इतवार को जब असम के जिला हैलाकांदी प्रशासन से फोन आया कि उसी दिन मुझे जिला मुख्यालय के प्रशासनिक भवन में पहुंचना है तो उसी वक्त मुझे आभास हो गया था कि किसी दुर्गम स्थल पर चुनाव करने के लिए मेरा चुनाव किया गया है. मंगलवार के चुनाव के लिए मुझे एक दिन पहले यानी सोमवार को सुबह जाना था. मगर यहां तो मुझे 2 दिन पहले ही बुलाया जा रहा था. लिहाजा, आवश्यक सामान ले कर हैलाकांदी पहुंचा.जिला मुख्यालय कार्यालय में मुझ जैसे कई और भी लोग थे, जिन्हें दुर्गम स्थान में चुनावकार्य के लिए पहले पहुंचना था. उन्हें आवश्यक सामग्री और सूचनाएं उपलब्ध कराई जा रही थीं. मेरी टीम में कुल 4 जन थे, जिन में से 2 आ चुके थे और 2 का आना बाकी था. वे कब आएंगे, पता नहीं था. खैर, उन में से एक 4 बजे शाम को प्रकट हुआ, दूसरा 7 बजे रात में आया, जबकि सभी को दोपहर से ही उपस्थित रहने की सूचना लगातार दी जा रही थी. चूंकि वे स्थानीय थे, उन्हें शायद चुनाव का रंगढंग पता था, शायद इसलिए उन्हें हड़बड़ी न थी.
दक्षिण असम में स्थित हैलाकांदी शहर में होटलों के पौबारह थे. उन होटलों में बना कुछ भी खाद्य सामान देखतेदेखते खत्म हो जाता था. आखिर चुनाव का मौसम जो था. खैर, एक होटल में कुछ खा कर डिनर का सुख लिया. सामने एक बस तैयार खड़ी थी, जिस में हम सभी को चुनाव सामग्री के साथ सवार होना
था. 9 बजे बस चली. हैलाकांदी के बाद लाला, फिर कतलीचेरा और फिर रामनाथपुर कसबा. चारों तरफ घुप अंधेरा. उस अंधेरे को चीरती हमारी बस सड़क पर भागती जा रही थी.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन