Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव
सहेंद्र शाम को घर लौटते, तो अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर घुमाने ले जाते. बच्चे उन के आने की राह देखते रहते. कई बार उन की पत्नी भी साथ हो लेती पर अकसर ऐसा नहीं हो पाता था. रीना घर में ठहर जाती और बच्चों के लिए खाना बनाने लगती. शाम का खाना सभी लोग मिल कर खाते. रानू को खाना खिलाना रीना के लिए बड़ी चुनौती होती. वह पूरे घर में दौड़ लगाती रहती और हाथों में कौर पकड़े रीना उस के पीछे भागती रहती. रीना जानती थी कि रानू का यह खेल है, इसलिए वह कभी झुंझलाती नहीं थी. चिन्टू पापा के साथ बैठ कर खाना खा लेता.
रीना तो पिताजी को खाना खिलाने के बाद ही खुद खाना खाती. पिताजी के लिए खाना अलग से बनाती थी. रीना स्वंय सामने खड़ी रह कर पिताजी को खाना देती और फिर उन की दवाई भी देती. वह अपने पल्लू से पिताजी का चेहरा साफ करती और उन्हें सुला देती. तब तक सहेंद्र अपने बच्चों का होमवर्क करा देते.
सहेंद्र के परिवार में कोई समस्या न थी. पर एक दिन अचानक सहेंद्र बीमार हो गए. औफिस से लौटे तो उन्हें तेज बुखार था. हलकी खांसी भी चल रही थी. वे रातभर तेज बुखार में पड़े रहे. उन्हें लग रहा था कि मौसम के परिवर्तन के कारण ही उन्हें बुखार आया है. हालांकि शहर में कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा था. इस कारण से रीना भयभीत हो गई थी.
‘आप डाक्टर से चैक करा लें,’ रीना की आवाज में भय और चिंता साफ झलक रही थी.
‘नहीं, एकाध दिन देख लेते हैं, थकान के कारण बुखार आ गया हो शायद.’
वे उस दिन औफिस नहीं गए. उन्होंने अपने साहब को फोन कर औफिस न आ पाने के बारे में बता दिया था. रीना ने बच्चों को उन के पास नहीं जाने दिया. चिन्टू दूर से ही पापा से बातें करता रहा. पापा के बगैर उस का मन लगता कहां था. रानू तो दौड़ कर उन के बिस्तर पर चढ़ ही गई. बड़ी मुश्किल से रीना ने उसे उन से अलग किया. सहेंद्र दोतीन दिनों तक ऐसे ही पड़े रहे. इन दोतीन दिनों में रीना ने कई बार उन से डाक्टर से चैक करा लेने को बोला. पर वे टालते रहे.
रीना की घबराहट बढ़ती जा रही थी. रीना ने अपने देवर महेंद्र को फोन कर सहेंद्र की बीमारी के बारे में बता दिया था. पर महेंद्र देखने भी नहीं आया.
उस दिन रीना ने फिर महेंद्र को फोन लगाया, ‘भाईसाहब, इन की तबीयत ज्यादा खराब लग रही है. हमें लगता है कि इन्हें डाक्टर को दिखा देना चाहिए.’
ये भी पढ़ें- नादानियां: प्रथमा और राकेश के रिश्तों में कैसे नादानियों ने लगाई सेंध
‘अरे, आप चिंता मत करो, वे ठीक हो जाएंगे.’
‘नहीं, आज 5 दिन हो गए, उन का बुखार उतर ही नहीं रहा है. आप आ जाएं तो इन्हें अस्पताल ले जा कर दिखा दें,’ . रीना के स्वर में अनुरोध था.
‘अरे, मैं कैसे आ सकता हूं, भाभी. यदि भाई को कोरोना निकल आया तो?’’
‘पर मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी. आप आ जाएं भाईसाहब, प्लीज.’
‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता.’ और महेंद्र ने फोन काट दिया था.
रीना की बेचैनी अब बढ़ गई थी. उस ने खुद ही सहेंद्र को अस्पताल ले जाने का निर्णय कर लिया.
रीना ने सहेंद्र को सहांरा दे कर औटो में बैठाला और खुद उसे पकड़ कर बाजू में ही बैठ गई. बड़ी मुश्किल से एक औॅटो वाला उन्हें अस्पताल ले जाने को तैयार हुआ था, ‘एक हजार रुपए लूंगा बहनजी.’
‘एक हजार, अस्पताल तो पास में ही है. 50 रुपए लगते हैं. और आप एक हजार रुपए कह रहे हो?’
‘कोरोना चल रहा है बहनजी. और आप मरीज को ले जा रही हैं. यदि मरीज को कोरोना हुआ तो… मैं तो मर ही जाऊंगा न फ्रीफोकट में.’ औटो वाले ने मजबूरी का पूरा फायदा उठाने की ठान ही ली थी.
‘पर भैया, ये तो बहुत ज्यादा होते हैं.’
