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अमनअभी घर में पैर रखने ही जा रहा था कि रचना चीख पड़ी. ‘‘बाहर… बाहर जूता खोलो. अभी मैं ने घर में झाड़ूपोंछा लगाया है और तुम हो कि जूते पहन कर अंदर घुसे जा रहे हो.’’ ‘‘अरे, तो क्या हो गया? रोज तो आता हूं’’ झल्लाते हुए अमन जूते बाहर ही खोल कर जैसे ही अंदर आने लगा, रचना ने फिर उसे टोका.

‘‘नहीं, बैठना नहीं, जाओ पहले बाथरूम और अच्छे से हाथमुंहपैर सब धो कर आओ और हां, अपना मोबाइल भी सैनिटाइज करना मत भूलना. वरना, यहांवहां कहीं भी रख दोगे और फिर पूरे घर में इन्फैक्शन फैलाओगे,’’ रचना की बात पर अमन ने उसे घूर कर देखा. ‘हुम्म, घूर तो ऐसे रहे हैं जैसे खा ही जाएंगे. एक तो इस कोरोना की वजह से बाई नहीं आ रही है. सोसायटी वालों की तरफ से सख्त मनाही है और ऊपर से इन की नवाबी देखो. जैसे मैं इन के बाप की नौकर… ये नहीं होता जरा कि काम में मेरी हैल्प कर दें. नहीं, उलटे काम को और बढ़ा कर रख देते हैं. कहीं जूते खोल कर रख देंगे, कहीं भीगा तौलिया फेंक आएंगे. कितनी बार कहा, हाथ धो कर फ्रिज या किचन का कोई सामान छुआ करो. लेकिन नहीं, समझ ही नहीं आता इन्हें. बेवकूफ कहीं के.’ अपने मन में ही भुनभुनाई रचना.

‘‘हुं… बड़ी आई साफसफाई पर लैक्चर देने वाली. समझती क्या है अपनेआप को? जैसे इस घर की मालकिन यही हो. हां, करूंगा, जैसा मेरा मन होगा करूंगा,’’ अमन भन्नाता हुआ अपने कमरे में घुस गया और दरवाजा भिड़का दिया. ‘वैसे गलती इन मर्दों की भी नहीं है. गलती है उन मांओं की, जो बेटियों को तो सारी शिक्षा, संस्कार दे डालती है, पर अपने बेटों को कुछ नहीं सिखातीं, क्योंकि उन्हें तो कोई जरूरत ही नहीं है न सीखने की. बीबी तो मिल ही जाएगी बना कर खिलाने वाली’ अमन को भुनभुनाते देख, वह भी चुप नहीं रह पाई और बोल दिया जो मन में आया. बहुत गुस्सा आ रहा था उसे आज. कहा था अमन से, लौकडाउन की वजह से बाई

कुछ दिन काम पर नहीं आएगी, तो वह उस की मदद कर दिया करे काम में, क्योंकि उसे और भी काम होते हैं. ऊपर से अभी औफिस का काम भी उसे घर से करना पड़ रहा है, तो समय नहीं मिल पाता है. लेकिन अमन ने ‘तुम्हारा काम है तुम जानो. मुझ से नहीं होगा’ कह कर बात वहीं खत्म कर दी, तो गुस्सा तो आएगा ही न? क्या वह अकेली रहती है इस घर में? जो सारे कामों की जिम्मेदारी उस की ही है? आखिर वह भी तो नौकरी करती है बाहर जा कर. यह बात अमन क्यों नहीं समझता.

खाना खाते समय भी दोनों में घर के काम को ले कर बहस शुरू हो गई. रचना ने सिर्फ इतना कहा कि घर के कुछ सामान लाने थे. अगर वह ले आता तो अच्छा होता. वह गई थी दुकान राशन का सामान लाने, पर वहां बड़ी लंबी लाइनें लगी थी इसलिए वापस चली आई.

‘‘तो वापस क्यों आ गई? क्या जरा देर खड़ी रह कर सामान खरीद नहीं सकती थी जो बारबार मुझे फोन कर के परेशान कर रही थी? एक तो मुझे इस लौकडाउन में भी बैंक जाना पड़ रहा है, ऊपर से तुम चाहती हो कि मैं घर के कामों में भी तुम्हारी मदद कर दूं? नहीं हो सकता है’’ चिढ़ते हुए अमन बोला.

