उधर नेहा को लग रहा था कि भैयादूज और रक्षा बंधन के त्योहार कुछ फीके चल रहे हैं. उसे इस बात से कोई लेनादेना नहीं था कि कर्ज के कारण उस के भाई नीरज का हाथ तंग है. जब इस बार नीरज ने नेहा को रक्षाबंधन पर ₹2100 शगुन में दिए तो इतने कम पैसे देख कर वह बिफर पड़ी, “नीरज, तुझे शर्म नहीं आती, इकलौती बहन की रक्षाबंधन पर इस तरह बेइज्जती करने में. जितने का तुम ने शगुन दिया है. इस से ज्यादा का तो मैं अपनी कार में पैट्रोल डलवा कर आई हूं. इतनी संपत्ति का मालिक बन बैठा है और बहन को शगुन के नाम पर भीख सी पकड़ा देता है. यह मत भूल इस जायदाद में मेरा भी आधा हिस्सा है.”
नेहा के मम्मीपापा ने अपनी लाड़ली बिटिया को खूब समझाया. शगुन भी तुरतफुरत में ₹11,000 कर दिया. लेकिन नेहा का दिमाग शांत ही नहीं हो रहा था. उस को लगता था कि नीरज ने जानबूझ कर उस का अपमान किया है और नेहा को अपमान कहां बरदाश्त? नेहा कानून की जानकार तो थी ही. वह अपने भाई नीरज को अच्छा सबक सिखाना चाहती थी. उस ने संपत्ति में हिंदू बेटी के अधिकार की कानूनी काररवाई शुरू कर दी. इस की भनक उस ने अपने ससुराल वालों को भी न लगने दी.
नेहा के पापा को जैसे ही नेहा की ओर से संपत्ति के बंटवारे का नोटिस मिला, उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन की जबान तालू से लग गई. उन को नेहा से यह उम्मीद तो कतई नहीं थी कि वह उन के जिंदा रहते, उन की जायदाद में आधा मालिकाना हक का दावा ठोकेगी. जब नेहा को किसी प्रकार बात करने के लिए राजी किया गया तो वह बोली, “पापा, मैं संपत्ति में अपना अधिकार ही तो मांग रही हूं. भारत का संविधान और कानून हिंदू बेटी को प्रौपर्टी में बराबर का हक प्रदान करता है. मैं वही तो मांग रही हूं.”
“लेकिन नेहा, यह तो सोचो कि हम ने तुम्हारी शादी में तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए इतना खर्च कर दिया कि अभी भी हम कर्ज तले डूबे हैं.”
“तो क्या पापा, आप मुझे पालने और मेरी पढ़ाई पर होने वाले खर्च का भी एहसान दिखाओगे. यह तो हर मांबाप का कर्तव्य होता है कि वह अपनी संतान को पढ़ाए और अच्छे घर में उस की शादी करे. इस में कौन सी एहसान की बात है?”
“लेकिन नेहा, यह तो सोच कि आधी प्रौपर्टी तुम्हें मिलने के बाद तुम्हारे भाई नीरज के पास बचेगा ही क्या? यह तो सोच वह तेरा भाई है और हर समय तेरी मदद के लिए खड़ा रहता है.”
“मदद… पापा, तुम इसे मदद कहते हो. भूल गए आप कि उस ने रक्षाबंधन पर मुझे शगुन में क्या दिया था. क्या मेरी औकात अब ₹2100 की रह गई है? मैं पहले ही बता चुकी हूं कि इस से ज्यादा का तो मैं अपनी कार में तेल डलवा लेती हूं, मिठाई के डब्बे का खर्च अलग. और अगर नीरज रिश्ते नहीं निभा सकता तो न निभाए, मुझे कौन सी रिश्ते निभाने और बेइज्जती करवाने की पड़ी है. अगर वह अपनी बहन का सम्मान नहीं कर सकता तो भुगते. आप क्यों परेशान होते हैं, आप के लिए तो ऐसा ही नीरज और ऐसी ही मैं. वैसे भी आप के पैर अब कब्र में लटक रहे हैं, मेरा हिस्सा मुझे दे कर चिंतामुक्त हो जाइए.”
नेहा का अंतिम वाक्य सतीश राय को कांटे की तरह चुभा. कोई भी संतान अपने बाप को इतनी कड़वी बात कैसे कह सकती है? नेहा से आगे बात करना अपनेआप को और जलील करवाना ही था. उन्होंने फोन काट दिया. उम्र का तकाजा कह रहा था कि कोई ठोस निर्णय करना ही पड़ेगा. वकील कानून की भाषा में होशियार हो सकता है, अनुभव में नहीं. अदालत जब अपना निर्णय नेहा के पक्ष में सुना रही थी तभी सतीश राय ने अदालत से निवेदन किया, “जज साहब, कानून के अनुसार नेहा को मेरी प्रौपर्टी का आधा हिस्सा मिल गया है. मेरा अदालत से निवेदन है कि मेरी और मेरी पत्नी के बुढ़ापे को देखते हुए साल में 6 महीने मेरी बेटी नेहा हमारी देखभाल करे. यह संतान का अपने बुजुर्ग मातापिता के प्रति कर्तव्य है. इसलिए मैं ने अपने पास कुछ नहीं रखा है.”
जज साहब ने कहा, “अदालत यह फैसला लेती है कि बुजुर्ग मातापिता की सेवा करने का अधिकार जितना बेटे का है उतना ही बेटी का भी. नेहा को आधी प्रौपर्टी मिल चुकी है तो आज से ठीक 6 महीने बाद नेहा 6 महीने तक अपने बुजुर्ग मातापिता की सेवा करेगी और इस में किसी प्रकार की कोई कोताही न बरती जाए.” नेहा ने कभी अपने सासससुर की सेवा तो की नहीं थी, मांबाप की सेवा करना तो उस की कल्पना में भी नहीं था. वह तो बस अपने पापा की आधी प्रौपर्टी की मालकिन बन अपना रुतबा बढ़ाना चाहती थी.
नदी के उफनते पानी को देख कर जितना डर लगता है उतना नदी में कूदने से नहीं. नेहा को हरदम यही डर सताने लगा कि घर में पहले से ही 2 बुजुर्ग हैं जिन की देखभाल ठीक से नहीं हो पाती, 2 और बुजुर्गों के आने से घर का क्या हाल होगा. किसी बुजुर्ग की सेवा करना किसी बच्चे को पालने से कम नहीं होता. उन को समय पर दवाई देना, उन के लिए नाश्तापानी तैयार करना, बीमार होने पर उन को टायलेट तक ले जाना, उन को नहलाना, कपड़े बदलना वगैरा. 4 बुजुर्गों की सेवा की बात सोच कर ही नेहा सिहर उठती. मानसिक तनाव सिरदर्द और बेचैनी पैदा करता. छोटीछोटी बातों को ले कर वह हर किसी से झगड़ने लगती. अपने पति नकुल से तो उस की खटपट इतनी बढ़ गई कि वह अलग कमरे में जा कर सोने लगी. नकुल उस को जितना समझाता, वह उतनी ही चिड़चिड़ी, परेशान और उग्र हो उठती.