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‘एक विधवा जवान औरत जो घुटघुट कर नहीं, खुल कर जीना चाहती है,  सब के मुंह कैसे बंद किए उस ने?
तर्क देती ऐसी कहानियां पढ़ने को मिलती हैं सिर्फ सरिता में.’

 

“अरे, नीलिमा, घर नहीं चलना है क्या?” उस के कंधे पर हाथ रख कर अनु बोली.

“नहीं यार, मुझे देर लगेगी,” कंप्यूटर पर आंखें गड़ाए नीलिमा बोली, “आज मुझे कैसे भी कर यह असाइनमैंट पूरा करना ही है. इसलिए तू निकल, मैं दूसरी ट्रेन से आ जाऊंगी,” काम जल्दी खत्म कर के नीलिमा स्टेशन पहुंच तो गई मगर उस ट्रेन में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि चढ़ना मुश्किल लग रहा था उसे. जो यात्री ट्रेन के अंदर थे वे बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे और जो प्लेटफौर्म पर खड़े थे वे ट्रेन के अंदर घुसने के लिए धक्कामुक्की कर रहे थे. नीलिमा को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वह ट्रेन में चढ़ेगी कैसे.

‘कैसे भी कर के चढ़ना तो पड़ेगा ही, वरना, अगर यह ट्रेन भी छूट गई, तो और ज्यादा मुसीबत हो जाएगी,’ अपने मन में सोच नीलिमा ने अपने पांव आगे बढ़ाए ही थे ट्रेन में चढ़ने के लिए कि एक आदमी उसे धकेलते हुए ट्रेन में चढ़ गया और वह गिरतेगिरते बची.

‘कैसेकैसे लोग हैं, जरा भी तमीज नहीं है इन्हें,’ खुद में ही बड़बड़ाती हुई नीलिमा पूरी ताकत के साथ ट्रेन में चढ़ तो गई, मगर ट्रेन में तिल रखने की भी जगह नहीं थी. लोगों को खड़े होने के लिए भी जगह बड़ी मुश्किल से मिल पा रही थी. वह एक तरफ जा कर खड़ी हो गई. गिर न जाए इसलिए कस कर सीट का हत्था पकड़ लिया.

कई यात्री तो जान की बाजी लगा कर ट्रेन में लटक कर यात्रा कर रहे थे.

‘गलती हो गई मुझ से. मुझे अनु के साथ ही घर चले जाना चाहिए था,’ नीलिमा मन में सोच ही रही थी कि अचानक से उसे अपने हाथ पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ. देखा, तो पास खड़ा वह काला मोटा सा आदमी उसे अजीब तरह से घूर रहा था. नीलिमा ने झट से अपना हाथ खींच लिया लेकिन जब गिरने लगी, तो फिर से उस ने सीट का हत्था थाम लिया.

लेकिन उस आदमी ने तो इस बार नीलिमा का हाथ इतना कस कर दबाया कि वह ‘सी’ कर उठी.  मन तो किया उस को एक जोर का थप्पड़ उस के कनपट्टी पर जड़ दें. लेकिन इतने लोगों के बीच वह कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी, इसलिए कुछ बोली नहीं और खिड़की के बाहर देखने लगी.

लेकिन वह बेशर्म इंसान तो नीलिमा की चुप्पी का गलत फायदा उठा कर उसे यहांवहां छूने की कोशिश करने लगा. एक तो उस के शरीर से इतनी गंदी बदबू आ रही थी और ऊपर से वह नीलिमा को परेशान भी कर रहा था.

“ऐस्क्यूज मी, आप यहां आ कर बैठ जाइए,” उस आदमी को कब से नीलिमा को परेशान करते देख एक युवक से रहा नहीं गया. इसलिए उस ने अपनी सीट नीलिमा को बैठने के लिए दे कर खुद उस की जगह पर जा कर खड़ा हो गया. उस युवक ने जब घूर कर उस आदमी को देखा तो वह घबरा कर वहां से खिसक गया.  शायद उस का स्टेशन आ गया होगा या डर के मारे कहीं और जा कर बैठ गया होगा.