‘‘हां, पता है मुझे, तुम से तो कोई उम्मीद लगाना ही बेकार है. और क्या करती मैं, धूप में खड़ीखड़ी पकती रहती? फोन इसलिए कर रही थी कि तुम औफिस से आते हुए घर के सामान लेते आना? लेकिन नहीं, तुम तो फोन भी नहीं उठा रहे थे मेरा. वैसे, एक बात बताओ, अभी तो बैंक में पब्लिक डीलिंग हो नहीं रही है, जो मेरा एक फोन नहीं उठा सकते या घर का कोई सामान खरीद कर नहीं ला सकते? बोलो न? घरबाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी मेरी ही है क्या? तुम्हें कोई मतलब नहीं?’’

‘‘पब्लिक डीलिंग नहीं होती है तो क्या बैंक में काम नहीं होते हैं? और ज्यादा सवाल मत करो मुझ से, जो करना है जैसे करना है समझो अपना, समझी. खुद तो आराम से ‘वर्क फ्रौम होम’ कर रही हो. जब मरजी हो आराम कर लेती हो, दोस्तों से बातें कर लेती हो और दिखा रही हो कि कितना काम करती हो?’’ अमन की बातें सुन कर रचना दंग रह गई कि कैसा इंसान है ये? जरा भी दर्द नहीं है? क्या सोचता है वह घर में आराम करती रहती है?

‘‘हां, बोलो न, क्या मुश्किल है, बताओ मुझे? जब मन आए काम करो, जब मन आए आराम कर लो. इतना अच्छा तो है, फिर भी नाकमुंह घुनती रहती हो. सच में, तुम औरतों को तो समझना ही मुश्किल है’’ अमन ने कहा तो रचना का पारा और चढ़ गया. अभी वह कुछ बोलती ही कि उस की दोस्त मानसी का फोन आ गया.

‘‘हैलो मानसी, बता, कैसा चल रहा है तेरा? बच्चेवच्चे सब ठीक तो हैं न?’’ लेकिन मानसी बताने लगी कि बहुत मुश्किल हो रहा है, घर, बच्चे और औफिस का काम संभालना. क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है. ‘‘कोई चिंता मत कर. चलने दे जैसा चल रहा है. क्या कर सकती है तू? लेकिन बच्चे और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख, वह जरूरी है अभी’’ थोड़ी देर और मानसी से बात कर रचना ने फोन रख दिया. फिर किचन का सारा काम समेट कर अपने टेबल पर जा कर बैठ गई.

 

उस दिन जब उस ने मानसी से अपनी समस्या बताई थी कि घर में वह औफिस की

तरह काम नहीं कर पा रही है और ऊपर से बौस का प्रैशर बना रहता है हरदम, तब मानसी ने ही उसे सुझाया था कि बैडरूम या डायनिंग टेबल पर बैठ कर काम करने के बजाय वह अपने घर के किसी कोने में औफिस जैसा बना ले और वहीं बैठ कर काम करे, तो सही रहेगा. जब ब्रेक लेने का मन हो तो अपनी सोसायटी का एक चक्कर लगा आए, या पार्क में कुछ देर बैठ जाए, तो अच्छा लगेगा, क्योंकि वह भी ऐसा ही करती है. ‘‘अरे, वाह, क्या आइडिया दिया तूने मानसी. मैं ऐसा ही करती हूं’’ कहते हुए चहक पड़ी थी रचना. लेकिन मानसी की स्थिति जान कर दुख भी हुआ.

