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धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ी तो आपस में परिचय भी हुआ. नीलिमा एक सरकारी जौब में है और साहिल एक आईटी कंपनी में काम करता है. वैसे तो उन के पास अपनीअपनी गाड़ी हैं, पर मुंबई की ट्रैफिक के चलते उन्हें ट्रेन से ही औफिस आनाजाना सही लगता है.

नीलिमा दिल्ली की रहने वाली है.  लेकिन अब वह अपने मांभाई के साथ यहां मुंबई में रहती है. उस के कुछ रिश्तेदार भी यहीं मुंबई में ही रहते हैं, तो संध्या का मन लगा रहता है.

साहिल के पापा नहीं हैं, उस की मां अपने बड़े बेटेबहू के साथ लखनऊ के हरदोई जिले में रहती हैं. वहां उन का अपना बड़ा सा पुस्तैनी घर और थोड़ीबहुत जमीनजगह है. साहिल का बड़ा भाई वहीं हरदोई जिले में ही स्कूल मास्टर है. साहिल यहां मुंबई में अकेले एक कमरे का घर ले कर रहता है.

28 साल के साहिल की मां को हमेशा अपने बेटे की चिंता लगी रहती है कि वह अकेले वहां कैसे रहता होगा? कैसे खातापीता होगा? इसलिए वह चाह रही है कि साहिल अब शादी कर ले, तो वह भी चैन से जी सकेगी.  उस ने कई लड़कियों के फोटो भी भेजे,  ताकि साहिल बता सके कि उसे कौन सी लड़की पसंद है, तो शादी की बात चलाई जा सके. लेकिन साहिल का कहना है जब उसे अपने लायक कोई लड़की मिल जाएगी, तब वह अपनी मां को बता देगा. वैसे, लगता तो है कि साहिल को अपनी पसंद की लड़की मिल चुकी है. लेकिन अभी वह कन्फूज है यह सोच कर कि पता नहीं नीलिमा भी उसे पसंद करती है या नहीं?

खैर, ट्रेन और सड़कों के अलावा अब साहिल और नीलिमा के बीच फोन पर भी बातें होने लगी थीं. घर पहुंच कर दोनों एकदूसरे के साथ देर रात तक चैंटिंग करते और फिर सो जाते. अब दोनों साथसाथ औफिस जानेआने लगे थे.

नीलिमा को अपने वीरान जीवन में एक प्यारा सा साथी मिल गया था.  पहले यही नीलिमा बिलकुल उदास और गुमशुम रहती थी. लेकिन अब उस के चेहरे पर खुशी झलकने लगी थी. उस के पहनावेओढ़ावे में भी काफी फर्क दिखने लगा था. पहले वह कुछ भी पहन कर औफिस चली जाया करती थी. लेकिन अब उसे सोचना पड़ता था कि क्या पहने, जो उस पर अच्छा लगेगा. अपने बालों को भी उस ने उड़ने के लिए आजाद छोड़ दिया था. वरना, पहले तो वह अपने बालों को कस कर बांधे रखती थी. पहले आईने से उस की दुश्मनी थी, अब दोस्ती हो चुकी थी. तैयार हो कर जब वह आईने से पूछती कि ‘कैसी लग रही हूं?’ तो आईना हंस कर कहता, ‘एकदम चाँद का टुकड़ा’ और वह मुसकरा उठती.

नीलिमा और साहिल जब कभी औफिस से जल्दी छूट जाते, तो दोनों किसी पार्क या कौफी शौप में जा कर एकदूसरे के साथ बिताते. मगर वहां भी एक टाइम लिमिट होता था. क्योंकि घर जाने में जरा भी देर हो जाने पर संध्या तो कम, नीलिमा का भाई दीपक उस से ज्यादा ही जवाबतलब करने लगता था कि वह इतनी देर से कहां थी, फोन क्यों नहीं उठा रही थी वगैरहवगैरह. खुद तो वह कुछ करता नहीं है, बहन पर दादागिरी दिखाता है. कहता है कि हीरो बनना है. इसलिए रोज खापी कर शूटबुट पहन कर घर से निकल पड़ता है और शाम को मुंह लटकाए वापस आ जाता है.

