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जटपुर गांव की सुंदरी का बचपन तेजी से सिमट रहा था और जवानी दिनबदिन निखर और उभर रही थी. सुंदरी जब खुद को आईने में देखती तो अपने उभारों को देख कर लजा जाती. अब वह अपने सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देने लगी थी. गांव के लड़के उस से छेड़छाड़ करते तो वह उन्हें धमकाती, पागल कहती, लेकिन मन ही मन खुश होती कि लड़के उस की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. इस से उसे अजीब तरह की सुख और आनंद की प्राप्ति होती.

लेकिन इन छिछोरे लड़कों के अतिरिक्त कुछ ऐसे मर्द भी थे जो शादीशुदा तो थे लेकिन उन का लफंगापन अभी उन के मन से गया नहीं था. वे सुंदरी जैसी कम उम्र की लड़कियों को भी छेड़ने से बाज नहीं आते थे.

एक दिन ऐसे ही 2 लफंगों नकटू और शाकिब ने राह चलती सुंदरी को न केवल छेड़ा बल्कि उस के कोमल अंगों की चिकोटी भी काट ली. सुंदरी ने न केवल बुराभला कहा बल्कि उन की चप्पलों से खबर ली. होहल्ला होने पर गांव वालों ने भी नकटू और शाकिब को आड़े हाथों लिया.

सुंदरी का पिता जगप्रसाद तो उन्हें थाने तक खींच कर ले जाना चाहता था लेकिन गांव वालों ने उसे समझाबुझा कर रोक लिया. नकटू और शाकिब ने इस अपमान को दिल पर ले लिया और वे सुंदरी को खतरनाक सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए. उन्होंने अपने 2 साथी लफंगों कलवा और टिपलू को भी अपने साथ ले लिया.

रोजाना की तरह एक दिन सुंदरी अपने पिता को खेत पर खाना खिला कर घर वापस लौट रही थी. जैसे ही सुंदरी ईख के खेत की पगडंडी से हो कर गुजरी तो वहां घात लगाए बैठे नकटू, शाकिब, कलवा और टिपलू ने उस का मुंह भींच कर उसे खेत के अंदर खींच लिया. उस के मुंह के अंदर उस के लाल दुपट्टे को ठूंस कर सुंदरी के साथ हैवानियत का खेल शुरू कर दिया.

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