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“क्या मैं नीलू से बात कर सकता हूं?” उधर से किसी ने फोन पर कहा.

“जी कहिए, मैं नीलू ही बोल रही हूं. पर आप कौन?”

“मैं इंस्पैक्टर राघव दुबे, सिटी अस्पताल से बोल रहा हूं. एक एक्सीडैंट केस है. मुझे इन की डायरी से आप का नंबर मिला है, इसलिए आप को फोन लगाया.“

“एक्सीडैंट…” इतना नाम सुनते ही नीलू के हाथपांव फूलने लगे. उसे लगा, पता नहीं किस का एक्सीडैंट हो गया, “किस का एक्सीडैंट हुआ है?”

“पता नहीं चल पा रहा है कि ये लोग कौन हैं, पर इन की गाड़ी का नंबर तो इसी शहर का है. इस एक्सीडैंट में इन का फोन भी चकनाचूर हो गया, वरना कुछ पता चल पाता.

“अच्छा, मैं आप को इन की गाड़ी का नंबर बताता हूं. शायद इस से आप इन्हें पहचान पाएं,”  गाड़ी का नंबर सुनते ही नीलू का दिमाग हिल गया. लगा कि चक्कर खा कर वहीं जमीन पर गिर पड़ेगी.

“प्लीज, जितनी जल्दी हो सके आप यहां आ जाइए. वैसे, इन की डायरी में जितने लोगों के नंबर हैं, मैं उन सब को फोन लगा रहा हूं,”  कह कर इंस्पैक्टर ने फोन रख दिया और नीलू स्तब्ध और शून्य सी सामने दीवार ताकने लगी. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हो गया अचानक से.

तुरंत उस ने अपने पति अमित को फोन लगाया, “अमित… वो नीलेश भैया और अदिति भाभी का एक्सीडैंट…” आधी बात बोल कर नीलू फूटफूट कर रोने लगी. आगे उस से कुछ बोला ही नहीं जा रहा था.

एक्सीडैंट की खबर सुन कर अमित के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अमित ने उसे हिम्मत दी कि वह घबराए नहीं, वह बस वहां पहुंच ही रहा है.

अपने 3 साल के बेटे वंश को पड़ोस की एक भाभी के पास छोड़ नीलू बदहवास सी अस्पताल की तरफ भागी. कब वह आटो में बैठी, कब अस्पताल पहुंची, कुछ होश नहीं उसे.

अमित उसे अस्पताल के बाहर ही मिल गया, तो वह उस के गले लग कर सिसक पड़ी. जब नीलू ने फोन कर के बताया था कि नीलेश भैया और अदिति भाभी का एक्सीडैंट हो गया है, तभी औफिस का सारा कामधाम छोड़ कर अमित भागता हुआ अस्पताल पहुंच गया.

कुछ देर बाद अदिति के मायके वाले भी वहां पहुंच गए. अदिति की मां का तो रोरो कर बुरा हाल था. नीलेश के पापा भी एक कोने में खड़े सुबक रहे थे.

पुलिस का कहना था कि यह हादसा एक लापरवाही की वजह से हुआ है. रौंग साइड से आते बालू से लदे एक ट्रक ने उन की गाड़ी को इतनी जोर से धक्का मारा कि दोनों गाड़ी सहित खाड़ी में जा गिरे. ट्रक ड्राइवर तो वहां से भाग गया, लेकिन वहीं हाईवे के पास से ही किसी ने पुलिस को फोन कर इस एक्सीडैंट की जानकारी दी, तब जल्दी से इन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. एक्सीडैंट इतनी बुरी तरह से हुआ था कि गाड़ी के परखच्चे उड़ गए थे, लेकिन उन की सांसें चल रही थीं इसलिए जल्दी से उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया.

“वैसे, तहकीकात चल रही है. जल्द ही ट्रक ड्राइवर पकड़ा जाएगा.”

“लेकिन, ट्रक ड्राइवर पकड़ा भी गया तो क्या हो जाएगा? इस से जो नुकसान हुआ, उस की भरपाई हो पाएगी? भारत में गलत दिशा में (रौंग साइड) गाड़ी चलाना एक बहुत बड़ी समस्या है.

“सिर्फ हाईवे पर ही नहीं, बल्कि शहरों में भी रौंग साइड ड्राइविंग आम बात है. लोग इतनी जल्दीबाजी में होते हैं कि कुछ समझते ही नहीं और अपने साथसाथ लोगों की जान भी जोखिम में डाल देते हैं. नहीं समझते लोग कि उन की ऐसी गलती से कितनों की दुनिया उजड़ जाती है, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं,” अदिति की मां रोते हुए कहने लगीं कि नीलेश और अदिति अपने किसी दोस्त की शादी से लौट रहे थे, तभी यह हादसा हो गया. वो तो शुक्र था कि दोनों बच्चे उन के पास, यानी अपने नानानानी के पास थे, तो बच गए.

“डाक्टर साहब, मेरे भैयाभाभी बच तो जाएंगे न?” नीलू डाक्टर को देख उस के पीछे भागी. लेकिन डाक्टर ‘आई एम सौरी” बोल कर आगे निकल गया.

