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कहां खो गए जनाब? नाश्ता हाजिर है,’  उर्मि चहकी. उस की चहक से तंद्रा टूटी तो पलकों की यवनिका धीरे से ऊपर उठ गई. सामने उर्मि खड़ी थी. खिलखिलाने से मुंह की फांक खुली तो भीतर करीने से दुबके मुक्ता दाने चिलक उठे. मुक्ता दानों के संग कदमताल मिलाती हिरणी सी आंखें भी भरतनाट्यम कर रही थीं.

उन्होनें गहरी नजरों से पत्नी को निहारा. निहार में घोर आश्चर्य घुला था. सांचे में ढला गोरा बदन और खिलाखिला चेहरा. देर तक टिकी रहीं नजरें चेहरे पर. फिर मांग और बिंदी को छू कर अधरों से टपकती गले के नीचे की उपत्यका पर ठहर गईं. पीयूषजी पत्नी की रूपराशि देख कर चमत्कृत थे. उर्मि ही है या कोई मायावी यक्षिणी…

‘ऐसे क्या देख रहे हैं, जैसे पहले कभी देखा नहीं,’  उर्मि खिलखिलाई तो जैसे नूपुर की नन्ही घंटियां बज उठी हों. घंटियों की आवाज पीयूषजी के दिल में झंकार भर गई.

सचमुच यार, यह रूप, यह हंसी. पहली बार ही देख रहा हूं. कहां छिपाया हुआ था इस खजाने को,’  पीयूषजी की आवाज खुशी से थरथरा रही थी. रोज ही तो देखते हैं पत्नी को, आज उस का सौंदर्य इतना नया, इतना जादुई क्यों लग रहा है.

उर्मि अवाक थी. यह कैसा परिवर्तन आया जनाब में. सुखद और रोमांचक. सबकुछ सामने ही था, पर आप को दिखाई न दे तो मैं क्या करती?  शोख हंसी में लिपटे लफ्ज. दिखाई देता तो कैसे, जब से मोबाइल लिया है, आंखें ही नहीं बल्कि पूरी बौडी लैंग्वेज में रोबोट की तासीर घुल गई. आप के भीतर से आप के खुद को बेदखल कर के एक रोबोट आ बैठा और आप को पता भी नहीं. भाव और स्पंदनहीन रोबोट.

पीयूषजी एक पल के लिए ठगे से रह गए. नजरें उर्मि के चेहरे से हट ही नहीं रही थीं.

भावावेश में उसे बांहों में खींच लिया. देहस्पर्श बिलकुल नया लगा.. पहली रात का पहली छुवन जैसा. अद्भुत. पति के अप्रत्याशित आलिंगन से उर्मि रोमांच से भर गई. ऐसे उत्तप्त आलिंगन के लिए किस कदर तरस गई थी इन दिनों वह. आलिंगन ही क्यों, बैड पर के आंतरिक क्षणों की सारी क्रियाएं भी तो जिन में पहले एक उत्तेजित नशा घुला रहता था,

कितनी यांत्रिक व बेरस हो गई थी. आंखें खुशी से छलकीं तो हंसी में नमी घुल आई.

पीयूषजी ने थरथराते होंठ उस आर्द्र हंसी पर धर दिए. मन रुई सा हलका हो गया.‘वाह, चिल्ले… एक अरसे बाद बना मेरा फ़ेवरिट स्नैक,’   पीयूषजी बच्चों से चहके.

‘परसों ही तो बनाई थी,’  उर्मि तुनक कर बोली. पीयूषजी एक बार फिर चौंके, ‘अरे, परसों खाया था तो याद क्यों नहीं आ रहा?

‘याद नहीं आ रहा कमबख्त,’ पीयूषजी खीझ से भर गए. ऐसा स्मृति लोप पहले तो कभी नहीं होता था. इन सारे बदलावों के पीछे मोबाइल में दुबके आभासी दुनिया का तिलिस्म तो नहीं? वे सहम से गए. चाय पीते हुए हुलस कर उर्मि से हंसीमजाक करने लगे. तभी उन काध्यान उर्मि के टौप पर गया. गुलाबी पृष्ठभूमि पर गहरे हरे रंगों के बेलबूटे, गौर वर्ण पर खूब खिल रहे थे.

‘यह टौप तुम पर खूब फब रहा है. कब खरीदा?’  पीयूष जी प्रशंसात्मक भाव से बुदबुदाए.‘पिछले 2 महीने से यूज कर रही हूं. कितनी बार तो इस में देखा, फिर भी?’ उर्मि खिलखलाती हुई गंभीर हो गई, ‘टौप को ध्यान से देखते भी तो कैसे? नया मोबाइल लेने के बाद सारा ध्यान और सारी चेतना मोबाइल ऍप्स के ब्लैकहोल में समा गई है. घरपरिवार से कट कर आभासी दुनिया में विचरने वाले रोबोट जैसे हो गए हैं, आप. कई बार टोकने का मन किया, पर…’

कुछ पलों का मौन छाया रहा दोनों के बीच. उर्मि सामने के सोफे पर जा बैठी. पीयूषजी अपराधबोध से भर गए. उर्मि के उलाहने में कड़वा सच नहीं था क्या? सोशल मीडिया और आभासी दुनिया के पीछे विक्षिप्त दीवाने की तरह ही दौड़ रहे हैं. इस अंधी बेलगाम दौड़ ने संवेदना और सोच को छीज कर उन्हें घरपरिवार के इमोशन्स से किस कदर रिक्त कर दिया, उफ्फ. आज नैट बंद रहने से वे उस के सम्मोहन से मुक्त हैं तो सबकुछ कितना नया औरआकर्षक लग रहा है.

आहिस्ते से उठे और उर्मि की बगल में आ गए. उस की हथेली को दोनों हथेलियों में भर कर सहलाते हुए फुसफुसाए, ‘तुम ने ठीक कहा, डार्लिंग. आभासी दुनिया के छद्म सम्मोहन के पीछे की अंधी दौड़ में ढेर सारे नायाब सुख और तरल एहसास छूटते चले गए. ये सुख, एहसास, प्रेम पगे पल भले छोटे दिखते हैं, जिंदगी में कितनी ऊर्जा, कितना रस और संजीवनी भरते हैं, आज पता चला. मन कितना खाली, कितना तनहा हो गया था इन के बिना. पर अब नहीं. अब एकएक कर के इन सारे छूटे हुए एहसासों को जीभर कर जिऊंगा.

उर्मि की नजरें उठीं और पीयूषजी की नजरों से गूंथ गईं. अवगुंठन में प्यार लबलबा रहा था.‘अब यह मत कहना कि नाक की यह लौंग भी पुरानी है. मानो चांद की नन्ही सी कणिका छिटक कर ठिठौना सी आ चिपकी हो चेहरे पर. नाक की लौंग में नन्हा सफेद एडी जड़ा था

जो चेहरे को अद्भुत चमक दे रहा था. लौंग को मुग्धभाव से देखते हुए पीयूषजी हंसे तो उर्मि इठलाई, ‘पुराना है और पिछले 6 महीने से पहनी हुई हूं, जनाब.’

‘अरे, इतने दिनों से नथुने में है, फिर भी नजर नहीं गई इस पर. कमाल है. हमारा बेटा कहां

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