12वीं की बोर्ड परीक्षा के बाद थोड़े दिन आराम कर ने के बाद नमन किताब खोल कर पढ़ने लगा तो उस के मातापिता को आश्चर्य हुआ. नमन इतना पढ़ाकू कभी नहीं रहा. मालूम नहीं कितने नंबर आएंगे, किसी कालेज में दाखिला मिलेगा या फिर पत्राचार से बीए करेगा. वे उस के भविष्य के लिए चिंतित भी थे. हर वर्ष लुढ़कते अगली कक्षा में पहुंच जाता था. 10वीं की बोर्ड परीक्षा में भी मातापिता के दबाव में पढ़ाई की और 55% नंबर ले आया था, जब दूसरे छात्र 95% से अधिक नंबर प्राप्त कर रहे थे.

11वीं में वह स्वयं से पढ़ने लगा. मातापिता को तनिक भी एहसास नहीं हुआ कि उस के बदलते रुझान का आखिर क्या कारण है. कारण रही प्रेरणा। 11वीं में नमन ने कौमर्स ली और टीचर ने नमन को प्रेरणा के साथ डैस्क पर बैठा दिया.

नमन गोराचिट्टा व लंबे कद का हैंडसम लड़का था. चेहरे पर हलकीहलकी दाढ़ी भी आने लगी थी. उस ने अभी शेव करना शुरू नहीं किया था.

प्रेरणा भी खूबसूरत लड़की थी. उम्र के हिसाब से शरीर में समुचित भराव था. पहले दिन दोनों ने एकदूसरे को देखा और आकर्षित हुए. अपनी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. प्रेरणा पढ़ने में होशियार थी. उस से मित्रता के चक्कर में नमन ने पढ़ाई में मन लगाना शुरू कर दिया. पढ़ाई के बहाने दोनों में बातचीत आरंभ हो गई.
यह उम्र कुछ स्वयं बननेसंवरने की होती है. दूसरों को अपनी ओर आकर्षित होने की होती है. दूसरे उन्हें देखें, उन की ओर आकर्षित हों, उन की तारीफ करे, यह स्वाभाविक है. कुछ यही प्रेरणा तथा नमन में प्राकृतिक रूप से हुआ.

एक ही डैस्क पर बैठते हुए उन का एकदूसरे के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक था, जो हुआ. स्कूल में तो यूनिफौर्म अनिवार्य है, स्कूल के बाहर बनसंवर कर घूमनाफिरना युवाओं को कई बार एकतरफा प्रेम का एहसास करा जाता है.

नमन भी इसी दौर से गुजर रहा था. प्रेरणा पढ़ाकू होने के कारण टीचर्स की नजरों में थी. प्रेरणा नमन से अधिक बात करे, उस के साथ समय अधिक व्यतीत करे, इस समस्या का केवल एक ही समाधान था, नमन पढ़ाई की बातें प्रेरणा से करे. नमन ने यही सही रास्ता चुना और 12वीं में दोनों की मित्रता घनिष्ठ हो गई. दोनों एकसाथ पढ़ने लगे, पढ़ाई की बातें डिस्कस होतीं. कभीकभी एकदूसरे को देख कर दिल धड़कने लगता. पढ़ाई के साथ नईपुरानी फिल्मों पर भी दोनों चर्चा करते. नमन का दिल कहता था कि उस के संग फिल्म देखे, मगर दिल की बात जबान पर कभी नहीं ला सका. दोनों के घर आसपास थे, दोनों पढ़ने के लिए अकसर एकदूसरे के घर भी आ जाते थे.

बोर्ड परीक्षा के बाद नमन को पढ़ाई की चर्चा करते देख कर उस के पिताजी ने पूछ ही लिया, “आगे क्या करने का इरादा है? कुछ तो सोचा होगा?”

