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“देखो जो होना था हो चुका. और होनी पर हम इनसान का वश कहां ही चलता है,” उस का हाथ अपने हाथों में ले कर समझाने लगा, तो नीलू एकटक उसे देखने लगी और फिर रोने लगी.

“चुप हो जाओ. देखो, तुम इस तरह से टूट जाओगी, तो फिर मैं क्या करूंगा.“

“मेरी एक बात मानोगे तुम,” अपने आंसू पोंछते हुए नीलू बोली.

“हां, कहो न. क्या बात है?“

“म... मैं भैया के दोनों बच्चों को गोद लेना चाहती हूं, अगर तुम्हारी इजाजत हो तो...?”

“क्यों, कुछ हुआ क्या? मेरा मतलब है, अंश और मीठी तो अपने नानानानी के पास हैं न?” अमित ने पूछा, तो वह कहने लगी, “वो कल अदिति भाभी की मां का फोन आया था. कहने लगीं कि वे खुद पैंशन पर अपनी जिंदगी गुजरबसर कर रहे हैं. और सब से बड़ी बात कि उन की भी उम्र हो चुकी है तो... मतलब यही कि वे चाहते हैं कि हम अंश और मीठी को अपना लें. अदिति भाभी की 2 बड़ी बहनें और भाई भी हैं. लेकिन वे लोग बच्चों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं.“

“अच्छा, तो ये बात है.”

“अदिति भाभी की मां रोते हुए कहने लगीं कि अगर नहीं होगा तो वे अपने जीतेजी बच्चों को किसी अच्छे अनाथ आश्रम में डाल देंगे, ताकि उन का सही से पालनपोषण तो हो सकेगा.

"अमित, मैं नहीं चाहती कि मेरे भैया के बच्चे किसी अनाथ आश्रम में पलें. इन बच्चों के सिवा मेरे मायके में अब मेरे अपने बचे ही कौन हैं?” हिचकहिचक कर रोते हुए नीलू कहने लगी कि उस के भैया ने उस के लिए क्याकुछ नहीं किया है. जब उस के मांपापा कोरोना में चल बसे थे और वो डिप्रैशन में चली गई थी, तब उस के भैया रातरात भर जाग कर उस की सेवा करते थे. अपने हाथों से उसे खाना खिलाते थे. जब तक वो सो नहीं जाती, वो जागते रहते थे. और आज उन्हीं के बच्चों को अनाथ आश्रम में भेजने की बात सुन कर उस का दिल रो पड़ा है.

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