आप ने उड़नतश्तरियों तथा उन के चालक लोकांतरवासियों यानी एलियंस के अनेक किस्से पढ़ेसुने होंगे. क्या ये किस्से सही और सच्चे हैं? पिछले वर्षों में इस सिलसिले में जो नए तथ्य सामने आए हैं, वे यही इशारा करते हैं कि उड़नतश्तरियों में बैठे एलियंस की कहानियां काफी हद तक हकीकत साबित हो रही हैं. लगता है कि अब कुछेक सालों में ही ये कथाकहानियां सच हो जाएंगी और हम इन एलियंस के सीधे संपर्क में होंगे. यह उन लोगों का कहना है जो विश्व की अंतरिक्ष एजेंसियों में काम करते हैं और चंद्रमा पर हो आए हैं या फिर बरसों अनुसंधान कर चुके विश्वविख्यात जर्नलिस्ट हैं. आज यदि आप अमेरिका जाएं तो पता लगेगा कि वहां तीनचौथाई नागरिक उड़नतश्तरियों के अस्तित्व के बारे में पूरी तरह आश्वस्त हैं. अब यह मुद्दा फिर गरमा गया है क्योंकि इन उड़नतश्तरियों के स्वागत की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं.
पिछली सदी के चौथे दशक में अमेरिका के रोजवेल इलाके में लोगों ने कई उड़नतश्तरियां उड़ती देखीं, जिन में से एक उड़नतश्तरी दुर्घटनावश पृथ्वी पर आ गिरी. इस का मलबा आधा मील तक फैला था, जिस में हर चीज अनजान किस्म की धातु की थी. उस पर कुछ अनजान किस्म के निशान व भाषा लिखी थी. इस बारे में नजदीकी एयरफोर्स यूनिट को सूचित करने से पहले कुछ मलबा स्थानीय लोगों ने उठा कर अपने पास रख लिया. इस के बाद सरकारी तंत्र ने सारा मलबा हटा कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया, जिस में कई शव भी थे. हालांकि शुरू में यह भी कहा गया कि एक यूएफओ यानी ‘अनआइडैंटिफाइड फ्लाइंग ओब्जैक्ट’ गिरा, पर बाद में इसे ‘वैदर बलून’ बताया गया.