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आयुषी ने जब एक दिन रूपा से पूछा कि तुम्हारा पति क्या करता है, तो बोली, ‘‘दीदी, मेरा मर्द मजदूरी करता है. हमारी शादी के अभी 2 साल ही हुए हैं.’’

रूपा अपने मायके, ससुराल, नातेरिश्तेदारों सब के बारे में बताती रहती थी. आयुषी अब रूपा पर भरोसा करने लगी थी, परंतु उसे अपने पति पर कतई भरोसा न था.

रूपा को आयुषी के घर काम करते हुए करीब 7 महीने हो चुके थे. अब तो रूपा कभीकभार लेट भी आती, तो आयुषी कुछ नहीं कहती थी. उसे लगता था कि अगर रूपा ठीक है, तो उमेश कुछ नहीं कर सकता है.

रूपा अब बड़े सलीके से सजधज कर रहने लगी थी. आयुषी ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘रूपा, आज तो तुम बहुत अच्छी लग रही हो और यह तुम्हारा सलवारसूट भी. कहां से खरीदा? बहुत ही सुंदर रंग है.’’

रूपा कहने लगी, ‘‘दीदी, मेरी मां ने दिया था.’’

रूपा का चेहरा कुछ दिनों से बड़ा ही खिलाखिला सा लगने लगा था. आयुषी ने पूछा भी, ‘‘रूपा आजकल बड़ी खुश नजर आ रही है... कोई बात है क्या?’’ तब रूपा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘नहीं दीदी.’’

रूपा कुछ महीनों से काम करने लेट से आने लगी थी. पूछने पर कहने लगी ‘‘मेरी सास बीमार हैं, इस कारण देर हो जाती है,’’

आयुषी कुछ नहीं कहती, उस पर घर छोड़ कर औफिस चली जाती थी. आयुषी को इस बात की हैरानी होती थी कि उमेश इतना कैसे सुधर गया, रूपा उसे चाय देने भी जाती, तो नजर उठा कर भी नहीं देखता है. आयुषी को लगा कि शायद उसे उस दिन का थप्पड़ याद है और फिर मुसकरा उठी.

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