कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मन्नो और नकुल ने बाली उम्र में मातापिता की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह कर तो लिया लेकिन जल्दी ही उन्हें आटेदाल का भाव पता चल गया. जिंदगी की गाड़ी सिर्फ प्यार से नहीं चलती. तो क्या, दो प्यार करने वालों के इरादे, ख्वाब, उम्मीदें सब फना हो गए?

‘‘म  न्नो, मन्नो.’’

‘‘हां, बोलो. फुरसत मिल गई अपने काम से या अभी भी पिज्जा डिलीवरी के लिए और जाना है?’’

‘‘मन्नो, सुनो तो. यों मु?ा पर गुस्सा तो मत करो, प्लीज.’’

‘‘गुस्सा न करूं तो क्या करूं, रोजाना आधी रात के बाद घर लौटते हो. कभी सोचा है, आधी रात तक का मेरा वक्त कैसे बीतता है अकेले बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते?’’

‘‘सब सम?ाता हूं, मन्नो. लेकिन मैं करूं तो क्या करूं, घर बैठ जाऊं? पिछले महीने घर बैठा तो था, याद है या भूल गईं? दो वक्त की रोटियों तक के लाले पड़ गए थे. इतनी मुश्किल से तो यह नौकरी मिली है. अब इसे भी छोड़ दूं?’’

‘‘दूसरी नौकरी तलाशोगे तब तो मिलेगी. तुम्हारी यह आधीआधी रात तक की नौकरी मु?ो तो फूटी आंख नहीं सुहाती. दिनदिन की नौकरी करो न भलेमानुषों की तरह. मैं भी तो नौकरी करती हूं. शाम को 7 बजतेबजते लौट आती हूं कि नहीं. अरे ढूंढ़ोगे तब तो मिलेगी न नौकरी. यों हाथ पर हाथ धर कर तो मिलने से रही नई नौकरी.’’

‘‘तो तुम्हारा मतलब है कि मैं हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहता हूं? बस, बस, अपनी नौकरी को ले कर ज्यादा उड़ो मत. तुम चाहती हो कि तुम्हारी इस 10,000 रुपए की नौकरी के दम पर मैं अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं और फिर से सड़कों की खाक छानूं?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...