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उस दिन जब उस ने मानसी से अपनी समस्या बताई थी कि घर में वह औफिस की

तरह काम नहीं कर पा रही है और ऊपर से बौस का प्रैशर बना रहता है हरदम, तब मानसी ने ही उसे सुझाया था कि बैडरूम या डायनिंग टेबल पर बैठ कर काम करने के बजाय वह अपने घर के किसी कोने में औफिस जैसा बना ले और वहीं बैठ कर काम करे, तो सही रहेगा. जब ब्रेक लेने का मन हो तो अपनी सोसायटी का एक चक्कर लगा आए, या पार्क में कुछ देर बैठ जाए, तो अच्छा लगेगा, क्योंकि वह भी ऐसा ही करती है. ‘‘अरे, वाह, क्या आइडिया दिया तूने मानसी. मैं ऐसा ही करती हूं’’ कहते हुए चहक पड़ी थी रचना. लेकिन मानसी की स्थिति जान कर दुख भी हुआ.

मानसी बताने लगी कि उस के 2-2 बच्चे हैं ऊपर से बूढ़े सासससुर, घर के काम के साथसाथ उन का भी बराबर ध्यान रखना होता है और अपने औफिस का काम भी करना पड़ता है. पति हैं कि जहां हैं वहीं फंस चुके हैं आ नहीं सकते, तो उस पर ही घरबाहर सारे कामों की जिम्मेदारी पड़ गई है. उस पर भी कोई तय शिफ्ट नहीं है कि उसे कितने घंटे काम करना पड़ता है. बताने लगी कि कल रात वह 3 बजे सोई, क्योंकि 2 बजे रात तक तो व्हाट्सऐप पर गु्रप डिस्कशन ही चलता रहा कि कैसे अगर वर्क फ्रौम होम लंबा चला तो, सब को इस की ऐसी प्रैक्टिस करवाई जाए कि सब इस में ढल जाएं. उस की बातें सुन कर रचना का तो दिमाग ही घूम गया. जानती है वह कि उस के बच्चे कितने शैतान हैं और सासससुर ओल्ड. ‘कैसे बेचारी सब का ध्यान रख पाती होगी?’ सोच कर ही उसे मानसी पर दया आ गई. लेकिन इस लौकडाउन में वह उस की कोई मदद भी तो नहीं कर सकती थी. सो फोन पर ही उसे ढाढ़स बंधाती रहती थी.

‘सच में, कैसी स्थिति हो गई है देश की? न तो हम किसी से मिल सकते हैं. न किसी को अपने घर बुला सकते हैं और न ही किसी के घर जा सकते हैं. आज इंसान, इंसान से भागने लगा है. लोग एकदूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं. क्या हो रहा है ये और कब तक चलेगा ऐसा? सरकार कहती रही कि अच्छे दिन आएंगे. क्या ये हैं अच्छे दिन? किसी ने सोचा था कभी कि ऐसे दिन भी आएंगे? अपने मन में ही सोच रचना दुखी हो गई.

रचना अपने घर के ही एक कोने में जहां से हवा अच्छी आती हो, वहां

टेबल लगा कर औफिस जैसा बना लिया और काम करने लगी, चारा भी क्या था? वैसे, अच्छा आइडिया दिया था मानसी ने उसे. ‘थैक यू’ बोला उस ने उसे फोन कर के. काम करतेकरते जब रचना का मन उकता जाता, तो ब्रेक लेने के लिए थोड़ाबहुत इधरउधर चक्कर लगा आती. नहीं, तो छत पर ही कुछ देर टहल लेती. और फिर अपने लिए चाय बना कर काम करने बैठ जाती. अब रचना का माइंड सैट होने लगा था. लेकिन बौस का दबाव तो था ही जिस से मन चिड़चिड़ा जाता कभीकभी कि एक तो इस लौकडाउन में भी काम करो और ऊपर से इन्हें कुछ समझ नहीं आता. सब कुछ परफैक्ट और सही समय पर ही चाहिए. ये क्या बात हुई? बारबार फोन कर के चेक करते हैं कि कर्मचारी अपने काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं. कहीं वे अपने घर पर आराम तो नहीं फरमा रहे हैं.

