‘‘जरा बाहर वाला दरवाजा बंद करते जाइएगा,’’ सरोजिनी ने रसोई से चिल्ला कर कहा, ‘‘मैं मसाला भून रही हूं.’’

‘‘ठीक है, डेढ़दो घंटे में वापस आ जाऊंगा,’’ कहते हुए श्रीनाथ दरवाजा बंद करते हुए गाड़ी की तरफ बढ़े. उन्होंने 3 बार हौर्न बजाते हुए गाड़ी को बगीचे के फाटक से बाहर निकाला और पास वाले बंगले के फाटक के सामने रोक दिया.

‘पड़ोस वाली बंदरिया भी साथ जा रही है,’ दांत पीस कर सरोजिनी फुसफुसाई, ‘बुढि़या इस उम्र में भी नखरों से बाज नहीं आती.’ गैस बंद कर के वह सीढि़यां चढ़ गई थी.

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सरोजिनी ऊपर वाले शयनकक्ष की खिड़की के परदे के पीछे खड़ी थी. वहीं से सब देख रही थी. वैसे भी पति का गानेबजाने का शौक उसे अच्छा नहीं लगता था और श्रीनाथ थे कि कोई रसिया मिलते ही तनमन भूल कर या तो सितार छेड़ने लगते या उस रसिया कलाकार की दाद देने लगते पर जब से सरोजिनी के साथ इस विषय में झड़प होनी शुरू हो गई थी तब से मंडली घर में जमाने के बजाय बाहर जा कर अपनी गानेबजाने की प्यास बुझाने लगे थे. सरोजिनी कुढ़ती पर श्रीनाथ शांत रहते थे. पड़ोस के बगीचे का फाटक खोल कर मीनाक्षी बाहर आई. कलफ लगी सफेद साड़ी, जूड़े पर जूही के फूलों का छोटा सा गुच्छा और आंखों पर मोटा चश्मा, बरामदे में खड़े अपने पति राजशेखर को हाथ से विदा का इशारा करती वह गाड़ी का दरवाजा खोल कर श्रीनाथ के साथ थोड़ा फासला कर बैठ गई. फिर शीघ्र ही गाड़ी नजरों से ओझल हो गई.

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