“सौरी अमित, देखो न, डाक्टर साहब सौरी क्यों बोल रहे हैं?” वह अमित का हाथ पकड़ कर झकझोरते हुए चीख पड़ी, लेकिन अमित कैसे बताता उसे कि अब उस के भैयाभाभी इस दुनिया में नहीं रहे. लेकिन बताना तो था ही.

अपने भैयाभाभी की मौत की खबर सुन कर नीलू दहाड़ मार कर रो पड़ी. बेटीदामाद की मौत की खबर सुन अदिति की मां भी हिचकहिचक कर रोने लगीं. उस के पापा भी एक कोने में खड़े सुबकने लगे.

खैर, अब जो होना था हो ही चुका था, कुछ किया नहीं जा सकता था. परंतु, दुख इस बात का था कि दोनों बच्चे अनाथ हो गए.

नीलू के भैयाभाभी को गुजरे आज हफ्ता हो चुका था, पर नीलू अब तक उस बात को भुला नहीं पाई थी. बातबात पर वह रो पड़ती. खानेपीने से भी उस का मन उचाट हो चुका था. बारबार एक ही बात उस के दिल को मथती कि काश, एक बार वह अपने भैया से मिल ली होती, उन से बात कर ली होती.

“नीलू, संभालो खुद को. कब तक यों रोती रहोगी. होनी पर किसी का बस चला है कभी, इसलिए खुद को कोसना बंद करो अब,” अमित उसे समझाता. लेकिन, नीलू भी क्या करे, कैसे समझाए खुद को. मायके में एक भैयाभाभी ही तो बचे थे, जिसे वो अपना कह सकती थी. अब वे दोनों भी नहीं रहे, यह बात उसे जीने नहीं दे रही थी कि एक बार वह अपने भैया से माफी भी नहीं मांग पाई. अगर मांग ली होती तो आज उसे इतना दुख न होता.

“हां, मानती है, नीलेश के दिल में अपनी बहन के लिए बहुत नफरत भरी हुई थी और वो उस से अपना सारा रिश्ता खत्म कर चुके थे. लेकिन अगर नीलू ही आगे बढ़ कर उन से एक बार बात कर लेती, तो क्या चला जाता उस का? कोई छोटी तो नहीं हो जाती न? लेकिन वो भी इसी अकड़ में जीती रही कि अगर उस के भैया को उस की जरूरत नहीं है, तो वह क्यों परवाह करे.

‘काश, वक्त पीछे जा पाता, काश, एक बार वह अपने भैया से बात कर पाती,’ अपने मन में सोच कर नीलू बिलखबिलख कर रो पड़ी. अपने आंसू पोंछते हुए वह 5 साल पीछे चली गई.

नीलू के पापा महादेव प्रसाद पोस्ट औफिस में एक छोटे से पद पर कार्यरत थे. शौक तो उन का अपने बच्चों को डाक्टरइंजीनियर बनाने का था, पर पारिवारिक जिम्मेदारियां इतनी बड़ी थीं कि उन का सपना, सपना ही रह गया.

बूढ़े मांबाप दो जवान बहनों की जिम्मेदारी निभाते हुए ही रिटायर्ड हो गए. लेकिन उन के दोनों बच्चे नीलू और नीलेश बचपन से ही पढ़ने में होशियार रहे थे, इसलिए ग्रेजुएशन के बाद पहले ही प्रयास में नीलेश यूपीएससी क्रैक कर एक बड़ा अधिकारी बन गया और नीलू भी एक सरकारी बैंक में बड़ी अधिकारी बन गई.

महादेव प्रसाद के तो दिन ही फिर गए. उन्हें तो यही लग रहा था कि ये उन के अच्छे कर्मों का फल है, जो आज उन्हें दोनों बच्चों के द्वारा मिल रहा है.

महादेव प्रसाद की आंखों में अब अपने बेटे की शादी के सपने पलने लगे, तो एक अच्छी लड़की देख कर उन्होंने नीलेश की शादी कर दी.

अदिति काफी सुलझी हुई, संस्कारी और सरल स्वभाव की थी. आते ही उस ने अपने प्यार से इस घर में सब का मन मोह लिया. इतनी अच्छी बहू पा कर महादेव प्रसाद और उन की पत्नी तो धन्य हो गए.

शादी के एक साल बाद ही अदिति ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियां ही खुशियां छा गईं. अब महादेव प्रसाद को एक ही बात की चिंता थी कि नीलू की किसी अच्छे घर में ब्याह हो जाए. लेकिन फिर सोचते कि बेटी इतनी बड़ी पोस्ट पर है तो लड़का भी अच्छा मिल ही जाएगा, चिंता की क्या बात है, बल्कि लड़के वाले खुद उन की बेटी का हाथ मांगने आएंगे.

महादेव प्रसाद और उन की पत्नी की अपने भरेपूरे परिवार के साथ जिंदगी मजे से गुजर रही थी. लेकिन अचानक से कोरोना ने आ कर ऐसा कहर ढाया कि दोनों पतिपत्नी कोरोना के काल में समा गए.

घर में खुशियों की जगह  मातम सा छा गया. समय ही ऐसा था कि इनसान इनसान से भाग रहा था. इसलिए कोई रिश्तेदार, पड़ोसी भी मिलने या दुख बांटने नहीं आए उन के पास. अब भाईबहन ही एकदूसरे का सहारा रह गए थे.

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