मानसी बताने लगी कि उस के 2-2 बच्चे हैं ऊपर से बूढ़े सासससुर, घर के काम के साथसाथ उन का भी बराबर ध्यान रखना होता है और अपने औफिस का काम भी करना पड़ता है. पति हैं कि जहां हैं वहीं फंस चुके हैं आ नहीं सकते, तो उस पर ही घरबाहर सारे कामों की जिम्मेदारी पड़ गई है. उस पर भी कोई तय शिफ्ट नहीं है कि उसे कितने घंटे काम करना पड़ता है. बताने लगी कि कल रात वह 3 बजे सोई, क्योंकि 2 बजे रात तक तो व्हाट्सऐप पर गु्रप डिस्कशन ही चलता रहा कि कैसे अगर वर्क फ्रौम होम लंबा चला तो, सब को इस की ऐसी प्रैक्टिस करवाई जाए कि सब इस में ढल जाएं. उस की बातें सुन कर रचना का तो दिमाग ही घूम गया. जानती है वह कि उस के बच्चे कितने शैतान हैं और सासससुर ओल्ड. ‘कैसे बेचारी सब का ध्यान रख पाती होगी?’ सोच कर ही उसे मानसी पर दया आ गई. लेकिन इस लौकडाउन में वह उस की कोई मदद भी तो नहीं कर सकती थी. सो फोन पर ही उसे ढाढ़स बंधाती रहती थी.

‘सच में, कैसी स्थिति हो गई है देश की? न तो हम किसी से मिल सकते हैं. न किसी को अपने घर बुला सकते हैं और न ही किसी के घर जा सकते हैं. आज इंसान, इंसान से भागने लगा है. लोग एकदूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं. क्या हो रहा है ये और कब तक चलेगा ऐसा? सरकार कहती रही कि अच्छे दिन आएंगे. क्या ये हैं अच्छे दिन? किसी ने सोचा था कभी कि ऐसे दिन भी आएंगे? अपने मन में ही सोच रचना दुखी हो गई.

रचना अपने घर के ही एक कोने में जहां से हवा अच्छी आती हो, वहां

टेबल लगा कर औफिस जैसा बना लिया और काम करने लगी, चारा भी क्या था? वैसे, अच्छा आइडिया दिया था मानसी ने उसे. ‘थैक यू’ बोला उस ने उसे फोन कर के. काम करतेकरते जब रचना का मन उकता जाता, तो ब्रेक लेने के लिए थोड़ाबहुत इधरउधर चक्कर लगा आती. नहीं, तो छत पर ही कुछ देर टहल लेती. और फिर अपने लिए चाय बना कर काम करने बैठ जाती. अब रचना का माइंड सैट होने लगा था. लेकिन बौस का दबाव तो था ही जिस से मन चिड़चिड़ा जाता कभीकभी कि एक तो इस लौकडाउन में भी काम करो और ऊपर से इन्हें कुछ समझ नहीं आता. सब कुछ परफैक्ट और सही समय पर ही चाहिए. ये क्या बात हुई? बारबार फोन कर के चेक करते हैं कि कर्मचारी अपने काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं. कहीं वे अपने घर पर आराम तो नहीं फरमा रहे हैं.

उस दिन बौस से बातें करते हुए रचना को एहसास हुआ कि कोई उसे देख रहा है. ऐसा होता है न? कई बार तो भीड़ भरी बस या ट्रेन

के कूपे में भी ऐसी फिलिंग होती है कि कोई हम पर नजरें गड़ाए हुए है. अकसर हमारा यह एहसास सच साबित होता है. अब ऐसा क्यों होता है यह तो नहीं पता. लेकिन सामने वाली खिड़की पे बैठा वह शख्स लगातार रचना को देखे ही जा रहा था. लेकिन जैसे रचना की नजर उस पर पड़ी, वह इधरउधर देखने लगा, लेकिन फिर वही. रचना उसे नहीं जानती है. आज पहली बार देख रही है. शायद, अभी वह नया यहां रहने आया होगा, नहीं तो वह उसे जरूर जानती होती. लेकिन वह क्यों उसे देखे जा रहा है? क्या

वह इतनी सुंदर है और यंग है? लेकिन वह बंदा भी कम स्मार्ट नहीं था. तभी तो रचना की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी. लेकिन

फिर यह सोच कर नजरें फेर ली उस ने कि वह क्या सोचेगा?

