़ी थी. पति ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ले लो भई, तुम्हारी ईमानदारी एक ही दिन में दोगुनी हो कर लौट आई है.’’

कुसुम रंगा, मुंबई (महाराष्ट्र)

मेरे दोस्त की बेटी की शादी थी. गीतसंगीत की धुन पर सभी लोग मजा ले रहे थे. तभी पता चला कि कोई मेहमान बाथरूम के अंदर बेहोश हो कर गिर पड़ा है. बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा तोड़ कर उस व्यक्ति को बेहोशी की हालत में बाहर निकाला गया. मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाया गया.

वे सज्जन अधिक शराब पीने से अपना आपा खो बैठे थे. अंगरेजी सीट पर पांवों के बल चढ़ कर बैठ गए. सीट भी टूट गई और स्वयं भी गिर गए. सभी ने उन से जब पूछा कि आप बराती हैं या घराती तो पता चला कि वे न तो बराती थे और न घराती. वे तो ऐसे मेहमान थे जो मुफ्त की पिकनिक मनाने आए थे. पैलेस मालिक ने सीट और दरवाजे टूटने का खर्चा 10 हजार रुपए लड़की वालों पर डाल दिया.

प्रवीण कुमार ‘धवन’, लुधियाना (पंजाब)

एक बार मैं अपने गांव के प्रधान के घर गई. वे भोजन कर रहे थे. एकदो ग्रास लेते ही वे कहने लगे, ‘‘मैडमजी, देखिए, खाने में कोई स्वाद ही नहीं है.’’ प्रधानजी ने बेमन से थोड़ाबहुत खाया और बाकी खाना छोड़ कर चले गए. इस से उन की पत्नी बड़ी दुखी हुईं.

थोड़ी देर बाद उन की काम वाली बाई अपनी 5 साल की बेटी के साथ काम करने आई. खाना बचा हुआ था. वे बाई से बोलीं, ‘‘पहले खा लो फिर काम करो.’’ भोजन कर के उस ने साफसफाई की और बोली, ‘‘मजा आ गया, मालकिन, 2 दिन से खाने को घर में कुछ था ही नहीं, बिटिया ने भी आज भरपेट खाना खाया.’’ यह देख कर मैं सोचने पर मजबूर थी कि किसी के लिए भोजन बेस्वाद था और किसी के लिए वही स्वादिष्ठ.

उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)

दिन दहाड़े

मैं अपने बिजली के बिल जमा करवाने गया हुआ था. मेरे हाथ में 3 बिल देख कर साथ वाली लाइन में खड़ा लड़का बोला, ‘‘अंकलजी, यहां 2 से ज्यादा बिल एक बार में नहीं लेते. आज आखिरी तारीख है. आप एक बिल मुझे दे दो, मैं अपने बिल के साथ जमा करवा दूंगा.’’

लाइन साथ होने के कारण मैं ने एक बिल और पैसे उस को दे दिए. मेरी लाइन तेजी से बढ़ रही थी इसलिए मेरा नंबर भी जल्दी ही आ गया. बिल जमा कर के मैं जैसे ही मुड़ा तो देखा वह लड़का वहां से गायब है. मैं ने साथ वालों से पूछा तो एक ने बताया कि वह तो पानी पीने को कह कर गया है. काफी प्रतीक्षा के बाद भी उस के न लौटने पर मैं समझ गया कि वह लड़का दिनदहाड़े मेरे पैसे हड़प कर गया है.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न. दि.)

