Top 10 family story In Hindi: हर किसी की जिंदगी को बेहतर बनाने में उसके परिवार का अहम योगदान होता है. हालांकि कई परिवार ऐसे भी होते हैं, जहां लड़के- लड़कियों के साथ कई तरह के भेदभाव किए जाते हैं. आज इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं सरिता की 10 Best Family Story in Hindi 2024. इन कहानियों में परिवार, समाज और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और रिश्तों को लेकर एक नया नजरिया और सीख भी देगी.

1. असली चेहरा: क्यों अवंतिका अपने पति की बुराई करती थी?

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नई कालोनी में आए मुझे काफी दिन हो गए थे. किंतु समयाभाव के कारण किसी से मिलनाजुलना नहीं हो पाता था. इसी वजह से किसी से मेरी कोई खास जानपहचान नहीं हो पाई थी. स्कूल में टीचर होने के कारण मुझे घर से सुबह 8 बजे निकलना पड़ता और 3 बजे वापस आने के बाद घर के काम निबटातेनिबटाते शाम हो जाती थी. किसी से मिलनेजुलने की सोचने तक की फुरसत नहीं मिल पाती थी. मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही अवंतिका का घर था. उस की बेटी योगिता मेरे ही स्कूल में और मेरी ही कक्षा की विद्यार्थी थी. वह योगिता को छोड़ने बसस्टौप पर आती थी. उस से मेरी बातचीत होने लगी. फिर धीरेधीरे हम दोनों के बीच एक अच्छा रिश्ता कायम हो गया. फिर शाम को अवंतिका मेरे घर भी आने लगी. देर तक इधरउधर की बातें करती रहती.

अवंतिका से मिल कर मुझे अच्छा लगता था. उस की बातचीत का ढंग बहुत प्रभावशाली था. उस के पहनावे और साजशृंगार से उस के काफी संपन्न होने का भी एहसास होता था. मैं खुश थी कि एक नई जगह अवंतिका के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है. योगिता वैसे तो पढ़ाई में ठीक थी पर अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी. जब पहले दिन मैं ने उसे डांटते हुए होमवर्क न करने का कारण पूछा, तो उस ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘पापा ने मम्मा को डांटा था, इसलिए मम्मा रो रही थीं और मेरा होमवर्क नहीं करा पाईं.’’ योगिता आगे भी अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी और पूछने पर कारण हमेशा मम्मापापा का झगड़ा ही बताती थी.

2. अग्निपरीक्षा: श्रेष्ठा की जिंदगी में क्या तूफान आया?

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जीवन प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत, मनोरम पहाड़ी रास्ता नहीं है क्या, जहां मानव सुख से अपनों के साथ प्रकृति के दिए उपहारों का आनंद उठाते हुए आगे बढ़ता रहता है.

फिर अचानक किसी घुमावदार मोड़ पर अतीत को जाती कोई संकरी पगडंडी उस की खुशियों को हरने के लिए प्रकट हो जाती है. चिंतित कर, दुविधा में डाल उस की हृदय गति बढ़ाती. उसे बीते हुए कुछ कड़वे अनुभवों को याद करने के लिए मजबूर करती.

श्रेष्ठा भी आज अचानक ऐसी ही एक पगडंडी पर आ खड़ी हुई थी, जहां कोई जबरदस्ती उसे बीते लमहों के अंधेरे में खींचने का प्रयास कर रहा था. जानबूझ कर उस के वर्तमान को उजाड़ने के उद्देश्य से.

श्रेष्ठा एक खूबसूरत नवविवाहिता, जिस ने संयम से विवाह के समय अपने अतीत के दुखदायी पन्ने स्वयं अपने हाथों से जला दिए थे. 6 माह पहले दोनों परिणय सूत्र में बंधे थे और पूरी निष्ठा से एकदूसरे को समझते हुए, एकदूसरे को सम्मान देते हुए गृहस्थी की गाड़ी उस खूबसूरत पहाड़ी रास्ते पर दौड़ा रहे थे. श्रेष्ठा पूरी ईमानदारी से अपने अतीत से बाहर निकल संयम व उस के मातापिता को अपनाने लगी थी.

जीवन की राह सुखद थी, जिस पर वे दोनों हंसतेमुसकराते आगे बढ़ रहे थे कि अचानक रविवार की एक शाम आदेश को अपनी ससुराल आया देख उस के हृदय को संदेह के बिच्छु डसने लगे.