‘ओह यह मुंह और मसूर की दाल’ मन तो करता नीलिमा का कि बोल दें कि यहां अच्छोंअच्छों की तो दाल नहीं गलती, तो तुम्हें कौन पूछने वाला है? मुंह देखा है कभी आईने में? विलेन का भी रोल नहीं देगा कोई तुम्हें. लेकिन कुछ इसलिए नहीं कहती कि मां को बुरा लग जाएगा. आखिर वह बेटा है न…  नीलामा की पढ़ाई को कभी महत्त्व दिया गया इस घर में? जबकि वह बचपन से ही पढ़ने में होशियार थी. उस की मां कहतीं कि उसे कौन सा पढ़लिख कर कलक्टर बनना है. आखिर फूंकना तो चूल्हा ही है न. तभी तो बीच में ही पढ़ाई छुड़वा कर उस की शादी करा दी गई.

साहिल जैसा पावन निस्वार्थ स्नेह क्या कोई दे सकता था उसे इस घर में? लेकिन फिर भी उस ने अपने प्यार की बात अपने मांभाई से छिपा कर रखी थी क्योंकि जानती है वह उन की नजरों में उस का पवित्र प्रेम पाप बन जाएगा.

भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हैं लेकिन आज भी परिवार और समाज की नजरों में एक विधवा के लिए प्यार जैसी बातें शोभा नहीं देती. इसलिए जब कभी उसे घर आने में देर हो जाती है, तो वह कुछ भी बहाना बना देती कि जैसे औफिस में बहुत ज्यादा काम था या ट्रेन लेट थी वगैरह. लेकिन गुस्सा भी आता है कि वह क्या कोई कैदी है, जो कहीं भाग जाएगी? दीपक से कुछ क्यों नहीं पूछती संध्या कि वह पूरे दिन कहां और किस के साथ घूमताफिरता रहता है? सिर्फ उस के पीछे ही क्यों पड़ी रहती है वह?

साहिल के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी क्योंकि वह यहां अकेले रहता है, तो उस के लिए यह अच्छी बात थी कि उसे किसी को कोई सफाई नहीं देनी पड़ती थी. लेकिन नीलिमा के लिए उसे बुरा लगता था. इसलिए दोनों ने तय किया कि हफ्तेभर की छुट्टी ले कर वे सिक्किम घूमने जाएंगे.  नीलिमा अपने घर वालों से यह कह देगी कि औफिस की तरफ से उसे 7 दिनों की ट्रैनिंग के लिए हैदराबाद भेजा जा रहा है. नीलिमा ने वैसा ही किया. साहिल के हाथों में हाथ डाले हवाईजहाज से उड़ कर वह अपनी रूमानी संसार में पहुंच गई जहां उन दोनों के सिवा कोई न था. होटल के रूम में मोटीमोटी आंखों वाली नीलिमा को जब साहिल अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा, तो वह उस से दूर छिटक गई. लेकिन साहिल फिर उसे खींच कर अपने करीब ले आया और अपने होंठों को नीलिमा के अधर पर रख दिया, तो उस ने लजा कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

दोनों के दिलों की रफ्तार जब कुछ देर बाद थोड़ी कम हुई, तो वे खिलखिला कर हंस पड़े और फिर एकदूसरे में समा गए. इस तरह से 7 दिन साथसाथ कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला उन्हें.

मुंबई पहुंच कर फिर दोनों अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए. लेकिन  सिक्किम में साहिल के साथ बिताए पल को याद कर नीलिमा रोमांचित हो उठती और उसे फोन लगा देती थी. इसी तरह उन का समय अच्छे से व्यतीत हो रहा था. लेकिन नीलिमा यह सोच कर डर जाती कभीकभी कि अगर उन के प्यार की भनक उस के मांभाई को लग गई तो क्या होगा.

“क्या हुआ, आज घर नहीं जाना तुझे? फिर बैठी क्या है?” अनु को अपनी तरफ घूरते देख नीलिमा बोली.