 

एक दिन मैं बैंक गई थी. एक व्यक्ति ने बैंक से 15 हजार रुपए निकाले. कैशियर ने उसे हजारहजार के नोट भुगतान में दिए. व्यक्ति ने नोट लिए व बगैर गिने ही नकदी काउंटर छोड़ दिया. नोट ले कर वह व्यक्ति मुड़ा और नोट गिनतेगिनते मुख्य दरवाजे तक पहुंचा तो पाया कि 14 नोट ही हैं. वह व्यक्ति तुरंत वापस कैशियर के पास पहुंचा और उसे नोट वापस करते हुए बोला कि ये तो 14 नोट ही हैं. कैशियर ने जब नोट गिने तो 14 ही थे. पर उस ने कहा कि मैं ने तो 15 नोट गिन कर दिए थे. ग्राहक ने कहा, ‘‘मैं तो बस नोट गिन कर तुरंत वापस आ गया.’’ कैशियर ने अपना कैश चैक किया तो वह भी सही मिला. कुछ ग्राहक पीडि़त ग्राहक का पक्ष लेने लगे कि इतनी सी देर में वह नोट कहां गायब हो जाएगा. हो न हो कैशियर से ही कहीं चूक हुई है. कैशियर अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था.

बात जब मैनेजर तक पहुंची तो सीसीटीवी कैमरे में देखा गया तो पाया कि जब कैशियर ने ग्राहक को भुगतान किया था, ग्राहक के हाथ से एक नोट फिसल कर नीचे गिर गया. ग्राहक निकल कर आगे चला गया. एक लड़का, जो वहीं खड़ा था, और एक औरत, जो वहां उस के साथ बैठी थी, ने नोट गिरते हुए देख लिया. लड़के व औरत में इशारा हुआ. औरत उठी, लड़के ने उसे कवर किया और औरत नोट उठा कर बाहर निकल गई. लड़का भी पेमैंट ले कर बाहर आ गया.

चूंकि वे बैंक के ग्राहक थे, खाते से मोबाइल नंबर देख कर उन्हें बुलाया गया. उन्होंने तुरंत मना कर दिया कि हमें एक हजार के नोट के बारे में कुछ नहीं पता. काफी धमकाने के बावजूद जब उन्होंने नोट नहीं दिया तो उन्हें सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई गई और मामला पुलिस में देने की धमकी दी गई. तब डर कर उन्होंने नोट वापस किया.

अचला गर्ग, जयपुर (राजस्थान)

उन से पूछो

छत की उम्र पूछनी है

तो ढहती दीवारों से पूछ

आग का मतलब पूछ न मुझ से

दहके अंगारों से पूछ

 

पुरखों की संघर्षकथा

कंप्यूटर क्या बताएगा

कैसे मुकुट बचा मां का

टूटी तलवारों से पूछ

 

बड़ेबड़े महलों का तू

इतिहास लिखे इस से पहले

कितने घर बरबाद हुए थे

बेघर बंजारों से पूछ

 

छेनी की चोटों से जितना

रेशारेशा दुखता है

ऊंचा उठने की कीमत तो

जख्मी मीनारों से पूछ

 

ओ मगरूर मुसाफिर, तेरे सफर की

फिर भी कोई मंजिल है

जिस को चलना फकत चलना है

उन तारों से पूछ.

 

 डा. बीना बुदकी

निर्भय बनो

भय से भूत

भय से भगवान भी

तुम डरे हुए हो इतना कि

तुम ने अस्त्रोंशस्त्रों से

भरपूर कर दिया

अपने भगवान को

वो भी आठआठ

हाथ दे कर

ताकि सोलह हाथों से

तुम्हारी रक्षा कर सकें

 

तुम्हारा भय

और उस का निदान

साल में छह माह के उपवास

रक्षा करो, कामना पूर्ण करो

सहायता करो

यदि तुम्हारे भगवान

का चित्र बनाया जाए

तो वो भयपूर्ण होगा

जिसे भय है

उस के हाथों में ढेरों शस्त्र होंगे ही

 

तुम्हारे भगवान

तुम्हारे बनाए तुम्हारे निर्मित और बिठाए

भगवान न हुए

तुम्हारे सुरक्षाकर्मी हो गए

चौबीस घंटे हथियार से सज्जित

आखिर इतने भयभीत क्यों हो

किस बात का डर है

सामना करो और निर्भय बनो.