खैर, नीलिमा ने चैन की सांस ली और मन ही मन उस युवक को धन्यवाद किया. अगली स्टेशन पर जब नीलिमा के पास बैठा आदमी उतरा, तो उस ने वह सीट उस युवक के लिए घेर लिया और इशारों से उसे यहां आ कर बैठने को कहा.

“शुक्रिया,” उस युवक ने मुसकराते हुए कहा.

“शुक्रिया, तो मुझे आप का कहना चाहिए,” नीलिमा बोली और एक पल के लिए दोनों की आंखें चार हुईं और फिर वे खिड़की से बाहर देखने लगे. नीलिमा ने पलट कर एक बार फिर उस युवक को भरपूर नजरों से देखा और अपने लटों को कानों के पीछे ले जाते हुए सोचने लगी कि दुनिया में अच्छे इंसान भी हैं.

“आप रोज क्या इसी ट्रेन से घर जाते हैं?” नीलिमा के सवाल पर उस युवक ने ‘हां’ में सिर हिला दिया और फिर खिड़की से बाहर देखने लगा. उस युवक में गजब का आकर्षण था.

6 फिट लंबा, सांवला वह युवक किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं जान पड़ रहा था. ऊपर से उस का धीरगंभीर चेहरा नीलिमा का मन मोह रहा था.

वह युवक तिरछी नजर से नीलिमा को ही देखे जा रहा था. हवा के झोंके से जब नीलिमा के बाल उड़उड़ कर उस के चेहरे पर आ कर उसे परेशान कर रहा था तो वह उन बालों को समेट पर फिर से कानों के पीछे खोंसने की बेकार कोशिश कर रही थी. तब वह इतनी खूबसूरत लग रही थी कि क्या कहें.  मन तो कर रहा था कि उस का कि हाथ आगे बढ़ा कर उस के उड़ते बालों को संवार दे ताकि नीलिमा परेशान न हो.

जब उस ने धीरे से पूछा कि नीलिमा को कहां उतरना है, तो उस के आंखों की गहराई नीलिमा के दिल में उतर गई. यह जान कर वह युवक मन ही मन मुसकरा उठा कि नीलिमा को भी उसी स्टेशन पर उतरना है, जहां उसे.

जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकी लोग पागलों की तरह धक्कामुक्की कर बाहर निकलने लगे जबकि उन्हें पता है कि ट्रेन की स्टोपेज यहीं तक है. फिर भी लोगों में सब्र नाम की चीज नहीं है. नीलिमा उतरने के लिए उठने ही लगी थी कि उस युवक ने यह कर कर उस का हाथ पकड़ लिया कि भीड़ छंट जाने दीजिए…

उस के स्पर्श से नीलिमा को लगा जैसे उस के मन में संगीत के तार बज उठे हों. वहीं जब उस शख्स ने उसे छूआ था तब वह कैसे विचलित हो उठी थी. मगर इस लड़के के छुअन में ऐसी क्या बात है कि नीलिमा का रोमरोम सिहर उठा.

“आप के लिए वही ट्रेन सही है. इस में बहुत ज्यादा भीड़ होती है,” अभी भी वह नीलमा का हाथ वैसे ही थामे हुए था जैसे वह कोई छोटी बच्ची हो.  लेकिन क्यों? वह तो नीलिमा को जानता तक नहीं. अभीअभी तो मिले हैं दोनों? कहीं यह उन का पहली नजर का प्यार तो नहीं.

“चलिए, मैं आप को, आप के घर तक छोड़ दूं क्योंकि रात बहुत हो चुकी है,” वह युवक बोला.

“अरे नहीं, मेरा भाई आता ही होगा मुझे लेने. वैसे, थैंक्स,” मुसकराते हुए बोल नीलिमा आगे बढ़ी ही थी कि हवा से लहराता उस का दुपट्टा उड़ कर उस लड़के के सिर पर जा गिरा.