एक दिन फिर दोनों की नजरें आपस में टकरा गई, तो आगे बढ़ कर रचना ने ही उसे ‘हाय’ कहा. इस से उस बंदे को बात आगे

बढ़ाने का ग्रीन सिग्नल मिल गया. अब रोज

दोनों की खिड़की से ही ‘हायहैलो’ के साथसाथ थोड़ीबहुत बातें होने लगी. दोनों कभी देश में बढ़ रहे कोरोना वायरस के बारे में बातें करते, कभी लौकडाउन को ले कर उन की बातें होती, तो कभी अपने ‘वर्क फ्रौम होम’ को ले कर बातें करते. और इस तरह से उन के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ता, तो रुकता ही नहीं.

‘‘वैसे, सच कहूं तो औफिस जैसी फिलिंग नहीं आती घर से काम करने में, है न?’’ रचना के पूछने पर वह बंदा कहने लगा कि ‘हां, सही बात है, लेकिन किया भी क्या जा सकता है?’ ‘‘सही बोल रहे हैं आप, किया भी क्या जा सकता है. लेकिन पता नहीं यह लौकडाउन कब खत्म होगा? कहीं लंबा चला तो क्या होगा?’’ रचना की बातों पर हंसते हुए वह कहने लगा कि भविष्य में क्या होगा कौन जानता है? ‘वैसे जो हो रहा है सही ही है, जैसे हमारा मिलना’ जब उस ने मुसकराते हुए कहा, तो रचना शरमा कर अपने बाल कान के पीछे करने लगी. रचना के पूछने पर उस ने अपना नाम शिखर बताया और यह भी कि वह यहां एक कंपनी में काम करता है. अपना नाम बताते हुए रचना कहने लगी कि उस का भी औफिस उसी तरफ है.

काम के साथसाथ अब दोनों में पर्सनल बातें भी होने लगी. शिखर ने बताया कि पहले वह मुंबई में रहता था. मगर अभी कुछ महीने पहले ही तबादला हो कर दिल्ली शिफ्ट हुआ है.

‘‘ओह… और आप की पत्नी भी जौब में हैं?’’ रचना ने पूछा तो शिखर कहने लगा कि नहीं, वह एक हाउसवाइफ है. ‘‘हाउस वाइफ नहीं, होममेकर कहिए शिखर जी, अच्छा लगता है’’ बोल कर रचना खिलखिला पड़ी, तो शिखर उसे देखता ही रह गया. रचना से बातें करते हुए शिखर के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि नजर आती थी. लेकिन वहीं, अपनी पत्नी से बातें करते हुए वह झल्ला पड़ता था

 

अमन को औफिस भेज कर, घर के काम जल्दी से निपटा कर, रचना अपनी जगह पर जा कर बैठ जाती, उधर शिखर पहले से ही उसका इंतजार करता रहता और उसे देखते ही खिड़की के पास आ कर खड़ा हो जाता और दोनों बातें करने लगते. लेकिन जैसे ही शिखर को अपनी पत्नी की आवाज सुनाई पड़ती, वह भाग कर अपनी जगह पर बैठ जाता और फिर दोनों इशारोंइशारों में बातें करने लगते. कहीं न कहीं दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे थे. लेकिन कोरोना के चलते घर में क्वारंटाइन होने की वजह से उन के प्यार की गाड़ी अटक गई थी. लेकिन उन्होंने इस का भी हल निकाल लिया.

दोनों कागज पर लिख कर अपने दिल का हाल बयां करते और उस खत को रोल कर एकदूसरे की तरफ फेंकते. कभी मोबाइल से दोनों बातें करते, कभी चैटिंग करते, जोक्स बोल कर हंसतेहंसाते. लेकिन इस पर भी जब उन का मन नहीं भरता, तो दोनों अपनीअपनी छत पर खड़े हो कर लोगों के घरों में ताकझांक करते कि इस लौकडाउन में वे अपने घरों में क्या कर रहे हैं? कहीं पतिपत्नी साथ मिल कर खाना पका रहे होते. कहीं काम को ले कर सासबहू में झगड़े हो रहे होते. और एक घर में तो हसबैंड पोंछा लगा रहा था और उस की पत्नी उसे बता रही थी कि और कहाकहां पोंछा लगाना है. देख कर दोनों की हंसी रुक ही नहीं रही थी. रचना का तो पेट ही दुखने लगा हंसहंस कर. बड़ा मजा आ रहा था उन्हें लोगों के घरों में ताकझांक करने में. अकसर दोनों छत पर जा कर लोगों के घरों में ताकतेझांकते और खूब मजे लेते.