देवेंद्र कुमार मिश्रा

बात ऐसे बनी

बात मेरे मित्र की लड़की की शादी की थी. सारा प्रबंध एक फार्महाउस में था. जयमाला का कार्यक्रम था, स्टेज पर दूल्हा अपने मित्रों के साथ खड़ा था व दुलहन अपनी सहेलियों के साथ जयमाला ले कर खड़ी थी. दुलहन ने जैसे ही जयमाला डालने को हाथ उठाए, दूल्हे के मित्रों ने दूल्हे को काफी ऊपर उठा लिया. दुलहन माला ले कर एक ओर खड़ी हो गई.

दूसरी बार फिर माला डालने की कोशिश की तो फिर दूल्हे के मित्रों ने उसे ऊपर उठा लिया. तब दुलहन एक ओर खड़ी हो गई व उस ने अपनी सहेली के कान में कुछ कहा. सहेली ने दूल्हे से कुछ कहा. अब मैं ने देखा कि दूल्हा सिर झुकाए खड़ा है व मित्र भी सब शांत हैं. आराम से जयमाला कार्यक्रम समाप्त हो गया. बाद में मुझे इस शांति का पता चला तो मैं हंसे बिना न रह सका. दरअसल, दुलहन ने अपनी सहेली से कहा था कि दूल्हे से कह दो कि वह शांतिपूर्वक जयमाला डलवा ले वरना वह जा रही है.

वेद प्रकाश गुप्ता, गाजियाबाद (उ.प्र.)

*

मेरी बेटी की सहेली की शादी ऐसे घर में हुई जो दहेजलोभी थे. उन्होंने अपनी बहू का जीना इतना दूभर कर दिया कि बहू ने आत्महत्या कर ली. घटना के बाद से मेरी बेटी को शादी के नाम से नफरत हो गई. उस ने प्रण किया कि वह शादी नहीं करेगी. खैर, काफी समझाने के बाद वह शादी के लिए राजी हुई. सगाई होने के बाद मेरी बेटी को पता चला कि उस के ससुराल वाले भी दहेज के लोभी हैं. उस ने लड़के को साफसाफ शब्दों में कहा कि मैं शादी तब करूंगी जब आप के मातापिता मुझे सिर्फ वरमाला में स्वीकार करेंगे अन्यथा मैं कुंआरी रहना पसंद करूंगी.लड़के ने अपने मातापिता से कहा कि अगर आप ने बहू को दहेज के लिए परेशान किया तो जिंदगीभर वह कुंआरा रहेगा. इकलौती संतान होने के कारण लड़के के मांबाप को औलाद की खुशी की खातिर झुकना पड़ा.

सपना रावानी, अजमेर (राज.)

*

मेरी पड़ोसिन 2 गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती थी. परंतु वे बच्चे जब मन करता, पढ़ने आते और कभी भी छुट्टी मार लेते. उन के मातापिता भी कुछ नहीं कहते थे. इस पर मेरी पड़ोसिन कसमसाती कि इन बच्चों व मातापिता को पढ़ाई व समय की कीमत मालूम नहीं है.

मैं ने उस से कहा, ‘‘अगर अब ये बच्चे छुट्टी करें तो उन को जुर्माने के तौर पर 5 रुपए लाने के लिए कहना. इस से वे समय व पढ़ाई की कीमत समझेंगे.’’ उस ने ऐसा ही किया. नतीजतन, बच्चे रोज आने लगे.

पूनम जैन, पानीपत (हरियाणा)

भारत भूमि युगे युगे

भुखमरी मुक्त दिल्ली

सबकुछ ठीकठाक रहा तो विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिल्ली के 73.5 लाख गरीबों को खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सस्ता अनाज मिलना शुरू हो जाएगा. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कहती हैं कि दिल्ली भुखमरी से मुक्त हो जाएगी. शीला दीक्षित भाषा की धनी हैं इसलिए उन्होंने गरीबी के बजाय सटीक शब्द भुखमरी का इस्तेमाल किया बावजूद यह जाननेसम?ाने के  कि आजकल लोग भूख से कम दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से ज्यादा मरते हैं. बहरहाल, शीला की मंशा की व्याख्या करते राहुल गांधी ने 6 अगस्त को यह कहते नया विवाद पैदा कर दिया कि गरीबी एक मानसिक स्थिति है जिसे खैरात बांटने से दूर नहीं किया जा सकता. बात सच भी है, अब सरकारें पुरुषों को आफ्टर शेव लोशन और महिलाओं को सैनिटरी नेपकिन बांटने से तो रहीं.

