चले तो थे हम अकेले, कारवां बनता गया
कोई राहबर बना तो कोई पलट गया
कभी खार की चुभन, कभी गुल की महक
सब को अपना समय मिलता गया
कभी अजीयत का आलम, कभी आसूदगी
हर इक बात का किस्सा बनता गया
बैठ गई थक कर जब एक मोड़ पर ‘हेमा’
हर दिशा से कोई पुकारता गया
शब में आराइश-ए-खयाल कुछ ऐसा
हर इक विचार सितारा बनता गया
इस कहानी में इक पल ऐसा भी आया
सुकूत-ए-वक्त हर इंसां यज्दां बनता गया.
- हेमा लोखंडे
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