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अथर्व उस के मामाजी को ले कर डाक्टर साहब के कक्ष में गया और उस लड़की की स्थिति, आयु आदि बातों को समझाते हुए बोला, ‘‘सर, यदि इस केस की पुलिस रिपोर्ट न करते हुए उस लड़की से यह अंडरटेकिंग लिखवा लें कि - ‘मैं चाकू से सब्जी काट रही थी, तभी अचानक चाकू मेरे हाथ से फिसल कर मेरी हथेली पर लग गया जिस की वजह से उस जगह से खून बहने लगा. मेरा हाथ खून से सना देख कर मेरे मामाजी मुझे हौस्पिटल में ले कर आए. इस जख्म के लिए केवल मैं ही जिम्मेदार हूं.’ यह स्टेटमैंट उस की फाइल में लगा कर उस के डिस्चार्ज के साथ हम यह केस क्लोज कर सकते हैं?’’

डाक्टर साहब और अनुराधा के मामाजी इस अडरटेकिंग वाली बात पर सहमत हो गए. कुछ ही दिनों बाद अनुराधा को हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया. लेकिन जितने दिन वह हौस्पिटल में रही, उतने दिन वह दिन में 3-4 बार उस से मिलने जाता रहा. उस के हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के करीब 10 दिनों बाद एक दिन वह उस के घर गया. उस समय उस के मामाजी औफिस गए हुए थे. अनुराधा ने बाकायदा उस का मुसकरा कर स्वागत किया. चायनाश्ता होने के बाद वह बोली, ‘‘दरअसल, हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद मैं आप का शुक्रिया अदा करना चाहती थी कि आप ने मुझे पुलिस के चक्कर से बचा लिया, लेकिन परिस्थितिवश मैं आप से मिलने नहीं आ सकी. इसलिए अब आप का शुक्रिया अदा करती हूं. लेकिन, एक सवाल मेरे मन में बारबार आता रहा कि आप ने मुझे पुलिस के चक्कर से क्यों बचाया?’’

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