द वाशिंगटन पोस्ट

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ दुनिया भर में जानामाना अखबार है जिसे बीते दिनों अमेरिकी कंपनी अमेजन के सीईओ जैफ पी बेजास ने तकरीबन 250 मिलियन डौलर में खरीद लिया. यह अखबार अपने 135 सालों के इतिहास में चौथी बार बिका. अखबार हमारे यहां भी बिकते रहते हैं पर इतने महंगे नहीं. वजह, प्रसार संख्या है जिसे ले कर तमाम मीडिया हाउस चिंतित हैं पर इलैक्ट्रौनिक्स मीडिया के जादू से निबटने का मंत्र कोई नहीं ढूंढ़ पा रहा. इस की लगभग 4,74,767 प्रतियां बिकती हैं जो किसी भी भारतीय प्रकाशक को उसकी संपादकीय व लेखकीय गुणवत्ता की हैसियत बताने के लिहाज से पर्याप्त हैं. इस अखबार के मालिकाना हक के बिकने की वजह बीते 10 सालों में इस के प्रसार में लगातार गिरावट बताई गई जिस के चलते विज्ञापन भी कम हो चले थे. इस सौदे का इकलौता सबक यही है कि लेखकीय गुणवत्ता गिर रही है, इसलिए लोग आंखों का इस्तेमाल देखने में ज्यादा करने लगे हैं.

कांग्रेस की मुश्किल

साल 2013 में नरेंद्र मोदी छाए हुए हैं कांग्रेसी तो कांग्रेसी शत्रुघ्न सिन्हा और जसवंत सिंह जैसे कई भाजपाई दिग्गज बोलते रहे कि मोदी को प्रधानमंत्री न बनाया जाए. देश की चिंता के अलावा इन सब की अपनीअपनी निष्ठाएं और स्वार्थ हैं. राहुल गांधी नेएक सलीके का काम 36 कांग्रेसी प्रवक्ताओं को यह नसीहत देते किया कि नरेंद्र मोदी पर बेवजह, ऊटपटांग न बोला जाए और बोलना ही है तो गुजरात के विकास मौडल की बखिया उधेड़ी जाए. सार यह कि मोदी को ब्रैंड न बनाया जाए.

अब मोदी पर नहीं बोलना तो कांग्रेसियों को सम?ा आ गया पर गुजरात विकास मौडल क्या बला है, यह वे सम?ा नहीं पा रहे. गुजरात का विकास शोध और खोज का विषय हो चला है जिस पर कांग्रेसी सिर खपाएंगे, ऐसा लग नहीं रहा.

बेलगाम दिग्विजय

उन का नाम मीनाक्षी नटराजन है. वे मंदसौर-नीमच से कांग्रेसी सांसद हैं. अविवाहित हैं, खूबसूरत, सांवली हैं, कम बोलती हैं और उन की सब से बड़ी खूबी राहुल गांधी से नजदीकी है. इसलिए कांग्रेसियों का उन का लिहाज करना स्वाभाविक है पर दिग्विजय सिंह ने नहीं किया. मंदसौर में मंच से भीड़ के सामने उन्होंने भद्दी भाषा और घटिया अंदाज में मीनाक्षी को 100 टन का माल कह दिया. इस उपाधि, जिसे कटाक्ष कहना ज्यादा ठीक होगा, को मीनाक्षी ने पुरस्कार की तरह सम्मानपूर्वक सार्वजनिक रूप से ग्रहण कर लिया, मानो कोई पद्म उपाधि मिल गई हो.

