Romantic Story : दरवाजे की घंटी बजने पर नमिता ने गेट के बाहर देखा तो लगभग 32-33 साल का एक युवक खड़ा था.
“सुना है, आप के यहां कमरा खाली है…” उस ने पूछा.
“हां, खाली तो है। एक कमरा, किचन, बाथरूम और डाइनिंग स्पेस है… 3,500 से कम किराए में नहीं देंगे और बिजली का मीटर अलग से लगा है…” नमिता बोली।
नमिता के पास अपने घर के बगल से लगा 100 वर्ग गज का एक प्लौट था, जिस में एक कमरा, किचन, बाथरूम बने हुए थे, जिसे वह किराए पर उठा देती थी। छोटा और पुरानी बनावट का होने के कारण कोई अच्छी सर्विस वाला व्यक्ति किराए पर नहीं लेता था और अकसर कोई लेबर, औटो वाले, सिक्युरिटी गार्ड जैसे लोगों को ही उठाना पड़ता था। कम आमदनी के कारण कोई भी 2-3 हजार से ज्यादा नहीं देना चाहता था। एक तो रहना फिर बिजलीपानी। नमिता को 2,500 चूरन के पैसों के बराबर भी न लगते और ऊपर से इतना किराया भी कई बार याद दिलादिला कर मिलता। लेकिन जब खाली पड़ा रहता तो गंदगी होती इसलिए किराए पर उठा देना भी ठीक लगता। कम से कम साफसफाई तो होती रहती थी.
“इस बगल वाले मकान को तुड़वा कर होस्टल बनवा लेंगे। पढ़ने वाले बच्चे रख लिया करेंगे। किराया भी समय पर देंगे और ज्यादा किचकिच भी नहीं करेंगे,” नमिता के पति अखिल अपनी योजनाएं बनाते रहते।
“होस्टल तो तब बनवा लेंगे न जब पैसा होगा। अब क्या मकान बनवाना आसान काम है,” नमिता मुंह बना कर कहती।
“जब सस्ता मिल गया तो प्लौट ले लिया यह ही क्या कम है। बेटी की शादी में काम आएगा…” नमिता की अपनी सोच और योजना थी.
“दीदी, कुछ कम कर लो, इतना कहां से दे पाएंगे। सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं एक सोसाइटी में। कुल 12,500 मिलते हैं जिस में बीवीबच्चों का खर्चा भी चलाना है,” वह युवक गिड़गिड़ाने सा लगा तो नमिता को अच्छा नहीं लगा।
“कहां हमारे बच्चे एक दिन में हजारों की खरीदारी कर लाते हैं और कहां 10-12 हजार में पूरे महीने का खर्चा चलाना…” कितना कठिन होता होगा, उसे एहसास था।
“3,000 से कम में नहीं देंगे और 1 महीने का किराया ऐडवांस में देना होगा और बिजली का मीटर अलग लगा है। बिजली का अलग देना होगा,” उस ने जबरदस्ती कठोर बनने का प्रयास करते हुए कहा।
“कुछ कम हो जाता तो अच्छा था,” वह बोला पर नमिता टस से मस नहीं हुई।
आखिर में 1,000 रुपए ऐडवांस दे कर वह कमरा बुक करने को कहने लगा।
“नाम क्या है तुम्हारा?” नमिता ने पूछा।
वह कठोर हृदय नहीं थी और देश के हालात और निम्नवर्ग की स्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ थी। निजीकरण ने देश के बेरोजगार वर्ग को 10-12 हजार का मज़दूर बना कर रख दिया था। ‘इतनी सी कमाई में कौन कैसे जी सकता है?’ इस प्रश्न से वह अकसर जूझती रहती थी।
“हमारा नाम दीपक है और एक बात और बताना चाहते हैं आप को…” उस ने बड़े कातर भाव से कहा।
“क्या? कहो…”
“हम जाति के वाल्मीकि हैं…”
नमिता को एक बार तो झटका सा लगा मगर फिर भी उस ने खुद को रोक लिया क्योंकि वह भी कोई ऊंची जाति से नहीं थी न ही उस की सोच नकारात्मक थी और समाज में फैले जातिवादी जहर से वह अच्छी तरह से परिचित थी। प्लौट के बगल में जो परिवार था वे बड़े अहं वाले एवं पूजापाठ वाले व्यक्ति थे। वैसे तो लोग कहते थे कि वे ओबीसी के हैं मगर बहुत धार्मिक व रूढ़िवादी सोच के थे। उन्हें दीपक का अपने बगल में रहना घोर नागवार गुजरता। पर नमिता भी जिद्दी थी और गलत बात पर झुकना या समझौता कर लेना उस की प्रवृत्ति में नहीं था।