जहां इस कोरोना ने पूरी दुनिया में कहर मचा रखा है. दुनियाभर में कोरोना की चपेट

में लाखों लोग आ गए हैं. हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. कोरोना के डर से करोड़ों लोग अपने घरों में कैद हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के चलते लोग एकदूसरे से मिल नहीं रहे हैं. वहीं इस दहशत के बीच रचना और शिखर के बीच प्यार का अंकुर फूट पड़ा है. यह अनोखी प्रेम कहानी भले ही लोगों की आंखों से ओझल है, पर दोनों एकदूसरे की आंखों में डूब चुके हैं.

लेकिन उन का प्यार अमन और शिखर की पत्नी के आंखों से छुपा नहीं है. जान रहे हैं दोनों कि इन दोनों के बीच कुछ तो चल रहा है. तभी तो अमन जब भी घर में होता है रचना के आसपास ही मंडराता रहता है, और उधर शिखर की पत्नी भी खिड़की खुला देखा, आंखभौं चढ़ा लेती है.

इसी बात पर कई बार अमन से रचना

की लड़ाई भी हो चुकी है. अमन का कहना है

कि क्यों वह वहीं बैठ कर काम करती है? घर में और भी तो जगह हैं? लेकिन रचना कहती है कि उस की मरजी, जहां बैठ कर वह काम करे. वह क्यों उस का मालिक बना फिरता है? ‘घर का एक काम तो होता नहीं उस से,

और बड़ा आया है नसीहतें देने’ अपने मन में ही बोल रचना मुंह बिचका देती.

उधर शिखर भी अपनी पत्नी के व्यवहार से परेशान है. जब

देखो, वह उस के आगेपीछे मंडराती रहती. कभी चाय, कभी पानी देने के बहाने वहां पहुंच जाती और फालतू की बातें कर उसे बोर करती. कहता शिखर, ‘‘जाओ मुझे काम करने दो, पर नहीं, बकवास करनी ही है उसे. रचना को वह घूर कर देखती और खिड़की बंद कर देती है. लेकिन जब वह चली जाती है, खिड़की खुल भी जाती और फिर दोनों की गुपचुप बातें शुरू हो जाती है.’’

अमन के सो जाने पर, देर रात तक रचना शिखर के साथ फोन पर चैटिंग करती रहती है. सुबह रचना को डेरी तक दूध लाने जाना पड़ता था, तो अब शिखर भी उस के साथ दूध और सब्जीफल लाने, स्टोर तक जाने लगा है, ताकि दोनों को आपस में बातें करने का मौका मिल सके. लोगों की नजरें बचा कर शिखर कूद कर रचना की छत पर आ जाता है और दोनों एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए घंटो बिता देते हैं.

‘‘लगता है बारिश होगी. हवाएं भी कितनी ठंडीठंडी चल रही है’’ कह कर रचना उस रोज, जब दोनों एक ही छत पर साथ बैठे हुए थे, अपनेआप में ही सिकुड़ने लगी, तभी अमन ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और दोनों वहीं जमीन पर बैठ गए. कुछ देर तक दोनों एकदूसरे की आंखों में ऐसे डूबे रहे, जैसे उन के आसपास कोई हो ही न. शिखर हौलेहौले रचना के बालों में उंगलियां फिराने लगा और वह मदहोश उस की बाहों में सिकुड़ती चली गई. ‘‘अभी तो लोगों को डिस्टेंस बना कर चलने

के लिए कहा जा रहा है और हम यहां एकसाथ बैठे प्यारमुहब्बत कर रहे हैं. अगर किसी ने

देख लिया हमारा कोरोना प्यार तो?’’ हंसते हुए रचना बोली.

‘‘हां, सही है यार… किसी ने देख लिया तो? पता है, पुलिस लोगों को दौड़ादौड़ा कर डंडे बरसा रही है’’ कह कर शिखर हंसा तो रचना भी हंस पड़ी. ‘‘वैसे, क्यों न हम अपने प्यार का नाम ‘कोरोना लव’ रख दें. कैसा रहेगा?’’

