चले तो थे हम अकेले, कारवां बनता गया
कोई राहबर बना तो कोई पलट गया
कभी खार की चुभन, कभी गुल की महक
सब को अपना समय मिलता गया
कभी अजीयत का आलम, कभी आसूदगी
हर इक बात का किस्सा बनता गया
बैठ गई थक कर जब एक मोड़ पर ‘हेमा’
हर दिशा से कोई पुकारता गया
शब में आराइश-ए-खयाल कुछ ऐसा
हर इक विचार सितारा बनता गया
इस कहानी में इक पल ऐसा भी आया
सुकूत-ए-वक्त हर इंसां यज्दां बनता गया.
- हेमा लोखंडे
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और