“सबकुछ सोच रखा है पापा. बी.काम में ऐडमिशन लेना है और साथ में सीए करनी है.“ नमन के मुख से आत्मविश्वास वाला उत्तर सुन कर पिताजी को झटका लगा. यह कायाकल्प कैसे हो गया है? फिर संभल कर पूछा, “सुना है आजकल 90% से कम वालों को दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐडमिशन नहीं मिलता है.“

“वह तो है पापाजी. दिल्ली में बहुत कालेज हैं, कैंपस में ऐडमिशन नहीं मिला तो कोई गम नहीं. दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी कालेज में ऐडमिशन मिल जाएगा. उस के साथ सीए करूंगा.“

“सुना है, सीए में पढ़ाई बहुत करनी पड़ती है. रिजल्ट भी बहुत कम निकालते हैं. बहुत टफ है,“ पिताजी ने फिर अपनी शंका को जाहिर किया.

“प्रेरणा और मैं ने प्रण कर लिया है. बी.काम के साथ सीए करनी है. बोर्ड में मेरे अच्छे नंबर आने की उम्मीद है.“
अब पिताजी को समझ आया कि प्रेरणा के संग पढ़ने और साथ से नमन जीवन के प्रति गंभीर हो गया है.

“सुंदर लड़की है और समझदार भी,“ माताजी बोल उठी.

पिताजी हैरानी से देखने लगे, अभी तो लड़का 18 वर्ष का है. माताजी क्या बोल गईं? वे अपनी दुकान में इतने व्यस्त रहते हैं, बच्चे क्या कर रहे हैं, मालूम ही नहीं पड़ा.

“सुंदर और समझदार से तुम्हारा क्या मतलब है?” पिताजी ने माताजी की ओर देखा.

“अब सुंदर है तो है. तुम खुद देख लो.“

“अब मैं दुकान न जाऊं, लड़कियों की खूबसूरती देखता रहूं.“

“मुझे भी कभी ध्यान से नहीं देखा तो दूसरी लड़कियों को क्या खाक देखोगे,“ माताजी की पिताजी से बहस हो गई.

“अब नाश्ता करा दो तो दुकान जाऊं,“ पिताजी दुकान के बहाने माताजी से बच गए. वे सोचने लगे, रिजल्ट आएगा तब देखेंगे.

मई अंत में रिजल्ट आ गया. नमन के 92% अंक आए. प्रेरणा के 97% अंक आए. प्रेरणा का बी.काम में ऐडमिशन नौर्थ कैंपस के खालसा कालेज में हुआ. नमन का ऐडमिशन कैंपस के बाहर राजधानी कालेज में हुआ, वह भी तीसरी लिस्ट में.
खैर नमन खुश था, ऐडमिशन हो गया. दोनों ने सीए के फाउंडेशन कोर्स में भी ऐडमिशन लिया. दोनों के कालेज अलग थे इसलिए शाम को मिलते. यथापूर्वक पढ़ने के लिए एकदूसरे के घर भी आतेजाते रहते.

कई बार एकदूसरे के कालेज भी चले जाते. फुरसत में घूमते और मूवी देखने चले जाते. इस कारण वे दोनों अपने मित्र समूह में बौयफ्रैंड गर्लफ्रैंड के रूप में मशहूर हो गए. कालेज में न तो नमन की कोई गर्लफ्रैंड बनी न ही प्रेरणा का कोई बौयफ्रैंड बना.

“यार, यह तो गलत बात है। कोई लड़की मुझ से ढंग से बात नहीं करती. पढ़ाई तक की भी नहीं करती,“ नमन ने अपना दुखड़ा सुनाया.

प्रेरणा कुछ देर सोचता रही.
“सोच क्या रही हो?”

“कुछ यही हाल मेरा भी है. सारे लड़के दूरदूर भाग जाते हैं जैसे मैं ने उन की भैंस भगा ली.“

“हम एकदूसरे से मिलते हैं, इस से दूसरों को क्या तकलीफ है? पढ़ाई की बात तो कर सकते हैं.“

“नहीं करते न करें. हम दोनों स्कूल से फ्रैंड हैं.“

“हूं यह बात तो है. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं. चलो फिल्म देखने चलते हैं.
दोनों ने एकसाथ फिल्म देखी. फिल्म देखने के बाद घर पर रात के समय बिस्तर पर करवटें बदलते हुए दोनों सोच रहे थे कि एकसाथ रहते हुए भी उन्होंने प्रेम के विषय में कोई विचार नहीं किया. शारीरिक आकर्षण हुआ मगर प्रेम में डूबने के स्थान पर पढ़ाई के गोते लगाते रह गए.

