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अथर्व ने एमबीए किया और उसे उस की गुणवत्ता के आधार पर शहर के नामचीन मयूर हौस्पिटल में प्रशासकीय प्रबंधक के पद पर नौकरी मिल गई. वह पढ़ाई में बहुत ही गंभीर था और अपने काम में भी. उसे यह नौकरी जौइन किए 2 माह ही हुए थे. लेकिन, इतने कम समय में ही उस ने हौस्पिटल के मालिक से ले कर समस्त डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ और कार्यालय में कार्यरत कर्मियों का दिल जीत लिया था. यदि किसी को भी काम के दौरान कोई समस्या आती तो वह सीधे उस के पास पहुंचता और वह उस की समस्या का सही समाधान करता.

वह बहुत ही संवेदनशील था और कम बातें करता था, यह उस के स्वभाव की एक विशेषता थी. उस के मातापिता पास ही के एक गांव में रहते थे. जब कभी संभव होता, वे उस से मिलने शहर आ जाते. उस की जौब ऐसी है कि उसे अधिक अवकाश नहीं मिलता. इन 2 महीनों के दौरान वह सिर्फ एक बार एक दिन के लिए गांव गया था. मयूर हौस्पिटल चूंकि बहुत बड़ा है, इसलिए उस की जिम्मेदारी भी बहुत अधिक है. कई बार तो 20-20 घंटे भी वहां रुकना पड़ता है.

एक दिन रात को 10 बजे के करीब जब वह घर जाने के लिए निकल ही रहा था, तभी एक नर्स उस के पास आ कर बोली, ‘‘सर, एक केस आया है और शायद आत्महत्या का केस लग रहा है. केस बहुत सीरियस है. डाक्टर साहब ने कहा है कि आप उस की फाइल बनाने के बाद ही घर जाएं.’’ अब हौस्पिटल के डाक्टर कहें तो रुकने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं रहता है. कुछ ही देर बाद एक वार्डबौय उस पेशेंट से संबंधित कागजपत्र ले कर उस के पास आया. उस ने पेपर पर लिखा नाम पढ़ा. उस पर पेशेंट का नाम अनुराधा लिखा था.

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