औटिस्टिक स्पैक्ट्रम डिसऔर्डर या औटिज्म बीमारी से ग्रस्त बच्चों में समय से न बोल पाना, पढ़ना नहीं सीखना, हर समय उत्तेजित रहना या फिर बोलने के नाम पर एकआध शब्द ही बोलना जैसे लक्षण पाए जाते हैं. इस डिसऔर्डर का अभी तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है. इस डिसऔर्डर से ग्रस्त बच्चों को आमतौर पर स्पीच थैरेपी या बिहेवियर थैरेपी की ही जरूरत होती है. जरूरी नहीं है कि यह थैरेपी हर बच्चे पर फायदा करे. कुछ चिकित्सकों ने मिल कर औटिज्म से ग्रस्त बच्चों के लिए स्टैम सैल थैरेपी लेने की सलाह दी है. चिकित्सकों ने बताया कि अगर बच्चे की उम्र 10 वर्ष से कम है तो इस में औटोलोगस स्टैम सैल ट्रांसप्लांटेशन से कुछ हद तक सुधार की उम्मीद की जा सकती है. इस थैरेपी के 3 महीने बाद से ज्यादातर बच्चों ने बोलना शुरू कर दिया और चीजों के बारे में जानने व सीखने की उत्सुकता भी दिखाई.

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस डिसऔर्डर का कारण जीन में आए जैनेटिक डिफैक्ट या इम्यून सिस्टम में पैदा हुई गड़बड़ी से होता है. देखा गया है कि स्टैम सैल ट्रांसप्लांटेशन में कुछ खास कोशिकाओं का प्रत्यारोपण होता है जिस से चकित करने वाले प्रमाण सामने आते हैं. स्टैम सैल्स का प्रयोग सिर्फ लाइलाज बीमारियों में ही किया जाता है. रोगियों को ऐसे मामलों में बड़े ही सब्र की जरूरत होती है, क्योंकि यह कोई मैडिसन न हो कर जिंदा कोशिकाओं का प्रत्यारोपण है, जिसे विकसित होने में समय लगता है. इस का प्रभाव धीरेधीरे ही देखने को मिलता है.

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