कुछ दिन पहले की बात है. मैं सब्जी लेने बाजार गई थी. सब्जी वाले ने हिसाब लगा कर मुझ से 300 रुपए देने के लिए कहा. मैं ने उसे रुपए दे दिए और आगे बढ़ गई. जब मैं ने उन सभी सब्जियों का हिसाब जोड़ा तो 350 रुपए हो रहे थे. शायद सब्जी वाला 2-3 सब्जियों की कीमत जोड़ना भूल गया था. मैं फिर उस की दुकान पर गई और उसे उस की भूल समझाते हुए 50 रुपए दे दिए.
दूसरे दिन सुबहसुबह दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने अखबार वाला था. वह मुझे अखबार के साथ ही 100 रुपए का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, पिछली बार आप ने 100 रुपए ज्यादा दे दिए थे.’’ मैं हर्षविस्मित खड़ी थी. पति ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ले लो भई, तुम्हारी ईमानदारी एक ही दिन में दोगुनी हो कर लौट आई है.’’
कुसुम रंगा, मुंबई (महाराष्ट्र)
मेरे दोस्त की बेटी की शादी थी. गीतसंगीत की धुन पर सभी लोग मजा ले रहे थे. तभी पता चला कि कोई मेहमान बाथरूम के अंदर बेहोश हो कर गिर पड़ा है. बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा तोड़ कर उस व्यक्ति को बेहोशी की हालत में बाहर निकाला गया. मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाया गया.
वे सज्जन अधिक शराब पीने से अपना आपा खो बैठे थे. अंगरेजी सीट पर पांवों के बल चढ़ कर बैठ गए. सीट भी टूट गई और स्वयं भी गिर गए. सभी ने उन से जब पूछा कि आप बराती हैं या घराती तो पता चला कि वे न तो बराती थे और न घराती. वे तो ऐसे मेहमान थे जो मुफ्त की पिकनिक मनाने आए थे. पैलेस मालिक ने सीट और दरवाजे टूटने का खर्चा 10 हजार रुपए लड़की वालों पर डाल दिया.
प्रवीण कुमार ‘धवन’, लुधियाना (पंजाब)
एक बार मैं अपने गांव के प्रधान के घर गई. वे भोजन कर रहे थे. एकदो ग्रास लेते ही वे कहने लगे, ‘‘मैडमजी, देखिए, खाने में कोई स्वाद ही नहीं है.’’ प्रधानजी ने बेमन से थोड़ाबहुत खाया और बाकी खाना छोड़ कर चले गए. इस से उन की पत्नी बड़ी दुखी हुईं.
थोड़ी देर बाद उन की काम वाली बाई अपनी 5 साल की बेटी के साथ काम करने आई. खाना बचा हुआ था. वे बाई से बोलीं, ‘‘पहले खा लो फिर काम करो.’’ भोजन कर के उस ने साफसफाई की और बोली, ‘‘मजा आ गया, मालकिन, 2 दिन से खाने को घर में कुछ था ही नहीं, बिटिया ने भी आज भरपेट खाना खाया.’’ यह देख कर मैं सोचने पर मजबूर थी कि किसी के लिए भोजन बेस्वाद था और किसी के लिए वही स्वादिष्ठ.
उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)