हिंदुओं के तथाकथित धर्मगुरु आशुतोष महाराज वैज्ञानिकों की नजर में मृत हैं जबकि अंधभक्तों को समाधि में नजर आ रहे हैं. दरअसल, ड्रामा अरबों रुपए की संपत्ति का है. आशुतोष महाराज ने धर्म की जिस दुकान के जरिए करोड़ों जमा किए, आज उन्हीं करोड़ों पर संग्राम छिड़ा है. दुनियाभर को त्याग का पाठ पढ़ाने वाले इन धर्मगुरुओं का बुरा हश्र संपत्ति विवाद को ले कर ही क्यों होता है, पड़ताल कर रहे हैं जगदीश.
 
धार्मिक ड्रामों के लिए भी पहचाने जाने वाले इस देश में इन दिनों भक्तों को एक और ड्रामा मुग्ध कर रहा है.  इस बार ड्रामे की कड़ी में एक मृत बाबा को अंधविश्वास ने जिंदा कर रखा है. डाक्टरों द्वारा मृत घोषित आशुतोष महाराज को ‘समाधि’ में बताने वाला एपिसोड आस्थावानों को चमत्कृत कर रहा है. हजारों शिष्य समाधि पर भरोसा कर रहे हैं. भक्तों का विश्वास तो देखिए, कहते हैं कि महाराज पहले भी कईकई दिनों तक समाधि में चले जाते थे. इस बार भी लौट आएंगे. 
पिछले दिनों उन्नाव के साधु को सपने में दिखे ‘सोने के खजाने’ के ड्रामे का अभी पटाक्षेप भी नहीं हो पाया था, सपने में दिखे ‘खजाने’ को सरकार, अन्य दावेदार और भक्त बटोर ही नहीं पाए थे कि अब समाधि के चमत्कार के साथ संत की संपत्ति के बंटाईदार सामने आ गए हैं. 
आश्रम प्रबंधकों के अलावा आशुतोष महाराज के वारिस भी दौलत में हिस्से की मांग कर रहे हैं. बिहार के मधुबनी जिले के दिलीप कुमार ने खुद को आशुतोष महाराज का बेटा होने का दावा किया और अपने पिता की 1 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति में से हिस्से की मांग करते हुए अनशन पर बैठ गया. 
पंजाब में जालंधर के नूरमहल में हिंदुओं के धार्मिक गुरु आशुतोष महाराज डाक्टरों द्वारा मृत घोषित किए जा चुके हैं पर आश्रम प्रबंधक और शिष्य हैं कि मानने को तैयार नहीं. शिष्यों का कहना है कि महाराज समाधि में हैं. आश्रम के लोगों का भी दावा है कि आशुतोष महाराज योग की अंतिम अवस्था में हैं पर आश्रम के पास जमा अथाह संपत्ति को ले कर उंगलियां उठ रही हैं. 
3 फरवरी को आश्रम के एक पूर्व कर्मचारी पूर्णसिंह ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर आशुतोष महाराज को मुक्त कराने की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि डेरा प्रबंधक द्वारा आशुतोष महाराज को अवैध, गैरकानूनी और बलपूर्वक तरीके से बंधक बना कर रखा गया है क्योंकि आश्रम प्रबंधक संपत्ति और उत्तराधिकार का हस्तांतरण कराना चाहता है. लिहाजा, एक वारंट अधिकारी नियुक्त किया जाए और आश्रम में छापा मार कर महाराज को मुक्त कराया जाए.
अदालत ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से आशुतोष महाराज के बारे में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया. इस पर 5 फरवरी को जालंधर रेंज के डीआईजी, एसएसपी और एसडीएम की टीम आश्रम हैडक्वार्टर गई. आश्रम के अधिकारियों से बातचीत की पर उन्होंने तथाकथित समाधि में लीन आशुतोष महाराज को दिखाने से इनकार कर दिया.
