Elderly loneliness : कई लोग अकसर इसी सोच में दुबले हुए जाते हैं कि बुढ़ापा आएगा तो वे भी बाकियों की तरह अकेले हो जाएंगे. जबकि इसे रचनात्मक तरीके से हैंडल किया जाए तो बुढ़ापा भी मनोरंजक बनाया जा सकता है.

50 की उम्र आतेआते हम भारतीय स्वयं को काफी अकेला महसूस करने लगते हैं. इस उम्र तक बच्चे बड़े हो जाते हैं और अपनी दुनिया में मस्त हो जाते हैं. उन की पढ़ाईलिखाई की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद जीवन में एक खालीपन सा आ जाता है, साथ ही इस उम्र तक आतेआते परिवार के लोगों से वार्तालाप भी बहुत सीमित हो जाता है. अपनी भावनाएं और तकलीफें भी अपने तक ही रखने लगते हैं, किसी को बताते नहीं हैं.

फ्लैट कल्चर में महल्लेदारी वाली बात तो होती नहीं है जहां चार बुजुर्ग किसी एक के घर के आगे चौकड़ी जमा कर दुख सुख की बातें कर लेते थे. बुजुर्ग महिलाएं भी दरवाजे पर खाट बिछा कर हाथ में बुनाई की सलाइयां चलाते हुए गपशप करती दिखती थीं. मगर संयुक्त परिवार टूटने और फ्लैट कल्चर में रहने की मजबूरी ने बुजुर्गों को घर में बंद रहने के लिए मजबूर कर दिया है. उन के दिन या तो टीवी देखते बीतते हैं या बालकनी में बैठ कर अकेले चाय सुड़कते हुए गुजर जाते हैं. अनेक बुजुर्गों का अपने घर के युवाओं के साथ तालमेल नहीं बैठता क्योंकि वे नई तकनीक लैस होते हैं और उस तकनीक से अपने दादादादी या नानानानी को अपडेट करना उन्हें अपने समय की बरबादी लगती है.

भारत में जो बुजुर्ग फोन इस्तेमाल करते हैं उन में से 71% बुजुर्गों के पास बेसिक मोबाइल फोन ही हैं. केवल 41% के पास ही स्मार्टफोन हैं. इंटरनेट या सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ 13% बुजुर्ग करते हैं. तकनीक को ले कर बुजुर्ग अकसर उलझन में रहते हैं और उन्हें गलती करने का डर भी रहता है. साइबर क्राइम का आसान शिकार बुजुर्ग ही होते हैं. अरमान के दादाजी के पास स्मार्ट फोन आया तो उन्होंने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ढेर सारे दोस्त बना लिए. सुबह से शाम तक वे अपने फोन में ही बिजी रहते थे. फिर एक दिन उन का फोन किसी ने हैक कर लिया. हैकर ने उन के नंबर से उन के रिश्तेदारों और दोस्तों को मैसेज भेजे कि 'मेरी तबियत बहुत ख़राब है, इमरजैंसी में हूं, कृपया 5000 रुपए तुरंत इसी नंबर पर भेज दो.'

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