“फोन की घंटी बज रही है, उठो.” सुबह का समय है, सर्दी के दिन हैं. इस समय गरमगरम रजाई से निकल कर फोन उठाना एक आफत का काम है. मोबाइल में सिग्नल नदारत रहते हैं, तब पुराना लैंडलाइन फोन ही काम आता है. पतिदेव को सोता देख कर झल्लाती हुई ममता को ही उठ कर फोन उठाना पड़ा. हालांकि, ममता को मालूम था, आज रविवार की सुबह बच्चों का ही फोन होगा, लेकिन किस का होगा, यह तो फोन उठाने पर ही मालूम होगा.

ममता ने फोन उठाया और बातों में मशगूल हो गई. पुत्री सुकन्या का फोन था. बृजमोहन भी उठ कर आ गए, फिर पुत्री और दामाद से उन की भी बातें हुईं. आखिर घूमफिर कर वही बातें होती हैं, क्या हाल है? बच्चे कैसे हैं? छुट्टी में इंडिया आओगे? आज कौन सी दालसब्जी बनी है या बनेगी? मौसम का क्या हाल है? पड़ोसियों की शिकायत, सब यहीकुछ.

सुकन्या को भी पड़ोसियों की बातें सुनने में मजा आता था. ममता भी वही बातें दोहराती, सारी पड़ोसिन जलती हैं. पूरा एक घंटा ममता और बृजमोहन का व्यतीत हो गया. सुबह 6 से 7 बज गए.

ममता और बृजमोहन के 3 बच्चे, सब से बड़ी लड़की सुकन्या, फिर छोटे लड़के गौरव और सौरभ. सभी अमेरिका में सैटल हैं. सभी शादीशुदा अपने बच्चों के साथ अमेरिका के विभिन्न शहरों में बसे हुए हैं.

सुकन्या खूबसूरत थी, एक पारिवारिक विवाह में दूर के रिश्ते में अमेरिका में बसे लड़के को पहली नजर में भा गई और फिर विवाह के बाद अमेरिका चली गई. कुछ समय बाद दोनों लड़के भी अमेरिका में सैटल हो गए.

अब ममता और बृजमोहन दिल्ली में अकेले एक तिमंजिला मकान में रह रहे हैं. आर्थिक रूप से संपन्न बृजमोहन की कपड़े की दुकान थी, जो वे आज भी चला रहे हैं. कभीकभी बच्चे मिलने आ जाते हैं और कभी वे बच्चों के पास मिलने चले जाते हैं. अब बिना किसी बंधन के अकेले रहने का सुख भी बहुत है. ममता कुछ नखरैल अधिक हो गई, जब आर्थिक संपन्नता हो, तब चिंता किस बात की.

बृजमोहन का हर सुबह कालोनी के पार्क में जाना दिनचर्या का हिस्सा है. अकेले समय भी काटना है, पार्क के रखरखाव में अकसर खर्च करते. इस से पार्क के क्लब में होने वाले समारोह में उन्हें मुख्य अतिथि का तमगा मिल जाता.

पार्क के क्लब में एक समारोह था. शुरुआत में एक धार्मिक क्रिया की जा रही थाई. “सब को नमस्कार,” समारोह स्थल में घुसते ही बृजमोहन ने आवाज दी.

“नमस्कार, सेठ जी,” पंडित भी धार्मिक क्रिया बीच में बोल पड़ा. वहां मौजूद लोगों में कुछ मुसकरा दिए और कुछ की भृकुटि तन गईं, बुदबुदाने लगे ‘यह क्या, सेठ होगा अपने घर में. यहां सब बराबर हैं. चंदा ज्यादा देता है, इस का यह मतलब तो नहीं कि धार्मिक क्रिया में विघ्न डालेगा. धार्मिक क्रिया बाद बात नहीं कर सकता?’

पंडित को चंदा चाहिए, पत्थर की प्रतिमा से तो चंदा मिलेगा नहीं, देना सेठ को ही है, अब उस की कुछ तो जीहुजूरी बनती ही है.

“सेठ जी, वार्षिक आयोजन के कुछ ही दिन शेष हैं, पूरे क्लब को लाइट्स से रोशन करना है.”

“समझो हो गया, पंडित. लाइट्स मेरी तरफ से. अभी ताजेताजे डौलर आए हैं. डौलर भी मंहगा है.”

बृजमोहन सब को यह जताना चाहता है, लड़के ने कल ही डौलरों की एक खेप भेजी है, उस के लड़के कितना खयाल रखते हैं.

“सेठ जी, भंडारा भी हर रोज होगा.”

“पंडित, मेरी जेब काट ले, सबकुछ मेरे से करवाएगा. भंडारे का नहीं दूंगा. लाइट्स लगवा रहा हूं, वह क्या कम है?” बृजमोहन ने दोटूक मना कर दिया. पैसों का बड़ा पक्का इंसान था. पाईपाई का हिसाब रखता था.