बाद में आश्रम प्रबंधन को समझाबुझा कर डाक्टरों की एक टीम द्वारा आशुतोष महाराज के स्वास्थ्य की जांच की गई. जांच  रिपोर्ट में डाक्टरों ने स्पष्ट कहा कि वे ‘क्लिनिकली’ डैड हैं. उन की हृदय की धड़कन बंद है, नब्ज काम नहीं कर रही और मस्तिष्क डैड हो चुका है. यह रिपोर्ट सरकार को दे दी गई. सरकार ने महाराज का अंतिम संस्कार कराने के सवाल पर यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि धार्मिक रीतिरिवाज के मामले में वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहती.
विशाल व भव्य आश्रम
पंजाब के जालंधर से 33 किलोमीटर दूर नूरमहल कसबा आम दिनों की तरह अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त था. करीब 10 हजार की आबादी वाले कसबे की सड़क के किनारे बिजली के खंभों पर लगे आशुतोष महाराज की फोटो और सीख वाले वाक्यों से भरे होर्डिंग्स लोगों का ध्यान बरबस ही आकर्षित करते हैं.                                                                                       
कसबे के उत्तरपूर्व में स्थित आशुतोष महाराज के विशाल आश्रम में आम दिनों की तरह चहलपहल थी. शाम के 7 बज चुके थे. भक्त आजा रहे थे. करीब 600 एकड़ में फैले विशाल आश्रम में चमचमाती गाडि़यों की लाइनें लगी हुई थी. नकोदरलुधियाना मार्ग पर डेरे में प्रवेश से पहले पुलिस सुरक्षा का बंदोबस्त था. आनेजाने वाले भक्तों के लिए कोई रोकटोक नहीं थी. आशुतोष महाराज के कुछ भगवा वस्त्रधारी शिष्य और स्वयंसेवक डेरे में इधरउधर घूम रहे थे. आश्रम में बाहर से आए भक्त खुश थे कि महाराज समाधि में हैं. फगवाड़ा से अपनी पत्नी के साथ आया हरजिंदर सिंह गर्व से बताता है कि गुरुजी 10 दिन से समाधि में हैं. वह बिलकुल मानने को तैयार नहीं कि उस का गुरु अब इस दुनिया में नहीं रहा. गुरुजी पहले भी लंबे समय तक समाधि में बैठ जाते थे.
लगभग 3 हजार वर्गगज में निर्मित सफेद भव्य आश्रम किसी महल जैसी झलक देता दिखाई पड़ता है. आश्रम में आने वाले भक्तों के लिए रहने, खानेपीने का पूरा इंतजाम है लेकिन भक्तों को महाराज आशुतोष के दर्शन नहीं कराए जा रहे हैं. इस का उन पर कोई खास असर नजर नहीं आता. अवतार सिंह कहता है, ‘‘दर्शन बड़ी बात नहीं है. आश्रम में आने मात्र से ही गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है और शरीर शुद्ध व आत्मा पवित्र हो जाती है.’’
मृत या जीवित
यहां के बाशिंदे दबी जबान में कहते हैं कि 29 जनवरी को छाती में दर्द की वजह से आशुतोष महाराज की मृत्यु हो गई थी. वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. उन की मृत्यु की खबर जब डेरे से बाहर आई तो उन के अनुयायी इकट्ठा होने लगे लेकिन आश्रम प्रबंधन द्वारा कह दिया गया कि महाराज समाधि में चले गए हैं.
आश्रम प्रबंधन आशुतोष महाराज को मृत मानने को तैयार नहीं है. आश्रम का रोजमर्रा का कामकाज बदस्तूर जारी है. आश्रम की सुरक्षा चाकचौबंद कर दी गई. महाराज के ऊंचे राजनीतिक रसूख के चलते पुलिस सुरक्षा पहले से ही थी और जनता का आवागमन बढ़ने से और बढ़ा दी गई.