“ठीक है, तुम कोई गलत काम तो करते नहीं हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। तुम अपना सामान ले कर रहने आ जाना।”
“धन्यवाद दीदी…आप को किराया बिलकुल समय से मिल जाया करेगा…” उस के चेहरे पर सम्मान व संतुष्टि के भाव थे।
महीने की 1 तारीख को दीपक अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रूम में शिफ्ट होने आ गया। उस के पास बहुत सारे गमले थे जिन में उस ने फूलों वाले पौधे लगा रखे थे। पत्नीबच्चे खूब सुंदर और साफसुथरे थे।
जाति व स्त्रीपुरुष के नाम पर मनुष्यमनुष्य में भेद करने वाली सामाजिक व्यवस्था से नमिता को बड़ी खीज होती थी. अपने बगावती तेवरों के साथ वह समाज में किसी भी तरह के अन्याय और भेदभाव के विरुद्ध थी और खुल कर अपनी बात कहती थी साथ ही स्वयं अमल भी करती थी. अपनी दोनों बेटियों के बाद सास और ससुराल वालों के पूरे जोर डालने पर भी उस ने तीसरा बच्चा नहीं किया. बेटेबेटी के भेद से उसे सख्त ऐतराज था.
ऊंची जाति वालों का खून क्या ज्यादा गाढ़ा होता है या उन के ब्लड ग्रुप अन्य जाति वालों से अलग होते हैं?
मोहल्ले वाले नाकभों सिकोड़ेंगे, यह वह जानती थी फिर भी उस ने दीपक को कमरा किराए पर दे दिया था. उस के 2 बच्चे, एक बेटा, एक बेटी थे। पत्नी का नाम पार्वती था. वह घर पर ही रहती। घर को साफसुथरा रखती थी. दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे. दीपक बातचीत और व्यवहार में बहुत शिष्ट था और नमिता को दीदी कह कर पुकारता था। जब भी सामने पड़ता नमस्ते कर लेता था.
“दीदी, तुम ने मेहतर को किराए पर रख लिया है…कमरे में…” पड़ोसी का बेटा कुछ नाराजगी और कुछ गुस्से में बोला उस के घर आ कर.
“हां, तो क्या हुआ… क्या वह इंसान नहीं है…और मेरा घर मैं चाहे जिस को दूं…वैसे भी मैं इन सब बातों पर विश्वास नहीं करती.”
“उस के घर के कपड़े या कोई सामान हमारे घर आ गिरा तो हम क्या करेंगे और कैसे वापस करेंगे?”
“वे अपने घर में रहते हैं तुम अपने घर में और तुम कौन होते हो आपत्ति करने वाले? क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि इस देश में प्रजातंत्र है और जातपात, धर्म के आधार पर भेद करना कानून के खिलाफ है…” नमिता ने आवेश में उसे बहुत सारी बातें सुना डालीं.”
लड़का भुनभुनाता हुआ चला गया. दीपक और उस का परिवार कमरे में रहने लगा था। नमिता अपने घरबाहर के कामों में व्यस्त हो गई। वैसे भी किराएदार कैसे रह रहे हैं, क्या कर रहे हैं इन सब मामलों में वह ज्यादा दखल नहीं देती थी। अखिल की भी ऐसी ही आदत थी। न ही वे समय पर किराए के लिए किराएदार का दिमाग खाते थे. कोरोनाकाल में रह रही एक महिला से तो नमिता ने महीनों किराया ही नहीं लिया था. 1 महीना पूरा होने में 4-6 दिन ही बाकी थे कि दीपक एक दिन नमिता से बोला, “दीदी, कल कमरा खाली कर देंगे… बच्चों को वहीं बस्ती में रहना अच्छा लगता है जहां वे पहले रहते थे। यहां उन का मन नहीं लगता.”
“क्यों क्या परेशानी है यहां?” चौंक गई नमिता.