“सेठ जी, क्लब में हर शाम कीर्तन भी होगा.”

“पंडित, कर कीर्तन, तेरा काम है. मैं तो कीर्तन करूंगा नहीं.” बृजमोहन ने आरती में सुर लगाया.

“तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता…” फिर पंडित बोला, “सेठ जी, माता रानी से डरो, तुम ही भरता हो, कीर्तन के बाद प्रसाद भी बांटना है,” पंडित उस की जेब ढीली करवाने पर तुला था.

“कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे…” पंडित आगे बोला, “सेठ जी, और डौलर आएंगे, प्रसाद का प्रबंध तो आप के जिम्मे है.” पंडित भी कौन से कम होते हैं, उन को हजार तरीक़े आते हैं.

“पंडित, आखिरी दिन प्रसाद मेरी तरफ से. तू भी क्या याद करेगा पंडित, किस रईस से पाला पड़ा है.”

धार्मिक क्रिया की समाप्ति के बाद पंडित ने मुंह ही मुंह में खुद से कहा, ‘इस की जेब से पैसे निकलवाने का मतलब एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने के बराबर है.’

क्लब में पंडित और दूसरे लोगों से कुछ बातचीत, कुछ गपशप लगाने के बाद बृजमोहन घर वापस आए और नाश्ता करने के बाद कालोनी के कैंपस में चक्कर लगाने चले गए. शाम के समय एकएक कर के बेटों के फोन आए. ममता ने विशेष हिदायत दी.

“चलो कोटपैंट पहन लो, रविवार यानी छुट्टी के दिन घर पर डिनर नहीं करना है,” ममता ने और्डर दे दिया.

हर रविवार शाम को मौल घूम कर रैस्टोरैंट में डिनर करना उन की आदत थी. सिर्फ 2 जन, उम्र सत्तर के करीब, खुद कार चला कर मौल जाते हैं. वापस लौटते समय कार ट्रैफिक सिग्नल पर बंद हो गई. ग्रीन लाइट हुई, तब स्टार्ट करने में दिक्कत हुई. पीछे खड़े वाहनों ने दबादब हौर्न बजाने चालू कर दिए.

“देखो, इस खटारा को बदल दो. एक बार बंद हो जाए तो स्टार्ट ही नहीं होती है. हमारी लाइन में सब के पास चमचमाती लेटेस्ट कार हैं, बड़ी वाली और हम खटारा ले कर घूम रहे हैं. मैं पड़ोस में और हंसी नहीं उड़वा सकती हूं. देखो, अगले हफ्ते वार्षिक समारोह आरंभ हो रहा है, नई कार घर में आनी चाहिए और वह भी बड़ी वाली.”

बृजमोहन दुनिया के आगे अपनी जेब सिल कर रखता था, परंतु परमप्रिय ममता के आगे सदा खुली रहती थी. बिलकुल चूंचपड़ नहीं करता था.

जब चारपांच सैल्फ मारने पर कार स्टार्ट हुई, बृजमोहन ने पक्का वाला प्रौमिस कर दिया, “बिलकुल ममता, इस बार बड़ी वाली कार खरीदते हैं.”

पंद्रह वर्षों से बच्चों से अलग रह रहे ममता और बृजमोहन को अकेले रहने में रस आने लगा था. न बच्चों की चिकचिक, न कोई बंधन, जो दिल में हो, करो. संपूर्ण आजादी में रह रहे दंपती को किसी का दखल पसंद नहीं था.

बृजमोहन और ममता बेफिक्र आजादी के संग अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. आराम से सुबह उठना, पार्क में सुबह की सैर करना उन की दिनचर्या थी. ममता अपनी किटी पार्टी में मस्त रहती. बृजमोहन आराम से 11 बजे दुकान जाने के लिए निकलते थे. उन के बच्चे उन को डौलर भेजते थे, फिर भी अपनी दुकान बंद नहीं की. आरामपरास्त होने के कारण उन की दुकानदारी कम हो गई थी, किंतु उन को इस की कोई चिंता नहीं थी. एक पुराना विश्वासपात्र नौकर था. वह ही दुकान संभालता था. पड़ोस के दुकानदार उसे कहते, ‘असली मालिक तो तू ही है. देख लियो, मरने पर दुकान तेरे नाम लिख कर जाएगा.’

नौकर भी हंस देता. मजाक पर कोई टैक्स नहीं लगता है. एक बात पक्की है, बृजमोहन दुकान को अपने साथ बांध कर ले जाएगा. नौकर अपने मालिक की हर रग से वाकिफ था.

