कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

सच में तुम आ जाओगी मुन्नीबाई?’ रीना को विश्वास नहीं हो रहा था.

‘हां, मैं अभी आ जाती हूं. आप चिंता न करें,’ मुन्नीबाई के स्वर में दृढ़ता थी.

‘पर मुन्नीबाई, मालूम नहीं मुझे कब तक अस्पताल में रहना पड़े.’

‘मैं रह जाऊंगी, आप साहब का इलाज करा लें.’

‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी, मुन्नीबाई,’ रीना की आवाज में कृतज्ञता थी.

‘इस में एहसान की क्या बात, बाईसाहिबा. हम लोग एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे तो हम इंसान कहलाने लायक भी नहीं होगे,’ मुन्नीबाई के स्वर में अपनत्व झलक रहा था.

रीना के निकलने के पहले ही मुन्नीबाई आ गई थी. मुन्नीबाई के आ जाने से उस की एक चिंता तो दूर हो गई थी.

सहेंद्र को भरती हुए 2 दिन ही हुए थे कि रीना को भी भरती होना पड़ा था. सहेंद्र को भरती करा लेने के बाद उसे तो आईसीयू में जाने नहीं दिया जा रहा था तो वह अस्पताल के परिसर में बैठी रहती थी. उस दिन उसे वहां तेज बुखार से तड़पता देख कर नर्स ने अस्पताल में भरती करा दिया था. पहले तो उसे जनरल वार्ड में रखा गया, पर जब उस की तबीयत अैर बिगड़ी तो उसे भी आईसीयू में ही ले जाया गया. पतिपत्नी दोनों के पलंग आमनेसामने थे. सहेंद्र ने जैसे ही रीना को आईसीयू वार्ड में देखा तो उस का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखों से आंसू बह निकले.

ये भी पढ़ें- परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

रीना बेहोशी की हालत में थी, इसलिए वह अपने पति को नहीं देख पाई. सहेंद्र बहुत देर तक आंसू बहाते रहे. वे अपनी पत्नी की इस हालत का जिम्मेदार खुद को ही मान रहे थे. रीना की बेहोशी दूसरे दिन दूर हो पाई. उस ने अपने चेहरे पर मास्क लगा पाया जिस से औक्सीजन उस के अंदर जा रही थी. घड़ी की टिकटिक करने जैसी आवाज चारों ओर गूंज रही थी. उस के हाथ में बौटल लगी हुई थी. वह बहुत देर तक हक्काबक्का सी सब देखती रही. उसे समझ में आ गया था कि वह भी आईसीयू वार्ड में भरती है. ऐसा समझ में आते ही उस की निगाहें अपने पति को ढूंढ़ने लगीं. सामने के बैड पर पति को देखते ही वह बिलख पड़ी. सहेंद्र भी पत्नी को यों ही एकटक देख रहे थे. उन का मन हो रहा था कि वे पलंग से उठ खड़े हों और पत्नी के पास जा कर उसे ढाढ़़स बंधाएं पर वे हिल भी नहीं पा रहे थे. पतिपत्नी दोनों आमनेसामने के बैड पर लेटे एकदूसरे को देख रहे थे. दोनों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...