अगर यह भाषा गलत थी तो दोषी जाहिर है दिग्विजय से ज्यादा खुद मीनाक्षी हैं जिन में स्वाभिमान और सम्मान नाम के तत्त्व नहीं हैं. ऐसे में दिग्विजय जैसे पुरुषों की विकृत मानसिकता को शह मिलती है.

 

त्रासदी के खौफ से घबराए कांवडि़ए

सावन की शिवरात्रि के दौरान करोड़ों की तादाद में बमबम भोले का शंखनाद करने वाले कांवडि़यों का हुजूम देश की सड़कों पर ऊधम मचाता हुआ नजर आता था, पर इस बार ऐसा क्या हुआ कि न केवल कांवडि़यों की संख्या बहुत कम नजर आई बल्कि उन को मुफ्त का माल परोसने वाले धर्म के धंधेबाजों में पहले जैसे जोश का अभाव भी नजर आया?

गंगाजल लेने को हरिद्वार जाने वाले शिवभक्त कांवडि़यों की संख्या इस बार बहुत कम देखने में आई. इसी वजह से सड़कों पर उत्पात, गुंडागर्दी, महिलाओं से छेड़छाड़ जैसी हरकतों से आम लोगों और प्रशासन को थोड़ी राहत महसूस हुई. दिल्ली के वजीराबाद, जीटी रोड, मथुरा रोड, बदरपुर, धौला कुआं हो कर हरिद्वार जाने वाले रास्तों पर कांवडि़यों का भगवा सैलाब बहुत कम नजर आया. कहींकहीं तो कंधों पर कांवड़ लादे हुड़दंगी कांवडि़यों की भरमार रहने वाले रास्तों पर भी वीरानी रही.

पूर्वी दिल्ली से गुजर रहे व्यस्ततम नैशनल हाईवे नंबर 24 पर कांवडि़यों की थोड़ी आवाजाही रही. पुलिस ने कांवडि़यों की वजह से कमर्शियल वाहनों का आवागमन रोक दिया था लेकिन वजीराबाद रोड, जीटी रोड और विकास मार्ग पर कांवडि़यों के कारण कहींकहीं जाम हो रहा था. दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस बार कांवडि़यों की संख्या में कमी जरूर दिखाई दी पर हमें इंतजाम हर साल की तरह ही करने पड़े. हां, इतना जरूर है कि कांवडि़यों को ले कर तनाव और विवाद जैसे मामले ज्यादा नहीं आए.

हरिद्वार जिला सूचना अधिकारी कार्यालय के प्रदीप कोठारी कहते हैं कि यह सही है कि इस बार यहां कांवडि़यों की संख्या काफी कम रही. वजह पूछने पर वे कहते हैं कि केदारनाथ त्रासदी के कारण कांवडि़ए कम आए. गरमी इस की वजह नहीं है. कांवडि़यों की वजह से हरिद्वार जिला प्रशासन को काफी परेशानी होती होगी? इस सवाल पर कोठारी कहते हैं कि हां, शहर में गंदगी और अराजकता जैसा माहौल होता है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं था.

कांवड़ यात्रियों के लिए इस बार भी दिल्लीहरिद्वार हाईवे का यातायात एक हफ्ते के लिए डाइवर्ट कर दिया गया. इस रास्ते से केवल कांवडि़ए ही जा सकते हैं ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो और आसानी से मेरठ, मुजफ्फरनगर, रुड़की हो कर वे हरिद्वार पहुंच सकें. दिल्ली में पूरे एक पखवाड़े विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य धार्मिक व सामाजिक संगठनों द्वारा त्रिनगर, शास्त्रीनगर, करोलबाग, शाहदरा जैसी जगहों में लगे तंबू खाली दिखाई दिए और कई जगह तो ये तंबू कांवड़ यात्रा खत्म होने से 2 दिन पहले ही उखड़ गए. 3, 4 और 5 अगस्त को दिल्ली में हुई बारिश के बाद ये तंबू बिल्कुल वीरान नजर आ रहे थे.