हर जगह सुपर मार्केट और स्टोर खुलने से महल्ले की छोटी परचून की दुकानों का कामधंधा गिरने लगा. आज की युवा पीढ़ी हर छोटे से बड़ा सामान औनलाइन खरीदती है. ऊपर से इन सुपर स्टोर्स ने छोटी दुकानों का धंधा लगभग चौपट ही कर दिया. इसी कारण बृजमोहन के मकान के करीब एक परचून की दुकान बंद हो गई.

एक शाम बृजमोहन अपनी दुकान से वापस लौटे तो उस परचून के मालिक ने बृजमोहन को लपक कर पकड़ लिया.

“सेठ जी, नमस्कार.”

“नमस्कार, तू ठीक है, तूने दुकान बंद क्यों कर रखी है. पहले तो रात के 10 बजे तक दुकान खोलता था?”

“अब क्या बताऊं सेठ जी, इन औनलाइन और सुपर स्टोर्स की वजह से धंधा चौपट हो गया. दुकान बंद कर दी है. सारा स्टौक खरीद रेट पर बेच रहा हूं. खरीद लो, आप का फायदा ही सोच रहा हूं.”

बृजमोहन ने सस्ते में दो महीने का राशन खरीद लिया.”

ममता राशन समेटने में लग गई, “किस ने कहा था, उस की दुकान खरीद लो. 2 महीने का राशन जमा हो गया है.

हम 2 जन हैं, हमारे से अधिक तो चूहे खा जाएंगे. असली मौज तो उन की लगेगी,” ममता ने तुनक कर कहा.

“हे अर्धांगिनी, आधे दाम पर सारा सामान खरीदा है, थोड़ा चूहे खा भी जाएंगे, तब भी शुद्ध लाभ ही होगा. खाने दो चूहों को, अब क्या करें, ऐसा सौदा हर रोज नहीं मिलता.”

“हम 2 जन हैं, कितना खाएंगे? चूहों की मौज रहेगी.”

ममता बृजमोहन की कंजूसी पर परेशान रहती थी, जब डौलर बच्चे भेजते हैं तब आराम से बुढ़ापे में ऐश से रहें. इसी कारण ममता टोकाटाकी करती थी, जिस से बृजमोहन परेशान हो जाता था.

सस्ता राशन खरीद कर बृजमोहन अपनी ताल खुद ठोंक रहा था. उधर ममता इस बात पर परेशान थी कि कामवाली बाई 2 दिनों से नहीं आ रही है. सारा राशन कौन संभालेगा. किसी नए नौकर को घर में कैसे घुसा ले? खैर, कामवाली बाई 2 दिन का छुट्टी बोल गई, एक हफ्ते बाद आई. एक सप्ताह तक ममता का भेजा एकदम फ्राई ही रहा.

बृजमोहन को इस का यह लाभ मिला कि ममता नई कार खरीदना भूल गई.

बच्चों से फोन पर बात कर के ममता का भेजा खुश हो गया. वे कुशलमंगल हैं. इधर अपनी कामवाली बाई का नहीं आना व भूल सी गई.

दोनों का जीवन सरलता से बीत रहा था. दिन बीतते गए लेकिन उम्र का तकाजा था जो कभी नहीं सोचा था, वह हो गया.

एक रात नींद में बृजमोहन को बेचैनी महसूस हुई और इस से पहले वे पास लेटी ममता को हाथ लगाते या फिर आवाज दे कर पुकारते, उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. थोड़ी नींद खुली, थोड़ी तड़पन हुई और फिर जीवनसाथी को छोड़ दूसरे लोक की सैर को निकल पड़े.

ममता ने यह कभी नहीं सोचा था. अभी तो वह नींद में थी. उस का जीवनसाथी अब उस का नहीं रहा, इस का इल्म उस को नहीं था. सत्तर की उम्र में रात को दोतीन बार नींद खुलती है, करवट बदल कर देखा, बृजमोहन सो रहा है, बस इतना पूछा ‘सो रहे हो?’ बिना कोई उत्तर सुने फिर आंखें बंद कर लेती, यही हर रात की कहानी है.

ममता सुबह उठी, नित्यक्रिया से निबट कर चाय बनाई और बृजमोहन को आवाज दी, “उठो.”

बृजमोहन नहीं उठा. ममता ने हाथ उस को लगाया. बृजमोहन का मुंह खुला था, कोई सांस नहीं. उस का कलेजा धक से थम गया.

“बृज, क्या हुआ, बृज?” लेकिन बृज का शरीर अकड़ गया था. बदहवास ममता घर से बाहर आई और पड़ोस का दरवाजा खटखटाया. बदहवास ममता को देख पड़ोसी माथुर घबरा गया, “क्या हुआ भाभी जी?”