श्रेष्ठा के बचपन के मित्र के रूप में अपना परिचय देने के कारण आदेश को घर में प्रवेश व सम्मान तुरंत ही मिल गया, सासससुर ने उसे बड़े ही आदर से बैठक में बैठाया व श्रेष्ठा को चायनाश्ता लाने को कहा.

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3.  शक की निगाह : नीरा स्टूडैंट्स के आने से परेशान क्यों थी

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शाम को औफिस से घर आया तो पत्नी का उतरा हुआ चेहरा देख कर कुछ न कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हो गया. बिना कुछ पूछे मैं हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम में चला गया. वापस आया तो नीरा चाय ले कर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी. चाय के कप के साथ ही मैं ने अपनी प्रश्नवाचक निगाह उस के चेहरे पर टिका दी. प्रश्न स्पष्ट था, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘सामने वाले फ्लैट को रामवीर सहायजी ने स्टूडैंट्स को किराए पर दे दिया है,’’ नीरा के स्वर में झल्लाहट और रोष दोनों ही टपक रहे थे. ‘‘यह तो बहुत ही अच्छा हुआ. इतने महीने से फ्लैट खाली पड़ा हुआ था, अब चहलपहल रहेगी. वैसे भी जहां स्टूडैंट्स रहते हैं वहां चौबीसों घंटे रौनक रहती है. न कभी रात होती है न कभी दिन. एक सोता है तो दूसरा जागता है. पर तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो?’’ मैं ने पूछा तो नीरा बिफर पड़ी, ‘‘तुम आदमियों का दिमाग तो जैसे घुटने में रहता है. आजकल के लड़के पढ़ाई के नाम पर घरों से दूर रह कर क्याक्या गुल खिलाते रहते हैं, क्या कभी सुना नहीं? मांबाप सोचते हैं उन का बेटा दिनरात एक कर के पढ़ाई में लगा होगा जबकि लड़के उन के पैसों पर गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं.’’

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4. दिस इज़ टू मच : हंसते- खेलते घर को किसकी नजर लग गई थी

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 ‘दिस इज़ टू मच’ यह शब्द शूल की तरह मेरे हृदय को भेद रहे हैं. मानो मेरे कानों में कोई पिघला शीशा उड़ेल रहा हो. मेरा घर भी अखबारों की सुर्खियां बनेगा यह तो मैंने स्वप्न में भी ना सोचा था. हमारे हंसते खेलते घर को न जाने किसकी बुरी नजर लग गई. हम चार जनों का छोटा सा खुशहाल परिवार – बेटा बी0टेक0 थर्ड ईयर का छात्र और बेटी बी0टेक0 फर्स्ट ईयर की.

कोरोन संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए जब सभी कॉलेजों और स्कूलों से विद्यार्थियों को घर वापस भेजा जाने लगा और मेरा भी विद्यालय बंद हो गया तो मैं प्रसन्न हो गई कि बरसों बाद अपने बच्चों के साथ मुझे समय बिताने का मौका मिलेगा.

कानपुर आईआईटी में पढ़ने वाला मेरा बेटा और बीबीडी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली मेरी बेटी जब घर आए तो मेरा घर गुलज़ार होगया. नरेंद्र अपनी पुलिस की ड्यूटी निभाने में व्यस्त रहते थे और मैं क्वेश्चन पेपर बनाने, वर्कशीट बनाने और लिखने पढ़ने में. बस यही व्यस्त दिनचर्या रह गई थी हमारी.

जब बच्चे घर आए तो उनसे बातें करते, मिलजुल कर घर के काम करते, और साथ बैठकर टीवी देखते तथा मज़े करते दिन कैसे बीत जाता पता ही नहीं चलता.

पर मेरी यह खुशी ज्यादा दिन नटिक पाई. सौरभ और सुरभि ने कुछ दिनों तो मेरे साथ खुशी-खुशी समय बिताया, फिर बोर होने लगे, बातों का खज़ाना खाली हो गया और घर का काम बोझ लगने लगा, उमंग और उल्लास का स्रोत सूखने लगा. दोनों अपने-अपने कमरों में अपने-अपने मोबाइल और लैपटॉप के साथ अपनी ही दुनिया में मगन रहते.

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5. सोच : सलोनी को अपनी जेठानी गंवार क्यों लगती थी

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‘‘तो कितने दिनों के लिए जा रही हो?’’ प्लेट से एक और समोसा उठाते हुए दीपाली ने पूछा.

‘‘यही कोई 8-10 दिनों के लिए,’’ सलोनी ने उकताए से स्वर में कहा.