“अरे, यह हवा भी न,” कह कर वह  जैसे ही अपना दुपट्टा लेने के लिए मुड़ी, देखा वह लड़का एकटक उसे ही निहार रहा था. उसे अपनी तरफ  इस तरह से निहारते देख नीलिमा लजा गई. घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद जब नीलिमा खाने बैठी तो उस युवक का चेहरा उस के आंखों के सामने नाचने लगा.

“क्या हुआ, खा क्यों नहीं रही है? खाना अच्छा नहीं बना क्या?”  नीलिमा को रोटी से खेलते देख कर उस की मां संध्या ने पूछा.

“नहीं, म… मेरा मतलब है खाना तो अच्छा बना है, लेकिन मुझे भूख नहीं है मां. वह अनु ने समोसे मंगवाए थे न तो वही खा लिया था,” नीलिमा झूठ बोल गई लेकिन उस की भूख तो वह लड़का खा गया था जिस का वह नाम भी नहीं जानती.

‘नाम पूछा ही नहीं तो कैसे पता चलेगा?’

‘अरे, कैसे पूछती? अब क्या पहली मुलाकात में, वह भी ट्रेन में कोई किसी का नाम पूछता है भला?’

‘लेकिन फोन नंबर तो मांग ही सकती थी न उस से?’

‘क्या कह कर फोन नंबर मांगती? कहीं वह बुरा मान जाता तो?’

‘अरे, इस में बुरा मनाने वाली क्या बात है? फोन नंबर ही तो मांग रही थी, कोई उस की जायदाद थोड़े ही, जो वह बुरा मान जाता…’ नीलिमा का एक दिल कुछ और कहता, तो दूसरा कुछ और.

‘वह कौन है, कहां रहता है, क्या काम करता है नीलिमा को कुछ नहीं पता, लेकिन फिर भी वह लड़का उसे अपना सा क्यों लगने लगा था? क्या रिश्ता है उस का उस से?’ सोचसोच कर नीलिमा करवटें बदल रही थी और फिर पता नहीं कब उस की आंखें लग गईं.

सुबह किचन में चाय बनाते हुए भी वही लड़का उस के दिलोदिमाग पर छाया रहा. उस की बातें, उस की मुसकराहटें याद कर नीलिमा मुसकरा उठी. जिस हक से उस ने उस का हाथ पकड़ा हुआ था, याद कर नीलिमा रोमांच से भर उठी. लंबे समय से सुखी पड़ी दिल की मिट्टी पर जैसे किसी ने पानी का छींटा मार दिया था.

उधर उस लड़के का, जिस का नाम साहिल था, उस का भी यही हाल था. नीलिमा के दुपट्टे से आती परफ्यूम की खुशबू अभी भी उस के नथुनों में बसी थी. सोच रहा था कि काश, कल वह फिर मिल जाए. दूसरे दिन नीलिमा को फिर उसी ट्रेन में देख साहिल  का दिल धड़का. पर उस ने यह बात उस पर जाहिर नहीं होने दी.

“आप की ट्रेन फिर से मिस हो गई?” साहिल हंसा, तो नीलिमा बोली कि दरअसल, उस के औफिस में औडिट चल रहा है तो अभी उसे रोज इसी ट्रेन से घर जाना पड़ेगा.

“ओह, फिर तो अच्छा है,” बोल कर वह झेंप गया लेकिन नीलिमा मुसकरा उठी. पूछने पर दोनों ने अपनाअपना नाम बताया और फोन नंबर का भी आदानप्रदान हो गया. कहीं न कहीं दोनों के दिल के तार आपस में जुड़ चुके थे क्योंकि ट्रेन में चढ़ते ही दोनों की आतुर नजरें गौरैया की तरह यहांवहां फुदकने लगती थीं और जैसे ही वे एकदूसरे को देख लेते राहत की सांस भरते थे.

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