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उस शिकार की कोई कीमत नहीं, जो आसानी से पकड़ में आ जाए. ऐसे शिकार को पकड़ कर तो शिकारी भी खुद को लज्जित महसूस करता है. गुलदारनी जब तक शिकार का जबरदस्त पीछा कर के उस के गले को अपने जबड़ों में न दबोच ले, उसे शिकार करने में मजा नहीं आता. इस के बाद जब वह उस शिकार की गरदन को अपने पैने दांतों से भींच कर और खींच कर पेड़ पर ले जाती है तो गर्व से उस का सीना कई गुना चौड़ा हो जाता है. यह शान होती है बेखौफ गुलदारनी की.

नेहा का एलएलबी करने का यही उद्देश्य था कि वह बेखौफ हो कर जिए. वह वकालत के माध्यम से अपने विरोधियों को कटघरे में खड़ा कर सके. वह चाहती तो ज्यादातर लड़कियों की तरह बीटीसी या बीएड का प्रोफैशनल कोर्स कर के किसी स्कूल में मास्टरनी बन सकती थी लेकिन उस की फितरत में यह नहीं था. उस के अंदर तो चालाकी कूटकूट कर भरी हुई थी. आसान जिंदगी जीना उस की फितरत में नहीं था. ऐसा लगता था जैसे चालाकी के बिना नेहा जिंदा ही नहीं रह सकती. जो काम वह बिना चालाकी के कर सकती थी, उस में भी वह चालाकी दिखाने से बाज नहीं आती थी.
कालेज लाइफ से नेहा ऐसी ही थी. जराजरा सी बात पर वह अपने विरोधियों की शिकायत ले कर प्रिंसिपल औफिस पहुंच जाया करती थी. घर में वह अपने छोटे भाई नीरज की एक न चलने देती थी. मम्मीपापा को तो जैसे उस ने अपनी मुट्ठी में कैद कर रखा था. अपनी जिद से वह घर में अपनी सारी मांगें मनवा लेती थी.

जब नेहा शादी के लायक सयानी हुई तो उस के लिए योग्य लड़का तलाश किया जाने लगा. इस में भी उस की पूरी दखल रही. उस ने नामी वकील के नामी वकील लड़के को पसंद किया. जब दहेज की बात आई तो लड़के वालों ने बस इतना कहा, “हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए, बस बारातियों की दावत अच्छे से कर देना.”

यह सुन कर नेहा ने अपने पापा से बिफरते हुए कहा, “पापा, मुझे लगता है कि मेरे ससुराल वाले बेवकूफ हैं. बिना दहेज के क्या मैं खाली हाथ ससुराल जाऊंगी?”

“नेहा, तुम्हें कौन खाली हाथ ससुराल भेज रहा है? कुदरत का दिया हमारे पास सबकुछ है. हम अपनी बेटी को वह सबकुछ देंगे जो एक बेटी को शादी के समय दिया जाता है,” पापा ने कहा.

“और हां पापा, गाड़ी मुझे कम से कम ₹20 लाख वाली चाहिए. आखिर आप की वकील बेटी की भी तो कोई शान है. वह शान किसी भी सूरत में कम नहीं होनी चाहिए.”

“बिलकुल नेहा बेटा, कार के शोरूम में तुम मेरे साथ चलना, जिस गाड़ी पर तुम हाथ रख दोगी, वह गाड़ी तुम्हारी. आखिर हमारी एक ही तो बेटी है जिसे हम ने इतने नाजों से पाला है. अगर हम उस की ख्वाहिशें अब पूरी नहीं करेंगे तो कब करेंगे?”

“ओह, माई गुड डैड,” यह कहते हुए नेहा ने प्यार से अपनी बांहें अपने पापा के गले में डाल दीं.

नेहा के पापा सतीश राय ने नेहा की शादी में अपने वजूद से ज्यादा खर्च कर डाला. नेहा की मम्मी कहती रही, “नेहा के पापा, शादी में इतना अनापशनाप खर्च मत करो. बुढ़ापे का शरीर है कर्ज कहां से चुकाओगे?”
लेकिन सतीश राय तो ऐसे लगते थे जैसे अपनी लाड़ली बिटिया की सारी ख्वाहिशें इसी अवसर पर पूरी कर डालना चाहते हों. शादी का ₹30 लाख का बजट ₹40 लाख के पार पहुंच गया. नेहा की ख्वाहिशें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही थी.

आखिरकार नेहा की शादी का काम पूरा हुआ. वह खूब सारे दहेज और चमचमाती गाड़ी में बैठ कर शान से अपनी ससुराल पहुंच गई. नेहा के पापा सतीश राय और भाई नीरज ने राहत की सांस ली. इस शादी के बाद वे ₹12 लाख के कर्ज के तले दब चुके थे. उनकी शहर में अच्छी प्रतिष्ठा के कारण इतना कर्ज मिल भी गया था. लेकिन कर्ज तो कर्ज होता है और उसे एक दिन चुकाना ही पड़ता है. कर्ज देने वाला जब मांगने पर उतारु होता है तो फिर वह किसी बात की लिहाज नहीं करता. सरेआम पगड़ी उछालता है.

सतीश और नीरज को लगता था कि वे 2-3 साल में व्यापार में अतिरिक्त प्रयास कर के सारा कर्ज चुका देंगे, लेकिन कर्ज ऐसी चीज होता है जो उतरने का नाम ही नहीं लेता।. उधर नेहा ससुराल में ठाठ के साथ रह रही थी. उस के पति नकुल और ससुर की तो अच्छी आमदनी थी ही, नेहा के ससुर ने उस का केबिन भी अपने पास ही खुलवा लिया था. नेहा के पास अपने पति और ससुर की बदौलत अच्छे केस आने लगे थे.  नेहा की एक ननद थी विभा, वह भी शादी के लायक हो गई थी. उस के लिए भी लड़का तलाश किया जा रहा था. लड़का मिलते ही शादी तय हो गई. विभा सुसंस्कारित लड़की थी. महत्त्वाकांक्षा उस के आसपास भी नहीं फटकती थी. नकुल अपनी बहन विभा की शादी भी ऐसे ही ठाठबाट से करना चाहता था जैसे उस की खुद की शादी हुई थी.

विभा की ससुराल वालों की भी कोई डिमांड नहीं थी. विभा नेहा के बिलकुल उलट थी, उस ने अपने भाई और पिता पर किसी भी चीज के लिए कोई दबाव नहीं बनाया. विभा जानती थी कि मांबाप अपनी बेटी की शादी में अपनी हैसियत से ज्यादा ही खर्च करते हैं. लेकिन उसे क्या पता था कि उस की भाभी नेहा उस की शादी में होने वाले हर खर्च में अड़ंगा डाल रही थी. नेहा को विभा की शादी में खर्च हो रहा एकएक पैसा खटक रहा था. उस का बस चलता तो वह विभा की शादी में एक भी पैसा खर्च न होने देती. जितना बजट था उस से कम में ही विभा की शादी हो गई. इस के लिए सब नेहा की तारीफ कर रहे थे लेकिन विभा अपनी भाभी नेहा की चालाकी ताड़ गई थी. नेहा ने आवश्यक चीजों पर भी खर्च नहीं होने दिया था. इस का परिणाम यह हुआ कि विभा को ससुराल में पहुंचते ही महिलाओं के कितने ही उलाहनें सुनने को मिले. विभा चुपचाप सब झेल गई. वह जानती थी कि यह सब उस की भाभी नेहा के लालच के कारण हुआ.

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