“भाईसाहब, इन को देखो, मालूम नहीं क्या हुआ है, बोल ही नहीं रहे हैं.”

माथुर तुरंत ममता के संग हो लिए. बृज को देखते ही माथुर ने तुरंत अस्पताल फोन कर के एंबुलैंस को बुलाया. अस्पताल जाना मात्र औपचारिकता थी. तुरंत ईसीजी कर के आईसीयू में डाल दिया गया.

अस्पताल के वेटिंगरूम में अकेली बैठी ममता आंसुओं में डूबी सोच रही थी, ऐसा नहीं सोचा था, बृज की यह हालत होगी और मैं अकेली कुछ करने में भी असमर्थ हूं. कोई साथ नहीं है. 3 बच्चे हैं, 2 बहुएं, 1 दामाद, 6 पोते, पोतियां, दोते, दोतियां, इस दुख की घड़ी में कोई साथ नहीं है. अकेली किस को पुकारे. बच्चे बाहर विदेश में सैटल हैं. खुश थी कि बूढ़ाबूढ़ी पिछले 15 वर्षों से बिना रोकटोक के आनंद से जी रहे थे.

बृज को हार्टअटैक हुआ था और चुपचाप चल बसा. अस्पताल ने पूरा एक दिन रोक लिया और रात को उस की मृत्यु घोषित की. पड़ोसी माथुर ने अस्पताल में दो चक्कर लगा कर चायखाना ममता को दिया.

दो पड़ोसी और भी ममता से हालचाल पूछने आ गए. नहीं था तो कोई अपना. जिस आजादी को वह अपनी जीत समझती थी, वह आज पराजय थी. ममता ने बच्चों को सूचना दी. बच्चे सात समुंदर पार से सिर्फ सांत्वना ही दे सकते थे. कोई इस संकट की घड़ी में उस की मदद के लिए सात समुंदर पार से उड़ कर आ नहीं सकता था. पड़ोसी अवश्य उन के संग खड़े थे. पड़ोसियों संग रोतीबिलखती ममता घर आ गई.

ममता ने बच्चों को फोन किया. बड़े लड़के गौरव ने आने का तुरंत कार्यक्रम बनाया. किसी भी हालत में वह 2 दिनों से पहले नहीं आ सकता था.

ममता और बृजमोहन, दोनों की बहनें शहर में रहती थीं, वे ममता के पास पहुंचीं और सांत्वना दी.

रात के अंधेरे में ममता अपने बिस्तर पर लेटे रोती जा रही थी. ऐसा तो नहीं सोचा था. ऐसा समय अचानक से आ जाएगा और कोई अपना साथ नहीं होगा. बहनें भी सिर्फ दिखावे के आंसू बहा रही थीं.

ममता चिल्लाए जा रही थी, “इतना बड़ा परिवार है, बच्चे पास नहीं. भाई, बहन, कोई सगा नहीं. क्या जमाना आ गया है? मुसीबत की घड़ी में सिर्फ नाममात्र का दिखावा. हिम्मत देने वाला कोई बच्चा भी नहीं है. ऐसा तो नहीं सोचा था. आगे का जीवन कैसे कटेगा?”

रात के सन्नाटे में ममता की आवाज बहनों के कानों में पड़ रही थी, लेकिन वे मन ही मन मुसकरा रही थीं, यहां अकेले रह कर खूब मजे लिए. हम पर रोब झाड़ती थी कि बच्चे डौलर भेज रहे हैं. डौलर के साथ रहो. कितनी बार कहा था, बच्चों के साथ अमेरिका रह लो लेकिन आजाद जीवन प्यारा था. हम क्या करें? हमारा नाता तो केवल श्मशान तक है. उस के बाद इस नखरैल के साथ कौन रहेगा? बुढ़ापे में भी पूरी आजादी चाहिए. बच्चों संग नहीं रहना. हर किसी पर रोब झाड़ना है.

तीसरे दिन उस का लड़का गौरव अमेरिका से आया. उस की बहू और परिवार का अन्य सदस्य नहीं आया. सीधे एयरपोर्ट से अस्पताल. मृत देह को श्मशान ले जा कर अंतिम संस्कार किया. घर पहुंच कर ममता से कहा-

“चलो मां, मेरे साथ चलो. मैं टिकट ले कर आया हूं. तुम्हारा वीजा अभी एक महीने तक वैध है. वहां बढ़ जाएगा.”

“क्रिया यहां कर ले, फिर चलती हूं.” ममता की आंखों से गंगाजमुना बह रही थी. वह बस यही बुदबुदा रही थी, ‘ऐसा तो नहीं सोचा था. आजादी चली जाएगी. अकेली रह जाऊंगी. मालूम नहीं, अमेरिका में बच्चे कैसा व्यवहार करेंगे.’

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