‘तो ठीक है, आप दूसरा औटो देख लो,’ कह कर औटो स्टार्ट कर लिया. रीना एक तो वैसे ही घबराई हुई थी, बड़ी मुश्किल से औॅटो मिला था, इसलिए वह एक हजार रुपए देने को तैयार हो गई. उस ने सहेंद्र को सहारा दिया. सहेंद्र 5 दिनों के बुखार में इतने कमजोर हो गए थे कि स्वंय से चल भी नहीं पा रहे थे. रीना के कंधों का सहारा ले कर वे औटो में बैठ पाए. औॅटो में भी रीना उन्हें जोर से पकड़े रही. बच्चे दूर खड़े हो कर उन्हें अस्पताल जाते देख रहे थे.
सहेंद्र को कोरोना ही निकला. उस की रिपोर्ट पौजिटिव आई. डाक्टरों ने सीटी स्कैन करा लेने की सलाह दी. उस की रिपोर्ट दूसरे दिन मिल पाई. फेफड़ों में इन्फैक्शन पूरी तरह फैल चुका था. सहेंद्र को किसी बड़े अस्पताल में भरती कराना आवश्यक था. रीना बुरी तरह घबरा चुकी थी. वह अकेले दूसरे शहर कैसे ले कर जाएगी. उस ने एक बार फिर महेंद्र से बात की, ‘भाईसाहब, इन्हें कोरोना निकल आया है और सीटी स्कैन में बता रहे हैं कि फेफड़ों में इन्फैक्शन बहुत फैल चुका है, तत्काल बाहर ले जाना पड़ेगा.’
ये भी पढ़ें- सबको साथ चाहिए- भाग 1: पति की मौत के बाद माधुरी की जिंदगी में क्या हुआ?
‘तो मैं क्या कर सकता हूं, भाभी?’
‘मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी, आप साथ चलते, तो मुझे मदद मिल जाती.’
‘ऐसा कैसे हो सकता है, भाभी, कोरोना मरीज के साथ मैं कैसे चल सकता हूं?’
‘मैं बहुत मुसीबत में हूं, भाईसाहब. आप मेरी मदद कीजिए, प्लीज.’
‘देखो भाभी, इन परिस्थितियों में मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता.’
‘ये आप के भाई हैं भाईसाहब, यदि आप ही मुसीबत में मदद नहीं करेंगे तो मैं किस के सामने हाथ फैलाऊंगी.’ रीना रोने लगी थी. पर रीना के रोने का कोई असर महेंद्र पर नहीं हुआ.
‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता. आप ही ले कर जाएं,’ और महेंद्र ने फोन काट दिया.
हताश रीना बिलख पड़ी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.
दोतीन अस्पताल में भटकने के बाद आखिर एक अस्पताल में सहेंद्र को भरती कर ही लिया गया. उसे सीधे आईसीयू में ले जाया गया जहां किसी को आने की अनुमति न थी. रीना को एम्बुलैंस बहुत मुश्किल से मिल पाई थी. उस ने सहेंद्र के औफिस में फोन लगा कर साहब को बोला था. साहब ने ही एम्बुलैंस की व्यस्था कराई थी. हालांकि, एम्बुलैंसवाले ने उस से 20 हजार रुपए ले लिए थे. उस ने कोई बहस नहीं की. इस समय उसे पैसों से ज्यादा फिक्र पति की थी. एम्बुलैंस में बैठने के पहले उस ने एक बार फिर अपने देवर को फोन लगाया था, ‘इन के साथ मैं जा रही हूं. घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. आप उन की देखभाल कर लें.’
महेंद्र ने साफ इनकार कर दिया. उस ने अपनी ननद को भी फोन लगाया था. ननद पास के ही शहर में रहती थी. पर ननंद ने भी आने से मना कर दिया. रीना अपने साथ बच्चों को ले कर नहीं जा सकती थी और उन्हें ले भी जाती तो पिताजी… उन की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए. उस ने अपनी कामवाली बाई को फोन लगाया, ‘‘मुन्नीबाई, मुझे इन्हें ले कर अस्पताल जाना पड़ रहा है, घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. तुम उन की देखभाल कर सकती हो?’ रीना के स्वर में दयाभाव थे हालांकि, उसे उम्मीद नहीं थी कि मुन्नी उस का सहयोग करेगी. जब उस के सगे ही मदद नहीं कर रहे हैं तो फिर कामवाली बाई से क्या अपेक्षा की जा सकती है. पर उस के पास कोई और विकल्प था ही नहीं, इसलिए उस ने एक बार मुन्नी से भी अनुरोध कर लेना उचित समझा.
ये भी पढ़ें- एहसास: क्या दोबारा एक हो पाए राघव और जूही?
‘ज्यादा तबीयत खराब है साहब की?’
‘हां, दूसरे शहर ले कर जाना पड़ रहा है.’
‘अच्छा, आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं आ जाती हूं आप के घर.’
मुन्नीबाई ने अपेक्षा से परे जवाब दिया था.