“कुछ नहीं… बस बच्चों का मन नहीं लगता यहां…”
“तो फिर आए ही क्यों थे?” गुस्सा आ गया उसे.
‘इस के लिए सब की नाराजगी की परवाह नहीं की और यह झट से भागने लगा…भगोड़ा…’ उस ने मन ही मन सोचा.
सचमुच महीना पूरा होते ही बाकी का किराया और बिजली का बिल दे कर दीपक कमरा खाली कर अपना सामान ले कर चला गया. नमिता से अपना गुस्सा दबाए नहीं दब रहा था. वह लगातार अपनी भड़ास दीपक को भलाबुरा कह कर निकाल रही थी,”ये लोग होते ही इसी लायक हैं। किए का एहसान नहीं मानते और शर्मिंदा करते हैं.”
“तुम करती भी तो हो ऐसे ही काम…ज्यादा भलमनसाहत दिखाने का यही परिणाम होता है,” अखिल कहता. नमिता क्या कहती. मनमसोस कर रह गई पर उस के मन से दीपक के प्रति नाराजगी नहीं गई।
दीपावली की लाइट्स लगवानी थीं इसलिए इलैक्ट्रिशियन रविंद्र को बुलाया था अखिल ने. अखिल अपनी निगरानी में झालरें लगवा रहा था.
रविंद्र जबतब घर की बिजली के काम करने आता रहता था और बहुत बोलता था.
“आप ने अपने घर में किराए पर वाल्मीकि को रख लिया था?” वह पूछ रहा था.
“तुम्हें कैसे मालूम?”अखिल ने कहा।
“पूरा मोहल्ला जानता है. कोई उस बेचारे से बोलता भी नहीं था. बहिष्कार सा कर रखा था सब ने उसका. इसलिए तो खाली कर के चला गया,” रविंद्र ने भेद खोला तो अखिल और नमिता दोनों स्तब्ध रह गए. कहां तो चिल्लाचिल्ला कर सारे नेता कहते हैं कि अब देश से जातिवाद खत्म हो गया है और कहां कदमकदम पर वही जाति, धर्म की लड़ाइयां…वोट लेते समय उसी धर्म और जाति का इस्तेमाल, दलितों को बहलाफुसला कर उन के वोट हड़पना और फिर उन को उसी हजारों सालों पुरानी स्थिति में बनाए रखने का षड्यंत्र रखना. क्यों हजारों सालों बाद भी वाल्मीकि केवल गंदगी साफ करने का काम करें… हर साल कितने सफाईकर्मी गटर में उतर कर जहरीली गैस से मर जाते हैं और हम बस खबरें पढ़ कर रह जाते हैं. क्यों नहीं बदलता इस देश का समाज…क्यों नहीं बदलती यहां की व्यवस्था… मन में कुलबुलाते प्रश्नों के कोई जवाब नहीं थे नमिता और अखिल के पास.
दीपक तो कमरा खाली कर के चला ही गया था.खाली पड़े हिस्से में फिर से धूलमिट्टी, गंदगी जमा होने लगी थी।
“चला गया तो चला जाने दो. फिर किसी और को उठा देंगे किराए पर…वह खुद ही डरपोक था. वरना जब हम कुछ नहीं कह रहे थे तो उसे बाकी लोगों की परवाह करने की जरूरत ही क्या थी…” नमिता को बीचबीच में रोष आ जाता.
“कमजोर आदमी मानसिक दबाव में जल्दी आ जाता है और सामाजिक बहिष्कार तो एक अमानवीय कृत्य है वह भी सिर्फ जाति के आधार पर. इसलिए वह इन तथाकथित सभ्य, प्रबुद्ध, प्रगतिशील जनों के बीच में रहने के बजाय अपने साथी बस्ती वालों के साथ रहने चला गया. हमें उस की स्थिति समझनी चाहिए न कि उस से नाराज़ होना चाहिए,” अखिल ने संपूर्ण स्थिति का अपना तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत किया.
काफी हद तक नमिता भी उस से सहमत थी। उस के बाद कई लोग रूम देखने आए। एक कमरा, किचन, बाथरूम कोई कमजोर व्यक्ति ही लेता और सब को 2-3 हजार और बिजली का खर्चा भी ज्यादा लगता। एक हद तक सही भी था कि जो खुद 10-12 हजार कमा कर गुजारा कर रहा हो वह 5 हजार किराए में ही दे देगा तो खाएगा क्या. पर नमिता भी फ्री में तो नहीं दे सकती थी। खैर, सौदा पटा नहीं और बगल का हिस्सा खाली ही पड़ा रहा.
