वह भी मां को सांत्वना देते हुए कहती, "ईजा, तू बिलकुल भी फिक्र मत कर. इस बार मेरा सिलेक्शन पक्का है. मैं ने बहुत मेहनत की है, इसलिए तेरे घर के कामकाज में भी हाथ नहीं बंटा पाती हूं."
फिर चहक कर वह बोली, "तू भाई की पढ़ाई का भी टेंशन मत करना. वह खुद ही बहुत समझदार है. इस बार उस का सिलेक्शन किसी अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में होना पक्का है." कभी बाबा कहते, "मेरी बेटी नहीं, सविता. तू तो मेरा बेटा है."
कितनी आस थी मेरे परिवार वालों को मुझ से. अगर मुझे कुछ हो गया तो वे लोग तो रोरो कर मर जाएंगे. अपने भविष्य को ले कर जो सपने सविता ने देखे थे, वे सब उस की आंखों के आगे घूमने लगे थे. उसे लग रहा था कि यह आखिरी समय की छटपटाहट है. अब जीवन में कुछ नहीं बचा है. चारों ओर कोहराम मचा था और मौत ही मौत नजर आ रही थी.
यों तो सविता काफी हिम्मती थी, लेकिन ऐसे समय में तो बड़े से बड़ा हिम्मत वाला भी घबरा ही जाता है. उसे याद आया कि उस की बूआ बारबार ग्रेजुएशन के बाद उस की शादी कर देने की बात करती. परंतु बाबा कहते, "दीदी, इतनी जल्दी क्या है, अपनी सविता खूब पढ़ेगी. अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. फिर लड़के ही लड़के मिल जाएंगे."
उस की मां भी यही कहती, "कमी तो लड़कियों की है आज के समय में, क्योंकि हम उन्हें पैदा होने से ही पहले मार जो देते हैं. लड़कों की कमी कहां है..?" "दीदी, आप ही सविता के लिए अच्छा सा लड़का ढूंढ़ोगी. देख लेना."