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पल्लवी ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा. सुबह के 9 बजे थे. ट्रेन आने में अभी 1 घंटा था. अगर वह 10 बजे भी स्टेशन के लिए निकली तब भी टे्रन के वक्त पर पहुंच जाएगी. स्टेशन 5-7 मिनट की दूरी पर ही तो था.

पल्लवी एक बार किचन गई. महाराज नाश्ते की लगभग सभी चीजें बना चुके थे. 10 बजे तक नाश्ता टेबल पर तैयार रखने का आदेश दे कर वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई और सरसरी तौर पर सजावट की मुआयना करने लगी. ड्राइंगरूम की 1-1 चीज उस की धनाढ्यता का परिचय दे रही थी.

पारुल तो दंग रह जाएगी यह सब देख कर. पल्लवी की संपन्नता देख कर शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो. पश्चात्ताप हो.

पारुल पल्लवी की छोटी बहन थी. आज वह पल्लवी के यहां 4-5 दिनों के लिए आ रही है. ऐसा नहीं है कि पारुल ने पल्लवी का घर नहीं देखा है. लेकिन वह यहां 5 वर्ष पहले आई थी. पिछले 5 वर्षों में तो पल्लवी के पति प्रशांत ने व्यवसाय में कई गुना प्रगति कर ली है और उन की गिनती शहर के सब से धनी लोगों में होने लगी है. 5 साल पहले जब पारुल यहां आई थी तो पल्लवी 5 हजार वर्गफुट की जगह में बने बंगले में रहती थी. लेकिन आज वह शहर के सब से पौश इलाके में अति धनाढ्य लोगों की कालोनी में 25 हजार वर्गफुट में बने एक हाईफाई बंगले में रहती है. अपनी संपन्नता के बारे में सोच कर पल्लवी की गरदन गर्व से तन गई.

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