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चुनाव सामग्री के गट्ठर खुले. उन्हें मिलान कर व्यवस्थित किया जाने लगा. सारे दस्तावेज असम की राजभाषा बंगला में थे. असम की 2 राजभाषाएं हैं, असमी और बंगला. मेरे सहयोगी उन्हें पढ़पढ़ कर बताते और मैं समझ कर या बिना समझे ही उन पर हस्ताक्षर करता जाता था. मुझे मालूम था कि चुनाव में अंतिम सत्य सिर्फ मतपेटी या बैलेटबौक्स हैं. उन को यदि सुरक्षित कर लिया जाए तो चुनाव की नैया पार है. चुनाव अधिकारी खतरे से बाहर है.

‘‘एक बार प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी भी तो समझ लीजिए,’’ मेरे सहयोगी ने कहा. वे जैसे मेरी मंशा भांप कर बोले थे, ‘‘वह भी महत्त्वपूर्ण है. सामान जमा करते वक्त वही पहले मांगते हैं.’’

मेरे सहयोगी शीघ्रतापूर्वक मुझे आवश्यक जानकारी देते हुए जरूरी कागजात भरने की खानापूरी कर रहे थे. देखतेदेखते 5 बज गए. शाम का धुंधलका बढ़ने लगा था और इसी के साथ सिहरन भी. ठंडी हवा बहने लगी थी. अंधेरा घिरते ही सरकारी मोमबत्ती जला दी गई थी, जिस की टिमटिमाती रोशनी में हम सभी कुछकुछ सहमे से बैठे थे कि कल क्या होगा.

‘कल सब ठीक होगा’ जैसा यह जवाब देते एक रियांग युवक इमरजैंसी लालटेन रख गया था, जिस के प्रकाश में मुझे कुछ और काम निबटाने का मौका मिल गया था. बाहर अलाव जलाया गया जिस के इर्दगिर्द सुरक्षा के जवानों के साथ कुछ स्थानीय लोग बैठे थे. आधेक घंटे के बाद अब वहां सिर्फ सुरक्षाकर्मी थे. लगभग 9 बजे भोजन आया. भोजन में वही था, स्थानीय चावल का भात, मछली और सब्जी. मगर इस बार की सब्जी स्वादिष्ठ बनी थी. भोजन परोसने और कराने में स्वाभाविक आत्मीयता का बोध था.

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