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लेखिका-अमृता पांडे

तभी उस युवक ने चाय वाले से उस पहाड़ी के बारे में जानकारी मांगी, "भाई साहब, यह जो सामने बर्फ के पहाड़ दिख रहे हैं, वह कौन सी चोटी है...?" चाय वाले ने उसे बताया, "यहां से त्रिशूल, नंदा, पंचाचुली आदि चोटियां दिखाई देती हैं. बरसात के महीने में यह इतनी क्लियर नहीं दिखाई देती हैं, लेकिन जाड़ों में जब चटक धूप खिलती है तो इन के अनुपम दर्शन प्राप्त होते हैं."

बस में सवार किसी अधेड़ ने युवक से पूछा, "कहीं बाहर के लगते हो, क्या पहली बार बाहर घूमने आ रहे हो...?""जी हां, अभी कुछ महीने पहले हमारी शादी हुई है और उस बीच कोरोना बहुत अधिक फैला हुआ था, इसलिए कहीं आनाजाना नहीं हो पाया. पहाड़ों की सुंदरता के बारे में बहुत सुना था, लेकिन जाने का कभी मौका नहीं लगा तो इस बार सोचा कि पहाड़ की ओर ही निकला जाए. हम लोग कौसानी, रानीखेत घूम कर आ रहे हैं और अब 2 दिन भीमताल, नैनीताल और आसपास की जगहों में घूमने की प्लानिंग है," उस युवक ने बहुत ही सज्जनता से जवाब दिया.

तब तक बस के ड्राइवर और कंडक्टर चाय पी चुके थे और ड्राइवर अपनी सीट पर पहुंच कर हौर्न बजाने लगा. सभी लोग जल्दीजल्दी बस में चढ़े और बस फिर अपनी गति से रवाना हो गई. कुछ लोगों के हाथ में अभी भी आधे खाए हुए भुट्टे थे. कुछ मूंगफली खाखा कर बस के फर्श पर ही छिलके बिखेर रहे थे. कुछ चिप्स के खाली रैपर भी वहां पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे. सवारियों में छोटे बच्चे भी थे, जो अब ऊब चुके थे.  उन्होंने रोनाधोना भी शुरू कर दिया था और उन की मां खानेपीने की चीजें दे कर किसी तरह उन्हें बहला रही थीं. कुलमिला कर बस में एक विचित्र सा दृश्य पैदा हो रहा था. कभी लग रहा था कि सबकुछ अनियंत्रित हैं और कभी यह विचार आता कि यही तो जीवन है.

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