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Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

मुन्नीबाई ने किसी को कुछ नहीं बताया. उस ने दोतीन बार महेंद्र को फोन लगाया, तब जा कर महेंद्र से ही बात की, ‘मैं कामवाली बाई बोल रही हूं. आप के भाई सहेंद्र साहब और भाभी रीना साहिबा का कोरोना के चलते निधन हो गया है. अभी अस्पताल से फोन आया था.’

‘तो, मैं क्या करूं?’ दोटूक जवाब दे दिया महेंद्र ने.

‘साहब जी, यहां तो केवल बच्चे ही हैं और पिताजी की तबीयत वैसे भी ठीक नहीं हैं, इसलिए मैं ने उन्हें कुछ नहीं बताया है.’

‘हां, तो बता दो,’ महेंद्र के स्वर में अभी भी कठोरता ही थी.

‘आप कैसी बात कर रहे हैं साहबजी, मैं अकेली बच्चों को संभालूंगी कि पिताजी को? आप आ जाएं तो फिर हम बता देंगे.’

‘मैं नहीं आ रहा. तुम को जो अच्छा लगे, सो कर लो,’ महेंद्र ने फोन काट दिया. मुन्नीबाई की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. उस के पास सहेंद्र की बहन का फोन नंबर भी था. उस ने उन से भी बात कर लेना बेहतर समझा. ‘दीदी, सहेंद्र साहब और रीना जी का निधन अस्पताल में हो गया है.’

‘तुम कौन बोल रही हो?’

‘मैं कामवाली बाई हूं, बच्चों की देखभाल के लिए यहीं रुकी हूं.’

‘ओह अच्छा, कहां मौत हुई है उन की- घर में कि अस्पताल में?’

‘अस्पताल में हुई है, वहीं से अभी फोन आया था.’

‘अच्छा, सुन कर बहुत दुख हुआ,’ उस के स्वर में दुख झलका भी.

‘मैडम जी, अभी मैं ने यहां किसी को बताया नहीं है. आप आ जाएं, तो बता देंगे.’

‘मैं कैसे आ सकती हूं, मैं नहीं आ पा रही, कोरोना चल रहा है.’

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