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पीयूषजी ने स्कूटर कंपाउंड में पार्क करते हुए घड़ी की ओर देखा. 7 बज रहे थे. उफ, आज फिर देर हो गई. ट्रैफिक जाम की वजह से हमेशा देर हो जाती है. ऊपर से हर दस कदम पर सिग्नल की फटकार. रैड सिग्नल पर फंसे तो समझिए कि सिग्नल के ग्रीन होने में जितना समय लगेगा उतने में आप आराम से एक कप कौफ़ी सुड़क सकते हैं. मेन रोड के जाम से पिंड छुड़ाने के लिए आसपास की गलियों-उपगलियों को भी आजमाया. वहां समस्याएं अजब तरह की मिलीं. रास्ते के बीचोंबीच गाय, भैंस और सांड जैसे मवेशी बेखौफ हांडते दिखे, मानो गलियां संसद का गलियारा हों जहां नेतागण छुट्टे मटरगश्ती करते रहते हैं.

किसी मवेशी को जरा छू भी गई गाड़ी कि बवाल शुरू. एक महीने पहले तक पीयूषजी को शाम को घर लौटने की इतनी हड़बड़ी नहीं रहती थी. औफिस समय के बाद भी साथियों से गपशप चलती रहती. औफिस से दस कदम पर तिवाड़ी की चाय की गुमटी थी, जायके वाली स्पैशल चाय के लिए मशहूर. चाय के बहाने मिलनेजुलने का शानदार अड्डा. औफिस से निकल कर खास साथियों के साथ वहां चाय के साथ ठहाके चलते.

पीयूषजी पीडब्लूडी में जौब करते हैं. काम का अधिक दबाब नहीं. पुरानी बस्ती में घर है. पति,पत्नी और 6 साल का बेटा आयुष. छोटा परिवार. पत्नी तीखे नाकनक्श और छरहरे बदन की सुंदर युवती. शांत और संतुष्ट प्रकृति की घरेलू जीव. दोनों के बीच अच्छी कैमिस्ट्री थी. शाम को घर लौटने पर पीयूष जी के ठहाकों से घर खिल उठता. पत्नी के इर्दगिर्द बने रहने और उस से चुहल करने के ढेरों बहाने जेहन में उपजते रहते.

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