“दीदी, कोई आया है, किराए के लिए मकान देखने,” कामवाली ने उसे बुलाया।
“कह दो अभी आती हूं…”
24-25 साल का एक लड़का था।
“कौन हो?”
“यहीं फैक्टरी में काम करता हूं. किराए पर कमरा चाहिए,” युवक ने कहा। लड़का इटावा का रहने वाला था. साथ में पत्नी और एक बच्चा था.
“3,000 रुपए किराया और बिजली का अलग से देना होगा,” नमिता ने स्पष्ट कहा.
“3,000 रूपए तो बहुत है 25,00 में दे दो। कुल 12,000 ही तो कमाता हूं. आप की दया से मेरा परिवार रह लेगा,” वह युवक बोला।
अमित नाम था उस का. आधार कार्ड और 500 रुपए ऐडवांस ले कर नमिता ने उसे आ कर रहने को कह दिया.
वह उसी दिन फटाफट अपना सामान और पत्नी, बच्चे को ले कर रहने आ गया जैसेकि कहीं सड़क पर रह रहा था. नमिता ने चैन की सांस ली. उसे इधरउधर से सुनने को मिल रहा था कि चूंकि उस ने एक वाल्मीकि को किराए पर रख लिया था इसलिए उस के इस घर में अब कोई किराएदार नहीं आ रहा था रहने को… अब अमित आ गया तो नमिता को लग रहा था कि जैसे उस ने इन मोहल्ले वालों को जवाब दे दिया हो. दोनों पतिपत्नी सफाईधुलाई आदि में लगे थे. सही किराए में रहने को ठिकाना मिल गया था शायद इसलिए दोनों खुश नजर आ रहे थे.
एक दिन न बीता था कि अमित दनदनाता हुआ उस के पास आया.
नमिता कुछ समझ पाती इस से पहले ही उस ने अपने गुस्से का इजहार कर दिया,”तुम ने अपने घर में मेहतर को रख रखा था?” वह गुस्से में था.
“तो क्या हुआ…और वह कोई गलत काम तो करता नहीं था। सिक्युरिटी गार्ड का काम करता था. और तुम्हें क्या परेशानी है उस से. मैं वैसे भी इन सब बातों को नहीं मानती,” नमिता का भी गुस्सा फूट पड़ा।
“तुम्हें बताना चाहिए था…” वह बदतमीजी से ‘तुमतुम…’ कर के बोल रहा था।
“जब से मेरी पत्नी को पता चला है उन की तबियत खराब हो गई है.” वह बहुत गुस्से में था।
नमिता को उस की बीमार सी पत्नी की शक्ल याद आ गई,”नहीं रहना तो भाग जाओ अपना सामान उठा कर… हम चाहे वाल्मीकि को रखें चाहे किसी और को हमारी मरजी है. हमारा घर है,” नमिता को इतना गुस्सा आ रहा था कि मन कर रहा था कि अभी धकेल कर बाहर निकाल दे। उसे अपने स्वभाव पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह हर ऐरेगेरे पर भरोसा कर लेती है और उन से सहानुभूति रखने लगती है. अगली सुबह अमित अपना सामान और अपना परिवार ले कर कमरा खाली कर के जा चुका था.
नमिता और अखिल कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले इस देश में जिस में आजादी के बाद जातिधर्म के भेद को खत्म कर कानून के समक्ष समानता स्थापित हो चुकी है जबकि वास्तव में तो यहां हर जाति के ऊपर एक जाति है जो खुद को ऊंची जाति का और दूसरी को नीची जाति का समझती है. धोबी खुद को जाटव से ऊंचा समझता है तो जाटव खुद को वाल्मीकि से. ठाकुर से ऊपर ब्राह्मण हैं तो कोइरी, तेली के ऊपर बनिया. सारा समाज ही जातियों में विभाजित है. वैवाहिक विज्ञापनों में बाकायदा जाति के अनुसार वरवधू के कौलम छपते हैं.
नमिता और अखिल भूल गए थे लेकिन अब अच्छी तरह से समझ गए थे कि जो जाती नहीं कभी वह ही जाति होती है…