“सोच रही हूं आज तेरे साथ ही घर जाऊं,” टेबल पर कुहनी टिकाए, ठुड्डी पर हाथ रख अनु बोली, “देखूं तो जरा आखिर उस ट्रेन में कौन सी ऐसी खास बात है, जो तू ने मेरे साथ जाना ही छोड़ दिया?” बोल कर वह हंसी, तो नीलिमा कहने लगी कि वह पागल हो गई है. इसलिए बेकार की बातें कर रही है.

“पागल मैं हो गई हूं या तू दीवानी? बोल न कौन है वह जिस के प्यार में तेरा चिपका हुआ गाल टमाटर की तरह लाल हो गया है?” अनु ने हलके से धक्का दिया तो नीलिमा मुसकरा पड़ी.

“आय हाय, यह मुसकी तो देखो जरा. अब बता भी दो कौन है वह?” अनु ने जिस अंदाज में कहा नीलिमा को हंसी आ गई और उस ने अपने और साहिल के बारे में उसे सबकुछ बता दिया.

“ओहो…तो बात यहां तक पहुंच गई और मुझे खबर तक नहीं. वैसे, मिला कभी अपने साहिलजी से मुझे,” बोल कर अनु ने आंख मारी तो नीलिमा शरमा गई.

एक रोज जब साहिल ने नीलिमा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो वह कहने लगी कि उस का एक अतीत है  और वह उसे किसी धोखे में नहीं रखना चाहती.

“कैसा अतीत नीलिमा?” साहिल ने पूछा तो नीलिमा बोली कि वह एक विधवा है.

“यानि की, पहले तुम्हारी शादी हो चुकी है?”

“हां साहिल, मेरी पहले शादी हो चुकी है,”अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताते हुए नीलिमा कहने लगी कि पढ़ाई के बीच में ही, अच्छा घरवर मिलने पर उस के मांपापा ने 19 साल की उम्र में ही उस की शादी करा दी.  लड़का रेलवे में गार्ड था और खातेपीते परिवार से था तो उस के मांपापा को लगा कहीं इतना अच्छा रिश्ता बाद में फिर न मिले तो. और पढ़ाई का क्या है, वह तो शादी के बाद भी पूरी की जा सकती है.

नीलिमा ने भी उन की बातों का कोई विरोध नहीं किया. वैसे, विरोध कर के क्या कर लेती ? मन से नहीं तो जबरदस्ती बांध दिया जाता उसे शादी के खूंटे में? खैर, शादी के बाद नीलिमा ने भी अपनी जिंदगी के साथ समझौता कर लिया और ससुराल में अच्छे से रचबस गई. नीलिमा का पति इंसान तो सही था, पर उसे शराब की बहुत बुरी लत थी और उसी ने एक दिन उस की जान ले ली. कम उम्र में ही नीलिमा विधवा हो गई. उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. लेकिन उस के दुखों को समझने के बजाय, उलटे उस के ससुराल वाले उसे ही कोसने लगे कि सुंदर लड़की देख कर वे अंधे हो गए. अगर जानते कि लड़की अपशगुनी है तो कभी अपने बेटे का ब्याह इस से नहीं करते. पति के न रहने पर उस के ससुराल वालों ने उस का जीना दूभर कर दिया.

बेटी पर जुल्म होते देख कर नीलिमा के पापा उसे अपने घर ले आए. लेकिन यहां भी उसे कहां चैन था. नातेरिश्तेदार उस के दुख को समझने के बजाय कुछ ऐसा बोल जाते कि वह रो पड़ती थी. पहले जहां आसपड़ोस, नातेरिश्तेदार नीलिमा से हंसाबोला करते थे. अब वही लोग उस की उपेक्षा करने लगे. उसे अभागिन और अपशगुनी कहने लगे.   मगर कुछ ऐसे लोग भी थे जो उस पर दया दिखाते हुए कहते कि अभी नीलिमा की उम्र ही क्या हुई है. इसलिए इस की दूसरी शादी करवा दो. क्योंकि औरत को एक मर्द का सहारा तो चाहिए ही.