औफिस के टी ब्रेक के दौरान दोनों सहेलियां कैंटीन में बैठी बतिया रही थीं.

सलोनी की कुछ महीने पहले ही दीपेन से नईनई शादी हुई थी. दोनों साथ काम करते थे. कब प्यार हुआ पता नहीं चला और फिर चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर अब दोनों शादी कर के एक ही औफिस में काम कर रहे थे, बस डिपार्टमैंट अलग था. सारा दिन एक ही जगह काम करने के बावजूद उन्हें एकदूसरे से मिलनेजुलने की फुरसत नहीं होती थी. आईटी क्षेत्र की नौकरी ही कुछ ऐसी होती है.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि तुम रह कैसे लेती हो उस जगह? तुम ने बताया था कि किसी देहात में है तुम्हारी ससुराल,’’ दीपाली आज पूरे मूड में थी सलोनी को चिढ़ाने के. वह जानती थी ससुराल के नाम से कैसे चिढ़ जाती है सलोनी.

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6. चिराग : रिश्तों की अजीब कशमकश

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कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

मैं सब से गले मिली. ट्रेन चलने में अब कुछ मिनट ही शेष रह गए थे. पिताजी ने कहा, ‘‘बेटी, चढ़ जाओ डब्बे में. पहुंचते ही फोन करना.’’ पता नहीं क्यों मेरा मन टूटने सा लगा. डब्बे के दरवाजे पर जातेजाते कदम वापस मुड़ गए. मैं मां और पिताजी से चिपट गई. गाड़ी चल दी. सब लोग हाथ हिला रहे थे. मेरी आंखें तो बस मां और पिताजी पर ही केंद्रित थीं. कुछ देर में सब ओझल हो गए. डब्बे के शौचालय में जा कर मैं ने मुंह धोया. रोने से आंखें लाल हो गई थीं. वापस आ कर अपनी सीट पर बैठ गई. मेरे सामने 3 यात्री बैठे थे, पतिपत्नी और उन का 10-11 वर्षीय बेटा. लड़का और उस के पिता खिड़की वाली सीटों पर विराजमान थे. हम दोनों महिलाएं आमनेसामने थीं, अपनीअपनी दुनिया में खोई हुईं.

7. सबक : सुधीर के नए संबंधों के बारे में जान कर क्या थी अनु की कशमकश

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रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

8. रिश्तों का कटु सत्य : अपने जब छलकपट से दुख देते हैं तो क्या होता है

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उस दिन दोनों ने अपनेअपने काम से छुट्टी ली थी. कई दिनों से दोनों ने एक फैसला लिया था कि वे अपने पुश्तैनी मकान में रहेंगे, क्योंकि आंटी का रिटायरमैंट करीब था और अंकल भी अपनी सेहत के चलते कचहरी के अपने काम को ज्यादा नहीं ले रहे थे. शुगर होने के चलते थक जाते थे. अंकल और आंटी को हालांकि आंटी के अनुज के बच्चों का पूरा प्यार और अपनत्व मिल जाता था, लेकिन वास्तविकता में दोनों ही एकदूसरे का सच्चा सहारा थे.

पारिवारिक मूल्यों को बखूबी समझने वाले अंकल ने अब तक जो कमाया, सारा का सारा अपनी मां और अपने भाईभतीजों को ही दिया था. आंटी की एक निजी विद्यालय में नौकरी थी, उसी से उन का घरखर्च चल रहा था. इसी सब के चलते दोनों ने किराए के मकान को छोड़ कर अपने पुश्तैनी मकान के फर्स्टफ्लोर के अपने कमरे में जा कर रहने का फैसला लिया था.

लगभग 30 वर्षों पहले दोनों किराए के मकान में आ गए थे. आंटी जब से ससुराल में ब्याह कर आई थीं, वहां उन्होंने कलहक्लेश, झगड़े जैसा माहौल ही देखा था. घर के किसी भी सदस्य का व्यवहार अच्छा नहीं था. ताने, उलाहने, मारपीट, भद्दी भाषा और चरित्रहीनता जैसे उन के आचरण से तंग आ कर ही अंकल और आंटी ने एक दिन अपना जरूरी सामान बांधा और एक रिकशा में सवार हो कर घर से निकल पड़े.

मानसिक अशांति से थोड़ी राहत तो पाई, लेकिन बहुत सी कठिनाइयों से उन्हें दोचार होना पड़ा, क्योंकि उन के पास पलंगबरतन कुछ भी नहीं था. हर चीज पर घरवालों ने अधिकार जमा रखा था. वह घर नहीं, मुसीबतों का एक अड्डा नजर आता था. पानी की एक बूंद को तरसते थे.