तभी अचानक से शरीर पर पानी की बूंदें पड़ते देख दोनों चौंक पड़े. ‘‘ब बारिश, बारिश हो रही है शिखर. ओ… मां, इस मार्च के महीने में बारिश?’’ बोल कर रचना एक बच्ची की तरह चिहुक उठी और अपनी हथेलियां फैला कर गोलगोल घूमने लगी. मजा आ रहा था. उसे बारिश में भीगने में. लेकिन तबीयत बिगड़ने के डर से दोनों वापस घर में आ गए, क्योंकि यह बेमौसम की बारिश थी और वैसे भी, अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, तो बारिश में भीगना ठीक नहीं. लेकिन दोनों की बातें अभी खत्म नहीं हुई थी. सो वे अपनीअपनी खिड़की से ही इशारों में बातें करने लगे.

‘आंखों की गुस्ताखियां माफ हो… एकटक तुम्हें देखती है… जे बात कहना

चाहे जुबां… तुम से वो कहती है’ एक कागज पर ढेरों तारीफ लिख कर शिखर ने रचना की तरफ अभी फेंका ही था कि अमन आ गया और उन का कलेजा धक्क कर गया. खैर, वह उस कागज के गोले को देख नहीं पाया, क्योंकि रचना ने झट से उसे अपने पैर के नीचे दबा दिया और जब अमन वहां से चला गया, तब वह उसे खोल कर पढ़ने लगी. अपनी तारीफें पढ़ कर रचना का चेहरा शर्म से लाल हो गया. जब उस ने अपनी नजरें उठा कर शिखर की तरफ देखा, तो उस ने एक प्यारा सा ‘फ्लाइंग किस’ रचना को भेजा. बदले में रचना ने भी उसे फ्लाइंग किस भेजा और दोनों मोबाइल पर चैटिंग करने लगे. जहां कोरोना के डर से लोग हदसे हुए हैं. सड़केंगलियां सुनसानवीरान पड़ी हैं. वहीं रचना और शिखर को अपनी जिंदगी पहले से भी हसीन लगने लगी है. उसे वीरान पड़ी दुनिया रंगीन नजर आ रही है. सांयसांय करती हवा, प्यार की धुन लग रही है. अपनी जिंदगी में यह नया बदलाव दोनों को भाने लगा है. लेकिन यही बातें अमन और शिखर की पत्नी को जरा भी नहीं भा रहा है. उन्हें खुश देख वह जलभुन रहे हैं. लेकिन रचना और शिखर को इस बात की कोई परवाह नहीं है.

अमन और रचना ने लवमैरिज की

थी. परिवार के खिलाफ जा कर दोनों ने शादी की थी. वैसे, फिर बाद में सब ने उन के रिश्ते को स्वीकार कर लिया, लेकिन अब अमन में वह बात नहीं रही जो पहले हुआ करती थी. रचना तो आज भी अमन को प्यार करती है, पर ताली तो दोनों हाथों से बजती है न? अमन हमेशा उसे झिड़कते रहता है. उस की कमियां निकालते रहता है, जैसे उस में कोई अक्ल ही न हो. तो वह भी कब तक उसे बर्दाश्त करे भला? सो वह भी उसे जम कर सुना देती है पर दोनों में लड़ाइयां शुरू हो जातीं. शादी से पहले रचना को नहीं पता था कि अमन इतना शुष्क इंसान होगा. एक पत्नी अपने पति से क्या चाहती है? प्यार के 2 बोल ही न? झूठी ही सही, पर क्या वह रचना की तारीफ नहीं कर सकता जैसे पहले किया करता था? ये बात तो विश्व प्रचलित है कि तारीफ सुनना ब्रह्मांड की सभी स्त्रियों को पसंद है, तो अगर रचना ने ऐसा चाह लिया, तो क्या गलत हो गया.

