अपने बच्चों की प्रशंसा पर कौन खुश नहीं होता. रमा भी इस का अपवाद न थी.ं अपनी दोनों बहुओं की बातें वह बढ़चढ़ कर लोगों को बतातीं. उन की बहुएं हैं ही अच्छी. जैसी सुंदर और सलोनी वैसी ही सुशील व विनम्र भी.

एक कानवेंट स्कूल की टीचर है तो दूसरी बैंक में अफसर. रमा के लिए बच्चे ही उन की दुनिया हैं. उन्हें जितनी बार वह देखतीं मन ही मन बलैया लेतीं. दोनों लड़कों के साथसाथ दोनों बहुओं का भी वह खूब ध्यान रखतीं. वह बहुओं को इस तरह रखतीं कि बाहर से आने वाला अनजान व्यक्ति देखे तो पता न चले कि ये लड़कियां हैं या बहुएं हैं.

सभी परंपराओं और प्रथाओं से परे घर के सभी दायित्व को वह खुद ही संभालतीं. बहुओं की सुविधा और आजादी में कभी हस्तक्षेप नहीं करतीं. लड़के तो लड़के मां के प्यार और प्रोत्साहन से पराए घर से आई लड़कियों ने भी प्रगति की.

मां का स्नेह, सीख, समझदारी और विश्वास मान्या और उर्मि के आचरण में साफ झलकता. देखते ही देखते अपने छोटे से सीमित दायरे में उन्हें यश भी मिला और नाम भी. कार्यालय और महल्ले में वे दोनों ही अच्छीखासी लोकप्रिय हो गईं. जिसे देखो वही अपने घर मान्या और उर्मि का उदाहरण देता कि भाई बहुएं हों तो बस, मान्या और उर्मि जैसी.

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‘‘रमा, तू ने मान्या व उर्मि के रूप में 2 रतन पाए हैं वरना आजकल के जमाने में ऐसी लड़कियां मिलती ही कहां हैं और इसी के साथ कालोनी की महिलाओं का एकदूसरे का बहूपुराण शुरू हो जाता.

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