अब जब कालेज में अन्य लड़के, लड़कियों ने उन से मित्रता को घनिष्ठ नहीं बनाया, दोनों आज पहली बार प्रेम पर विचार करने लगे मगर जब फिर अगली शाम मिले, प्रेरणा ने अपना दिमाग खोला, “नमन, अब हमें पढ़ कर कैरियर बनाना है. फिल्म सीए बनने के बाद भी देख लेंगे.“

“बिलकुल ठीक बात,“ नमन भी अपने दिल की बात दिल में दबा गया. वैसे वह प्रेम के चक्कर में प्रेरणा के निकट आया था और पढ़ाकू बन गया.
साथसाथ मिलते, पढ़ते दोनों ग्रैजुएट बन गए. साथ ही साथ दोनों की सीए इंटर भी हो गई. दोनों के परिवार उन की पढ़ाई पर संतुष्ट थे. कालेज पासआउट के बाद दोनों को एकसाथ रहने के लिए अधिक समय मिलने लगा.

“प्रेरणा, एक बात कहूं?” एक दिन नमन ने अपने दिल का हाल प्रेरणा के सामने रखने का पक्का मन बना लिया. दोनों एक फूड जौइंट में बैठ कर बर्गर खा रहे थे.

“बोल दो, क्या बोलना है. सीए फाइनल बहुत मुश्किल है. उस की जम कर तैयारी करनी है.“

“वह तो है, सीए कंप्लीट करनी है. एक बात और भी है.“

“कौन सी बात है?”

नमन के दिल में जो था वह अटक गया, जिस मकसद से आया था, उस से भटक गया. आई लव यू उस के गले में अटक गया, जो उस ने नहीं सोचा था, वह बोल गया.

“वह क्या है न कि सीए बनने के बाद क्या सोचा है?”

“सोचना क्या है, कोई अच्छी सी नौकरी करूंगी. मेरे फादर की जौब है, मैं भी करूंगी. अब तुम तो प्रैक्टिस की सोच सकते हो, तुम्हारे फादर की दुकान है, बिजनैस करते हैं.“

“हां वह तो है,“ नमन बस इतना ही कह सका. दिल की बात दिल में ही रह गई. नमन की एक कमजोरी, प्रेरणा को अपना दिल खोलकर नहीं दिखा पाना, आज तक कायम है. दोनों की मित्रता गाढ़ी होती गई मगर प्रेम का इजहार नहीं हो सका. एक संतोष नमन को जरूर था, वह पढ़ाकू हो गया. पढ़ने की प्रेरणा भी प्रेरणा की खूबसूरती से मिली.

नमन का मन प्रेरणा में अधिक उलझने लगा, वह कैसे अपने दिल का हाल बताए, इस का असर उस की पढ़ाई में पड़ने लगा. प्रेरणा की सीए कंप्लीट हो गई मगर नमन का एक ग्रुप अटक गया.

प्रेरणा के सीए कंप्लीट होने की खुशी में उस के परिवार में दावत दी गई जिस में नमन भी आमंत्रित था. उस के कान में प्रेरणा के मातापिता की वार्तालाप के कुछ अंश पड़ गए. वे प्रेरणा को विवाह के लिए कह रहे थे. प्रेरणा ने अभी रुकने को बोला, “मम्मी, पहले 2 साल नौकरी कर लूं. थोड़ा बैंक बैलेंस भी हो जाए.“

नमन सोचने लगा कि कहीं प्रेरणा की शादी हो गई तब उस के अरमान दिल में ही रह जाएंगे. एक दिन वह प्रेरणा को पिज्जा खिलाने ले गया.”सुना है, तुम शादी कर रही हो?” नमन ने सीधा प्रश्न किया.