रिश्ते के शुरुआती दिनों में हर वक्त अमन रचना की तारीफ किया करता था. जताता था

कि वह बेहद खूबसूरत है, प्यारी है और वही उस के सपनों की रानी है. अमन कहता, ‘‘रचना, तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हैं. तुम्हारे घने बालों में घिरे रहना चाहता हूं हरदम,’’ उस की बातों पर रचना इठला पड़ती. अच्छा लगता था उसे अपनी तारीफें सुनना.

लेकिन यही सब बातें अमन को बकवास लगने लगी हैं. लेकिन वहीं जब कोई और रचना की खूबसूरती की तारीफें करता है तो कैसे वह जलभुन जाता है और रचना से लड़ाई करने लगता है. जैसे रचना ने ही उसे उकसाया हो अपनी तारीफें करनेको.’ और क्यों न करें कोई उस की तारीफ, जब सामने वाला इस काबिल हो तो रचना की इस बात पर वह और तिलमिला जाता है और पूरी रात उस से झगड़ता रहता है. शिखर, कहता है, रचना अपनी उज्ज्वल मुसकान से कैसे उस के दिन बना देती है और अमन कहता है, वह अपनी बातों से उस का दिन खराब कर देती है, इसलिए वह जानबूझ कर औफिस से घर देर से आता है. लेकिन क्या वह जानती नहीं कि वह औफिस से घर देर से क्यों आता है? क्योंकि वहां वह किंजल मैडम जो हैं उन की, जिस के साथ वह उठताबैठता, बोलताहंसता, खातापीता है.

घर आ कर भी वह उस से ही बातें करता रहता है फोन पर. जैसे घर में कोई हो ही न. फिर शादी ही क्यों की उस ने? कर लेता उसी किंजल से. क्या जरूरत थी रचना की जिंदगी बरबाद करने की? वह भी बेचारी किस से बात करे? कोई है क्या यहां अपना? इस कोरोना की वजह से तो किसी दोस्त के घर भी नहीं जा सकती वह, फिर क्या करे, पागल हो जाए? लेकिन अमन को यह बात समझ ही नहीं आती. लगे रहते हैं अपने दोस्तों से बातें करने में. नहीं सोचते है कि रचना अकेलापन महसूस करती होगी. तो ठीक है न, अब मिल गया है उसे भी एक नया दोस्त. खुश है वह अब अपने नए दोस्त के साथ. कोई परवाह नहीं उसे भी, कि वह उसे वक्त दे कि न दे.

शिखर भी अपनी बड़बोली पत्नी से परेशान रहता है. दिनभर बकरबकर करती रहती है, कुछ बोलो तो लड़ने लग जाती है. शिखर के मांबाप ने पैसों के लालच में उस की शादी एक ऐसी लड़की से कर दी, जो कहीं से भी उस के लायक नहीं है. लेकिन क्या करें, निभाना तो है. यह सोच कर शिखर चुप रह जाता है. लेकिन जब से रचना उस की जिंदगी में आई है, उसे अपनी जिंदगी से प्यार होने लगा है. इधर से

रचना को हमेशा खुश और हंसतेमुसकराते देख अमन चिढ़ने लगा है और उधर शिखर को गुनगुनाते देख उस की पत्नी चूंचूंचीची करती रहती है, लेकिन कोई परवाह नहीं उसे किसी के चिढ़नेरूठने से.

अमन को औफिस भेज कर जैसे ही रचना औफिस जाने के लिए घर से निकली, शिखर ने अपनी गाड़ी उस के सामने रोक दिया और खींच कर उसे अंदर बैठा लिया. हक्कीबक्की सी रचना उसे देखती रह गई. वह अभी कुछ बोलती ही कि शिखर ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी और गाना लगा दिया. ‘बैठ मेरे पास तुझे देखता रहूं… बैठ मेरे पास… न तू कुछ कहे न मैं कुछ कहूं… बैठ मेरे पास’ अचानक से माहौल एकदम रोमांटिक हो गया. दोनों को लगने लगा, वक्त यहीं ठहर जाए, आगे बढ़े ही न. दोनों एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. वह मंजर किसी फिल्म का भले लग रहा हो पर दोनों इस तजुर्बे से गुजर रहे थे. उन की नजरें चार हो रही थी और आसपास के माहौल धुंधले.

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