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आयुषी बैंक में नौकरी करती है और उमेश एलआईसी कार्यालय में है. उमेश तो घर से 10-11 बजे निकलता है, पर आयुषी को घर से जल्दी निकलना पड़ता है. उन के 2 बच्चे हैं- बेटी पावनी 11 साल की और बेटा सनी 7 साल का.

आयुषी दोनों बच्चों को स्कूल भेज उमेश का लंच पैक कर बाकी का काम बाई पर छोड़ तैयार हो कर बैंक निकल जाती. उसे हमेशा यही डर सताता है कि पता नहीं उस के पीछे उमेश और बाई कहीं कुछ...

कितनी बार आयुषी ने उमेश को अखबार की ओट से बाई को गंदी नजरों से घूरते देखा है. अब झाड़ूपोंछा लगाते वक्त किसी के भी कपड़े अस्तव्यस्त हो ही जाते हैं. इस का यह मतलब तो नहीं है कि कोई उसे गंदी नजरों से घूरे. ऐसे में कोई भी बाई असहज हो जाएगी. आयुषी ऐसे ही पति पर शक नहीं कर रही थी.

‘‘नंदा, मैं औफिस जा रही हूं. तुम काम खत्म कर के चली जाना... और हां फ्रिज में कुछ खाने का सामान रखा है उसे लेती जाना,’’ कह एक दिन आयुषी औफिस चली गई.

आयुषी थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि उसे याद आया कि वह अपनी दराज की चाबी भूल आई. उस ने तुरंत स्कूटी घर की तरफ घुमाई. घर की दूसरी चाबी आयुषी के पास रहती थी. अत: वह दरवाजा खोल कर जैसे ही अंदर गई उस के पैर वहीं ठिठक गए. उमेश और नंदा दोनों आयुषी के बैड पर एकदूसरे से लिपटे थे.

आयुषी को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था. बाई तो भाग गई... उमेश हकलाते हुए कहने लगा, ‘‘आयुषी मैं नहीं वही जबरदस्ती करने...’’

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