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“रितेश, दिल्ली में किसान जो आंदोलन पर उतर आए हैं, तुम्हें क्या लगता है, इस का क्या नतीजा निकलेगा?”  चाय की चुस्की के साथ रागिनी ने रितेश की तरफ देखते हुए कहा.

“पता नहीं यार, लेकिन मुझे तो लगता है कि किसान अपनी जगह सही हैं. वैसे भी, इस कोरोनाकाल में किसान बहुत ही परेशानी से गुजर रहे हैं. बल्कि, वे ही नहीं, देश का हर नागरिक परेशानी से गुजर रहा है. किसानों के साथ वाकई अन्याय है, खेती पर तो उन का ही हक होना चाहिए,” चाय खत्म कर खाली कप टेबल पर रखते हुए रितेश बोला.

“हां, सही कह रहे हो तुम. वैसे भी, देखो न, डीजल, पैट्रोल, खाद, फ्रिज, टीवी आदि चीजों के अलावा खानेपीने की चीजें भी कितनी महंगी होती जा रही हैं. बेचारे गरीब…कैसे भरेगा उन का पेट? कैसे पालेंगे वे अपना परिवार? मगर सरकार को इन सब से क्या मतलब, वह तो अपने में ही मस्त है,” चाय का जूठा कप बेसिन में रखते हुए रागिनी बोली.

“तुम यही सोचो न, कोरोना महामारी के कारण जहां देश में आजीविका खोने के बाद भारत का आधा हिस्सा भुखमरी से गुजर रहा है, वहां 1,000 करोड़ रुपए लगा कर संसद भवन बनाना कहां तक जायज है? पता नहीं रागिनी, देश किस ओर जा रहा है. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है,” अखबार एक तरफ मोड़ कर रखते हुए रितेश बोला, “अब छोड़ो देशदुनिया की बातें, कुछ नहीं बदलने वाला. जल्दी नाश्ता बना दो, आज औफिस जल्दी निकलना है, एक जरूरी मीटिंग है,”

‘एक तो वैसे ही कोरोना ने लोगों को परेशान किया हुआ है, ऊपर से कभी किसान आंदोलन तो कभी कुछ होता ही रहता है. लेकिन इन सब से  दिल्ली वालों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, कितनी असुविधाएं होती है हमें यह कोई नहीं समझाता’ खुद में ही भुनभुनाते  हुए रितेश बाथरूम चला गया.

रागिनी  किचन में चली गई. रितेश को औफिस भेज कर उसे अपने औफिस के लिए निकलना था. ‘गाड़ी में शायद पैट्रोल भी भरवाना पड़े और इस कमला को देखो, अब तक नहीं आई है. आएगी भी या नहीं, क्या पता. फोन कर के बोल देगी, दीदी, आज तबीयत जरा खराब है, नहीं आ पाऊंगी. यही तो करती है हमेशा. उसे निकालती नहीं हूं क्योंकि ईमानदार औरत है, वरना तो…’ बुदबुदाते हुए रागिनी जल्दीजल्दी सब्जी काटने लगी.

वैसे तो दोनों साथ ही औफिस जाने के निकलते थे. रागिनी को उस के औफिस छोड़ कर रितेश अपने औफिस चला जाता था और लौटते समय रागिनी को लेते हुए घर आ जाता था. जब कभी उन्हें घर आने में देर होती, बाहर से ही खाना खा कर आ जाते, वरना दोनों मिल कर खाना बना लेते थे. कभी किसी वजह से अगर दोनों में से किसी एक को आगेपीछे औफिस के लिए निकलना पड़ता, तो दूसरा अपनी गाड़ी से औफिस चला जाता था. रागिनी के जन्मदिन पर रितेश ने उसे ‘किया सेल्टोस’ गाड़ी गिफ्ट किया था. लेकिन फिर भी दोनों एक ही गाड़ी से औफिस आतेजाते थे, क्योंकि उन का सोचना था कि जब एक गाड़ी से काम चल सकता है तो 2 गाड़ियों को इस्तेमाल करने की क्या जरूरत है. बेकार में पैट्रोल तो ज्यादा खर्च होगा ही,  पौल्यूशन भी बढ़ेगा जो प्रकृति के लिए ठीक नहीं. वैसे ही बढ़ती जनसंख्या, वायु प्रदूषण, औद्योगिकीकरण, वृक्षों का व्यावसायिक पतन, फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं क्या कम है, जो हम और पौल्यूशन बढ़ाएं. देशदुनिया में चल रहे टौपिक पर अकसर दोनों पतिपत्नी बातें करते रहते थे.

रितेश एक इंटरनैशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर कार्यरत था. वहीं रागिनी भी एक कंपनी में जौब कर रही थी. रागिनी बिहार की रहने वाली थी और रितेश एक गुजराती छोरा. रागिनी बिहार से यहां अहमदाबाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आई थी. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे, इसलिए पढ़ाई को ले कर अकसर दोनों में बातें होते रहती थीं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रितेश मास्टर करने यूरोप जाना चाहता था. लेकिन रागिनी इंजीनियरिंग के बाद यहीं अहमदाबाद में रह कर एमबीए करने की सोच रही थी. परंतु अपने पापा पर वह और अधिक पैसों का भार नहीं डालना चाहती थी. क्योंकि यह इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही वे कितनी मुश्किल से करवा पा रहे थे. लेकिन उस ने भी सोच लिया कि जो भी हो, वह एमबीए जरूर करेगी. इसलिए कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही उस ने एक कंपनी में नौकरी कर ली. वहीं रितेश मास्टर करने 2 साल के लिए यूरोप चला गया. लेकिन इस बीच दोनों में फोन पर और वीडियोकौलिंग के जरिए बातें होती रहती थीं. महसूस किया उन्होंने कि वे एकदूसरे को बहुत ज्यादा मिस कर रहे हैं.  नहीं बताया कभी रितेश ने लेकिन आंखों के रास्ते कब और कैसे रागिनी उस के दिल में उतरती चली गई, उसे पता ही न चला. रागिनी को एक दिन भी न देख वह व्याकुल हो उठता था. कालेज में रागिनी का किसी से ज्यादा बातें न करना, अपने काम से काम रखने वाली आदतों से उसे लगता कि अगर उस ने अपने दिल की बात उस से कह दिया, तो कहीं उस की दोस्ती भी खतरे में न पड़ जाए, इसलिए अपने प्यार को एकतरफा प्यार समझ कर वह कुछ नहीं बोला पाया था. मगर उसे नहीं पता था कि रागिनी भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी.  रितेश जब पढ़ाई में व्यस्त रहता या अपने किसी दोस्त से बातें करता होता, तो रागिनी उसे छिपछिछुप कर देखती रहती थी.  सच तो यह था कि दोनों को एकदूसरे के प्रति गहन आकर्षण था. लेकिन बोलने में दोनों हिचक रहे थे.

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