घर आ कर श्लोका निढाल हो बिछावन पर पड़ गई और सुबकते हुए सोचने लगी कि निखिल उसे ऐसे धोखा देगा, सपने में भी नहीं सोचा था उस ने. उसे तो लगा था, वह भी उस से उतना ही प्रेम करता है जितना वो. लेकिन उस ने तो सिर्फ उस के शरीर से प्रेम किया. छलता रहा उसे भ्रम में रख कर कि वह उस पर मरता है. लेकिन, अब मरने लायक तो उस की जिंदगी बन चुकी है. उठ कर उस ने निखिल को फिर से फोन लगाया, लेकिन शायद उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया. उस का सिर इतनी जोर से घूमा कि वह लड़खड़ाती हुई पलंग पर गिर पड़ी. उस की आंखों से अश्रु धारा बहने लगे.
अपने पेट पर हाथ रख उस ने महसूस किया कि एक जीव उस के अंदर सांस ले रहा है. ‘न... नहीं, एक मां हो कर मैं अपने ही बच्चे को नहीं मार सकती,’ वह खुद में ही बुदबुदाई. ‘लेकिन, समाज और परिवार से कैसे लड़ोगी तुम? अकेले पाल सकोगी इस बच्चे को?’ श्लोका के दिल से आवाज आई, तो वह चीख पड़ी और अपने दोनों कान बंद कर लिए.
श्लोका खुद से ही रोज लड़ रही थी. उस का एक मन कहता कि इस बच्चे को गिरा दो और दूसरा कहता, एक मां हो कर वह अपने बच्चे को कैसे मार सकती है?
बेटी का कमजोर और पीला पड़ता चेहरा देख कर अंजू पूछती कि तबीयत ठीक तो है न उस की? नहीं तो चल कर किसी डाक्टर से दिखा देते हैं. लेकिन श्लोका अपनी पढ़ाई और कैरियर की टैंशन बता कर मां को चुप करा देती. लेकिन वह कब तक झूठ बोलेगी अपनी मां से? उस का बढ़ता पेट एक न एक दिन तो सचाई उगलेगा ही न.