दिल्ली के बाहर निकलते ही साहिबाबाद, गाजियाबाद, मेरठ, मुरादनगर, मुजफ्फरनगर में भी स्थानीय संगठनों की ओर से लगाए गए टैंटों में कांवडि़यों के लिए खानेपीने, आराम करने, चिकित्सा आदि के पूरे इंतजाम किए गए थे पर कांवडि़ए कम ही थे.

कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार से कांवडि़यों के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की मांग करने वाले एक स्वामीजी का दावा है कि पिछले साल 1.95 करोड़ कांवडि़ए हरिद्वार, ऋषिकेश, गोमुख क्षेत्र में पहुंचे थे और इस बार 1 करोड़ कांवडि़ए आने की संभावना थी लेकिन इस से आधे भी नहीं पहुंचे. हरिद्वार जिला प्रशासन के पास कांवडि़यों का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है. सूचना कार्यालय का कहना है कि यहां आने वाले कांवडि़यों का महज अंदाजा लगाया जाता है. यह अंदाजा मीडिया और प्रशासन अपनेअपने तरीके से लगाते हैं.

हर साल सावन में हरिद्वार जाने वाले रास्तों पर अराजकता, गुंडागर्दी का माहौल व्याप्त रहता है. इस बार उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने कांवडि़यों द्वारा ट्रकों, गाडि़यों में स्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था, फिर भी नियम तोड़ने में माहिर ये हुड़दंगी बाज नहीं आए. इलाहाबाद में स्पीकर लगे ट्रक को रोका गया तो कांवडि़यों ने जम कर उत्पात मचाया. गाडि़यों, बसों में तोड़फोड़ की.

इस के बावजूद प्रशासन उन की हर सुविधा का पूरा ध्यान रखता है. उन के लिए अलग ट्रैक की व्यवस्था करता है. चौराहों पर विशेष पुलिस तैनात की जाती है जो यातायात को रोक कर कांवडि़यों को पहले जाने देती है. लेकिन कांवडि़ए अपनी हरकतों से बाज नहीं आते. चोली के पीछे क्या है…, मुन्नी बदनाम हुई…, शीला की जवानी… जैसे फिल्मी गानों की तर्ज पर बने धार्मिक गीतों पर अश्लील मुद्रा में थिरकते कांवडि़ए लोगों के लिए मुसीबत बन कर हर साल सामने आते हैं.

धर्म के धंधे पर गहरी चोट

धार्मिक वर्णव्यवस्था में जिन लोगों को पढ़ाईलिखाई, पूजापाठ, हवनअनुष्ठान से वंचित किया गया वे कांवडि़ए होते हैं. इन में ज्यादातर निम्न जातियों के लोग शामिल हैं. ये लोग धर्म के धंधेबाजों के नए ग्राहक हैं. सदियों से वंचित ये लोग पूजापाठ, तीर्थयात्रा कर के अब खुद को धन्य समझने लगे हैं. दिल्ली में करोल बाग स्थित दलितों के गुरु रविदास विश्राम मंदिर के अध्यक्ष जोगिंदर मोहन कहते हैं कि हरिद्वार जाने वाले कांवडि़ए हर वर्ग, हर जाति के होते हैं. गंगाजल लाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.ऐसा नहीं है कि हर साल हरिद्वार जाने वाले कांवडि़ए सहीसलामत घर लौट आते हैं, 10-20 हर साल बेमौत मरते हैं. आम लोगों का मत कांवडि़यों को ले कर ठीक नहीं है. लोगों का कहना है कि उन में भक्त कम, असामाजिक तत्त्व अधिक होते हैं.

दिल्ली के रोहिणी इलाके में शिव मंदिर के पुजारी उमाकांत तिवारी कहते हैं शास्त्रों में गंगाजल से शिव के अभिषेक का वर्णन है. रावण शिवभक्त था और वह गंगाजल से शिवलिंग की पूजा करता था, इसलिए यह बहुत पुरानी परंपरा है. अनेक कांवडि़ए हरिद्वार के अलावा गंगोत्तरी, गोमुख से गंगाजल लाते हैं पर इस बार प्रशासन ने हरिद्वार से आगे जाने की अनुमति नहीं दी. सवाल यह है कि क्या इस बार कांवडि़यों की तादाद वास्तव में केदारनाथ त्रासदी के कारण कम रही? शिव के खौफ से उन के ही भक्त कांवडि़ए घबरा गए?

