‘‘अरे हां, जीजाजी क्या औफिस चले गए?’’ पारुल ने उत्साह से पूछा.
‘‘नहीं, वे तो काम से मुंबई गए हैं. वही से फिर बैंगलुरु और फिर हैदराबाद जाएंगे. व्यवसाय बढ़ गया है. महीने में 20 दिन तो वे बाहर ही रहते हैं,’’ पल्लवी ने अपने स्वर में भरसक गर्व का पुट भरते हुए कहा.
‘‘और तुम ने भी दोनों बच्चों को क्यों होस्टल में डाल दिया? बच्चे घर में होते हैं, तो रौनक रहती है,’’ पारुल ने एक कौर मुंह में डालते हुए कहा.
‘‘अरे, इन का स्कूल माना हुआ है, इन की इच्छा तो फौरेन भेजने की थी पर मैं ने कहा अभी बहुत छोटे हैं. हायर ऐजुकेशन के लिए भेज देना विदेश, अभी तो देहरादून ही ठीक है. यों भी जब पैसे की कोई कमी नहीं है तो बच्चों को क्यों न बैस्ट ऐजुकेशन दिलाई जाए. हां, जिन के पास पैसा न हो उन की मजबूरी है...’’ कहते हुए पल्लवी ने एक चुभती हुए गर्वीली दृष्टि पारुल पर डाली. लेकिन तब तक पारुल के मोबाइल पर बीप की आवाज आई और वह मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गई.
लिहाजा पल्लवी को चुप रह जाना पड़ा. फिर तो जब तक दोनों नाश्ता करती रहीं, पारुल मैसेज पढ़ती रही और जवाबी मैसेज भेजती रही. उस ने एक बार भी मुंह ऊपर नहीं उठाया. उलटे हाथ से लैटर टाइप करते हुए सीधे हाथ से एक कौर उठाती और मुंह में डाल लेती. क्या खा रही है, कैसा स्वाद है, मैसेज में मगन पारुल को कुछ पता नहीं चल रहा था.
पल्लवी मन ही मन खीज रही थी कि उस के इतने कीमती और ढेर सारे नाश्ते पर पारुल का ध्यान ही नहीं है.