लेकिन रागिनी ने उसी रोज एक फैसला ले लिया था कि वह शादी तभी करेगी जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. रागिनी की एक सहेली, जिस के पापा डाक्टर थे, गुजरात आ कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की बात बोली, तो रागिनी ने भी ठान लिया कि वह भी वहीं जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेगी. लेकिन यह सुनते ही सुषमा ने पूरा घर सिर पर उठा लिया कि अब बेटी बाहर पढ़ाई करने जाएगी?
‘हां, जाऊंगी. मैं दीवारों में कैद हो कर जीने के लिए या जला कर मारने के लिए पैदा नहीं हुई हूं. मुझे कुछ बनना है. मां, मेरी सहेली भी तो जा रही है न बाहर पढ़ने, तो मैं क्यों नहीं जा सकती?’ रागिने ने अपना राग छेड़ दिया.
‘पागल हो गई है यह लड़की,’ गरजते हुए सुषमा बोली थी, ‘उस का बाप डाक्टर है गुजरात में, तो क्या वह अपनी बेटी को इंग्लैंड भेज कर पढ़ा सकता है. लेकिन हमारी इतनी औकात नहीं. चुपचाप यहीं पढ़ाई करो जितनी करनी हो. सोचा था दीपक को इंजीनियर बनाऊंगी, पर वह तो बना नहीं और यह चली है इंजीनियर बनने.’ अपनी मां के मुंह से ऐसी बातें सुन कर रागिनी रो पड़ी थी.
‘बेटे को इंजीनियर बनाने की औकात थी आप लोगों में, लेकिन मुझे नहीं, क्यों? क्योंकि मैं लड़की हूं? और भैया इंजीनियर नहीं बन पाए तो इस में मेरा क्या कुसूर? मुझे गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी है और मैं करूंगी,’ रागिनी ने मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर करेगी. इस के लिए उस ने खानापीना सब छोड़ दिया. जानती थी घर में वही होता है जो सुशमा चाहती है. लेकिन आज वही होगा, जो रागिनी चाहेगी. और क्या गलत चाह रही है वह? पढ़ना ही तो चाहती है? लेकिन सुषमा को तो अपने बेटे को इंजीनियर बनना था जो बन नहीं पाया. इस में भी सुषमा का ही हाथ है. बेटा, बेटा कर के उस की सभी गलतियों पर परदा डालती रही. पढ़ाई के समय वह अपने आवारा दोस्तों के साथ उड़ता फिरता और सुषमा कहती, वह तो पढ़ाई कर रहा है अपने कमरे में बैठ कर. जब पढ़ाई ही नहीं किया था, तो परीक्षा में लिखता क्या? इसलिए लगा चोरी करने और पकड़ा गया. कितने शर्मिंदा हुए मदन सब के सामने. यह सोच कर उन का सिर शर्म से झुक गया था कि लोग कहेंगे एक मास्टर का बेटा हो कर चोरी करते हुए पकड़ा गया. मदन ने अगर प्रिंसिपल के सामने अपने हाथपांव न जोड़े होते तो 2 साल के लिए सुषमा का लाड़ला बेटा रैस्टीकेट हो चुका होता. लेकिन फिर भी कहां सुधरा वह? वैसे ही अपने आवारा दोस्तों के साथ रातरातभर घर से बाहर रहता और सुषमा कहती, वह तो बैठ कर पढ़ाई कर रहा है. हद तक बिगाड़ कर रख दिया था उस ने दीपक को. मां की शै पा कर ही वह पिता से बहस लगाता, बहन पर हाथ उठाता. लेकिन फिर भी उस की सारी गलती छम्य थी क्योंकि वह बेटा था. उधर, रागिनी अपने भाई से इतर, पढ़ाई से ले कर घर के कामों में भी दक्ष थी. अपने स्कूल में वह हमेशा अव्वल आती थी. नाज होता मदन को जब कोई रागिनी की तारीफ करता तो जबकि अपने बेटे को ले कर वे हमेशा शर्मिंदा होते रहते थे. लेकिन रागिनी ने सोच लिया था कि जो भी हो, वह गुजरात पढ़ने जरूर जाएगी. इस के लिए उस ने खानापीना तक त्याग दिया. मदन जब रागिनी को समझाने आए कि वह अपना जिद छोड़ दे और वैसे भी उन की इतनी औकात नहीं है कि उसे बाहर पढ़ने भेज सकें. तो वह विफर उठी.