लेकिन नीलिमा के लिए जितने भी रिश्ता आए, देख कर यही लगता था कि यहां नीलिमा को नहीं, बल्कि उस आदमी को सहारे की जरूरत है. क्योंकि किसी की पत्नी मर चुकी थी, तो कोई अपने पति को छोड़ कर भाग गई थी. यहां दूसरी पत्नी के नाम पर उन पुरुषों को एक केयरटेकर चाहिए जो उस अधेड़ उम्र के मर्द की शारीरिक जरूरतों को तो पूरा करे ही, साथ में उस के परिवार को भी संभाले.

लेकिन नीलिमा को तब रोना आ गया जब उस की खुद बुआ ही उस के लिए 50-55 साल के एक बुड्ढे का रिश्ता ले कर आई. बुआ ने ही बताया कि उस आदमी की बीवी अभी कुछ महीने पहले गुजर गई और अब वह दूसरी शादी करना चाहता है. लेकिन बुआ ने एक बार भी यह नहीं सोचा  कि उस आदमी की बेटी नीलिमा से बड़ी है और कहने लगीं कि मर्द की उम्र नहीं देखी जाती. और उस आदमी के पास बहुत पैसा है, तो  नीलिमा उस घर में राज करेगी.

“तो क्या पैसे की खातिर मैं उस बुड्ढे की बीवी बन जाऊं? क्या इतनी गईगुजरी हूं मैं बुआ?” नीलिमा फट पड़ी.

“अरे, उस की बेटी मुझसे 3 साल बड़ी है, फिर आप ने सोच भी कैसे लिया कि मैं उस आदमी से शादी करूंगी? मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी.”

“तू एक विधवा है, भूल गई क्या? एहसान मान कि मैं तेरे लिए इतना अच्छा रिश्ता ले कर आई और तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है,” अपना पल्लू ठीक करते हुए गुस्से से बुआ बड़बड़ाई.

“हां, तो नहीं चाहिए मुझे आप का एहसान. और न ही मुझे किसी के सहारे की जरूरत है, समझीं आप?  जी लूंगी मैं अकेले ही,” यह बोल कर नीलिमा अपने कमरे में जा कर सिसक पड़ी थी. लेकिन बुआ को कुछ कहने के बजाय संध्या उसे ही समझाने लगी कि उसे बुआ से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी.

“और बुआ ने जो किया वह सही था? क्या वे करेंगी अपनी बेटी की शादी एक बुड्ढे से? नहीं न? बोलो न मां, क्या आप भी चाहती हैं कि मैं उस आदमी से शादी कर लूं? क्या इतनी बड़ी बोझ बन गई हूं मैं आप के लिए? आखिर मेरी गलती ही क्या है मां? यही न कि मैं एक विधवा हूं. तो विधवा का कोई जीवन नहीं होता?” लेकिन संध्या उस की बातों का कोई जवाब दिए बगैर कमरे से बाहर निकल गई.

“भले ही यह दुनिया महिला सशक्तिकारण का कितना ही ढोल पीट ले, मगर औरत की स्थिति में आज भी कोई ज्यादा सुधार नहीं आया है,” एक गहरी सांस लेते हुए नीलिमा अतीत से बाहर निकलते हुए बोली, “लेकिन मैं ने भी सोच लिया कि अब मैं अपनी जिंदगी का फैसला खुद करूंगी. कोई नहीं होता यह बोलने वाला कि मैं किस से शादी करूं और किस से नहीं. मैं नहीं मानती दुनिया के इन रीतिरिवाजों को.  लेकिन उस से पहले मुझे आत्मनिर्भर बनना होगा. इसलिए मैं ने सब से पहले अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की और फिर सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गई. मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे जौब मिल गई,” नीलिमा की कहानी सुन कर साहिल अंदर तक हिल गया.

“लेकिन दुख होता है यह सोच कर कि आखिर यह समाज औरतों के साथ ही इतना सख्त क्यों है? आज जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं. खुद महीने के पचासों हजार कमा रही हूं. किसी पर आश्रित नहीं हूं. फिर भी मुझे अपने घर में, मांभाई को हर बात के लिए जवाब क्यों देना पड़ता है? मेरे भाई दीपक के लिए तो सारी आजादी है, फिर मेरे लिए ही इतनी पाबंदी क्यों?”  बोलते हुए नीलिमा की आंखें भर आईं.

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