पक्षियों की दुनिया निराली है. कई पक्षी ऐसे शातिर होते हैं, जो न तो अपना घोंसला बनाते हैं, न अपने बच्चे पालते हैं. उन के अंडे भी दूसरे पक्षियों द्वारा सेए जाते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार पक्षी वर्ग के 5 परिवार एनाटिडी, कुकुलिडि़, इंडिकेटोरिडि तथा प्लीसिडि के पक्षी अपने अंडे चोरीछिपे या डराधमका कर दूसरों के घोंसलों में रख देते हैं और दूसरा पक्षी अनजाने में या भयवश उन के अंडों, बच्चों की देखभाल करता है. इस प्रक्रिया को बु्रड परजीवीकरण कहते हैं. ऐसा 80 प्रजातियों के पक्षी करते हैं, जिन में 40 प्रजातियां अकेली कोयल की हैं.

कोयल न तो कभी अपना घोंसला बनाती है और न अपने बच्चे पालती है. जनवरीफरवरी से ले कर मईजून तक नर कोयल, बागों में पेड़ों पर बैठा कुहूकुहू करता गाता रहता है. यह प्रवासी पक्षी मादा को रिझाने के लिए गाता है और मादा चुपचाप श्रोता बन कर सुनती है.

जब जुलाई में मादा कोयल के अंडे देने का समय आता है तो यह अपने अंडे चुपके से कौए के घोंसले में या मैगपाई चिडि़या के घोंसले में रख आती है. अंडों का रंग एक सा होने के कारण मादा कौआ उन्हें पहचान नहीं पाती है. बच्चों का रंग भी कौए के बच्चों से मिलताजुलता होता है, इस कारण जब तक कौए व कोयल के बच्चे बोलने नहीं लगते, अपने को चालाक समझने वाला कौआ उन में भेद नहीं कर पाता.

दूसरी तरफ वैज्ञानिकों का कहना है कि कोयल लड़ाकू पक्षी है वह कौए को डराधमका कर अपनी मादा के अंडे कौए के घोंसले में रखवा देता है और बेचारा कौआ, कोयल के डर से उस के अंडे सेता है व बच्चे पालता है. मादा कोयल एक ऋतु में 16 से 26 अंडे दे सकती है.

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