प्रेरणा नमन को घूरती रही. कुछ सोचने के बाद बोली, “देख नमन, यदि तुम्हें सीए बनना है तब तो मैं रुकूं नहीं तो कोई सीए लड़का देखना पड़ेगा. मम्मीपापा भी पीछे पड़ गए हैं.“

नमन को प्रेरणा से हिंट मिल गया.
“यार, भरपूर प्रयास कर रहा हूं. देखना इस बार कंप्लीट हो जाएगी.“
कुछ तो प्रेम प्रेरणा के दिल में भी उमड़ा था जो अप्रत्यक्ष रूप से उस ने उजागर कर दिया.

नमन फिर से जीजान से पढ़ाई में गोते लगाने लगा. वह एक बार असफल रहा मगर दूसरी बार उस ने बाजी मार ली और सफल हो गया. सीए बनते ही नमन पिज्जा और बर्गर ले कर प्रेरणा के घर पहुंच गया.

“अब क्या इरादा है?” उस ने प्रेरणा से पूछा.

“कौन सा?” प्रेरणा उस के हावभाव देखना चाहती थी.

“अब तुम्हारा बैंक बैलेंस बन गया होगा?”

“तुम भी बनाओ.“

इतना सुनते ही नमन चुप हो गया.
“चुप क्यों हो?”

“सोच रहा हूं बैंक बैलेंस आई लव यू पर भारी पड़ गया है.“

“पैसा सब से अहम है. आखिर हम सीए रुपयों की गिनती की औडिट करते रहते हैं.“

“अच्छा चलता हूं.“

“बाय, एक बात तो बताओ, नौकरी करोगे या प्रैक्टिस?” प्रेरणा के इस प्रश्न पर नमन ने कुछ सोचा फिर दिल की बात बोल ही दी.

“शादी करूंगा.“

प्रेरणा चौंक गई, “किस से?”

“कोई तो मिल ही जाएगी. सीए बन गया हूं.“ नमन वहां से चला गया.

कुछ देर वह यों ही मौल में बिना किसी उद्देश्य के घूमता रहा. जब घर पहुंचा तो रात के 9 बज रहे थे. उस का मन खिन्न था। जिस लड़की के चक्कर में उस ने पढ़ना शुरू किया, वही भाव दिखा रही है. चलो कोई बात नहीं, इस बहाने कैरियर तो बन गया.

नमन घर पहुंचा तो वह हैरान हो गया. प्रेरणा के मातापिता उस के मम्मीपापा के पास बैठे हंस कर बात कर रहे थे.
“भाईसाहब, यह तो प्रेरणा की प्रेरणा ने हमारे पढ़ाई से जी चुराने वाले लड़के को सीए बना दिया. चलो जब आप कहते हैं, लड़कालड़की राजी, फिर हम अडंगा क्यों डालें.”

नमन को उस के पापा ने आवाज दी.
“नमन इधर आना.“

“जी पापा.“

“तुम प्रेरणा से मिलने गए थे न?” पिताजी ने प्रश्न पूछा.

“जी पापा.“

“तो उस को घर ले आते. एकसाथ खुशी की मिठाई खाते.“ नमन सकपका गया.

“अरे खोएखोए क्यों हो, प्रेरणा तेरे सीए बनने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी. अब तो हां बोल दे. प्रेरणा के मम्मीपापा उस की हां के साथ आए हैं.“

नमन ने मिठाई खाई और झट से कमरे में गया. प्रेरणा को फोन मिलाया,”मिठाई खा ली, लड़की कौन है?” प्रेरणा की शरारत भरी आवाज थी.

“ड्रामेबाज, कल मिल, लड़की दिखाता हूं.“

प्रेरणा फोन पर हंसी. दूसरी ओर से दोनों के मम्मीपापा हंस रहे थे. वाकई बच्चे समझदार हैं. प्रेम को बैकग्राउंड में रख कर पढ़ कर कैरियर बना लिया.

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