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लेखिका-अमृता पांडे

एक भद्र पुरुष भी इसी बस में सवार थे. उन्हें लछम सिंह का एक महिला से इस तरह बात करना अच्छा नहीं लगा. वे टोकते हुए बोले, "अरे भाई साहब, कितना धुआं कर रखा है. सिगरेट का धुआं आप के फेफड़ों को जला कर रख देगा. साथ ही, दूसरे लोगों पर भी इस का गलत असर पड़ता है. सार्वजनिक जगह पर धूम्रपान करना यों भी अब गैरकानूनी है, क्या आप को पता है?"

तभी एकदो लोग कंडक्टर से शिकायत करने लगे कि वह बस में बीड़ी पीने की इजाजत किसी को भी ना दे. कंडक्टर उन की बात सुनता और एक बार जोर से बीड़ी पीने से लोगों को मना कर देता और फिर किसी नई सवारी को बस में चढ़ाता और टिकट काटने के काम में व्यस्त हो जाता.

मगर बीड़ीसिगरेट पीने वाले अपनी आदत से बाज कहां आते हैं...?  ऐसे किस्से पर्वतीय क्षेत्रों में यात्रा के दौरान सरकारी बसों में अकसर सुनने को मिलते हैं. कभीकभी तो बहुत कोफ्त पैदा कर देते हैं और कभीकभी आपसी झड़प मनोरंजन भी कराती है.

सविता और उस के साथ के कुछ छात्र पुस्तकों और मोबाइल में कल होने वाली परीक्षा से संबंधित विषयों के अध्ययन में मशगूल लगते थे.

इसी बस में कंडक्टर के पीछे वाली सीट में एक प्रेमी जोड़ा भी सवार था. छरहरी व दुबलीपतली लड़की ने जींसटौप पहना था. माथे पर छोटी सी बिंदी थी, हाथों में आर्टिफिशल कंगन, जिसे देख कर शायद लोग उन के विवाहित होने या न होने का अनुमान लगा रहे थे, परंतु अंदाजा लगाना मुश्किल था, क्योंकि आजकल की कामकाजी लड़कियां शादी के बाद भी ज्यादा श्रंगार नहीं करतीं, जबकि पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में विवाहित स्त्रियां आज भी गले में सोने और काले मोतियों से बना हुआ बड़ा सा मंगलसूत्र पहनती हैं, पूरी मांग भरती हैं और माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाना भी संस्कृति का हिस्सा माना जाता है.

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