कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

साहिल ने कस कर उस का हाथ थाम लिया और सोचने लगा कि जब उस के पापा गुजर गए थे तब यही समाज ने उस की मां पर भी कितने जुल्म ढाए थे. वह सब उस ने अपनी आंखों से देखा था. खैर, अब तो उस की मां उन सब बातों से उबर चुकी हैं.  लेकिन आज फिर वही सब नीलिमा के साथ होते देख कर उस का दिल रो पड़ा. जब प्रकृति इंसानइंसान में भेद नहीं करती, फिर यह समाज और लोग कौन होते हैं ऐसा करने वाले? और ये धर्मशास्त्र लिखा किस ने है? एक पुरुष ने ही न, तो अपनी सुविधा अनुसार उन्हें जो ठीक लगा लिख डाला कि एक विधवा औरत को सफेद कपड़े पहनने चाहिए क्योंकि इस से औरत का मन शांत रहता है. खाना भी उसे सादा खाना चाहिए क्योंकि तामसी भोजन करने से औरत में कामभावना जाग्रत होने लगती है जो समाज के नजर में महापाप है. सरल भोजन करने से औरत के मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व्यक्त नहीं हो पाती और उस का मन पूजापाठ में लगा रहता है.

लेकिन यही सब उन्होंने पुरुषों के लिए क्यों नहीं लिखा कि जब जिन की पत्नियां मर जाती हैं, उन्हें भी ऐसा कुछ करना चाहिए? किसी न  किसी वजह से यह समाज विधवा औरतों को ही उन के पति के मरने का बोध क्यों करता है? कभी सफेद कपड़े पहना कर तो कभी दुत्कार कर उन की जिंदगी बेरंग बना दी जाती है और उस के बाद उन से उन के सारे हक छीन लिए जाते हैं. जो व्यक्ति इस दुनिया में है ही नहीं. उसे याद करने का पाठ पढ़ाया जाता है. एक विधवा औरत अगर किसी पुरुष से बात भी कर ले तो उस के चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है, मगर पुरुष को कोई कुछ नहीं कहता.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...