दरअसल, पिछले दिनों बारिश के कहर से चारधाम की यात्रा पर निकले सैकड़ों यात्री मारे गए थे. इन में से ज्यादातर भगवान केदारनाथ यानी शिव से सुरक्षा, समृद्धि की चाह में गए थे पर मौत के मुंह में समा गए. कई अनाथ हो गए. कइयों का सुहाग उजड़ा, किसी की गोद उजड़ी, किसी ने मांबाप खोए, किसी ने पत्नी.

इस घटना से देश में हाहाकार मच गया. लोगों ने सरकार, प्रशासन को कोसा. मौत से बच कर आए अनेक लोगों ने भविष्य में ऐसे धार्मिक तीर्थस्थलों पर जाने से तौबा कर ली. कुछ लोगों का कथित ईश्वर से भरोसा उठ गया फिर भी अनेक लोगों का अब भी मानना है कि  उन्हें ईश्वर ने ही बचाया है, बिना यह सोचे कि ईश्वर ने उन्हें बचाया पर औरों को क्यों मारा? क्या ईश्वर लोगों के साथ भेदभाव करता है्?

दरअसल, केदारनाथ त्रासदी के बाद लोगों में पहाड़ों के नजदीक बसे तीर्थस्थलों पर जाने का भय समा गया. अंधभक्तों को समझ में आने लगा कि जब लोग भगवान के घर में ही सुरक्षित नहीं हैं तो फिर कहां होंगे. स्वयं भगवान अपना घर नहीं बचा पाए तो लोगों की जान कैसे बचाएंगे. इस तरह के सवालों ने लोगों के बंद दिमागों पर दस्तक जरूर दी होगी.

असल में प्रकृति समयसमय पर धर्म, ईश्वर की पोल खोलने का काम करती रहती है पर धर्म के ठेकेदार, भगवानों के बिचौलिए प्रकृति के प्रकोप को भगवान की मरजी, पापियों को सजा देने जैसी बातें कह कर अपने झूठ को ढकने की कोशिश करते हैं और लोगों को बहलाने में कामयाब हो जाते हैं. बेवकूफ लोग भी उन की कही बातों को सच मान लेते हैं. चूंकि केदारनाथ धाम की घटना अभी ताजा है इसलिए हरिद्वार कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों की तादाद पर असर पड़ना स्वाभाविक है.

लेकिन यह तय है कि यह अधिक समय तक नहीं चलेगा. धर्म, ईश्वर की मार्केटिंग करने वाले लोग धर्म का कारोबार करने के लिए फिर से लोगों को मूर्ख बनाना शुरू कर देंगे और दिमाग से गुलाम बना दिए गए लोग फिर पंडों के कहे रास्ते पर चल पड़ेंगे क्योंकि उन में न अपना दिमाग है न तर्कवितर्क करने की शक्ति. वे तो बस हमेशा दूसरों के द्वारा हांके जाने को अभिशप्त हैं.

केदारनाथ की प्राकृतिक घटना ने धर्म के धंधे पर गहरी चोट की है. कांवडि़यों की कमी से धर्म के कारोबार में मंदी आई है. यानी मंदिरों में चढ़ावा कम हुआ है. कांवडि़यों को हरिद्वार कौन धकेल रहा है? निश्चित ही मंदिरों में बैठे पंडेपुजारी. जिस दिन लोगों को धर्म की खाने वाले इन धंधेबाजों की चालबाजी समझ में आ जाएगी, इन की दुकानों में ताले पड़ जाएंगे. धर्मांध लोगों को इन के शिकंजे से बाहर निकलना ही होगा.

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