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9. अनाम रिश्ता : नेहा और अनिरुद्ध के रिश्ते का क्या था हाल

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आज मेरे लिए बहुत ही खुशी का दिन है क्योंकि विश्वविद्यालय ने 15 वर्षों तक निस्वार्थ और लगनपूर्वक की गई मेरी सेवा के परिणामस्वरूप मुझे कालेज का प्रिंसिपल बनाने का निर्णय लिया था. आज शाम को ही पदग्रहण समारोह होने वाला है. परंतु न जाने क्यों रहरह कर मेरा मन बहुत ही उद्विग्न हो रहा है.

‘अभी तो सिर्फ 9 बजे हैं और ड्राइवर 2 बजे तक आएगा. तब तक मैं क्या करूं…’ मैं मन ही मन बुदबुदाई और रसोई की ओर चल दी. सोचा कौफी पी लूं, क्या पता तब मन को कुछ राहत मिले.

कौफी का मग हाथ में ले कर जैसे ही मैं सोफे पर बैठी, हमेशा की तरह मुझे कुछ पढ़ने की तलब हुई. मेज पर कई पत्रिकाएं रखी हुई थीं. लेकिन मेरा मन तो आज कुछ और ही पढ़ना चाह रहा था. मैं ने यंत्रवत उठ कर अपनी किताबों की अलमारी खोली और वह किताब निकाली जिसे मैं अनगिनत बार पढ़ चुकी हूं. जब भी मैं इस किताब को हाथ में लेती हूं, एक अलग ही एहसास होता है मुझे, मन को अपार सुख व शांति मिलती है.

‘आप मेरी जिंदगी में गुजरे हुए वक्त की तरह हैं सर, जो कभी लौट कर नहीं आ सकता. लेकिन मेरी हर सांस के साथ आप का एहसास डूबताउतरता रहता है,’ अनायास ही मेरे मुंह से अल्फाज निकल पड़े और मैं डूबने लगी 30 वर्ष पीछे अतीत की गहराइयों में जब मैं परिस्थितियों की मारी एक मजबूर लड़की थी, जो अपने साए तक से डरती थी कि कहीं मेरा यह साया किसी को बरबाद न कर दे.

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10. सुधरा संबंध: निलेश और उस की पत्नी क्यों अलग हो गए?

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शादी की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर हम दोनों पतिपत्नी साथ बैठे चाय की चुसकियां ले रहे थे. संसार की दृष्टि में हम आदर्श युगल थे. प्रेम भी बहुत है अब हम दोनों में. लेकिन कुछ समय पहले या कहिए कुछ साल पहले ऐसा नहीं था. उस समय तो ऐसा प्रतीत होता था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है.

मुकदमा 2 साल तक चला था तब. आखिर पतिपत्नी के तलाक का मुकदमा था. तलाक के केस की वजह बहुत ही मामूली बातें थीं. इन मामूली सी बातों को बढ़ाचढ़ा कर बड़ी घटना में ननद ने बदल दिया. निलेश ने आव देखा न ताव जड़ दिए 2 थप्पड़ मेरे गाल पर. मुझ से यह अपमान नहीं सहा गया. यह मेरे आत्मसम्मान के खिलाफ था. वैसे भी शादी के बाद से ही हमारा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही था. उस घर की मैं सिर्फ जरूरत थी, सास को मेरे आने से अपनी सत्ता हिलती लगी थी, इसलिए रोज एक नया बखेड़ा. निलेश को मुझ से ज्यादा अपने परिवार पर विश्वास था और उन का परिवार उन की मां तथा एक बहन थीं. मौका मिलते ही मैं अपने बेटे को ले कर अपने घर चली गई. मुझे इस तरह आया देख कर मातापिता सकते में आ गए. बहुत समझाने की कोशिश की मुझे पर मैं ने तो अलग होने का मन बना लिया था. अत: मेरी जिद के आगे घुटने टेक दिए.

दोनों ओर से अदालत में केस दर्ज कर दिए गए. चाहते तो मामले को रफादफा भी किया जा सकता था, पर निलेश ने इसे अपनी तौहीन समझा. रिश्तेदारों ने मामले को और पेचीदा बना दिया. न सिर्फ पेचीदा, बल्कि संगीन भी. सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा. यह भी कहा कि ऐसी औरत न वफादार होती है न पतिव्रता. इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है.

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