आश्रम की कोई खबर बाहर न जा पाए, इस के लिए आश्रम प्रबंधन ने मीडिया के अंदर प्रवेश पर रोक लगा दी. मीडिया के लिए आश्रम से बाहर ही टैंट लगा कर 3-4 लोग तैनात कर दिए गए पर उन के पास कोई जानकारी नहीं होती. प्रबंधन बात नहीं करना चाहता. आश्रम में मौजूद स्वामी विश्वदेवानंद से जब जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वे सिर्फ इतना कहते हैं कि महाराज योग की अंतिम अवस्था में हैं जहां शरीर की संपूर्ण क्रियाएं रुक जाती हैं. 
आश्रम के भीतर कोई जानकारी नहीं दी जाती. बाहर कसबे के कुछ लोग प्रबंधन से नाराजगी जताते देखे गए पर ज्यादातर लोग आश्रम के पक्ष में खड़े दिखते हैं. यहां के एक स्थानीय नेता तीर्थराम संधु ने समाधि को ले कर एक लिखित बयान जारी कर कहा था कि महाराज अपनी समाधि से वापस लौट आएंगे. लोगों का इस में विश्वास है.
खेल संपत्ति का
स्वयं को आश्रम से जुड़ा बताने वाले मोहिंदर सिंह ने अदालत में याचिका दे कर कहा है कि डेरे की संपत्ति 1 हजार करोड़ रुपए की है. 300 करोड़ रुपए की संपत्ति तो संस्थान में ही मौजूद है. महाराज का शव फ्रीजर में इसलिए रखा गया है ताकि इस संपत्ति को प्रबंधक हथिया सकें.
उत्तराधिकार को ले कर आश्रम में कुछ गुट बने हुए हैं. एक गुट अमरजीत सिंह उर्फ अरविंदानंद का है जो आशुतोष महाराज के पुराने शिष्य हैं. यहां के लोकल शिष्य आशुतोष महाराज के बाद अरविंदानंद को गद्दी सौंपना चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर संस्थान की गवर्निंग बौडी की अगुआई करने वाले आदित्यानंद, नरेंद्रानंद को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं, जबकि अन्य गुट सुविधानंद उर्फ सोनी को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं.
इसी बीच, बिहार के मधुबनी जिले के लखनौर गांव से आशुतोष महाराज का परिवार सामने आया और संपत्ति पर अपनी हिस्सेदारी जता रहा है. खुद को आशुतोष महाराज का बेटा होने का दावा करने वाला दिलीप कुमार पंजाब सरकार से अपने पिता का शव उन्हें सौंपे जाने की मांग के साथसाथ उन की संपत्ति पर भी अपना हक जताते हुए अनशन पर बैठ गया था. 2 दिन बाद बिहार भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने दिलीप कुमार के घर जा कर अनशन तुड़वाया और शव दिलवाने के लिए आश्वासन दिया.
प्रचारप्रसार
असल में पंजाब में आतंकवाद के दौर में यानी वर्ष 1983 में आशुतोष ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की स्थापना की थी. बलवंत सिंह नाम के एक एनआरआई ने नूरमहल में संस्था स्थापित करने में मदद की. वह नूरमहल से पंजाब में शांति के नाम पर ‘ब्रह्मज्ञान’ बांटने लगे. प्रवचनों के बाद धीरेधीरे देशभर में उन के लाखों शिष्य बन गए. नूरमहल के अलावा दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में आश्रम बना दिए गए. महाराज के प्रवचनों का कारोबार चल पड़ा. महाराज के प्रवचनों की कैसेट्स, डीवीडी, पुस्तकें, सीडी, पत्रिका आदि का अच्छाखासा बाजार बन गया.
देशविदेश में आशुतोष महाराज के तकरीबन 110 आश्रम और केंद्र हैं. इन में वौलिंटियर्स बड़ी संख्या में हैं. इन की तादाद 2 लाख से ऊपर बताई जाती है. इन के अलावा लगभग 2 हजार पूर्णकालिक प्रवचक हैं जो शहरों, कसबों में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और आशुतोष महाराज के प्रचार के साथसाथ प्रवचन देते हैं. देशविदेश में उन के लाखों अनुयायी हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...