उस दिन बौस से बातें करते हुए रचना को एहसास हुआ कि कोई उसे देख रहा है. ऐसा

होता है न? कई बार तो भीड़ भरी बस या ट्रेन

के कूपे में भी ऐसी फिलिंग होती है कि कोई हम पर नजरें गड़ाए हुए है. अकसर हमारा यह एहसास सच साबित होता है. अब ऐसा क्यों होता है यह तो नहीं पता. लेकिन सामने वाली खिड़की पे बैठा वह शख्स लगातार रचना को देखे ही जा रहा था. लेकिन जैसे रचना की नजर उस पर पड़ी, वह इधरउधर देखने लगा, लेकिन फिर वही. रचना उसे नहीं जानती है. आज पहली बार देख रही है. शायद, अभी वह नया यहां रहने आया होगा, नहीं तो वह उसे जरूर जानती होती. लेकिन वह क्यों उसे देखे जा रहा है? क्या

वह इतनी सुंदर है और यंग है? लेकिन वह

बंदा भी कम स्मार्ट नहीं था. तभी तो रचना की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी. लेकिन

फिर यह सोच कर नजरें फेर ली उस ने कि वह क्या सोचेगा?

एक दिन फिर दोनों की नजरें आपस में टकरा गई, तो आगे बढ़ कर रचना ने ही उसे ‘हाय’ कहा. इस से उस बंदे को बात आगे

बढ़ाने का ग्रीन सिग्नल मिल गया. अब रोज

दोनों की खिड़की से ही ‘हायहैलो’ के साथसाथ थोड़ीबहुत बातें होने लगी. दोनों कभी देश में बढ़ रहे कोरोना वायरस के बारे में बातें करते, कभी लौकडाउन को ले कर उन की बातें होती, तो कभी अपने ‘वर्क फ्रौम होम’ को ले कर बातें करते. और इस तरह से उन के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ता, तो रुकता ही नहीं.

‘‘वैसे, सच कहूं तो औफिस जैसी फिलिंग नहीं आती घर से काम करने में, है न?’’ रचना के पूछने पर वह बंदा कहने लगा कि ‘हां, सही बात है, लेकिन किया भी क्या जा सकता है?’ ‘‘सही बोल रहे हैं आप, किया भी क्या जा सकता है. लेकिन पता नहीं यह लौकडाउन कब खत्म होगा? कहीं लंबा चला तो क्या होगा?’’ रचना की बातों पर हंसते हुए वह कहने लगा कि भविष्य में क्या होगा कौन जानता है? ‘वैसे जो हो रहा है सही ही है, जैसे हमारा मिलना’ जब उस ने मुसकराते हुए कहा, तो रचना शरमा कर अपने बाल कान के पीछे करने लगी. रचना के पूछने पर उस ने अपना नाम शिखर बताया और यह भी कि वह यहां एक कंपनी में काम करता है. अपना नाम बताते हुए रचना कहने लगी कि उस का भी औफिस उसी तरफ है.

काम के साथसाथ अब दोनों में पर्सनल बातें भी होने लगी. शिखर ने बताया कि पहले वह मुंबई में रहता था. मगर अभी कुछ महीने पहले ही तबादला हो कर दिल्ली शिफ्ट हुआ है.

‘‘ओह… और आप की पत्नी भी जौब में हैं?’’ रचना ने पूछा तो शिखर कहने लगा कि नहीं, वह एक हाउसवाइफ है. ‘‘हाउस वाइफ नहीं, होममेकर कहिए शिखर जी, अच्छा लगता है’’ बोल कर रचना खिलखिला पड़ी, तो शिखर उसे देखता ही रह गया. रचना से बातें करते हुए शिखर के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि नजर आती थी. लेकिन वहीं, अपनी पत्नी से बातें करते हुए वह झल्ला पड़ता था.

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